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मेघालय हाई कोर्ट के एक सही फैसले पर सियासत?

भारत का विभाजन 1947 में धर्म के आधार पर हुआ था। अलग हो कर पाकिस्तान ने स्वयं को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया जबकि भारत ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र रहना पसंद किया। भारत को भी उस समय स्वयं को हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था। जो हिंदू उस समय भारत नहीं आ पाए वो और उनकी पीढ़ी तीन पड़ोसी देशों में तरह तरह के अत्याचार सह रही हैं। पड़ोसी देशों अथवा दुनिया के किसी भी कोने से कोई हिंदु, सिख, जैन, बौद्ध,  गारो, खासी जयंती, पारसी, ईसाई जब भी भारत आए भारत सरकार को उन्हें तुरंत नागरिकता देनी चाहिए और बहुत ज्यादा कागज़ात प्रमाण के तौर पर नहीं मांगने चाहिए।’’ मेघालय होई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सुदीप रंजन सेन ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट के एक मामले में साहसिक फैसला सुनाते हुए भारत के प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन की वर्तमान प्रक्रिया को सुधारने और समान कानून लाने का अनुरोध किया है। उन्होने कहा, ”वर्तमान प्रक्रिया से बहुत से विदेशी भारतीय नागरिक बन जाते हंै और जो वास्तव में भारतीय हैं और भारतीय नागरिकता के हकदार हैं वो बाहर रह जाते हैं जो कि बहुत ही दुखद है।’’ जस्टिस सुदीप रंजन ने बहुत खुले रूप से स्पष्ट किया कि, ‘किसी को भी भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यदि ऐसा होता है तो ये भारत के लिए कयामत का दिन होगा।’ केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में भरोसा जताते हुए उन्होनें कहा, ”नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ही इस विषय की गंभीरता को समझ सकती है और आवश्यक कार्यवाही कर सकती है।’’

मेघालय हाई कोर्ट के 37 पन्नों के इस फैसले में हज़ारों विस्थापितों के दिल का दर्द छुपा है। जैसे ही दिसंबर के दूसरे सप्ताह में ये फैसला आया इस पर विभिन्न तरह की प्रतिक्रियाएं आना स्वाभाविक था। राजनीतिक प्रतिक्रियाएं तो बाद में आयीं, सबसे पहले मीडिया के कुछ हिस्सों में फैसले पर विवादास्पद का विशेषण लगा दिया गया। जस्टिस पर भगवा होने और कानूनी मापदंडों को तोडऩे का आरोप लगाया। कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने फैसले पर कड़ा विरोध जताते हुए जस्टिस सुदीप रंजन के विरूद्ध महाअभियोग लाने की बात कही। लेकिन यदि इस केस पर गौर किया जाए तो बहुत से ऐसे तथ्य सामने आते हैं जो असली हकदारों की परेशानियों का एक छोटा सा उदाहरण है जबकि उनकी समस्याएं कहीं बड़ी विकट और विकराल हैं। ये केस अमन राणा ने दायर किया था राज्य सरकार अमन को डोमिसाइल सर्टिफिकेट नहीं दे रही थी। पूर्वोत्तर राज्यों विशेषकर असम में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ ने आबादी का संतुलन बिगाड़ दिया है। अवैध बांग्लादेशियों और मूल नागरिकों के बीच टकराव भी होते रहते हैं। अवैध नागरिकों और घुसपैठियों को भारत से बाहर भेजने के लिए नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजनशिप बनाया गया जिसके अनुसार भारत के वास्तविक और अवैध नागरिकों की सूचियां तैयार की गयी लेकिन कुछ कड़ी धाराओं के चलते लगभग 40 लाख लोग नागरिकता सूची से बाहर हो गए। इनमें बहुत से वो लोग भी हैं जो मूल रूप से भारतीय हैं और भारतीय नागरिकता के हकदार हैं।

अमन राणा ने जब डोमिसाइल सर्टिफिकेट ना मिलने पर केस दायर किया तो मेघालय हाई कोर्ट ने ना केवल अमन राणा के हक में फैसला सुनाया बल्कि राज्य के अटार्नी जनरल को कहा कि फैसले की प्रति केंद्र सरकार को भेजी जाए। जस्टिस सेन ने अपने फैसले में ये भी कहा, ”भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ, भयंकर रक्तपात के बाद भारत को आज़ादी मिली, हिंदुओं का बड़े पैमाने पर कत्ले आम हुआ। जो हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, पारसी, गारो, खासी और जयंती पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान में रह गए उन पर आज भी जुल्म ढाए जा रहे हैं, उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता। इसलिए ये लोग जब भी भारत आएं तो उन्हें बिना किसी शर्त के भारतीय नागरिकता दी जानी चाहिए। ये लोग जब विभाजन के समय भारत आए तो उन्हें विदेशी का दर्जा दिया गया भारत की नागरिकता नहीं दी गयी। मेरी समझ से बहुत ही तर्कहीन, गैरकानूनी और नेचुरल जस्टिस के खिलाफ है। कानून लोगों के लिए बनाए जाते हैं लोग कानून के लिए बने होते हैं। कोई भी कानून तब तक प्रभावशाली नहीं होता जब तक कि इतिहास और ज़मीनी हकीकत को ध्यान में ना रखा जाए।’’

