अमृत प्राप्ति की इच्छा मनुष्य के मन में आदि काल से रही है। मनुष्य ही क्यों, देवता और राक्षस भी अजर-अमर होने की कामना रखते थे। जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन हुआ तो चौदह रत्न निकले, लेकिन सबसे ज्यादा छीना-झपटी मची अमृतकलश को लेकर क्योंकि जो अमृतपान करेगा वही स्वर्ग पर राज करेगा, जो अमृतपान करेगा वही देवत्व को प्राप्त करेगा। लेकिन वो अमृतपान करने वाली हंै कौन – सतोगुणी शक्तियां या तमोगुणी शक्तियां? यदि सतोगुणी शक्तियां अमृतपान करती हैं तो सृष्टि का कल्याण होगा। यदि तमोगुणी शक्तियां अमृतपान करती हैं तो मानवताविरोधी, विनाशकारी और विध्वंसकारी शक्तियां अमरत्व का दुरूपयोग कर तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मचा देंगी। अमृतकलश को किसी तरह तमोगुणी शक्तियों से बचाना था तो देवताओं ने स्वर्ग के राजा इंद्र के पुत्र जयंत को कलश थमा कर चुपचाप वहां से भगा दिया। राक्षसों को जैसे ही भनक लगी उन्होंने जयंत का पीछा किया। बारह दिन तक अमृत कलश को लेकर छीना-झपटी चली और इसी बीच कलश से चार बार अमृत की बूंदें धरती पर छलकीं। जिन चार स्थानों हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज में अमृत की बूंदें छलकीं, वो पवित्र धाम बन गए। इन्हीं चार अमृत धामों में कुंभ मेला लगता है और करोड़ों लोग पवित्र नदियों में बहते अमृत की बूंदों से तन, मन और आत्मा को सुधापान कराने आते हैं। अपने पाप धो कर पुण्य कमाने आते हैं।
कुंभ भारतीय सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है, एक धार्मिक आध्यात्मिक पर्व है जहां बिना किसी न्यौते के लाखों-करोड़ों लोग पवित्र नदियों में स्नान करने पहुंच जाते हैं, जहां जाति और वर्ग, ऊंच-नीच का भेद समाप्त हो जाता है। बस चारों ओर बहती है आस्था, श्रद्धा, विश्वास, जप, तप और आत्मानुशासन की धारा। साधु-संतों के प्रवचन, भजन-कीर्तन की दिनचर्या के बीच भीतर के कुंभ में अमृत की बूंदों का संचय होता रहता है। कुंभ आस्था, श्रद्धा का पर्व है। जिसकी श्रद्धा है, वो जाता है। पूर्णकुंभ और अर्धकुंभ चिरकाल से कुछ ग्रहों के संयोग के दौरान होते आए हैं। इनमें श्रद्धालु और संत समाज आते हैं लेकिन इसे कभी राजनीतिक रंग नहीं दिया गया।
तीर्थराज प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर पूर्णकुंभ और अर्धकुंभ दोनों लगते हैं। इस बार पंद्रह जनवरी से प्रयागराज में विधिवत आरंभ हुआ कुंभ धार्मिक से ज्यादा राजनीतिक कारणों से चर्चा में है। संयोग ही कहिए कि इस बार कुंभ चुनावी वर्ष में आया है। केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है जिसे हिंदुत्व का झंडाबरदार माना जाता है। अब विपक्षी दलों और मीडिया के कुछ लोगों ने आरोप लगाया है कि भाजपा कुंभ को अपने राजनीतिक लाभ के लिए प्रयोग कर रही है। हिंदुत्ववादी दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू मतदाताओं को लुभा रहे हैं और वर्ष 2019 के लोक सभा चुनावों के लिए अपना वोटबैंक मजबूत कर रहे हैं। कुंभ सदियों से लगते आए हैं और लगते रहेंगे। इनके दौरान केंद्र और राज्य में किस दल की सरकार रहेगी इससे कोई अंतर नहीं पड़ेगा। फिर योगी आदित्य नाथ के राज में हो रहे इस कुंभ पर हिंदुत्व के एजेंडे से गैर भाजपाई दल क्यों परेशान हैं? एक शाश्वत धार्मिक आयोजन से भय क्यों? क्या संघ वास्तव में हिंदुत्व का एजेंडा भुना रहा है? संघ के सह कार्यवाह और पूर्व प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य कहते हैं, ”कुंभ की तारीख और वर्ष पंचांग के अनुसार पहले से तय होते हैं, प्रयाग में कुंभ का आयोजन चुनावों को देखते हुए तो नहीं किया गया। कुंभ समाज में धार्मिक सामाजिक आध्यात्मिक जागरण करते हैं और समाज में जागरण होना भी चाहिए। संघ कुंभ को मानवमात्र की दृष्टि से सार्थक बनाने का प्रयास कर रहा है। प्राचीन समय में ऋषिमुनि धर्म के साथ-साथ समाज जागरण भी करते थे। हम उसी परंपरा को जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं। जिनकी दृष्टि राजनीतिक है, उन्हें वैसा ही दिखाई देता है। अब देखिए संघ ने नेत्र महाकुंभ लगाया है जिसमें दस लाख से ज्यादा लोगों को नेत्ररोगों से मुक्ति दिलायी जाएगी। हम वैचारिक मंथन से भी पूरे समाज को जोडऩे का काम कर रहे हैं।’’
कुंभ में हिंदुत्व का एजेंडा नहीं बल्कि कुंभ हिदुत्व का प्राण है। इसमें पूर्ण सनातन संस्कृति ही प्रतिबिंबित नहीं होती बल्कि ये हिंदुत्व का निर्माण करता है। विश्व हिंदू परिषद के लोग कुंभ और हिंदुत्व को एक दूसरे का पर्याय मानते हैं। उन्होनें कहा कि विश्व हिंदू परिषद हर कुंभ में भाग लेती है। मुगलकाल में कुंभ में साधु संतों के समागम की परंपरा टूट गयी। वीएचपी ने इसे पुन: आरंभ किया है। उज्जैन के सिंहस्थ में धर्मसंसद आयोजित की गयी थी और अब प्रयागराज में भी की जाएगी (धर्म संसद 31 जनवरी और एक फरवरी को हो रही है)। हिंदू संस्कृति सर्वसमावेशी है। कुंभ में हर प्रांत, जाति, पूजा पद्धति वाले लोग ही नहीं, विदेशी नागरिक भी आते हैं और आस्था की डुबकी लगाते हैं। साधु-संतों के प्रवचन सुनते हैं और अमृतपान कर अपने घरों को लौट जाते हैं। कुंभ केवल दैहिक ही नहीं, वैचारिक भी होता है। इस बार मु य कुंभ से पहले पांच वैचारिक कुंभ आयोजित किए गए। इनके विषय थे – नारीशक्ति, सामाजिक समरसता, युवा, पर्यावरण और संस्कृति। देश भर की महिलाओं, युवाओं, पर्यावरणविदों और समाज को जोडऩे में लगे लोगों ने इनमें हिस्सा लिया और खूब वैचारिक मंथन किया।
अब धर्म संसद में 150 से अधिक आध्यात्मिक पंरपराओं के प्रमुख साधु-संत एकत्र हो रहे हैं। इनमें कुछ प्रमुख नाम हैं – बौद्ध गुरू दलाई लामा, रिनपौछे, जग्गी वासुदेव, श्री श्री रविशंकर, मां अमृत आनंदमयी आदि। इनके साथ ही कुछ नव संप्रदाय भी आ रहे हैं। हम हिंदुत्व एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि हिंदू संस्कृति को पुष्ट करने के लिए एक साथ मिलकर वैचारिक मंथन करेंगे, एक साथ मिल कर चलेंगे। डॉ सुरेंद्र जैन ने स्पष्ट रूप से कहा, ”राममंदिर पर कुंभ में अवश्य चर्चा होगी। संत मंदिर पर क्या रूख लेंगे, अभी ये कहना कठिन है लेकिन संतों को संतुलन बना कर चलना होगा। केंद्र सरकार तो साफ कर ही चुकी है कि राममंदिर पर कोई अध्यादेश नहीं लाया जाएगा। लेकिन संत समाज सरकार पर दबाब तो बनायेगा ही।’’ यदि कांग्रेस मंदिर बनवाने का वायदा करती है तो क्या वीएचपी उसका साथ देगी? ये सवाल पूछे जाने पर डॉ जैन कहते हैं कि मंदिर कांग्रेस नहीं, भाजपा ही बनवा सकती है।
इस बार प्रयागराज के कुंभ को देश-विदेश में जितना प्रचार मिला है उतना आजतक किसी पूर्णकुंभ को भी नहीं मिला। विदेशों में कुंभ का जम कर प्रचार-प्रसार किया गया। कुंभ को ग्लोबल आयोजन बनाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी गयी। इलाहाबाद निवासी और वरिष्ठ पत्रकार दिनेश सिंह कहते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसा कुंभ नहीं देखा। हर मायने में ये कुंभ पहले से विशाल, तकनीकी रूप से उन्नत, और साफ-सफाई की दृष्टि से बेहतरीन है। भीड़ को नियंत्रित करने की भी प्रभावी व्यवस्था की गयी है। दिनेश सिंह मानते हैं कि भाजपा कुंभ को मोदी और योगी की ब्रांडिंग के लिए प्रयोग कर रही है। सरकार के साथ ही साधु-संत भी 2019 के लिए भाजपा की ब्रांडिंग कर रहे हैं। इनमें कुछ नामी संत जैसे ऋषिकेष परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानंद, हरिद्वार जूना अखाड़े के स्वामी अवधेशानंद, अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी स्वामी हंसदेवाचार्य और बाबा रामदेव आदि शामिल हैं। लेकिन बाबा रामदेव तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बयानबाजी करते रहते हैं? ये सवाल पूछने पर दिनेश सिंह कहते हैं कि आप कुंभ नगरी में आकर देखिए बाबा रामदेव किस तरह से मोदी और योगी के गुण गा रहे हैं।
दिनेश सिंह कहते हैं कि संघ पर हिंदुत्व एजेंडे का आरोप सही नहीं है। संघ कुंभ में बहुत अच्छा काम कर रहा है। नेत्र महाकुंभ अति प्रशंसनीय है, सामाजिक सरोकार से जुड़ा है। दस लाख लोगों के नेत्र रोगों का उपचार बहुत बड़ा काम है और संघ के स्वयंसेवकों की निस्वार्थ सेवा भी प्रशंसनीय है। वो कहते हैं कि पर्यटन की दृष्टि से देखा जाए तो कुंभ का प्रबंधन बेहतरीन है। 32 हजार प्रतिदिन के हिसाब से कॉटेज बनायी गयी हंै। केवल श्रद्धा की डुबकी नहीं, वॉटर स्पोट्र्स का भी विकल्प है। दिनेश कहते हैं कि जब ये हिंदुओं का इतना बड़ा संगम पर्व है तो हिंदू एजेंडा आगे बढ़ाने में बुराई भी क्या है। चुनावी साल है तो क्या हुआ ये तो मात्र संयोग है।
हिंदू संत समाज सुप्रीम कोर्ट के हिंदुओं और हिंदू धर्म के प्रति रूख को लेकर आहत और दुखी है तो बहुत गुस्से में भी है। उन्हेें लगता है कि अदालतें हर हिंदू त्यौहार में बिना किसी कारण के दखलअंदाजी कर रहीं हंै और बेसिरपैर के कानून ला रही हंै। राममंदिर निर्माण मामला 9 साल से सुप्रीम कोर्ट में लटका हुआ है। केरल के शबरीमला मंदिर मामले में जिस तरह से अयप्पा भक्तों की भावनाओं को सुप्रीम कोर्ट ने आहत किया वो सचमुच पीड़ादायक है। संतों के लिए ये चिंता का विषय है। साधु-संत विश्व हिंदू परिषद के मंच से अपने विचार कुंभ में रखते आए हैं, इस बार भी रख रहे हैं। वीएचपी के अखिल भारतीय प्रवक्ता विनोद बंसल कहते हैं कि 17 जनवरी को वीएचपी के प्रन्यासी मंडल और केंद्रीय प्रबंधन समिति की बैठक हुई जिसमें 12 से अधिक देशों से प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। वीएचपी के अन्य प्रवक्ता विजय शंकर तिवारी इस बैठक में उपस्थित थे। विनोद बसंल कहते हैं कि संत समाज अयोध्या की तरह शबरीमला पर भी आंदोलन खड़ा कर सकता है। धर्म संसद में क्या बात होगी ये बताना अभी कठिन है क्योंकि संतो का रूख क्या होगा इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। लेकिन इस बार बहुत कुछ होने की संभावना है। कुंभ में आयोजित धर्म संसद से पहले सुप्रीम कोर्ट 29 जनवरी को राम मंदिर मामले की सुनवाई करेगा। हालांकि इससे बहुत उ मीद नहीं है।
15 जनवरी से आरंभ हुआ कुंभ पूरे 55 दिन चलेगा, यानि लगभग दो महीने। ये हिंदुओं की आस्था का महासंगम है, इसलिए हिंदू समाज से जुड़े मुद्दे भी इस बीच उठते रहेंगे। इस्लामिक-नक्सली ताकतों द्वारा सांप्रदायिकता की कुत्सित व्या या के कारण हिंदू समाज को लंबे अर्से तक प्रताडि़त किया गया। लेकिन आज हिंदू समाज में नवोन्मेष की लहर है। समाज अपने शिकवे-शिकायतें खुल कर सामने रख रहा है। मीडिया भी उन पर चर्चा कर रहा है। ऐसे में हिंदुओं के सबसे बड़े समागम यानी कुंभ में भी साधु-संत समाज की समस्याओं पर खुले दिल से विचार करेें और समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करके उसे एकजुट करने का आहवान करें, ऐसी हमारी अपेक्षा है।
सर्जना शर्मा