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साहित्य संवाद

भारत में शिक्षा का सुधार अत्यन्त आवश्यक*

भारत में शिक्षा का सुधार अत्यन्त आवश्यक*

TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
शिक्षा देश की रीढ़ की हड्डी होती है। किसी भी देश की प्रगति तथा वहाँ के नागरिकों का भविष्य वहाँ की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ही निर्भर करता है। भारत सरकार इस तथ्य से भली-भांति परिचित है इसीलिए शिक्षा नीति के अन्तर्गत समय-समय पर परिवर्तन किए जाते रहें हैं। नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत शिक्षा को 5 + 3 + 3 + 4 के चरणों में बांटा गया है। पूर्व प्राथमिक स्तर 3 वर्ष एवं कक्षा 1 व 2 को आधारभूत शिक्षा के अन्तर्गत रखा गया है जिसमें 3 से 5 वर्ष तक के बच्चों को बिना किसी बस्ते के बोझ के खेल-कूद के माध्यम से शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ाने का प्रयास किया गया है। 6 से 8 वर्ष की अवस्था में बच्चे की औपचारिक शिक्षा को आरम्भ करने का प्रावधान रखा गया है उस अवस्था में बच्चा परिपक्व हो जाता है और उसको स्वयं का ज्ञान होना प्रारम्भ हो जाता है। अक्सर यह देखा गया है कि 8 से 11 वर्ष की आयु के बच्चे कम्प्यूटर, मोबाइल अथवा ...
गंगा जल

गंगा जल

संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
अमेरिका में एक लीटर गंगाजल 250 डालर में क्यों मिलता है ? सर्दी के मौसम में कई बार खांसी हो जाती है। जब डॉक्टर से खांसी ठीक नही हुई तो किसी ने बताया कि डाक्टर से खांसी ठीक नहीं होती तब गंगाजल पिलाना चाहिए। गंगाजल तो मरते हुए व्यक्ति के मुंह में डाला जाता है, हमने तो ऐसा सुना है ; तो डॉक्टर साहिब बोले- नहीं ! कई रोगों का इलाज भी है। दिन में तीन बार दो-दो चम्मच गंगाजल पिया और तीन दिन में खांसी ठीक हो गई। यह अनुभव है, हम इसे गंगाजल का चमत्कार नहीं मानते, उसके औषधीय गुणों का प्रमाण मानते हैं। कई इतिहासकार बताते हैं कि सम्राट अकबर स्वयं तो गंगा जल का सेवन करता ही था, मेहमानों को भी गंगा जल पिलाता था। इतिहासकार लिखते हैं कि अंग्रेज जब कलकत्ता से वापस इंग्लैंड जाते थे, तो पीने के लिए जहाज में गंगा का पानी ले जाते थे, क्योंकि वह सड़ता नहीं था। इसके विपरीत अंग्रेज जो पानी अपने देश से लाते थे ...
अनुपम साहित्य को खंगालने का वक्त  

अनुपम साहित्य को खंगालने का वक्त  

साहित्य संवाद
लेखक: अरुण तिवारी जब देह थी, तब अनुपम नहीं; अब देह नहीं, पर अनुपम हैं। आप इसे मेरा निकटदृष्टि दोष कहें या दूरदृष्टि दोष; जब तक अनुपम जी की देह थी, तब तक मैं उनमें अन्य कुछ अनुपम न देख सका, सिवाय नये मुहावरे गढ़ने वाली उनकी शब्दावली, गूढ से गूढ़ विषय को कहानी की तरह पेश करने की उनकी महारत और चीजों को सहेजकर सुरुचिपूर्ण ढंग से रखने की उनकी कला के। डाक के लिफाफों से निकाली बेकार गांधी टिकटों को एक साथ चिपकाकर कलाकृति का आकार देने की उनकी कला ने उनके जीते-जी ही मुझसे आकर्षित किया। दूसरों को असहज बना दे, ऐसे अति विनम्र अनुपम व्यवहार को भी मैने उनकी देह में ही देखा। कुर्सियां खाली हों तो भी गांधी शांति प्रतिष्ठान के अपने कार्यक्रमों में हाथ बांधे एक कोने खडे़ रहना; कुर्सी पर बैठे हों, तो आगन्तुक को देखते ही कुर्सी खाली कर देना। किसी के साथ खडे़-खड़े ही लंबी बात कर लेना और फुर्सत में हों त...
मन ही सब कुछ है। आपको क्या लगता है आप क्या बनेंगे?

मन ही सब कुछ है। आपको क्या लगता है आप क्या बनेंगे?