इस फैसले पर राजनीति भी हुई। आल इंडिया मजलिस-ए-एतिहाद मुसलमीन के अद्यक्ष और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कड़ा ऐतराज जताते हुए कहा कि मेघालय होईकोर्ट का फैसला किसी कीमत पर स्वीकार नहीं है कि भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था। ओवैसी ने कहा न्यायपालिका और सरकार को इस फैसले पर कारर्वाई करनी चाहिए क्योंकि ये नफरत फैलाने का प्रयास है। ओवैसी ने जस्टिस सेन को सलाह दी कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध करने के बजाए भारतीय संविधान का सहारा लें। जबकि विश्व हिंदू परिषद के वरिष्ठ नेता डॉ. सुरेंद्र जैन ने मेघालय हाईकोर्ट के फैसले को सामयिक और साहसिक बताते हुए कहा- ”जस्टिस सेन के फैसले की आज भी वही उपयोगिता है जो 1947 में होती। जस्टिस सेन कुछ ऐसे तथ्य सामने लाए हैं जो तथाकथित सेकुलर कालीन के नीचे छुपाने की कोशिश करते रहे। बंटवारे का आधार धर्म था, मुसलमान पाकिस्तान चले गए लेकिन एक बड़ी आबादी भारत में ही रह गयी। हिंदू आज अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक होकर रह गया है। उनका अपमान किया जाता है।’’ डॉ. जैन ने कहा ”पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में जो हिंदू रह रहे हैं उनकी जिंदगी बदतर है। उनकी स्वाभाविक शरम स्थली भारत ही है। उन्हें निर्बाध आगमन और नागरिकता का अधिकार मिलना चाहिए।’’

जस्टिस सेन को मीडिया के एक बड़े हिस्से, नेताओं और कुछ स्वयं सेवी संगठनों ने कटघरे में खड़ा कर दिया। लेकिन जस्टिस सेन इससे विचलित नहीं हुए उन्होनें कहा- ”मैं किसी राजनीतिक दल से संबंध नहीं रखता हूं। रिटायरमेंट के बाद किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लडऩे का भी मेरा कोई इरादा नहीं है। ना ही मैं धर्मांध हूं।’’ जस्टिस सेन ने अपने फैसले पर आयी प्रतिक्रियाओं के बाद एक स्पष्टीकरण जारी किया जिसमें उन्होंने कहा कि ”नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार से मेरा आशय सभी केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्य सभा के सदस्य हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री कहने का अर्थ ये नहीं है कि बाकी राज्यों के मुख्यमंत्रियों पर ये लागू नहीं होता। मेरा अनुरोध देश के नीति निर्धारकों और कानून निर्माताओं से है। अपने फैसले में मैने कहीं भी धर्मनिरपेक्षता का विरोध नहीं किया है मेरे फैसले में इतिहास का हवाला दिया गया है। इतिहास को कोई बदल नहीं सकता है। बंटवारे का दर्द जिन्होंने बदकिस्मती से झेला, अपनों का कत्लेआम देखा, अपना घर-बार, धन-दौलत, ज़मीन-जायदाद को लुटते देखा, विस्थापित हुए उनका दर्द समझने की ज़रूरत है। जो उस समय भारत नहीं आ पाए मेरे विचार से उन्हें अपने देश में आकर शांतिपूर्वक सम्मान के साथ जीवन बिताने का अधिकार है। और इसके लिए सरकार को नीति बनानी चाहिए।’’

जस्टिस सेन का फैसला दरअसल उन बहुत से अप्रिय प्रश्नों को सुलझाने पर जोर देता है जिनको या तो आजतक जानबूझ कर अनदेखा किया गया या फिर सब कुछ समझते हुए भी अनजान बने रहने की कोशिश की गयी। जिनके पास अपने पुरखों के भारत में रहने का कोई प्रमाण नहीं है उनके लिए जीवन सचमुच मुश्किल हो गया है। जस्टिस सेन के फैसले को भले ही कुछ सियासी दल राजनीति से प्रेरित या फिर किसी एक दल विशेष की नीतियों का समर्थक बताते हों लेकिन क्या ये सच नहीं है कि पूर्वोत्तर में अनेक नरसंहार घुसपैठियों और मूल नागरिकों के बीच हुए टकराव के कारण हुए। अवैध नागरिकों और घुसपैठियों के मामलों के लिए एक ठोस नीति, कानून अथवा अद्यादेश लाने की सख्त ज़रूरत है। आने वाले समय में ये समस्या विकराल रूप धारण कर सकती है।

सर्जना शर्मा

 

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