उत्तराखंड बने अठारह साल हो गये। प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर ये प्रदेश आज भी एक पर्यटन राज्य की पहचान नहीं बना पाया है, बद्रीनाथ केदारनाथ यमनोत्री गंगोत्री जैसे विश्व वि यात चार धाम जिस प्रदेश में हो वहां आज एक भी ढंग का पांच सितारा होटल नहीं है। सरकार की पर्यटन नीति में खामियां ही खामियां हैं, जिसकी वजह से न तो यहां तीर्थाटन पनपा न ही पर्यटन।
उत्तराखंड वो प्रदेश है जहां दुनिया के सबसे ज्यादा टाइगर यानि बाघ रहते है, जिसकी जानकारी दुनियां के हर किसी वन्यजीव प्रेमी को है। नेपाल से लेकर भूटान तक बना हुआ एशियन एलिफेंट कैरिडोर उत्तराखंड से गुजरता है जहां सबसे ज्यादा हाथी पाए जाते हैं, वाइल्ड लाइफ सेंचुरी से जुड़ा पर्यटन यहां है, परन्तु तो भी पर्यटक क्यों अफ्रीका की तरफ जंगल सफारी के लिए जाते है? सीधा सा जवाब है कि यहां सोच का अभाव है, उत्तराखंड के आईएफएस अफसर ज्यादातर दूसरे प्रदेशों के मूल निवासी हैं, उन्हें पर्यटन से कोई लेना देना नहीं, वो ऐसे कानून रोज बना देते हैं जिसकी वजह से पर्यटक जंगल की तरफ आते ही नहीं। 2018 में जिम कॉर्बेट टाइगर रिज़र्व में ऐसे नियम बना दिये कि जो टाइगर पर्यटन यहां चल रहा था वो भी बन्द होने के कगार पर पहुंच गया, हाई कोर्ट में लड़ाई हुई, अफसर बदले गए तो पर्यटन बचा। अभी भी राजा जी टाइगर रिज़र्व, नंधौर वन्यजीव सेंचुरी में भी आईएफएस अफसरों की आपसी खींचतान से पर्यटन चौपट हो रहा है।
उत्तराखंड में साठ फीसदी भूभाग में जंगल है जहां जंगल सफारी का पर्यटन बढ़ सकता है। सूखी नदियों में तालाब बना कर, जीप शो, फिश एंगलिंग, बर्ड वाचिंग, तितलियों के संसार आदि के साथ साथ हिमालय दर्शन, हिमालय ट्रैकिंग के पर्यटन को प्रमोट किया जा सकता है।
सरकार का ध्यान सिर्फ नदियों से निकलने वाली खनन सामग्री पर रहता है न कि जंगल के पर्यटन पर। गंगा, शारदा ,कोसी रामगंगा नदियों किनारे वाटर स्पोर्ट्स, टेंट टूरिज्म का कारोबार पनप रहा था वहां भी अधिकारियों की लापरवाही से धंधा चौपट हो गया।
खूबरसूरत झीलों का शहर नैनीताल में इस साल गर्मियों में पर्यटकों के आने पर पाबंदी लगा दी गयी कि सिर्फ इस लिए कि यहां पार्किंग की जगह नहीं थी। पाबंदी लगाई हाई कोर्ट ने।
अब जब गर्मियों में लोग नैनीताल नहीं आएंगे तो कब आएंगे।
सरकार पिछले 18 सालों में नैनीताल मसूरी में होने वाली पर्यटकों की दिक्कतों को ही नहीं दूर कर पायी है तो अन्य पर्यटक स्थलों का हाल क्या होगा ये समझा जा सकता है। इसका सीधा समाधान ये भी था कि जिला मु यालय नैनीताल से भीमताल शि ट किया जाता, हाई कोर्ट के लिए भी नई जगह तलाशी जाती, कम से कम दो हज़ार वाहनों का भार नैनीताल से कम हो जाता।
पहाड़ो में पलायन हो रहा है
उत्तराखंड बनने के बाद 714 गांव खाली हो गए। वजह इन गांवों तक सड़कें नहीं पहुंची, रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाएं नहीं होने से लोग मैदानी जिलों में आकर बस गए। उत्तराखंड शासन में जो भी आईएएस अफसर उच्च पदों पर बैठे वो ज्यादातर बिहारी मूल के थे या अब भी हैं जिन्हें पहाड़ो से प्रेम नहीं, वहां का दर्द पता नहीं, जनप्रतिनिधि भी इन अफसरों के दबाव में रहे। नतीजा ये हुआ कि इस राज्य की हालत और भी दयनीय हो गयी।
