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राजनीतिक सोच में बौना पड़ता जनहित

 

राजस्थान में विधान सभा चुनावों के बाद लगता है जैसे सब कुछ ठहर सा गया है। प्रदेश में शिक्षा, चिकित्सा, पानी, सड़कें, बेरोजगारी, रोजगार, सरकारी कर्मियों की मांगें मुहं बाये खड़ी थी। क्या सरकार के बदलते ही सारी समस्याओं  का स्वत: ही समाधान हो गया है? या यों कहें कि मतदाताओं ने वह सब प्राप्त कर लिया है जिसकी वे विधान सभा चुनावों से पहले मांग कर रहे थे। पिछली सरकार में शुरू किये गये जनहित के काम किसी ना किसी बहाने बन्द पड़े हैं। लगता है अब उन कामों की जरूरत नहीं है।

जानकारी के अनुसार 135 विधायक जो कि राजस्थान की पौने तीन करोड़ जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, इन्होंने सदन में पहुंचने के बाद जनसमस्याओं से स बन्धित एक भी प्रश्न ना ही पूछा और ना ही सदन में रखा ऐसा बताया जा रहा है। नई सरकार में चुन कर आए विधायकों की सक्रियता और जनता के प्रति अपनी कितनी जवाबदेही समझते हैं, इससे स्पष्ट हो जाता है। विधान सभा में भाजपा के समय में जो बैठने की सिटिंग थी उसमें भी सिर्फ और सिर्फ चेहरे बदले हैं। इसके सिवा कुछ भी नहीं हुआ है। यह भी कि मु यमंत्री की शपथ ग्रहण के दो दिन में कर्जमाफी का ऐलान करने वाली कांगे्रस सरकार के काम काज की स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है। जिस सरकारी भाषा को भाजपा के मंत्री बोलते थे अब कांग्रेस के मंत्री बोलने लगे हैं। कर्ज माफी को लेकर कमेटी का गठन किया गया है। वहीं किसानों के नाम पर उठने वाले तथाकथित कर्ज की वास्तविक स्थिति भी सामने आने लगी है।

तत्कालीन भाजपा सरकार के समय हुई किसानों की कर्जमाफी में घोटाले को लेकर डूंगरपुर जिला इन दिनों सुर्खियों में है। केन्द्रीय कॉपरेटिव बैंक व जिला प्रशासन के पास 30 से अधिक ग्रामीण सहकारी समितियों द्वारा हजारों लोगों के नाम से गलत तरीके से करोड़ों का लोन उठाकर उसे माफ करने की शिकायतें आ चुकी हैं। वहीं घोटालों की शिकायतों का सिलसिला लगातार जारी है। इधर मामला सामने आने के बाद राज्य सरकार पूरे मामले की जांच करवा रही है।

तत्कालीन भाजपा सरकार ने किसानों को राहत देते हुए 50 हजार रूपये तक की कर्जमाफी की थी। जिसके तहत डूंगरपुर जिले में 65 हजार किसानों का 188 करोड़ तक का ऋण माफ किया था। कर्जमाफी का लाभ लेने वाले किसानों की सूचियों को सहकारिता विभाग द्वारा ऑनलाइन किया गया था। इधर सूचियों के ऑनलाइन होने से बाद ग्रामीण सहकारी समिति द्वारा किये गए घोटाले सामने आ रहे हंै। ग्रामीण सहकारी समितियों के व्यवस्थापकों ने कभी भी लोन नहीं लेने वाले लोगों के नाम से लोन उठाकर उसे माफ कर दिया। इन लोगों में सरकारी कार्मिक, विदेश में नौकरी करने वालों तथा विद्यार्थियों के नाम शामिल बताये जा रहे हैं। इतना ही नहीं ग्रामीण सहकारी समितियों के व्यवस्थापकों ने मरे हुए लोगों को भी नहीं छोड़ा।

डूंगरपुर जिले में सर्वाधिक घोटाले सागवाड़ा उपखंड क्षेत्र की ग्रामीण सहकारी समितियों में हुआ है। सागवाड़ा उपखंड क्षेत्र की 23 ग्रामीण सहकारी समितियों के व्यवस्थापकों ने हजारो लोगों के नाम से फर्जी तरीके से लोन उठाया और उसे माफ़ भी कर दिया। इन 23 ग्रामीण सहकारी समिति क्षेत्र के 2 हजार 703 लोगों का गलत तरीके से लोन माफ़ हुआ। जिन लोगो ने नाम से ऋण का फर्जीवाड़ा हुआ है उन्होंने केन्द्रीय कॉपरेटिव बैंक व जिला प्रशासन को शिकायत करते हुए कार्रवाई की मांग की है। इधर सागवाड़ा उपखंड क्षेत्र की ग्रामीण सहकारी समितियों में घोटाला सामने आने के बाद जिले की अन्य सहकारी समिति क्षेत्र के लोगों ने भी घोटालों की शिकायत जिला प्रशासन से की है।

