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22 मार्च 2020 – जनता कर्फ्यू का वैज्ञानिक व आध्यात्मिक अर्थ – अत्यंत सूझबूझ का परिचायक

22 मार्च 2020 – जनता कर्फ्यू का वैज्ञानिक व आध्यात्मिक अर्थ – अत्यंत सूझबूझ का परिचायक

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*22 मार्च 2020 - जनता कर्फ्यू का वैज्ञानिक व आध्यात्मिक अर्थ - अत्यंत सूझबूझ का परिचायक*प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 22 मार्च 2020 को घोषित जनता कर्फ्यू, कोरोना वायरस के विरुद्ध एक अत्यंत ही सूझबूझ भरा वैज्ञानिक और आध्यात्मिक कदम है। आपने इस बारे में समझने की अगर कोशिश की, तो आप इस कदम में 100% प्रतिशत न केवल साथ देंगे बल्कि जब पूरे मन से और पूरे उत्साह से साथ देंगे तो अविश्वसनीय परिणाम सामने आएंगे। आइए इसको समझने की कोशिश करते हैं। क्या आप जानते है कि कोरोना वायरस की उम्र अलग अलग परिस्थितियों में कितनी होती है। कोरोना वायरस आम लेकिन अलग अलग परिस्थितियों में 3 से 72 घण्टे तक सक्रिय रह सकता है यानि कि उसकी उम्र इतनी ही है, वो भी अधिकतम 72 घण्टे तक, लेकिन ज़्यादातर 36 घण्टे में ये समाप्त हो जाता है। अब अगर सरकार पूरे देश को क्वारंटाइन करना चाहे या आइसोलेशन वार्ड में एडमिट करना चाहे तो...
उपद्रवियों की होर्डिंग नहीं हटाएंगे हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे

उपद्रवियों की होर्डिंग नहीं हटाएंगे हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे

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यूं ही कोई व्यक्ति योगी आदित्यनाथ नहीं हो जाता है। त्याग, तपस्या और बलिदान को मन, बचन और कर्म से आत्मसात करने वाले उत्तरप्रदेश के यशश्वी मुख्यमंत्री सच्ची मायनों में 'हठयोगी' हैं। वह अपने तरह के  इकलौते ऐसे सन्यासी राजनेता हैं जो कहते हैं वह खुलेआम करते हैं। अभी हालिया प्रकरण में उन्होंने लखनऊ हिंसा के उपद्रवियों की फ़ोटो लगी होर्डिंग शहर भर में टंगवा दी हैं। उपद्रवियों में कई एक्टिविस्ट और मुस्लिम मौलानाओं के नाम भी शामिल हैं। कुछ उपद्रवियों ने उच्च न्यायालय में होर्डिंग लगाए जाने को लेकर सरकार के फैसले को चुनौती दी। अदालत ने रविवार को सुनवाई कर तत्काल होर्डिंह हटवाने का मुख्य सचिव को आदेश दिया। उधर सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने होर्डिंग हटाने से इनकार करते हुए उच्च न्यायालय के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का निर्णय लिया है। संभव है कि सुप्रीम कोर्ट भी होर्डिंग ...
महिला समानता के बिना कैसे होगा सबका विकास?

महिला समानता के बिना कैसे होगा सबका विकास?

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8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समानता केन्द्रीय बिंदु रहा. आज भी हमारे समाज में, यदि महिलाओं को बराबरी के लिए संघर्ष करना पड़ रहा हो तो यह विकास के ढाँचे पर भी सवाल उठाता है क्योंकि आर्थिक विकास का तात्पर्य यह नहीं है कि समाज में व्याप्त असमानताएं समाप्त हो जाएँगी. बल्कि विकास के ढाँचे बुनियादी रूप से ऐसे हैं कि अनेक प्रकार की असमानताएं और अधिक विषाक्त हो जाती हैं. दुनिया के अन्य क्षेत्र में, जैसे कि यूरोप में आर्थिक विकास होने में कई-सौ साल लगे जिसके दौरान, विकास के साथ-साथ समाज में लैंगिक समानता भी बढ़ी. परन्तु भारत समेत, एशिया और पैसिफिक क्षेत्र के देशों में, आर्थिक विकास तो दुनिया के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले, बड़ी तेज़ी से हुआ, परन्तु महिला असमानता उस रफ़्तार से कम नहीं हुई. उदाहरण के लिए अत्याधुनिक जापान में आर्थिक विकास के बावजूद भी महिला असमा...
कोरोना वायरसः वैश्विक आपातकाल