मोदी सरकार ने गढ़वाल में चारधाम से आगे चीन सीमा तक ऑल वेदर रोड और नेपाल सीमा के पास से चीन बॉर्डर तक फोर लेन ऑल वेदर रोड पर काम शुरू करवाया है जिससे उ मीद जगी है कि राज्य के पर्यटन विकास की स्पीड तेज़ होगी।
उत्तराखंड में टिहरी, शारदा, नानक सागर, गूलरभोज, तुमडिय़ा, बैगुल जैसे दो दर्जन से भी ज्यादा जलाशय हैं जहां कश्मीर की डल झील की तरह हाउस बोट्स पर्यटन वाटर स्पोर्ट्स पर्यटन विकसित किया जा सकता था परंतु सरकार ने यहां सिर्फ मछलियों के कारोबार को देखा, टिहरी में हर साल दो दिन का पर्यटन उत्सव मना कर सरकार खामोश हो जाती है जबकि अस्सी किमी की झील किनारे क्या नहीं हो सकता बोटिंग, वाटर क्रूस, वाटर स्कूटर चलाये जा सकते हैं जबकि देश के पर्यटक बैंकॉक, सिंगापुर जैसे देशों में जाकर इन पर लुत्फ उठाते हैं, सरकार की लाइसेंस नीति इतनी जटिल है कि एक जलाशय में पर्यटन व्यवसायी के लिए संसाधन जुटाने में ही पसीने छूट जाते हैं, ऊपर से भ्रष्टाचार पीछा नहीं छोड़ता।
सरकार ने निवेश के लिए यहां उद्योगपतियों, कारोबारियों को बुलाया, करोड़ों अरबों के एमओयू होंगे, निवेश एक रुपये का नहीं आया। नैनीताल जिले में कोई होटल तो क्या घर भी बनाना चाहे तो उसकी भूमिनक लैंड यूज बदलने में पसीने छूट जाते हैं, कैसे यहां रिसोर्ट बनेंगे कैसे यहां लोग आकर रहेंगे?
उत्तराखंड की फि़ल्म नीति अब थोड़ा बदली है पहले जो फि़ल्म निर्माता यहां आते थे उन्हें सरकारी मशीनरी इतना तंग कर देती थी कि वो यहां से हिमाचल या कश्मीर भाग जाते थे।
उत्तराखंड सरकार की पर्यटन नीति में शिक्षा पर्यटन को कोई स्थान नहीं दिया गया। पूर्व मु यमंत्री नारायण दत्त तिवारी चाहते थे कि यहां शिक्षा के और संस्थान खुले। नैनीताल पहले शिक्षा का हब बना बाद में पर्यटन शहर। तिवारी जी ने केंद्र सरकार से पोषित कई बड़े रिसर्च सेंटर यहां खुलवाए। उनकी सोच थी कि जहां ये संस्थान खुलते हैं वहां आसपास विकास भी बढ़ता है। किंतु उनके बाद कुछ हुआ नहीं। यदि पहाड़ों पर बोर्डिंग स्कूल्स भी खुल जाते तो वहां पढऩे वाले बच्चों के अभिभावकों से भी पर्यटन बढ़ता और स्थानीय शिक्षा का स्तर भी सुधर जाता।
उत्तराखंड की त्रिवेन्द्र सरकार ने 13 जिलों में 13 नए पर्यटन केंद्र विकसित करने का जोरशोर से प्रचार किया। हुआ ठाक के तीन पात। नैनीताल जिले में एक स्थान है हरीश ताल, जनता कह कह कर थक चुकी पर सरकार यहां 18 सालो में 8 किमी सड़क नहीं पहुंचा पाई। सड़क बनती, स्थानीय लोग पर्यटन उद्योग से जुड़ते परन्तु अफसरशाही में सोच का अभाव।
उत्तराखंड में इससे बड़ी हास्यास्पद बात क्या हो सकती है कि जब कितने पर्यटक साल भर में उत्तराखंड आये, इस आंकड़े में हरिद्वार आने वाले लाखों कांवडिय़ों की सं या भी जोड़ कर दिखा दी जाती है।
