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Who will succeed 14th Dalai Lama: Chinese Warning

Who will succeed 14th Dalai Lama: Chinese Warning

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A news item emanating from Lhasa in Tibet is disturbing for the current thaw in Sino-Indian relation. China wants that it will be Beijing that will decide on the successor of Tenzin Gyatso, the 14th Dalai Lama who lives in exile in Dharmshala in Himachal Pradesh. The immediate provocation for Chinese voice on the succession issue of Dalai Lama is failing health of 84 year old head of Buddhist spiritual leader. Of late Dalai Lama has not been keeping good health. It is a matter of concern for all the followers of Buddhism world over. He is highly revered not only by the followers of Buddhism but also by others. He enjoys a special status in the world including countries such as United States of America, United Kingdom, France, Italy, Germany and Japan. Dalai Lama was given Nobel Peace Priz...
स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न दिखाती नयी शिक्षा नीति

स्वर्णिम भविष्य के स्वप्न दिखाती नयी शिक्षा नीति

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बच्चे देश का भविष्य ही नहीं नींव भी होते हैं और नींव जितनी मजबूत होगी इमारत उतनी ही बुलंद होगी। इसी सोच के आधार पर नई शिक्षा नीति की रूप रेखा तैयार की गई है। अपनी इस नई शिक्षा नीति को लेकर मोदी सरकार एक बार फिर चर्चा में है। चूंकि भारत एक लोकतांत्रिक देश है और लोकतंत्र में सबको अपनी बात रखने का अधिकार है जाहिर है इसके विरोध में स्वर उठना भी स्वाभाविक था, तो अपेक्षा के अनुरूप स्वर उठे भी। लेकिन मोदी सरकार इस शिक्षा नीति को लागू करने के लिए कितनी दृढ़ संकल्प है यह उसने अपनी कथनी ही नहीं करनी से भी स्प्ष्ट कर दिया है। दरअसल उसने इन विरोध के स्वरों को विवाद बनने से पहले ही हिन्दी को लेकर अपने विरोधियों की संकीर्ण सोच को अपनी सरकार के उदारवादी दृष्टिकोण से शांत कर दिया। लेकिन बावजूद इसके नई शिक्षा नीति की राह आसान नहीं है। इसके लक्ष्य असंभव भले ही ना हों लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में मुश्किल तो ...
प्रेम विवाह, माँबाप के हक, मीडिया व कुछ यक्ष प्रश्न

प्रेम विवाह, माँबाप के हक, मीडिया व कुछ यक्ष प्रश्न

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स्यार की एक आदत होती है. एक बोलेगा तो धीरे-धीरे सब बोलने लगते हैं. फिर चारों ओर उनका ही शोर रहता है. बरेली के विधायक राजेश मिश्रा की बेटी, साक्षी की शादी,निजी आजादी और उसके अपने फैसले को लेकर देश के खबरिया चैनलों का शोर कुछ वैसा ही है. साक्षी अपने नए-नवेले पति के साथ चैनलों का न्योता फटाफट थाम रही हैं, और स्टूडियो-स्टूडियो घूम-घूमकर, पिता और परिवार की ज्यादतियों का फरचटनामा बांच रही हैं. वीडियो सोशल मीडिया पर पहले ही डाल चुकी हैं कि मेरे पिता और भाई - मेरी और मेरे पति की जान के पीछे पड़े हैं. गुंडों को पीछे लगा रखा है. इन बातों का रट्टा वो चैनलों पर भी लगा रही हैं. स्वनामधन्य एंकर, बेटी के साहसिक फैसले, प्रेम की जंग, बाप के आतंक, सामंती सोच, वगैरह वगैरह के बैनर उड़ा उड़ा, अपने तरक्कीपसंद और लोकतांत्रिक अधिकारों का पैरोकार होने की मुनादी कर रहे हैं. गजब बहस कर रहे हैं.!! मुझे लगता है कि ...
क्यों जरूरी है मोदी जी की ‘हृदय योजना’?

क्यों जरूरी है मोदी जी की ‘हृदय योजना’?

