बिहार अपना नायक मानता रहेगा बापू को
आर.के. सिन्हा
महात्मा गांधी जैसी पवित्र शख्सियत का जन्म सदियों में एक होता है। वे अपने जीवनकाल में करोड़ों लोगों को अपने विचारों से प्रभावित करते हैं। उनके न रहने के सात दशकों के बाद भी करोड़ों लोग उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। इसी तरह से हजारों- लाखों लोग गांधी के रास्ते संसार को बेहतर बनाने की हरचंद कोशिशें कर रहे हैं। पर मन तब उदास हो जाता है कि हमारे ही कुछ कथित नेता गांधी जी का जाने-अनजाने अपमान करने से बाज नहीं आते। पिछले कुछ दिनों से जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती बार-बार कह रही हैं कि गांधी जयंती पर भी राज्य के स्कूलों में सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का आयोजन नहीं होना चाहिए। उन्हें लगता है कि यह भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर हमला है। केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने स्कूलों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने यहां आगामी गांधी जयंती पर सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का अवश्य आयोजन करें I लेकिन, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इस पर आपत्ति है। जरा सोचिए कि किसी को सर्वधर्म प्रार्थना सभा के विचार में भी खराबी नजर आती है। कितना सड़ गया है दिमाग कुछ लोगों का।
काश, महबूबा मुफ्ती बिहार के मोतिहारी जिले के बुनियादी स्कूल अध्यापक कमाल अहसान से ही कुछ सीख लेतीं। वे रोज सुबह सात बजे तक अपने घर के पास चलने वाले गांधी जी द्वारा स्थापित बुनियादी स्कूल में पहुंच जाते हैं। वहां पर रोज होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना की व्यवस्था करते हैं। सफाई आदि का प्रबंध करते हैं। उसके बाद शिक्षकों, विद्यार्थियों और स्कूल से जुड़े कर्मियों से बात करते हैं, ताकि स्कूल सुचारू रूप से चलता रहे। वे यहां हर रोज आते हैं। कड़ाके की सर्दी हो या मूसलाधार बारिश, कमाल अहसान को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनकी दुनिया इस स्कूल के इर्द गिर्द ही घूमती है।
गांधी जी सन 1917 में चंपारण आंदोलन के समय जब बिहार आये थे, तो उन्होंने तीन विद्यालयों की स्थापना की। 13 नवम्बर, 1917 को बड़हरवा लखनसेन में प्रथम निशुल्क विद्यालय की स्थापना की। उसके बाद उन्होंने अपनी देख-रेख में 20 नवम्बर,1917 को एक स्कूल भितिहरवा, मोतिहारी और फिर मधुबन में तीसरे स्कूल की स्थापना की। कमाल एहसान भितिहरवा के स्कूल से जुड़े हुए हैं। इन स्कूलों को खोलने का गाँधी जी का मकसद यह था कि बिहार के सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले ग्रामीणों के बच्चों को उनके घरों के पास ही शिक्षा मिल जाए। इन स्कूलों में बच्चों को हथकरघा की भी ट्रेनिंग दी जाने लगी, जिससे कि उन्हें स्कूल के बाद कोई नौकरी या स्वरोजगार मिल जाए। वे कैसे जुड़े गांधी जी के बुनियादी स्कूल से? कमाल एहसान बताते हैं कि वे तो बिहार सरकार की नौकरी कर रहे थे। लेकिन, किसी भी बिहारी की तरह वे भी गांधी जी के विचारों से प्रभावित थे। उन्हें लगातार पढ़ते थे। यह सन 2005 की बात होगी जब उनके जिले में एक गांधीवादी जिलाधिकारी