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राफेल पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उल्टा चोर कोतवाल को डांटे

 

‘कुत्ते की दुम टेढ़ी की टेढ़ी’, यह एक बहुत ही प्रचलित लोकोक्ति है। बताया जाता है कि कुत्ते की दुम को बारह साल तक पाइप में रखने पर भी सीधी नहीं होती है। पाइप से निकालते ही वो टेढ़ी हो जाती है। इस लोकोक्ति का इस्तेमाल उस व्यक्ति के लिए किया जाता है जो लाख कोशिशों के बावजूद सुधरने का नाम नहीं लेता। ऐसे व्यक्ति को ‘कुत्ते की दुम’ कहा जाता है। राफेल विवाद के मामले में राहुल गांधी और मोदी से घृणा करने वाले लॉबी की हालत कुत्ते की दुम की तरह हो गई है। ये हर बार बिना सबूत, बिना तथ्य, बिना किसी वजह के मोदी पर आरोप तो लगाते हैं लेकिन कुछ साबित नहीं कर पाते हैं। कोर्ट से लताड़ पड़ती है तो फिर कोई दूसरा मुद्दा उठा लेते हैं। राहुल गांधी को तो केजरीवाल की बीमारी लग गई है, बिना सबूत के आरोप लगाना फिर माफी मांगना। केजरीवाल तो एक शहर का नेता है लेकिन कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी का अध्यक्ष जब सड़कछाप राजनीति करने लग जाए तो इसके नतीजे काफी खतरनाक हो सकते हैं।

राफेल पर राहुल गांधी ने सबसे पहले फ्रांस के राष्ट्रपति के नाम पर संसद में झूठ बोला। फिर, विमान की कीमत पर लोगों को भम्रित किया। अनिल अंबानी का नाम लेकर देश को गुमराह किया। राहुल गांधी की अकलमंदी की पराकाष्ठा ये है कि इन्हें सही से ये भी पता नहीं है कि घोटाला कितने का है, फिर भी आरोप लगाने में ये सबसे आगे रहे। पता नहीं ये क्या पीते हैं। किस नशे में रहते हैं या फिर जबान लडख़ड़ा जाती है। अपने भाषणों में ये कभी एक लाख तीस हजार करोड़, तो कभी एक लाख करोड़, तो कभी साठ हजार करोड़, तो कभी तीस हजार करोड़ का स्कैम बताते हैं तो कभी अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने की बात करते हैं। मतलब ये कि इन्हें पता नहीं रहता है कि ये क्या बोल रहे हैं, बस जनता को गुमराह करने के लिए ऊल-जलूल बयान देते रहते हैं। घटिया स्तर की राजनीति करते हैं।

हैरानी की बात ये है कि दुनिया की शायद सबसे भ्रष्ट पार्टी के अध्यक्ष देश के कई लोगों को झांसा देने में सफल भी रहे। जिसका फायदा राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को हुआ। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहुल गांधी के सारे दावे फुस्स हो गए हैं। सारे आरोप झूठे साबित हो चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा राफ़ेल सौदे में कोई गड़बड़ी नहीं है। न ही इसे साबित करने के लिए कोई तथ्य मिले। मतलब साफ है कि ये राफेल सौदे को घोटाला बताना मोदी विरोधी लॉबी की महज कल्पना है। राहुल गांधी, यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी जैसे लोगों में शर्म नाम की कोई चीज बची है तो उन्हें फौरन देश की जनता से माफी मांगनी चाहिए।

दूसरी अहम बात जो कोर्ट के फैसले से सामने आई वो ये कि ये सौदा अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं किया गया है। सरकार ने इस सौदे के लिए सही प्रक्रिया अपनाई है। इस पर संदेह नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने ये भी कहा कि ऑफ़सेट पार्टनर सरकार ने नहीं, बल्कि दसॉल्ट ने चुना है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को भी लताड़ा। कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में किसी इंटरव्यू के आधार पर फैसला नहीं हो सकता। सीधे शब्दों में इसका यही मतलब है कि राफेल डील में न तो विमान मंहगे दाम पर खऱीदे गए, न ही अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाया गया और न ही किसी प्रक्रिया का उलंघ्घन किया गया। यानि, मोदी सरकार पर राफेल को लेकर जितने भी आरोप लगे उस पर कोर्ट ने गहन पड़ताल के बाद खारिज कर दिया।