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अपनी सनातनी आस्था और अंतराष्ट्रीय समझ के सम्मिश्रण से मोदी जी ने 2014 में ‘स्वच्छ भारत’ या ‘हृदय’ जैसी चिरप्रतिक्षित नीतियों को लागू किया। इनके शुभ परिणाम दिखने लगे हैं और भविष्य और भी ज्यादा दिखाई देंगे। हृदय योजना की राष्ट्रीय सलाहकार समिति का मैं भी पांच में से एक सदस्य था। इस योजना के पीछे मोदी जी का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत के प्राचीन नगरों की धरोहरों को सजा-संवाकर इस तरह प्रस्तुत किया जाय कि विकास की प्रक्रिया में कलात्मकता और निरंतरता बनी रहे। ऐसा न हो कि हर आने वाली सरकार या उस नगर में तैनात अधिकारी अपनी सीमित बुद्धि और अनुभहीनता से नये-नये प्रयोग करके ऐतिहासिक नगरों को विद्रुप बना द, जैसा आजतक करते आये हैं । जिन बारह प्राचीन नगरों का चयन ‘हृदय योजना’ के तहत भारत सरकार के शहरी विकास मंत्रालय ने किया, उनमें से मथुरा भी एक था। राष्ट्रीय स्तर पर एक पारदर्शी चयन प्रक्रि...
सुविधा की खूनी एवं त्रासद सड़कें

सुविधा की खूनी एवं त्रासद सड़कें

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लखनऊ से दिल्ली की ओर जा रही उत्तरप्रदेश परिवहन की एक बस ड्राईवर को नींद की झपकी आ जाने से यमुना एक्सप्रेस-वे पर करीब तीस फुट गहरे नाले में जा गिरी। इस त्रासद हादसे में उनतीस लोगों की मौत हो गई और अठारह बुरी तरह घायल हो गए। इस तरह की कोई एक घटना बड़े सबक के लिए काफी होनी चाहिए। लेकिन ऐसा लगता है कि हर कुछ समय के बाद एक्सप्रेस-वे के हादसों के बावजूद सरकार या संबंधित विभाग की नींद नहीं खुलती। इस त्रासद घटना ने एक बार फिर यह सोचने को मजबूर कर दिया कि आधुनिक और बेहतरीन सुविधा की सड़के केवल रफ्तार के लिहाज से जरूरी हैं या फिर उन पर सफर का सुरक्षित होना पहले सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हर दुर्घटना को केन्द्र एवं राज्य सरकारें दुर्भाग्यपूर्ण बताती है, उस पर दुख व्यक्त करती है, मुआवजे का ऐलान भी करती है लेकिन एक्सीडेंट रोकने के गंभीर उपाय अब तक क्यों नहीं किए जा सके हैं? जो भी हो, सवाल यह है...
दो धूर्त पड़ोसी- तो भारत रक्षा क्षेत्र को करता रहेगा ठोस

दो धूर्त पड़ोसी- तो भारत रक्षा क्षेत्र को करता रहेगा ठोस

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जब देश के इर्द-गिर्द दो बड़े शत्रु राष्ट्रों की सरहदें मिलती हो तब भारत से यह अपेक्षा करना उचित ही नहीं होगा कि वह अपने रक्षा बजट में कटौती करने की सोचे भी। भारत की पाकिस्तान से 1947, 1955, 1971 और फिर करगिल में जंग हुई। चीन से भी हमारी भीषण जंग 1962 में हुई। पिछले वर्ष दोकलम में भी लड़ाई की ही नौबत आ चुकी थी । लेकिन, मोदी जी के कुशल कूटनीति और सुषमा जी और तत्कालीन विदेश सचिव जयशंकर जी की सफल कार्य शैली से युद्ध टल गया। जिन सीमा के सवालों पर जंग हुईं थीं वे सवाल अब भी तो अनसुलझे ही हैं। इसीलिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने समझदारी पूर्वक रक्षा बजट के लिए 3.18 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए। आपको याद ही होगा अंतरिम बजट में भी इतनी ही राशि का आवंटन हुआ था। अब जरा भारत के रक्षा बजट की तुलना चीन के रक्षा बजट से भी कर लेते हैं। चीन ने सेना में आधुनिकीकरण अभियान को आगे बढ़ाने का प्रयास करते हुए अप...
मोदी का विकसित भारत कल्पना या यथार्थ

मोदी का विकसित भारत कल्पना या यथार्थ

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  नरेंद्र मोदी अब एक नये भारत की रूपरेखा प्रस्तुत कर रहे हैं। इसमें अगले पांच साल में भारत की अर्थव्यवस्था को दुगुना करने का प्रस्ताव है। यह विचार जितना लोकलुभावन है उतना ही अन्तराष्ट्रीय परिदृश्य में भारत की वैश्विक आर्थिक नीति का परिचायक भी। भारत अगर इस असंभव दिखते लक्ष्य के आस पास भी पहुंच जाता है तो यह भारत की बड़ी जीत होगी। किन्तु बिना रोजगारपरक शिक्षा नीति, ग्रामीण विकास आधारित आर्थिक नीति एवं मुनाफे वाली कृषि नीति के यह संभव नहीं है। अपने पहले कार्यकाल में मोदी न तो नयी शिक्षा नीति ला पाये न ही अपेक्षानुरूप रोजगार सृजन कर पाये। अब मोदी की इस नयी घोषणा के साथ युवाशक्ति उनकी ओर आशावादी निगाहों से देख रही है। आर्थिक रूप से सक्षम भारत में रोजगार और विकास के कार्य भी शायद तेज़ी के साथ होंगे। किन्तु तस्वीर का एक स्याह पक्ष भी है। ऐसे कई छिद्र मौजूद हैं जहां से विकास रिस जाता है। भ...
छल, प्रपंच और विभाजन की राजनीति पर  मोदी का वोट वार

