विवाह और सहजीव
ह्रदय नारायण दीक्षित
विवाह और सहजीवन - लिव इन पर चर्चा हो रही है। वह भी विवाह पर कम और सहजीवन पर ज्यादा। वैसे विवाह में सहजीवन होता है। विवाह रहित कोरा सहजीवन या लिव इन अधूरा है। इस सहजीवन में कोई बंधन नहीं। यह स्वच्छंद है। सामान्य आकर्षण का कड़वा परिणाम है। आकर्षण का आधार रूप होता है। रूप अस्थाई होता है। आपस में कुछ आश्वासन, यथार्थ से दूर कोरी कल्पनाएं। न बैण्ड, न बाजा, न बरात। न माता पिता के आशीष। न वरिष्ठों का शुभकामना प्रसाद। न सामाजिक समर्थन। न मंगल गीत, - न उपहार। दो और सिर्फ दो का संवाद और सहजीवन की अंधी सुरंग में प्रवेश। यह उत्तर आधुनिकता का नशा है। कई अभिनेत्रियों ने लिव इन में फंस कर आत्महत्या भी की थी। सम्प्रति श्रद्धा हत्याकाण्ड चर्चा में है। अपराधी और अपराध की चर्चा ज्यादा है। इसके मूल कारण की तरफ लोगों का ध्यान नहीं है। कटे अंग पुलिस खोज रही है। ऐसी घटनाएं सामान्य हो रही ...