आया। उसका नाम था शिव कुमार। उसने यहां आने के बाद भितिहरवा के बुनियादी स्कूल की दुर्दशा को देखा तो वह रो पड़ा। जिस स्कूल को गांधी जी ने एक सपने के साथ स्थापित किया था वह तबाह हो चुका था। उससे विद्यार्थी दूर हो चुके थे। उस स्कूल में गांधी का कोई चित्र या सूक्ति तक नहीं लगी थी। उसके महत्व को स्थानीय लोगों ने भी जानना-समझना छोड़ दिया था। उस जिलाधिकारी ने एक दिन जिले के खास नागरिकों को अपने पास बुलाकर कसकर डांट पिलाई। उन्हें एक तरह से आईंना दिखाया कि वे गांधी जी के बुनियादी स्कूल का भी ख्याल नहीं कर सके। उन्हें शर्म आनी चाहिए। ये सब करने के बाद उन्होंने वहां उपस्थित लोगों से पूछा कि कौन-‘कौन व्यक्ति इस स्कूल को फिर से खड़ा करने में साथ देगा?’ कमाल अहसान ने अपना हाथ खड़ा कर दिया।
कमाल अहसान ने गांधी जी के स्कूल के कामकाज को देखने के लिए अपनी सरकारी नौकरी ही छोड़ दी। वे बिहार सरकार के राजस्व विभाग में काम कर रहे थे। क्या यह कोई छोटी बात मानी जाए खासतौर पर यह देखते हुए कि उन्हें स्कूल से कोई पगार या मानदेय़ नहीं मिलता है। तो घर का गुजारा कैसे चलता है? कौन देता है इतनी कुर्बानी। कमाल अहसान कहते हैं कि उनका घर स्कूल के करीब ही है। घर की छोटी-मोटी खेती है। इसलिए उनका गुजारा हो जाता है। उन्हें कुछ नहीं चाहिए। कमाल अहसान कहते हैं, “बिहार और गांधी का संबंध अटूट है। सारा बिहार गांधी बाबा को अपना संरक्षक और मार्गदर्शक मानता है। अगर सारी दुनिया भी गांधी बाबा के रास्ते से भटक जाएगी तो भी बिहार का रास्ता बापू का ही रास्ता रहेगा।
दरअसल गांधी जी को बिहार से सबसे पहले जोड़ा था राजकुमार शुक्ल ने। गांधी के चंपारण सत्याग्रह में बहुत से नाम ऐसे रहे जिन्होंने दिन-रात एक कर गांधी जी का साथ दिया था। उनलोगों के तप, त्याग, संघर्ष, मेहनत का ही असर रहा कि बैरिस्टर मोहनदास करमचंद गांधी चंपारण से ‘महात्मा’ बनकर लौटते हैं और फिर भारत की राजनीति में छा जाते हैं। गांधी चंपारण आने के बाद महात्मा बने, उसकी कथा तो सब जानते हैं। जरा सोचिए, कि गांधी जी चंपारण न आते तो क्या वे गांधी जी बनते। दुनिया भले ही गांधी से विमुख हो जाए पर बिहार के लिए गांधी जी सदैव परम आदरणीय रहेंगे। बिहार गांधी का दिल की गहराइयों से आदर करता है। बिहार में अब भी लाखों लोग गांधी जी को अपना नायक मानते हैं। उनमें हिन्दू-मुस्लिम सभी धर्मों के लोग हैं।
महबूबा मुफ्ती को कभी जरा सियासत से हटकर भी सोचना चाहिए। उन्हें यह तो पता होना ही चाहिए कि सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में कुरआन की आयतें भी पढ़ी जाती हैं। इसका विस्तार होता रहा। इसमें हिन्दू, इस्लाम,ईसाई और सिख धर्मों के बाद अन्य धर्मों की प्रार्थनाएं शामिल की जा जाती रहीं। सबसे अंत में बहाई धर्म की प्रार्धना को 1985 में शामिल किया गया। यानी यहां पर सब धर्मों को मानने वालों को बराबरी का हक है। राजघाट और अन्य खास अवसरों पर होने वाले सरकारी कार्यक्रमों में बहाई धर्म की प्रार्थना को प्रख्यात गांधीवादी श्रीमती निर्मला देशपांडे के प्रयासों से जोड़ा। तो क्या देश अब यह आशा करे कि महबूबा मुफ्ती भी आगे से सर्वधर्म प्रार्थना में शामिल होंगी?
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं)