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तबलीग़ी जमात के प्रपंच से  कैसे बचेगा भारत

तबलीग़ी जमात के प्रपंच से कैसे बचेगा भारत

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गैर-मुसलमानों को इस्लाम से जोड़ने और मुसलमानों को सच्चा मुसलमान बनाने के नाम पर कट्टरपंथी और आतंकवादी बनाने के रास्ते पर चलने की शिक्षा देने वाले तबलीग़ी जमात ने भारत की कोरोना वायरस के खिलाफजारी जंग को भारी क्षति पहुंचाई है। सच पूछा जाए तो इन्होंने देश को एक बड़े संकट में डाल दिया है। अब इस कठिन हालातों से देश कैसे निकलेगा यह एक अब बड़ा सवाल है।  जब कोरोना के कारण काबा बंद हो गया,मक्का मदीना बंद हो गये,ईसाइयों का तीर्थ स्थल वेटिकन सिटी पर ताले लग गए, मंदिर, मस्जिद गुरूद्वारे  बंद हो गए, तब्लीगी जमात दिल्ली के निजामउद्दीन इलाके में हजारों देशी-विदेशी मौलानाओं को इकट्ठा कर अपनाजलसा कर रहे थे। प्रधानमंत्री की अपीलों को क्यों किया नजरअँदाज  अब इनके हक में दलीलें देने वाले जरा यह तो बताएं कि क्या इन्हें इतनी भी समझ नहीं थी कि जब पूरे विश्व में कोरोना का प्रकोप है और जब देश लॉक डाउन और सो...
सउदी अरब की बहाबी विचारधारा पैसों के प्रभाव में कट्टरपंथी होते भारतीय मुसलमान

सउदी अरब की बहाबी विचारधारा पैसों के प्रभाव में कट्टरपंथी होते भारतीय मुसलमान

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  भारतीय इस्लाम पर खुद अरब के इस्लाम में आए बदलाव का असर देखा जा रहा है। प्रथम विश्व युद्ध के बाद सऊद परिवार ने अरब खाड़ी के एक बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया था। यह परिवार इस्लाम की कट्टर विचारधारा – वहाबी का समर्थक है और इसकी वजह से सऊदी अरब में मुसलमान वहाबी धारा को सबसे ज्यादा मानते हैं। जैसे-जैसे पूरे विश्व में औद्योगीकरण बढ़ता गया, पेट्रोल-डीजल की मांग बढ़ती गई वैसे-वैसे सऊदी अरब और समृद्ध होता गया। भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों का उच्च तबका इस समय इन अरबी शब्दों को अपनी सांस्कृतिक पहचान मानकर अपना रहा है। इसके जरिए वे आम मुसलमान नहीं बल्कि उस तरह के मुसलमान बन रहे हैं जो सऊदी अरब द्वारा प्रचारित हैं। भारत से लगभग 32 लाखमुस्लिम विदेश में प्रवास में रह रहे हैं। उनकी पहली पसंद अरब खाड़ी के देश होते हैं जहां वहाबी इस्लाम का ही बोलबाला है। ऐतिहासिक रूप से, इस्लाम को मानने वालों ने ...
अकेले चीन ही नहीं पश्चिमी देशों के कुकर्मों का परिणाम भी है कोरोना वायरस का संकट

अकेले चीन ही नहीं पश्चिमी देशों के कुकर्मों का परिणाम भी है कोरोना वायरस का संकट

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दुनिया को बाज़ार बना कर लूटने के पश्चिमी देशों के षड्यंत्रों का पिछले 500 बर्षो से दुनिया गवाह रही है। तीसरी दुनिया का हर नागरिक इस दर्द की पीड़ा की जानता है। आज कोरोना वायरस का प्रकोप दुनिया के 200 देशों तक फैल चुका है। दुनिया इसके लिए चीन को दोषी ठहरा रही है मगर उसके साथ पश्चिमी देश भी उतने ही दोषी है। इसके लिए पिछले कुछ दशकों के दुनिया के घटनाक्रमो को समझना होगा। 1) इसमें पहला चरण एशिया, अफ्रीका व लेटिन अमेरिकी देशों को गुलाम बनाकर लूटने का रहा जो इन देशो में पिछले 100 सालों में आयी जनजागृति के कारण आजादी के आंदोलनों में बदल गया और अंततः इन देशों को मुक्त करना पड़ा। मगर आजादी देने से पूर्व " ड्रेन ऑफ वेल्थ" की रणनीति पर अमल करते हुए 400 बर्षो तक इन देशों का यथासंभव शोषण व लूट के खेल चलते रहे। विकसित देशों की प्रचुर दौलत व शानदार इंफ्रास्ट्रक्चर के पीछे यही लूट का माल है। जितने भी पि...
कोरोना वायरस नहीं तीसरे विश्वयुद्ध का सूर्यग्रहण  

