जितेन्द्र तिवारी
मोदी सरकार का अंतिम पूर्णकालिक बजट एक फरवरी को वित्त मंत्री अरुण जेटली पेश करेंगे। अगले लोकसभा चुनाव के मद्देनजर माना जा रहा था कि यह बजट लोकलुभावन हो सकता है। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी ने टीवी इंटरव्यू में कह दिया कि लोगों को मुफ्त की चीजें नहीं बल्कि ईमानदार शासन पसंद है। ऐसे में अब कयास लग रहा है कि आखिर कैसा होगा यह बजट?
1 फरवरी 2018 को जब वित्त मंत्री अरुण जेटली लोकसभा में बजट भाषण पढ़ रहे होंगे तो यह उनके मौजूदा कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट होगा। 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वोट ऑन अकाउंट बजट पेश किया जाएगा। आखिरी पूर्ण बजट होने से साथ साथ यह देश में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद पेश हो रहा पहला आम बजट भी होगा। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि इस साल का बजट किस तरह पिछले किसी भी बजट से अलग होगा? दो और सवाल हैं, जीएसटी के बाद कितना बदल जाएगा बजट और क्या इस साल बजट से गायब होगा सस्ता महंगा फैक्टर?
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि जीएसटी लागू होने के बाद सरकार के पास अप्रत्यक्ष करों में किसी बड़े बदलाव की गुंजाइश नहीं है। वह कर जिसे सीधे जनता से नहीं लिया जाता, लेकिन जिसका बोझ प्रकारांतर से उसी पर पड़ता है, अप्रत्यक्ष कर कहलाते हैं। देश में तैयार की जाने वाली वस्तुओं पर लगने वाला उत्पाद शुल्क, आयात या निर्यात की जाने वाले वस्तुओं पर लगने वाला सीमा शुल्क अप्रत्यक्ष कर हैं। अगर सरकार को अप्रत्यक्ष कर के मोर्चे पर किसी तरह का बदलाव करना है तो इसकी मंजूरी बजट से पहले जीएसटी काउंसिल की बैठक में लेनी होगी। गौरतलब है कि जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक 18 जनवरी को होनी है।
बजट को कितना बदलेगा जीएसटी – जीएसटी के बाद बजट के किस तरह के बदलाव आएंगे? इस सवाल पर राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान की सलाहकार और अर्थशास्त्री राधिका पांडे ने बताया कि पहले यह जान लें कि आम बजट के अमूमन दो हिस्से होते हैं। पहले हिस्से में सरकार विभिन्न योजनाओं या स्कीमों के लिए लिए बजट राशि का आवंटन करती है। वहीं बजट के दूसरे हिस्से में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के प्रस्ताव की बात होती है। अब चूंकि जीएसटी में वैट, एक्साइज ड्यूटी, सर्विस टैक्स समेत एक दर्जन से ज्यादा अप्रत्यक्ष कर शामिल हो गए हैं तो सरकार के पास इनमें फेरबदल की गुंजाइश नहीं रह जाती, क्योंकि जीएसटी अब एक अलग कानून है और जीएसटी की दरों में बदलाव के लिए काउंसिल की मंजूरी जरूरी है। ऐसी स्थिती में सरकार के पास या तो जीएसटी से बाहर छूटे टैक्स कस्टम ड्यूटी आदि में कुछ बदलाव करने की गुंजाइश बचती है या फिर तंबाकू, पेट्रोल डीजल समेत ऐसी चीजें जो अभी जीएसटी के दायरे में नहीं हैं, उनमें कुछ बदलाव हो सकते हैं।
बजट से नदारद होगा सस्ता-मंहगा फैक्टर
आमतौर पर बजट के बाद ज्यादातर लोगों की यह जिज्ञासा रहती है कि बजट के असर से कौन कौन सी चीजें सस्ती और महंगी हुईं। यह सस्ते महंगे की मूल वजह दरअसल अप्रत्यक्ष करों में बदलाव से जुड़ी होती है। अब चूंकि जीएसटी लागू होने बाद ज्यादातर अप्रत्यक्ष करों में बदलाव की गुंजाइश खत्म हो गई है इसलिए सस्ता महंगा फैक्टर इस बार के बजट में कम दिखेगा।
2017 में भी हुए थे बड़े बदलाव –
2018 की तरह ही साल 2017 का आम बजट अपने साथ तमाम बदलावों को समेटे हुए था। पिछली साल सरकार ने बजट के प्रारूप को लेकर महत्वपूर्ण बदलाव किये थे। मसलन, आम बजट और रेल बजट का विलय, बजट 1 महीने पहले पेश करने की शुरुआत और योजना और गैर योजनाबद्ध खर्चों में अंतर को खत्म करना। ये बदलाव इस साल भी लागू रहेंगे।
राजकोषीय घाटा
