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आंबेडकरवाद ने कभी नहीं खोया अपना स्वरूप

प्रो. सुनील गोयल

रूढ़िवादी, शोषित, अमानवीय, अवैज्ञानिक, अन्याय एवं असमान सामाजिक व्यवस्था से दुखी मानवों की इसी जन्म में आंदोलन द्वारा मुक्ती प्रदान कर, समता–स्वतंत्र–बंधुत्व एवं न्याय के आदर्श समाज में मानव और मानव (स्त्री पुरुष समानता भी) के बीच सही सम्बन्ध स्थापित करने वाली नयी क्रांतिकारी मानवतावादी विचारधारा को अम्बेडकरवाद कहते है।
जाति-वर्ग, छूत-अछूत, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष, शैक्षिक व्यवस्था, रंगभेद की व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाकर एक न्याययुक्त, समानतायुक्त, भेद-भाव मुक्त, वैज्ञानिक, तर्कसंगत एवं मानवतावादी सामाजिक व्यवस्था बनाने वाले तत्वज्ञान को अम्बेडकरवाद कहते है।
जिससे मानव को इसी जन्म में रूढ़िवादी जंजीरो से मुक्त किया जा सके। व्यक्ति विकास के अंतिम लक्ष्य को प्राप्त करने की दृष्टी से समता-स्वतंत्रता-बंधुत्व और न्यायिक् इन लोकतंत्र निष्ठ मानवीय मूल्यों को आधारभूत मानकर संपूर्ण सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन लाने वाले दर्शन को (तत्वज्ञान) को अम्बेडकरवाद कहते है। उच्च् एवं निम्न, छूत-अछूत पर आधारित गैरबराबरी वाली व्यवस्था को बदलकर समतापूर्ण मानवतावादी व्यवस्था में बदलने वाली विचारधारा अम्बेडकरवाद है, ऐसी व्यवस्था में सबको विकास एवं समान संधि मिलती है। गैर बराबरी वाली व्यवस्था को बदलकर समतायुक्त मानवतावादी व्यवस्था की निर्मित करना अम्बेडकरवाद है। अम्बेडकरवाद यह मानव मुक्ती का विचार है, यह वैज्ञानिक दृष्टीकोण है। इंसानियत का नाता ही अम्बेडकरवाद है।

मानव गरिमा (human dignity) के लिये चलाया गया आंदोलन ही अम्बेडकरवाद है। मानव का इसी जन्म में कल्याण करने वाली विचारधारा अम्बेडकरवाद है। मानव कल्याण का मार्ग ही अम्बेडकरवाद है। जीवन जीने का मार्ग देने वाली विचारधारा अम्बेडकरवाद है। शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और सामाजिक उत्थान, आर्थिक, राजनैतिक एवं सांस्कृतिक बदलाव को अम्बेडकरवाद कहा जाता है। अम्बेडकरवाद एक ऐसा विचार एवं आंदोलन है, जो अन्याय और शोषण के खिलाफ है और
उस की जगह एक मानवतावादी वैकल्पिक व्यवस्था बनाता है। यह संपूर्ण वैज्ञानिक दृष्टीकोण पर आधारित है।
ब्राम्हणवाद का विनाश करने वाली क्रांतिकारी विचारधारा को अम्बेडकरवाद कहते है। अम्बेडकरवाद केवल यह विचार का दर्शन ही नही है बल्कि यह सामाजिक, शैक्षणिक, धार्मिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक जीवन में बदलाव लाने का एक संपूर्ण आंदोलन है। अम्बेडकरवाद यह ऐसी विचारधारा है जो हमें मानवतावाद की ओर ले जाती है। व्यवस्था के गुलाम लोगो को गुलामी से मुक्त कर मानवतावाद स्थापित करना ही अम्बेडकरवाद है। मैंने स्वयं को कभी महान अम्बेडकरवादी घोषित नहीं किया। मैं यह बात बहुत अच्छी तरह से जानता हूं कि मैं अम्बेडकर जी की बताई राह का एक पथिक मात्र हूं। मुझमें असली
अम्बेडकरवादी होने के गुण अभी मौजूद नहीं हैं। मैं बाबा साहेब द्वारा बुद्ध की बताई गई 22 प्रतिज्ञाओं का पालन नहीं कर रहा हूं। मैं अम्बेडकरवाद का अध्येता हूं, प्रशंसक हूं, और समर्थक हूं। मगर … मगर मैं असली अम्बेडकरवादी नहीं हूं। आज भी मैं ऐसे सैकडों कार्य करता हूं जो एक सच्चे अम्बेडकरवादी को नहीं करने चाहिए।
मुनी, भिक्षुक, रागि, ग्रंथी, तिब्बता, बौद्ध, फादर, सिद्ध, ढोंगी, तांत्रिक, मांत्रिक, आदि न जाने कौन कौन लोग अभी तक की जीवन यात्रा में मुझे मिल चुके हैं और सबसे मैंनें कुछ न कुछ सीखा है ग्रहण किया है। मैं वैचारिक कट्टरपंथ का कभी आग्रही नहीं रहा, मार्क्सवाद, बुद्धिज्म, गांधी, पेरियार, लोहिया जी जैसे तमाम दार्शनिकों को करीब से जानने की कोशिश करते रहा हूं। विभिन्न राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, और साहित्यिक संगठनों से लंबे समय से मेरा जुडाव रहा है। पेशे से प्राध्यापक और आदत से एक्टिविस्ट हूं। जिंदगी को पूरे अल्हडपन, मस्ती को आनंद से जीने में यकीन रखता हूं। विगत दो दशक से जो भी देखा, जाना, सोचा और समझा उसके बारे में किसी की नाराजगी और खुशी की परवाह किये बगैर अपने विचार व्यक्त करते आया हूं। मानवता वाद, समता वाद, प्रगतिशील, साम्यवादी मुल्यों का गुणगान करता रहता हूं। कई बार मुझे लगता है कि मेरे विचार भले ही अम्बेडकरवादी हो मगर व्यवहार में तो मैं एक नकली अम्बेडकरवादी हूं।
मेरा अम्बेडकरवाद है – मंदिरों में जाना,

  • सूफी संगीत सुनना,
  • कबीर सत्संगों में जाकर तिलक लगवाना,
  • हिंदू पर्व त्यौहारों को परिवार के साथ
    मिलकर मनाना
  • रक्षाबंधन पर बहन से राखी बंधवाना,
  • दीपावली पर दीप जलाना,
  • गुरू पूर्णिमा पर गुरूओं से आर्शीर्वाद लेना
  • ईद पर मुस्लिम दोस्तों को शुभकामनाऐं
  • एक्स मस पर क्रिश्चियन मित्रों को बधाई
  • गुरू नानक जयंती पर सिक्ख मित्रों को
  • बुद्ध, कबीर, संत रैदास, नानक जयंती

कुल मिलाकर मैं वह सब करता हूं जो एक आम सेक्यूलर, उदारवादी, भारतीय नागरिक करता है। इसलिये भी संभवतः मैं असली अम्बेडरवादी होने का दावा करने में सक्षम नहीं हूं, आगे भी मेरा चरित्र कमोबेश यही रहने वाला है। तो अम्बेडकरवादी कहने वाले लोग कृपया ध्यान दे… कि “मै अम्बेडकरवादी हूँ” केवल इतना कहने से कुछ नही होने वाला है … “अम्बेडकरवाद के रंग में स्वयं को सरोबार करना पड़ेगा और अम्बेडकर जी के प्रति सच्ची श्रंद्धांजलि यही होगी जब हम उनके आंदोलन की ज्योति हमेशा जलाये रखेंगे और तभी हम एक सच्चे अम्बेडकरवादी कहलायेंगे
जय भीम जय संविधान

प्रो. सुनील गोयल

(लेखक प्रख्यात समाज वैज्ञानिक एवं स्तंभकार है तथा वर्तमान में प्राध्यापक एवं अधिष्ठाता, समाज विज्ञान एवं प्रबंधन अध्ययनशाला के बतौर डॉ. बी. आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, डॉ. अम्बेडकर नगर (महू), जिला इन्दौर, मध्यप्रदेश, भारत में पदस्थ है.)

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