लेकिन, भष्टाचार के मामले में बेल पर बाहर घूम रहे राहुल गांधी ने बेशर्मी की सारी हदें पार कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) की जांच की मांग कर टिके हैं। राहुल गांधी को ये बताना चाहिए कि क्या जेपीसी में शामिल सांसद क्या सत्यवादी हरिश्चंद होंगे जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ज्यादा विश्वसनीय फैसले की क्षमता रखते हैं? उन्हें ये भी बताना चाहिए कि कांग्रेस पार्टी का नुमाइंदा कोर्ट में अर्जी डाल कर आंखिरी मौके पर मैदान छोड़ कर क्यों भाग गया? अपनी अर्जी क्यों वापस ले ली? अगर राहुल गांधी के पास राफेल डील को लेकर कोई सबूत है तो उसे जनता के सामने क्यों नहीं रख रहे हैं? कांग्रेसी एजेंट्स बने याचिकाकर्ता ने तो सारी राफेल डील को स्कैम साबित करने के लिए सारी ताकत झोंक दी फिर कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा कि मोदी सरकार के खिलाफ एक भी सबूत नहीं मिला है? दरअसल, इन्हें राफेल के मामले पर राजनीति करना है। लोकसभा चुनाव तक इस मुद्दे को जिंदा रखना है। ठीक वैसे ही जैसे 2003 में सोनिया गांधी ने ताबूत घोटाले का झांसा देकर, झूठे आरोप लगा कर अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को घेरा था।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट की वजह से राफेल पर राहुल के झूठ का पर्दाफाश हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से साबित हो गया है कि बार-बार झूठ बोलने से कोई बात सच नहीं हो जाती है। लेकिन कुत्ते की दुम तो टेढ़ी की टेढ़ी ही रहेगी। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद देश से माफी मांगने के बजाए राहुल गांधी ने फिर से जेपीसी की बात उठा दी। कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी और मोदी विरोधी लॉबी ये दलील दे रहे हैं कि जब कोई घोटाला नहीं हुआ है तो फिर सरकार जेपीसी से क्यों भाग रही है। जांच हो जाने देना चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि जांच किस बात की? कोई दस्तावेज, कोई संदेह, कोई सबूत तो हो जिसके आधार पर जांच हो सके। यहां तो कुछ है ही नहीं फिर किस बात की जेपीसी? अब तो कोर्ट ने भी ये मामला खारिज कर दिया है।

अगर बिना सबूत, बिना संदेह और बिना दस्तावेजों के हर बात पर जांच बिठाई जाने लगे तो कल कोई ये भी कह सकता है कि राहुल गांधी ने देश की सुरक्षा-व्यवस्था को कमजोर करने के लिए दुश्मन देशों से सुपारी ली है! पाकिस्तान और चीन से पैसे लेकर राफेल डील को निरस्त करने का सौदा कर चुके हैं! तो इसकी भी जांच होनी चाहिए। कोई ये भी कह सकता है कि प्रशांत भूषण अमेरिका या रूस से पैसे खा कर फ्रांस के साथ हुई डील को रद्द करने की मुहिम चला रहे हैं! इसकी भी जांच हो। इतना ही नहीं, आरोप तो ये भी लग सकते हैं कि मोदी विरोधी लॉबी राफेल से जुड़ी खुफिया जानकारी दुश्मन देशों को सौंपना चाहती हैं इसलिए विमान की कीमत की डिटेल हासिल करने के लिए कोर्ट में अर्जी डाली है! तो क्या हर बात पर सीबीआई या ज्यूडिशियल या जेपीसी बैठाई जाएगी? ये बौने नेता और तथाकथित एक्टिविस्ट्स इन विवादों के जरिए देश को हानि पहुंचाने वाला तमाशा क्यों कर रहे हैं?

हकीकत ये है कि जस्टिस लोया के मामले में मोदी विरोधी लॉबी को सुप्रीम कोर्ट से लात पड़ी। अर्बन नक्सल के मामले में हार का सामना करना पड़ा। ये लोग याकूब मेनन को बचाने में नाकाम रहे। एनजीओ के मामले में कोर्ट से राहत नहीं मिली। और अब राफेल के मामले में पासा उल्टा पड़ गया है। दरअसल, ये लोग घृणा की हद तक मोदी का विरोध करते करते देश का विरोध करने लगे हैं। इन लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता और नियत पर सवाल खड़े करने की कोशिश की। उन पर भ्रष्ट होने का आरोप लगाया। इतना ही नहीं, फ्रस्टेशन का आलम ये है कि राहुल गांधी और लुटियन लॉबी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत आरोप लगाना शुरु कर दिया है।

इस विवाद का राजनीतिक पहलू ये है कि राहुल गांधी 2019 में प्रधानमंत्री बनने के लिए मैदान में उतरने वाले हैं। वो और सोनिया गांधी दोनों ही नेशनल हेराल्ड मामले में अरोपी बनाए गए हैं। जनामत पर चल रहे हैं। कांग्रेस पार्टी की स्ट्रैटजी ये है कि मोदी पर भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगाना जरूरी है ताकि चुनाव के दौरान करप्शन के मुद्दे पर हमले को रोका जा सके, ताकि 2014 वाली स्थिति न बन सके।

 

मनीष कुमार

 

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