चार धामों के अलावा उत्तराखंड में सिखों के तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब नानकमत्ता साहिब, रीठा साहिब है, मुस्लिम श्रद्धालुओं के लिए कर्लियार पीर दरगाह रुड़की में है, आस्था से जुड़े जागेश्वर, चित्तई मन्दिर है, पाताल भुवनेश्वर गुफा है, खूबसूरत दायरा बुग्याल है। मुंशीयरी कोसानी बेरीनाग, चकोरी, मुक्तेश्वर से हिमालय दर्शन है, पिंडारी, व्यास, दारमा घाटियों से हिमालय यात्रा का लुत्फ उठाने लोग आते हैं,परन्तु यहां पहुंचने से पहले बदहाल सड़कों से वो थक जाते हैं। दिल्ली से उत्तराखंड आने वाली हर सड़क टूटी फूटी है। घुमावदार मोड़ों से जान का खतरा पर्यटकों के यहां से मुंह मोडऩे की पहली वजह है। इससे कम खर्च में और कम समय में दिल्ली से पर्यटक थाईलैंड, बाली, सिंगापुर, मलेशिया पहुंच जाता है जहां पर्यटकों को अपनी आंखों में वहां की सरकार वहां के लोग बिठाते हैं।
उत्तराखंड में चुनावी मौसम से पहले हेलीसेवा, डोनियर हवाई का ट्रायल होता है, फिर ये गायब हो जाते हैं। नेपाल जैसे देश में सस्ती हवाई सेवा है पर उत्तराखंड में हवाई सेवा सिर्फ हवाई जुमलों तक सीमित रही है। छोटे एयरपोर्ट बने। सड़के ठीक हो तो भी पर्यटक एक बार को सोचे भी,परन्तु सरकार शासन के पास सोच का आभाव रहता आया है।
दुनिया के देश खास तौर पर सोवियत संघ से अलग हुए देश जॉर्जिया, उज्बेकिस्तान ने भारत के होटल कारोबारियों को लीज भूमि देकर अपने यहां पांच सितारा होटल खड़े करके पर्यटन उद्योग चमका लिया और उत्तराखंड सरकार ने अपने यहां के पर्यटन उद्योग को यूं ही दरकिनार कर दिया। बरहाल सरकार की नीतियां ही इन हालातों की जि मेदार है।
पर्यटन को बढ़ावा देने की हरसंभव कोशिश
उत्तराखंड चारधाम यात्रा अगले दो सालों में बारहमासी हो जाएगी, ऑल वेदर रोड बन जाने से उत्तराखंड का तीर्थाटन पर्यटन बारह महीने चलेगा, प्रधानमंत्री मोदी जी लगातार इस योजना की समीक्षा कर रहे हैं, ये बात उत्तराखंड के पर्यटन और तीर्थाटन मंत्री सतपाल महाराज ने कही। महाराज कहते हैं कि केदारनाथ यमनोत्री तक केबल कार, देहरादून से मसूरी हल्द्वानी से नैनीताल तक केबल कार की योजना पर काम चल रहा है, पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया गया है, स्थानीय युवकों को पर्यटन उद्योग के लिए सब्सिडी आधारित चन्द्रसिंह गढ़वाली स्वरोजगार योजना चल रही है, हमारी सरकार ने इसमें साहसिक पर्यटन को भी जोड़ा है। दारमा व्यास घाटी में होम स्टे योजना शुरू की है, झीलों के संरक्षण सौंदर्य के लिए भी काम हो रहा है, पर्यटक वाहन पार्किंग सुविधायों को बढ़ाने की योजना पर काम तेजी से चल रहा है।
सतपाल महाराज कहते हैं कि उत्तराखंड आने वाले नेशनल हाई वे मार्च तक दुरुस्त हो जाएंगे। अगले पर्यटन सीजन में जाम से मुक्ति मिल जाने की उ मीद है। उन्होंने कहा कि पर्यटन केन्द्रों तक हवाई सेवा सुगम की जा रही है। उन्होंने आशावादी स्वरों में कहा कि नया धार्मिक सीजन और ग्रीष्म सीजन इस बार नए आयाम स्थापित करेगा।
दिनेश मनसेरा