कोरोना वायरस नहीं तीसरे विश्वयुद्ध का सूर्यग्रहण  

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यह मेरी समझ से बाहर है कि क्यों अभी तक नाटो देशों ने औपचारिक रूप से नहीं घोषित किया कि तीसरा विश्वयुद्ध प्रारंभ हो चुका है। जबकि इसका आरंभ तो अमेरिका द्वारा उत्तरी कोरिया व ईरान के विरूद्ध उठाए गए कदमों के साथ ही हो चुका था। बुरी तरह उलझे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वस्तुतः एक ही बार मे यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कौन सा देश किसके खेमे में है। किंतु कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण के खतरनाक रूप से  शिकार विश्व में विभिन्न राष्ट्रों की  प्रतिक्रिया व उठाए जा रहे कदमों से स्पष्ट हो चुका है कि दुनिया फिर से दो खेमों में बंटने जा रही है अमेरिकी व चीनी।   सन 1989 तक विश्व जिसमें बाज़ारबादी अमेरिका व साम्यवादी सोवियत संघ के दो खेमें थे , वे 1989 में अमेरिका द्वारा सोवियत संघ के बिखराब व अवसान के बाद समाप्त हो चुके थे व सन 1990 से सन 2019 तक अमेरिका दुनिया की एक मात्र महाशक्ति था। किंतु अब...
Not repeating mistakes done by Italy, Spain and US, will be benefitting

Not repeating mistakes done by Italy, Spain and US, will be benefitting

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On Tuesday evening, Prime Minister Shri Narendra Modi has given a strong message in his address to the nation by putting 21 days of lockout across the country. It is "n bhuto n bhavishyati" means it neither happened in the past nor will happen in future. But, this message was very sensible and also absolutely indispensable for the country. In all humility, the Prime Minister Narendra Modi appealed to the masses to maintain restraint for another 21 days. He is the first Prime Minister of the country to have taken such strict steps in view of the welfare and sentiments of the entire 130 crore people in this hour of crisis. Further, he expressed the strong feelings that still if we failed to learn from the experiences of other countries and people continued to behave negligently for the next ...
चलो पुरातन की ओर

चलो पुरातन की ओर

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एक सूक्ष्म से परजीवी ने आपको घुटनो पर ला दिया ? न एटम बम काम आ रहे न पेट्रो रिफाइनारी ? आपका सारा विकास एक छोटे से जीवाणु से सामना नहीं कर पा रहा ?? क्या हुआ , निकल गयी हेकड़ी ?? बस इतना ही कमाया था इतने वर्षों में ? की एक छोटे से जीव ने घरो में कैद कर दिया ??? मध्य युग में पुरे यूरोप पे राज करने वाला रोम ( इटली ) नष्ट होने के कगार पे आ गया , मध्य पूर्व को अपने कदमो से रोदने वाला ओस्मानिया साम्राज्य ( ईरान , टर्की ) अब घुटनो पर हैं , जिनके साम्राज्य का सूर्य कभी अस्त नहीं होता था , उस ब्रिटिश साम्राज्य के वारिश बर्मिंघम पैलेस में कैद हैं , जो स्वयं को आधुनिक युग की सबसे बड़ी शक्ति समझते थे , उस रूस के बॉर्डर सील हैं , जिनके एक इशारे पर दुनिया क नक़्शे बदल जाते हैं , जो पूरी दुनिया के अघोषित चौधरी हैं , उस अमेरिका में लॉक डाउन हैं और जो आने वाले समय में सबको निगल जाना चाहते थे , वो चीन ,...
भयावह मंजरों वाला तीसरा विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया है 

भयावह मंजरों वाला तीसरा विश्वयुद्ध प्रारंभ हो गया है 

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यह मेरी समझ से बाहर है कि क्यों अभी तक नाटो देशों ने औपचारिक रूप से नहीं घोषित किया कि तीसरा विश्वयुद्ध प्रारंभ हो चुका है। जबकि इसका आरंभ तो अमेरिका द्वारा उत्तरी कोरिया व ईरान के विरूद्ध उठाए गए कदमों के साथ ही जो चुका था। बुरी तरह उलझे अंतरराष्ट्रीय संबंधों में वस्तुतः एक ही बार मे यह समझ पाना मुश्किल होता है कि कौन सा देश किसके साथ है। किंतु कोरोना वायरस के विश्वव्यापी संक्रमण के खतरनाक रूप से  शिकार विश्व में विभिन्न राष्ट्रों की  प्रतिक्रिया व उठाए जा रहे कदमों से स्पष्ट हो चुका है कि दुनिया फिर से दो खेमों में बंटने जा रही है अमेरिकी व चीनी।   सन 1989 तक विश्व जिसमें बाज़ारबादी अमेरिका व साम्यवादी सोवियत संघ के दो खेमें थे , वे 1989 में अमेरिका द्वारा सोवियत संघ के बिखराब व अवसान के बाद समाप्त हो चुके थे व सन 1990 से सन 2019 तक अमेरिका दुनिया की एक मात्र महाशक्ति था। किंतु अब यह समी...
क्यों होती है फांसी देने में देरी कातिलों को

क्यों होती है फांसी देने में देरी कातिलों को

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निर्भया गैंगरेप केस में दोषियों को आख़िरकार फांसी तो हो ही गई। निर्भया के साथ दुष्कर्म और उसकी हत्या करने वाले मुकेश सिंह, पवन गुप्ता, विनय शर्मा और अक्षय ठाकुर को पहली बार इस केस में साल 2013 में ही मौत की सजा सुनाई गई थी। उसके बाद यह केस विभिन्न अदालतों में अनावश्यक रूप से घूमता रहा । पर इतने बड़े और अहम केस में दोषियों को सजा मिलने में हुई देरी बहुत सारे सवाल न्यायपालिका और वकालती दाव-पेंच पर भी खड़े करती है। कोर्ट से इंसाफ मिलने में होने वाली देरी के चलते फांसी की सजा का इंतजार कर रहे मुजरिमों की दया याचिकाओं पर भी फैसले वक्त रहते नहीं हो पाये । सुप्रीम कोर्ट ने साल 2014 में फांसी की सजा का इंतजार कर रहे 15 दोषियों की फांसी की सजा उम्रकैद में भी बदली थी। उसने फांसी की सजा का इंतजार करने वाले कैदियों को लेकर अपने एक अहम फैसले में कहा था कि मृत्युदंड पाए अपराधियों की दया याचिका पर अनिश्चि...
गोगोइ के राज्यसभा नामजद होने पर विरोध क्यों?

गोगोइ के राज्यसभा नामजद होने पर विरोध क्यों?

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  भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को सेवा-निवृत्ति के चार माह के भीतर राज्यसभा में नामजद कर देने की घटना ने एक नया इतिहास रचा है, नये पदचिह्न स्थापित किये गये हैं, इससे लोकतंत्र को नई ऊर्जा एवं नया परिवेश मिला है। राष्ट्रपति द्वारा नामजद किए जानेवाले 12 लोगों में से वे एक हैं। ऐसा नहीं है कि गोगोई के पहले कोई न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायाधीश सांसद नहीं बने हैं, वे बने हैं लेकिन गोगोई ऐसे पहले सर्वोच्च न्यायाधीश हैं, जो राष्ट्रपति की नामजदगी से राज्यसभा के सदस्य बने हैं। भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद न्यायपालिका का सर्वोच्च पद है, अब गोगोई राज्यसभा के सदस्य बनकर राष्ट्र के निर्माण में पद एवं प्रतिष्ठा को महत्व न देते हुए उदारता का परिचय दिया है। वे एक ऐसी रोशनी की मीनार बने हंै, जो राजनीति को स्वार्थ नहीं, सेवा की एक मिसाल के रूप में प्रस्तुति देने को तत्पर हो रहे हैं। भारत के लो...
कोरोना से जंग- क्यों भारत पर भरोसा करते सार्क मुल्क

कोरोना से जंग- क्यों भारत पर भरोसा करते सार्क मुल्क

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कहते ही हैं कि कष्ट और संकट में पड़ोसियों को एक-दूसरे के साथ खड़ा हो ही जाना चाहिए। संकट की स्थिति में पुराने गिले-शिकवे भुला ही देने चाहिए। दुनिया में आतंक और भय का पर्याय बन चुके “कोरोना वायरस” ने सार्क देशों को भी एक बार फिर साथ खड़ा कर दिया है। चलो, कम से कम इसी कोरोना के बहाने साउथ एशियन एसोसिएशन फॉर रीजनल कोऑपरेशन (सार्क)के सदस्य देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्री लंका, नेपाल, भूटान और मालदीव साथ-साथ तो आ गए हैं। कोरोना की चुनौती का मुकाबला करने के लिए अब सभी सार्क देश मिल- जुलकर एक एक्शन प्लान बनाने जा रहे हैं। अच्छी बात यह है कि यह पहल भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही की है। इसका सार्क के सभी देशों ने स्वागत भी किया। वे भारत के साथ इसलिए खड़ा होना चाहते हैं क्योंकि कोरोना वायरस से लड़ने के लिए भारत सरकार ने अभूतपूर्व कदम उठाकर पूरे विश्व के समक्ष यह सिद्ध कर दिया है कि ...