इधर ग्रामीण सहकारी समितियों द्वारा कर्जमाफी में घोटाला सामने आने के बाद जयपुर से आई टीमों ने इन ग्रामीण सहकारी समितियों के अंतर्गत आने वाली पंचायतों में कै प लगाकर ग्रामीणों की आपत्तियां तो ले ली लेकिन कार्रवाई के नाम पर केवल व्यवस्थापकों के अधिकार छीनने के अलावा अभी कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। वहीं केन्द्रीय कॉपरेटिव बैंक के बोर्ड ने बैठक करते हुए पुरानी सूचियों को निरस्त करते हुए नई सूचियां जारी करने व शिकायतों वाली ग्रामीण सहकारी समितियों की जांच करवाते हुए दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का प्रस्ताव पास करके राज्य सरकार को भेजा है। राज्य सरकार ने घोटाले की जांच के लिए आदेश तो जारी कर दिया है। लेकिन देखना होगा कि ये जांच कब तक पूरी होती है और दोषियों के खिलाफ किस प्रकार की कार्रवाई अमल में लाई जाती है।

विचारणीय बात यह है कि जिन किसानों को बैंक ने ऋण देने से इनकार कर दिया था, उन्हीं किसानों के नाम से यह ऋण उठाए गए बताये जा रहे हैं और किसानों को इस बात का पता भी नहीं है। अब चूंकि राजस्थान के बहुत बड़े हिस्से में पानी ही नहीं है तो खेती कहां से होगी। जमीन बंजर पड़ी है। जब खेती ही नहीं है तो किसान का ऋण लेना भी कई प्रश्नों को खड़े करता है। लेकिन किसानों के नाम पर ऋण है जिसे सरकार अपने वादे के अनुसार माफ कर रही है।

वहीं कांग्रेस सरकार किसानों की कर्ज माफी को लेकर अजीब पशोपेश में बताई जा रही है। मु यमंत्री अशोक गहलोत ने किसानों की कर्ज माफी को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने कहा है कि देश में कृषकों की आर्थिक स्थिति निरंतर चुनौतीपूर्ण होती जा रही है। जैसा कि आपको विदित है कि राजस्थान एक कृषि प्रधान राज्य है, जिसकी विषम भौगोलिक परिस्थितियों व गत सरकार का अपेक्षित आर्थिक सहयोग नहीं मिलने के कारण राज्य के अधिकांश किसान आर्थिक रूप से संकटग्रस्त हैं। अत: उन्हें सरकार के सकारात्मक दृष्टिकोण और तत्काल सहायता की जरूरत है।

पत्र में आगे लिखा है राज्य के सहकारी बैंकों के ऋणी कृषकों का निर्धारित पात्रता अनुसार समस्त बकाया अल्पकालीन फसली ऋण माफ किए जाने का निर्णय लिया है। इसके साथ-साथ हमनें राष्ट्रीयकृत, अनुसूचित, क्षेत्रीय ग्रामीण एवं भूमि विकास भूमि के ऋणी कृषकों, जो कि आर्थिक रूप से संकटग्रस्त हैं और अपना ऋण नहीं चुका पा रहे हैं, का निर्धारण मापदण्डानुसार दो लाख रूपए तक की सीमा तक अवधिपार/कालातीत ऋण माफ किये जाने का भी निर्णय लिया गया है। इसके अतिरिक्त पूर्ववर्ती राज्य सरकार द्वारा बिना वित्तीय प्रावधान के ऋणी कृषकों हेतु जो आठ हज़ार करोड़ रूपए की फसली ऋण माफ़ी थी, उसके तहत तत्कालीन सरकार के कार्यकाल में केवल 2 हज़ार करोड़ रूपए का ही प्रावधान किया गया था। इस प्रकार उक्त योजना के शेष 6 हज़ार करोड़ रूपए का वित्तीय भार भी हमारी सरकार द्वारा ही वहन किया जाना है। इन परिस्थितियों में राज्य सरकार पर अत्यधिक वित्तीय भार आना स्वाभाविक है।

देश का किसान आप से उ मीद रखता है कि उसकी विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में भारत सरकार किसानों का कज़ऱ् माफ़ करेगी। अत: आपसे आग्रह है कि कांग्रेस शासित राज्यों की तर्ज पर पूरे देश के लिए राष्ट्रव्यापी ऋण माफी योजना लाकर देश के किसान बंधुओं को राहत पहुंचाएं तथा हमारी सरकार के प्रयासों को स बल प्रदान करें।

प्रदेश के मु यमंत्री का प्रधानमंत्री को पत्र लिखना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन बड़ी बात यह है कि किसानों के नाम पर जो कुछ भी हो रहा है क्या उसे आंख बन्द कर स्वीकार कर लेना चाहिये? यदि नहीं तो फिर इनके नाम पर पनप रहे महिशासुरों को खत्म कर वास्तविक किसानों को लाभ दिये जाने की ओर बढ़ा जाये।  जिन प्रशासनिक एवं राजनैतिक कमियों को गिना कर सत्ता में आये हैं उनमें राजनैतिक सोच का अवरोध पैदा नहीं कर जनहित में गति प्रदान करें, क्योंकि उनमें जनता का ही पैसा लगा है। यही सुशासन का प्रथम कदम होगा और तथाकथित रूप से कही जाने वाली काली रात का  सूर्योदय भी।

रामस्वरूप रावतसरे

 

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