छल, प्रपंच और विभाजन की राजनीति पर  मोदी का वोट वार

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मोदी की प्रचंड जीत को विपक्ष के लिए स्वीकारना आसान नहीं है। कभी वह ईवीएम का रोना रोता है तो कभी मोदी को घृणा की राजनीति का परिचायक बताता है। कभी मोदी को मिले कम वोटों का हवाला देता है तो कभी मोदी को प्रेसेडेंशियल रूल की तरफ बढऩे वाला बताया जाता है। पर वास्तव में जमीनी हक़ीक़त इन सबसे अलग है। मोदी का जनता से जुड़ाव बंद कमरे में बैठकर राजनीति करने वाले नहीं समझ सकते हैं। मोदी ने छल, प्रपंच की राजनीति के उस गढ़ को भेद दिया है जिसके माध्यम से क्षेत्रीय दल अपनी दुकान चलाते थे। अल्पसंख्यक, दलित और शोषितों को सिर्फ एक वोट बैंक के रूप में माना करते थे। लोकसभा चुनावों के परिणाम के अनुसार राजग को लगभग 45 प्रतिशत के आस पास वोट मिला है। कई राज्यों में अकेले भाजपा को पचास प्रतिशत से ज़्यादा वोट मिले हैं। इस तरह का रुझान कभी आज़ादी के बाद कांग्रेस के पक्ष में दिखाई देता था किन्तु कांग्रेस ने कभी पूरे दे...
किसने किया दुर्गा मंदिर पर हमला?

किसने किया दुर्गा मंदिर पर हमला?

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देश की राजधानी दिल्ली के एक भीड़भाड़ वाले इलाके में दो समुदाय किसी छोटी सी बात पर भिड़े तो आनन-फानन में एक मंदिर पर हमला कर दिया गया। पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक इलाके में 100 साल पुराने दुर्गा मंदिर को बुरी तरफ से ध्वस्त किया गया। मंदिर पर लगे शीशे तोड़ डाले गए और देवी-देवताओं की मूर्तियों को भी खंडित किया गया। अब मंदिर को क्षति पहुंचाने वाले तत्वों की धरपकड़ तो चालू हो गई है। कुछ आरोपी पक़ड़े भी जा चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर के दफ्तर में बुलाकर अपनी नाराजगी जताई  है । इससे लगता तो यही है कि शेष अपराधी भी पकड़े  जाएंगे। ऐसी आशा तो की जाती है। पर इस बेहद दुखद विवाद का एक सकारात्मक पहलू यह रहा है की सन 1650 में निर्मित फतेहपुरी मस्जिद के इमाम डा. मुफ्ती मुकर्रम ने मुसलमानों से अपील की कि वे ही मंदिर की मरम्मत करवाएं। एक तरह से उन्होंने साफतौर पर संकेत दे दिए है...
जय श्रीराम के नारे का विरोध क्यों?

जय श्रीराम के नारे का विरोध क्यों?

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नोबेल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन के बड़े अजीबोगरीब बयान ने हैरान कर दिया। उनका कहना है कि श्रीराम का बंगाली संस्कृति से कोई सम्बन्ध नहीं है। भले ही अर्थशास्त्री के तौर पर उनका बहुत बड़ा नाम है लेकिन वे विदेश में रहते हुए भारत की संस्कृति एवं लोकभावनाओं से कितने जुड़े हैं, यह एक अलग चर्चा का विषय है। जय श्रीराम का नारा तो न केवल अच्छे शासन का प्रतीक है बल्कि लोक-आस्था का द्योतक भी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी राम राज्य की कल्पना की थी। गांधीजी आज जीवित होते तो जय श्रीराम के नारे का विरोध देखकर आंसू जरूर बहाते। राजनीति से प्रेरित श्री राम के चरित्र को धुंधलाने एवं जन-आस्था को बांटने की कोशिशें विडम्बनापूर्ण है, दुर्भाग्यपूर्ण है। श्री राम किन्हीं जाति-वर्ग और धर्म विशेष से ही नहीं जुड़े हैं, वे सारी मानवता के प्रेरक हैं। उनका विस्तार दिल से दिल तक है। उनके चरित्र की सुगन्ध विश्व के हर ह...