सामाजिक एजेंडे से राष्ट्रनिर्माण तक
किसी भी राष्ट्र के विश्वगुरु बनने के क्रम में उसके नागरिकों में 'सिविक सैन्स’ का बड़ा योगदान होता है। सरकारें सिर्फ कानून बना सकती हैं। न्यायालय कानून पालन न होने की स्थिति में दंडित कर सकता है किन्तु यह सब समस्या का सिर्फ उपचार है। अकेले क़ानूनों के द्वारा सभ्य समाज का निर्माण संभव नहीं है। सभ्य समाज के निर्माण में क़ानूनों से ज़्यादा लोगों का योगदान महत्वपूर्ण होता है। जैसे मोटर व्हिकल एक्ट में हुये ताज़ा संशोधन में जुर्माने की राशि काफी हद तक बढ़ा दी गयी है। इस डर के द्वारा सड़क पर नियमों को मानने वालों की संख्या तो बढ़ सकती है किन्तु सड़क सुरक्षा की परिकल्पना तभी फलीभूत होगी जब लोग अपनी जिम्मेदारियों को समझेंगे। आजकल सड़कों पर ट्रैफिक इतना ज़्यादा दिखता है कि सड़क पर चलना स्वयं में सिरदर्द बन जाता है। बेतहाशा बढ़ती जनसंख्या एवं सड़कों के किनारे कटे हुये पेड़ स्थिति को और जटिल बना देते ...