कोरोना वायरसः वैश्विक आपातकाल

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 आशुतोष कुमार सिंह विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस को स्वास्थ्य की दृष्टि से वैश्विक आपातकाल घोषित किया है। चीन में घातक कोरोना वायरस से अब तक 2000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। लाखों लोग इस वायरस के चपेट में हैं। इस वायरस के बढ़ते प्रकोप से स्वास्थ्य की दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है। भारत सहित तमाम देश इस वायरस से निपटने के लिए युद्ध स्तर पर जुटे हैं। चीन में चिकित्सा का बड़ा केन्द्र वुहान इस वायरस से सबसे ज्यादा प्रभावित है। सबसे ज्यादा मौतें इसी शहर में हुई हैं। धीरे-धीरे इस वायरस का विस्तार बढ़ता जा रहा है। भारत में भी इस वायरस से संक्रमित कुछ लोगों की पहचान हुई है। यहां पर यह जानना जरूरी है कि कोरोना वायरस विषाणुओं का एक बड़ा समूह है, लेकिन इनमें से केवल छह विषाणु ही लोगों को संक्रमित करते हैं। इसके सामान्य प्रभावों के चलते सर्दी-जुकाम होता है, लेकिन ‘सिवीयर एक्यूट रे...
बदले-बदले से केजरीवाल!

बदले-बदले से केजरीवाल!

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उमेश चतुर्वेदी   लोकसभा चुनावों में भारी पराजय के महज आठ महीने बाद दिल्ली विधानसभा चुनावों में भारी जीत दर्ज कराने के बाद केजरीवाल एक बार फिर अलग तरह की राजनीति करते नजर आ रहे हैं। बेशक उनकी जीत पिछली बार की तुलना में कम रही, 67 सीटों की बजाय 62 सीटों पर ही उनकी पार्टी जीत पाई, लेकिन 70 सदस्यों वाली विधानसभा के हिसाब से यह फिर भी बड़ी जीत है। इस जीत में निस्संदेह बड़ी भूमिका शाहीनबाग आंदोलन ने भी निभाई। नागरिकता संशोधन कानून को वापस लेने के लिए 15 दिसंबर 2019 को शुरू हुआ आंदोलन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक जारी है। इसका असर यह हुआ कि मुस्लिम बहुल सभी पांचों सीटों मटिया महल, सीलमपुर, ओखला, बल्लीमारान और मुस्तफाबाद से आम आदमी पार्टी के मुस्लिम उम्मीदवार भारी मतों से जीते। जाहिर है कि पांचों जगह आम आदमी पार्टी की भारी जीत मुस्लिम मतदाताओं की एकतरफा वोटिंग की वजह से हुई। चुनाव नत...
मुसलमान कब करेंगे महंगाई, बेरोजगारी पर आंदोलन

मुसलमान कब करेंगे महंगाई, बेरोजगारी पर आंदोलन

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संसद ने जब से नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को पारित किया है, देश के मुसलमानों का एक हिस्सा नाराज है। कम से कम जगह-जगह धरने प्रदर्शन कर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि वे खफा हैं ।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बार-बार भरोसा देने के बाद भी कि इससे देश के मुसलमानों को भयभीत होने की कतई आवश्यकता नहीं है, वे शांत नहीं हो रहे हैं। वे सड़कों पर उतरे हुए हैं। अब दिल्ली में ही देख लीजिए किमुसलमान औरतें शाहीन बाग में सड़क को घेर कर बैठी हैं। उन्हें इस बात की रत्तीभर भी चिंता नहीं है कि उनके धरने के कारण राजधानी के लाखों लोग रोज अपने गंतव्य स्थलों पर कई घंटे देर से पहुंच रहे हैं। खैर,धरना देना तो उनका मौलिक अधिकार है। पर याद नहीं आ रहा कि देश के मुसलमानों ने कभी महंगाई, बेरोजगारी या अपने अपने इलाकों में नए-नए स्कूल, कालेज या अस्पताल खुलवाने आदि की मांगों को लेकर कभीसड़कों पर उतर कर कोई धरना-प्रदर...
दङ्गे-फ़साद की मानसिकता बनाता कौन है?

दङ्गे-फ़साद की मानसिकता बनाता कौन है?

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मैं टीवी आमतौर पर नहीं देखता। परसों कई दिनों बाद देखा। दिल्ली के दङ्गों पर सवेरे एनडीटीवी पर रवीश कुमार की एक रिपोर्ट और शाम को जी-न्यूज़ पर सुधीर चौधरी की एक दूसरी रिपोर्ट। ‘आजतक’ भी खोला, पर वहाँ कुछ दूसरी चीज़ चल रही थी, जिसके ज़िक्र का यहाँ सन्दर्भ नहीं बनता। रवीश कुमार की रिपोर्टिङ्ग आमतौर पर मैं पसन्द करता हूँ, उनका समर्थन भी करता रहा हूँ, पर कल निराशा हाथ लगी। मैं सवेरे नौ बजे के बाद वाली रवीश जी की सिर्फ़ एक रिपोर्ट की बात कर रहा हूँ, इसलिए मेरी बात को सिर्फ़ वहीं तक सीमित करके देखें, क्योंकि हो सकता है कि उन्होंने दूसरी और तरह की कुछ बढ़िया रिपोर्टिङ्ग भी की हो। फिलहाल, रवीश की इस रिपोर्ट को शातिराना ढङ्ग की बेहूदा रिपोर्टिङ्ग कहूँगा। बॉडी लैङ्ग्वेज तक ईमानदार नहीं लग रही थी। ठीक इसके उलट, सुधीर चौधरी की रिपोर्टिङ्ग बढ़िया थी और यह सच को सच की तरह दिखा रही थी। इन दोनों को देखने ...
देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से हारते दिखे नरेंद्र मोदी