माना जा रहा है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली की सबसे बड़ी प्राथमिकता राजकोषीय घाटे का 3। 2 फीसदी का लक्ष्य हासिल करना है। हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि चुनावी वर्ष में सरकार खजाना न खोले, ऐसा हो पाना मुमकिन नहीं. ऐसे में जेटली के सामने एक बड़ी चुनौती राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को सामने रख महंगाई और विकास दर में संतुलन बिठाना होगा। एक दलील यह भी है कि पिछले बजट में राजकोषीय घाटा 3.5प्रतिशत था ऐसे में अगर सरकार चाहे तो इसे लक्ष्य के कुछ नजदीक यानी 3.4 या 3.3 फीसदी तक भी ला सकती है क्योंकि उसे अगले साल चुनावी वर्ष में इसे 3 फीसदी रखने के लक्ष्य के नजदीक लाने में आसानी हो सकती है। सरकार यह कतई नहीं चाहेगी कि चुनावी वर्ष में विपक्ष उस पर महंगाई बढ़ाने की तोहमत लगाए। ऐसे में सरकारी खर्च पर सबकी करीब से नजरें लगी रहेंगी। आकलन है कि इस साल के मध्य तक भारत की अर्थव्यवस्था चीन को पीछे छोड़ कर दुनिया की सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था बन जाएगी। चुनावी वर्ष में सरकार के लिए अपनी पीठ थपथपाने का यह एक बड़ा मौका हो सकता है। एक बड़ा सवाल यह भी है कि सरकार चुनावी वर्ष में खर्च करने के लिए पैसा कहां से लाएगी। कहा जा रहा है कि विनिवेश के नए मौके खोजे जाएंगे।
ग्रामीण खर्च में बढ़ोतरी
गुजरात चुनाव में ग्रामीण इलाकों में बीजेपी की हार के बाद यह सवाल उठने लगा है कि देश भर में कृषि क्षेत्र में छाए संकट को दूर करने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है? स्वयं प्रधानमंत्री ने भी टीवी इंटरव्यू में इस संकट के बारे में स्वीकार किया है और इसके लिए आवश्यक उपाय उठाने का आश्वासन दिया है। याद रहे कि पिछले बजट में सरकार ने अगले पांच वर्षों में यानी 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन कृषि विकास दर में कमी इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य के पूरा होने पर सवालिया निशान लगा रही है। किसानों की आत्महत्या और उपज के सही दाम न मिल पाना राज्य सरकारों के सामने बड़ी चुनौती है। बीजेपी के लिए यह ज्यादा बड़ी परेशानी है क्योंकि सहयोगियों के साथ 19 राज्यों में उसकी सरकार है।
माना जा रहा है कि जेटली के बजट में ग्रामीण इलाकों में सरकारी खर्च में बढ़ोतरी का ऐलान किया जा सकता है ताकि वहां छाए संकट को दूर करने के लिए सरकार कोई ठोस पहल कर सके। इसके लिए एक उपाय मनरेगा जैसी रोजगार गारंटी योजना में राशि के आवंटन को बढ़ाना हो सकता है। सिंचाई की योजनाओं में केंद्रीय मदद का हिस्सा भी बढ़ाने का विकल्प है। इसके अलावा एक दूसरा उपाय मध्य प्रदेश सरकार की भावांतर योजना को पूरे देश में लागू करना हो सकता है जिसके तहत किसानों को उपज और बाजार के दामों में अंतर की भरपाई सरकार करती है।
युवाओं को रोजगार
युवाओं को रोजगार एक ऐसा मुद्दा है जिस पर मोदी सरकार को अगले चुनाव में कई सवालों के जवाब देने हैं। हालांकि पीएम मोदी कह रहे हैं कि रोजगार के आंकड़े जुटाने के तरीके ठीक नहीं हैं और वो स्वरोजगार के बड़े अवसरों का जिक्र करते हैं। लेकिन बजट एक ऐसा अंतिम अवसर है जिसमें सरकार युवाओं के रोजगार को बढ़ाने के लिए कुछ बड़े ऐलान कर सकती है। इसके लिए कुशलता की योजनाओं में रकम का आवंटन बढ़ाने का विकल्प है। साथ निजी निवेश के लिए सरकार कुछ प्रोत्साहन के कदम घोषित कर सकती है।
मध्य वर्ग को राहत
हर चुनाव से पहले मध्य वर्ग बड़ी आस से सरकार की ओर देखता है। हालांकि जीएसटी लगने के बाद अप्रत्यक्ष कर अब बजट का हिस्सा नहीं होंगे। ऐसे में मध्य वर्ग की पूरी आशा प्रत्यक्ष कर यानी आय कर पर आकर टिक जाती है। वैसे इतिहास गवाह है कि चुनाव से पहले के अंतिम पूर्ण बजट में सरकारें मध्य वर्ग को आय कर की दरों में कोई बड़ी राहत देने से बचती रही हैं। बजट लोक लुभावन न होने के पीएम मोदी के इशारे से भी मध्य वर्ग की उम्मीदों को झटका लगा है। हालांकि जानकार कहते हैं कि हाल के सारे चुनावों में बीजेपी का मजबूती से साथ देने वाले मध्य वर्ग को दरकिनार करना सरकार के लिए थोड़ा मुश्किल होगा। इसलिए संभावना व्यक्त की जा रही है कि आय कर की दरों में मामूली राहत जरूर मिलेगी।
स्टॉक मार्केट
जीएसटी और नोटबंदी की चोट से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था की शेयर बाजार एक अलग और सुनहरी तस्वीर पेश कर रहा है। बचत के पारंपरिक तरीकों में ब्याज दर गिरने के बाद छोटे निवेशकों ने म्यूचुअल फंड के जरिए या फिर सीधे, बड़े पैमाने पर स्टॉक मार्केट में निवेश करना शुरू किया है। ऐसे में क्या सरकार लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स टैक्स (एलटीसीजी) और डिविडेंड टैक्स में कुछ बदलाव कर क्या शेयर बाजार को फौरी झटका दे सकती है? यह एक बड़ा सवाल है जिसके जवाब पर करोड़ों निवेशकों की नजरें टिकी हैं।