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बागेश्वर धाम विवाद 

किसी भी विवाद को समझना हो तो उसके मूल को समझना वैसेही आवश्यक है जैसे किसी रोग के उपचार के लिये उसके लक्षणों तथा कारणोंको समझना.

वर्तमान में जो भी बागेश्वर धाम के चमत्कार या अंधविश्वास का विवाद वार्ताओं में है, यह शूल न बागेश्वर धाम के लिये हुआ है, न ही कोई राम रहीम या आशाराम बापू या किसी अन्य सनातन धार्मिक स्थल के लिये। इस शूल के मूल में “प्रभु श्रीराम मन्दिर” का निर्माण है, जो १४ जनवरी २०२४ को भव्य रूप में रामभक्तों के लिये प्रस्थापित हो जायेगा।

यह रोग उसी दिन से है जब माननीय उच्चतम न्यायालय ने मन्दिर पुननिर्माण पर मुद्रा लगा दी थी। किन्तु जिस प्रकार रोग को मूल धरने में समय लगता है, वैसे ही अब यह रोग जैसेजैसे समय बीतेगा और २०२४ का सार्वत्रिक निर्वाचन समीप आयेगा, वैसेवैसे ऐसी अनेक घटनाओं से आपका साक्षात्कार होगा। यह तो केवल आरम्भ है!
आगामी समय मे आपके धर्मस्थलों, धर्मग्रन्थों, धर्मगुरुओं आदि सब पर प्रश्न उपस्थित किये जायेंगे!!

इसका सबसे महत्त्वपूर्ण मूल कारण यह है कि ये सभी “चिलगोजे” जानते हैं कि आनेवाले १४ जनवरी के पश्चात विश्व का सर्वाधिक प्रबल “शक्ति केन्द्र” भारत के अयोध्या धाम में मूर्त रूप लेगा!!
अभी तक विश्व में दो ही शक्ति केन्द्रों – व्हॅटिकन व मक्का – का वर्चस्व चला आ रहा था। अब “सनातन” के इस नये शक्ति केन्द्र ने इन सभी का निद्रानाश किया हैं, क्योंकि यह शक्ति केन्द्र उस प्राचीनतम सभ्यता का होगा जो अपने आप में पूरा विज्ञान व ज्ञान से परिपूर्ण है। इसके निकट तो छोड़िये, दूरदूर तक कोई दिखाई नहीं देता!!

अतः देश में २०२४ का निर्वाचन कोई दो या चार पक्षों के बीच नहीं किन्तु “नरेन्द्र मोदी व उनके भक्त विरुद्ध विपक्ष व सम्पूर्ण विश्व के देश” होगा, क्योंकि इस समस्त स्थिति का केवल यही एक नाविक है जो सनातन की नाँव को दिन में २०-२२ घण्टे चलाकर इस “शक्ति केन्द्र” तक लाया है!!

इससे आप यह भी अनुमान लगा सकते हैं कि २०२४ के निर्वाचन का क्या पथ होगा, आपको कैसे उसपर चलना होगा, तथा आपको कैसी कटिबद्धता रखनी होगी!!

निर्णय जो भी हो किन्तु पूर्णतया आप पर निर्भर करेगा कि आप इस नये “शक्ति केन्द्र” के वर्चस्व को प्रस्थापित करनेवाला शासन चाहेंगे या कुछ मुद्रा या धान्य या मदिरा के लिये अपने अन्तरात्मा का व्यापार करेंगे। क्योंकि यही आपकी आने वाली पीढ़ी का भविष्य, आपके परिवार की मान-मर्यादा, तथा आपकी माता-बहनों का सम्मान निर्धारित करेगा!!

पीढ़ी आपकी – निर्णय आपका – परिवार आपका – भविष्य आपका

कटु है किन्तु सत्य यही है!!

अब जबकि सनातन समाज ने दुत्कार-दुत्कार कर श्याम मानव गिरोह को भगा दिया है, परिस्थितियां ऐसी बनी है कि कोई मीडिया भी हिंदु मान्यताओं पर प्रश्न करने से पहले अब सौ बार सोचेगा, ऐसे दिग्विजय के समय अत्यधिक विनम्रता और संपूर्ण आदर के साथ कुछ सलाह पूज्य धीरेंद्र शास्त्री जी के लिये। यह सुझाव अपने कुछ अनुभवों के आधार पर भी है। इसे अन्यथा नहीं लिये जाने का विनम्र अनुनय। हालांकि ऐसी सलाह निजी तौर पर दिये जाने लायक है, पर यहां से भी बात पहुंच जाती है। निवेदन है…

दिग्विजय का यह समय सबसे अधिक सावधान रहने का होता है। आज बागेश्वर महराज सनातन के प्रतीक बन गये हैं। ऐसे में उनके विरुद्ध न जाने कितने षड्यंत्र हो रहे होंगे, और आगे भी होंगे। यहां रंच मात्र भी कोई भूल बड़ा ही भारी पड़ने वाला होगा। शास्त्र इस बात के प्रमाण हैं कि प्रभुत्व आने पर अहंकार भी होना स्वाभाविक ही है। इससे बचना असम्भव की सीमा तक कठिन। पर ऐसा असम्भव भी सम्भव होता है गुरु कृपा से।

एक तो प्रभुत्व, फिर करोड़ों लोगों का समर्थन, फिर प्राप्त सिद्धियां और उससे भी बढ़ कर युवावस्था और तेजस्वी व्यक्तित्व। ये सब ऐसा मिश्रण बनाते हैं, जिससे बिना फिसलन अचल बने रहना देवताओं के लिये भी दुर्लभ होता है। ऐसे में एकमात्र आधार गुरु के चरणारविन्द होते हैं। आप उसे जितनी दृढ़ता से पकड़े रहेंगे, उतने सुरक्षित रहेंगे। महराज जी के हर भाग्य से बड़ा सौभाग्य है प्रभुपाद श्रीमद रामभद्राचार्य महराज जी जैसे गुरुवर की कृपा होना। यह कृपा ईश्वर की कृपा से भी अधिक मूल्यवान या यह कहें कि अमूल्य है।

जरा सी सिद्धि मिलते ही इहलोक और परलोक की अनेकानेक बुरी शक्तियां आपके विरुद्ध खड़ी हो जाती हैं। उससे संघर्ष अतीव शौर्य का विषय होता है। छोटे से जीवन में इसका थोड़ा-बहुत अनुभव तो है कि कैसे जरा सा ऊपर उठने पर ही वासनायें और कामनायें आपको तेजी से गिराने हेतु गठजोड़ कर लेती हैं। अतः अतिरिक्त सावधानी और गुरु कृपा विशेषकर, यही विकल्प होता है।

निस्संदेह महराज जी बेहतर चिंतन कर सकते हैं, फिर भी ऐसा बताने की धृष्टता ऐसे समय में अवश्य करना चाहिये। ऐसा इसलिए भी क्योंकि आपके शत्रु भी बड़े शक्तिशाली हैं। अहंकार मुक्त बने रहने हेतु निरंतर प्रयत्न, बाल स्वभाव जैसा सहज सरल बने रहना जैसा हैं वे वैसा बनाये रखना दैनिक कार्य होगा। निरंतर हमें परीक्षाओं से, अनेक भीतरी-बाहरी संघर्षों से गुजरते हुए प्रतिदिन विजय प्राप्त करना होता है। इसलिए यह और अधिक कठिन हो जाता है। अत्यधिक कठिन।

…. सबसे आदर्श स्थिति यह होगी कि धीरेंद्र शास्त्री जी अपने समान ही किसी तेजस्वी कन्या का वरण कर ऋषि अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप परम्परा को आगे बढ़ाते हुए एक तेजोमय परिवार का उपहार सनातन को दें। सादर।

जय सियाराम।

– *पंकज झा जी*🙏

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