देश में उपस्थित मिनी पाकिस्तान से हारते दिखे नरेंद्र मोदी

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कश्मीर से लगायत दिल्ली, लखनऊ, अहमदाबाद आदि समूचे देश में पुलिस पर पत्थरबाजी कौन लोग और क्यों करते हैं? यह भी क्या किसी से कुछ पूछने की ज़रूरत है? जुमे की नमाज के बाद शहर दर शहर बवाल समूचे भारत में क्यों होता है? मोहर्रम में दंगे क्यों होते हैं? होली और दुर्गा पूजा के विसर्जन जुलूस पर हमला कौन करता है? कभी किसी मंदिर, किसी चर्च, किसी गुरूद्वारे से किसी ख़ास मौके पर या सामान्य मौके पर किसी ने किसी को बवाल या उपद्रव करते हुए देखा हो तो कृपया बताए भी। अपने भाई को क्या बार-बार बताना होता है कि यह हमारा भाई है? तो यह भाईचारा, सौहार्द्र, गंगा-जमुनी तहजीब का पाखंड क्यों हर बार रचा जाता है। यह तो हद्द है। इस हद की बाड़ को तोड़ डालिए। इकबाल, फैज़ अहमद फ़ैज़, जावेद अख्तर, असग़र वजाहत जैसे तमाम-तमाम नायाब रचनाकार भी अंतत: क्यों लीगी और जेहादी जुबान बोलने और लिखने लगते हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र, मै...
किसने भूमिका तैयार की दिल्ली के दॅंगों की?

किसने भूमिका तैयार की दिल्ली के दॅंगों की?

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अब तो आग की लपटों से बाहर निकल आई है दिल्ली। अब मासूमों को मारने के लिए सड़कों पर उतरे मौत के सौदागर अपना सुनियोजित काम करके पतली गली से निकल चुके हैं। लेकिन, तीन-चार दिनों तक दिल्ली में मानवता बार-बार मरती रही। दर्जनों लोग मार डाले गए और सैकड़ों घायल हुए। हजारों दूकानें और घर राख में तब्दील कर दिए गए। इतना सब कुछ होने के बावजूद अब भी यहां पर ‘मेरा-तुम्हारा’ करने वाले सक्रिय हैं। वे अब भी दुखी हैं इस बात से हैं कि किछ उनके मजहब वाले  भी दंगों में शिकार हुए। उन्हें दूसरे मजहब के मानने वाले मृतकों या घायलों को लेकर किसी तरह का सहानुभूति का भाव ही नहीं है। तो इतना पत्थर दिल बन गये हैं हमारे  समाज के कुछ नकाबपोश। गंगा-जमुनी तहजीब की बातें मानों बेमानी सी ही लगती है।  बहरहाल, दिल्ली के दंगों के लिए एक खास समूह कपिल मिश्र की गिरप्तारी की मांग कर रहा है। उन्हें इन दंगों के लिए दोष दे र...
सरकार और प्रशासन की नाकामी है दिल्ली दंगे

सरकार और प्रशासन की नाकामी है दिल्ली दंगे

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शाहीनबाग़ संयोग या प्रयोग हो सकता है लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान देश की राजधानी में होने वाले दंगे संयोग कतई नहीं हो सकते। अब तक इन दंगों में एक पुलिसकर्मी और एक इंटेलीजेंस कर्मी समेत लगभग 42 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। नागरिकता कानून बनने के बाद 15 दिसंबर से दिल्ली समेत पूरे देश में होने वाला इसका विरोध इस कदर हिंसक रूप भी ले सकता है इसे भांपने में निश्चित ही सरकार और प्रशासन दोनों ही नाकाम रहे। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि सांप्रदायिक हिंसा की इन संवेदनशील परिस्थितियों में भी भारत ही नहीं विश्व भर के मीडिया में इसकेपक्षपातपूर्ण विश्लेषणात्मक विवरण की  भरमार है जबकि इस समय सख्त जरूरत निष्पक्षता और संयम की होती है। देश में अराजकता की ऐसी किसी घटना के बाद सरकार की नाकामी, पुलिस की निष्क्रियता, सत्ता पक्ष का विपक्ष को या विपक्ष का सरकार को दोष देने की राजनीति इस द...