सामाजिक, साहित्य संवाद
बुद्ध ने कहा कि - 'सभी समस्याओं का कारण उत्साह है' अर्थात इच्छा की अधिकता और इच्छा मन से आती है। इसलिए मन को नियंत्रित और संतुलित करना आवश्यक है। भारतीय संस्कृति और शास्त्र हमें अपने मन को नियंत्रित करने के तरीके सिखाते हैं। संतुलित मन के लिए प्राचीन संत वर्षों से योग किया करते थे। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की भारत सरकार की पहल इस दिशा में एक और कदम है। यह मुहावरा - "मन ही सब कुछ है, जो आप सोचते हैं आप बन जाते हैं" सभी पहलुओं में सही है। इसलिए केवल एक स्वस्थ शरीर ही नहीं बल्कि एक स्वस्थ और प्रसन्न मन और आत्मा भी महत्वपूर्ण है। -डॉ सत्यवान सौरभ  हमारा दिमाग हमारे शरीर में सबसे शक्तिशाली तत्व है, हालांकि सबसे संवेदनशील भी है। हमारा शरीर जो भी कार्य करता है वह मन द्वारा निर्देशित होता है- हमारी गति, हमारी भावनाएं, भावनाएं और सबसे महत्वपूर्ण सोच और तर्क। मन की उपस्थिति के कारण ...
आखिर क्यों हम जीवन के सर्वोत्तम को देख ही नहीं रहे?

आखिर क्यों हम जीवन के सर्वोत्तम को देख ही नहीं रहे?

TOP STORIES, साहित्य संवाद
हमारे जीवन का अन्य नि:शुल्क रत्न हमारे चारों ओर प्रकृति है। हमारे पास सूरज है जो हर दिन एक नया सवेरा लाता है; उस सुबह को सुखद बनाने के लिए हमारे पास हरी-भरी चरागाहें हैं, हमें जगाने के लिए पक्षियों की चहचहाहट, जीवन की सुंदरता को देखने के लिए खिलते फूल और हमारी आंखों को सुकून देने के लिए बहता पानी। प्रकृति की यह प्राकृतिक सुंदरता पुरुषों के लिए सबसे प्यारी और सबसे प्यारी उपस्थिति है जो प्रशंसा करने के लिए एक उत्सुक पर्यवेक्षक के अलावा कुछ नहीं मांगती है। और सबसे खास बात यह है कि हमने अभी तक धरती पर इस स्वर्ग का आनंद लेने के लिए कुछ भी भुगतान नहीं किया है। लेकिन अब मूल्य बदल रहे हैं और पुरुष भी। पुरुष धन की ओर बढ़ रहे हैं और भौतिकवादी हो गए हैं। प्रेम, स्नेह, करुणा, सह-अस्तित्व और शांति की भावनाएँ अपना आधार खोती जा रही हैं। -प्रियंका सौरभ  ऐसा कहा जाता है कि जीवन वह है जो आप इसे ...
लोक सभा में हास्य, विनोद, कविता और शायरी

लोक सभा में हास्य, विनोद, कविता और शायरी

TOP STORIES, साहित्य संवाद
संसदीय व्यवस्था अन्य तंत्रों की अपेक्षा अधिक सुसभ्य और सुसंस्कृत है क्योंकि इसमें लोग संसद में मिल-बैठ कर बातचीत के द्वारा अपने मतभेदों का हल खोजने का प्रयास करते हैं तथा राजनीतिक शक्ति के लिए सतत संघर्ष भी या तो आम चुनावों के समय मतपेटियों के माध्यम से होता है या फिर संसद के सदनों में वाद-विवाद।  संसदीय व्यवस्था का मूलमंत्र यही है कि स्वतंत्र चर्चा हो। हर राष्ट्रीय महत्त्व के मामले पर खुले आम बहस हो, आलोचना की पूरी छूट हो और विभिन्न मतों में टकराव, सभी पक्षों द्वारा आपसी बातचीत और वाद-विवाद के बाद देश हित में निर्णय लिए जाए। कई बार लोक सभा में सांसदगण हास्य विनोद, कविता और शेरो-शायरी के जरिए अपनी बात मुखरता से कहते हुए दिखते हैं। हास्य-विनोद से ना केवल माहौल का तनाव कम होता है बल्कि अन्य वक्ताओं की बोलने की इच्छा का भी संवर्धन होता है। एक शेर के जवाब में दूसरा वक्ता भी अपनी बात श...
स्त्री अत्याचारों से जुड़ी चिन्ताओं की टंकार

स्त्री अत्याचारों से जुड़ी चिन्ताओं की टंकार

TOP STORIES, विश्लेषण, साहित्य संवाद
- ललित गर्ग - इनदिनों स्त्रियों के घरेलू जीवन में उन पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। विशेषतः कोरोना महामारी के लॉकडाउन के दौरान एवं उसके बाद महिलाओं पर हिंसा, मारपीट एवं प्रताड़ना की घटनाएं बढ़ी हैं। ऐसी ही पीलीभीत की एक घटना ने रोंगटे खड़े कर दिये। खाने में बाल निकलने के बाद पत्नी को पीलीभीत के युवक जहीरुद्दीन ने जिस बेरहमी, बर्बरता एवं क्रूरता से मारा, जमीन पर गिरा दिया, घर में रखी बाल काटने वाली मशीन (ट्रिमर) को पत्नी के सिर पर चला दिया, इन दुभाग्यपूर्ण एवं शर्मसार करने वाली नृशंसता की घटना की जितनी निन्दा की जाये, कम है। स्त्री को समानता का अधिकार देने और उसके स्त्रीत्व के प्रति आदर भाव रखने के मामले में आज भी पुरुषवादी सोच किस कदर समाज में हावी है,क इसकी पीलीभीत की यह ताजा घटना निन्दनीय एवं क्रूरतम निष्पत्ति है। दुभाग्यपूर्ण पहलू यह है कि जब एक स्त्री पर यह अनाचार हो रहा था तो दूसरी...

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगश्रीराम की अँगूठी का रहस्य

संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
श्रीरामचरितमानस में श्रीराम की अँगूठी का प्रसंगश्रीराम को १४ वर्ष तक तापस वेष में तथा वन (दण्डकारण्य) में रहने का वरदान कैकेयी ने राजा दशरथ से माँगा था तथा भरत का राज्याभिषेक। श्रीराम तपस्वी के वेष में होने के उपरान्त भी अपने साथ धनुष, बाण, तलवार आदि शस्त्र लेकर वन को गए थे। श्रीराम क्षत्रिय थे अतएव उन्होंने शस्त्र धारण किए। उनके अवतार लेने का उद्देश्य हनुमानजी ने रावण को बताया है। इससे उनके शस्त्र धारण का कारण स्पष्ट हो जाता है।गो द्विज धेनु देव हितकारी। कृपासिंधु मानुष तनुधारी।।जन रंजन-भंजन खल ब्राता। बेद धर्म रच्छक सुनु भ्राता।।श्रीरामचरितमानस सुन्दरकाण्ड ३९ (क) 2हनुमानजी रावण को कहते हैं कि उन कृपा के समुद्र भगवान (श्रीराम) ने पृथ्वी, ब्राह्मण गौ और देवताओं का हित करने के लिए ही मनुष्य शरीर धारण किया है। हे भाई! सुनिए, वे सबको आनन्द देने वाले, दुष्टों के समूह का नाश करने वाले और वेद त...
श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगक्षत्रिय विश्वामित्र राजर्षि से ब्रह्मर्षि कैसे बने का वृत्तांत

श्रीरामकथा के अल्पज्ञात दुर्लभ प्रसंगक्षत्रिय विश्वामित्र राजर्षि से ब्रह्मर्षि कैसे बने का वृत्तांत

धर्म, संस्कृति और अध्यात्म, साहित्य संवाद
श्रीरामकथा में विश्वामित्रजी के जीवनचक्र को जानना अत्यन्त आवश्यक है। वाल्मीकि रामायण ही नहीं प्राय: सभी श्रीरामकथाओं में उनका अपना एक विशेष स्थान है। श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण के बालकाण्ड में उनके चरित्र का वर्णन शतानन्दजी के द्वारा श्रीराम-लक्ष्मण को जनकपुर पहुँचने पर सुनाया गया। यह वृत्तांत लगभग पन्द्रह सर्गों में वर्णित हैं। विश्वामित्रजी का जीवन वृत्तांत शतानंदजी ने बहुत विस्तारपूर्वक श्रीराम से कहा है। अधिकांश पाठक इस रामायण की भाषा संस्कृत होने से कठिन समझकर इसका अध्ययन करने से वंचित हो जाते हैं। अत: ऐसे सुधी पाठकों एवं युवा पीढ़ी महर्षि विश्वामित्र ही नहीं उनके साथ-साथ ब्रह्मर्षि वसिष्ठजी के बारे में जान सकेंगे यह विचार कर प्रस्तुत प्रसंग का रोचकतापूर्ण वर्णन किया जा रहा है।महर्षि विश्वामित्र उनके सिद्धाश्रम से राक्षसों के वध उपरान्त तथा अहल्या उद्धार श्रीराम से करवाकर महाराज जनक...
कुछ कीजिये “गौमाता” पर, राजनीति नहीं !

कुछ कीजिये “गौमाता” पर, राजनीति नहीं !

सामाजिक, साहित्य संवाद
कहते हैं मारक पशु बीमारी “लंपी” देश से चली गई | इस बीमारी ने देश के  उत्तर पश्चिम के प्रदेशों की लाखों गाय व बैल लील लिया | गुजरात. राजस्थान, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश आदि में कुल मिलाकर लाखों दुधारू गाय मर चुकी है और जो बीमारी के बाद बच गईं वह भी दूध से सूख गई हैं। आंकड़ो के मुताबिक सबसे ज्यादा मृत्यु दर राजस्थान में थी परन्तु हरियाणा व पंजाब में भी बहुत बड़ी संख्या में गाय मरी हैं। हरियाणा में यमुनानगर, अंबाला, सिरसा, फतेहाबाद, भिवानी आदि में लंपी का सर्वाधिक कहर देखा गया। लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) गत वर्षों के दौरान पहले भी कहीं-कहीं आती रही परंतु इसका गंभीर संज्ञान पशुपालन विभाग ने कभी  नहीं लिया। इस संबंध में हुई आर्थिक बदहाली के लिए क्या सरकार की जवाबदेही तय नहीं होनी चाहिए? विडंबना है कि समय रहते इस बीमारी का संज्ञान लेकर नियंत्रित करने के...