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राष्ट्रवाद की आंधी से हिन्दुत्व के तूफान तक

राष्ट्रवाद की आंधी से हिन्दुत्व के तूफान तक

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अमित त्यागी 2019 का चुनाव और उसके परिणाम एक रोचक अंत का इशारा कर रहे हैं। एक ओर माया मुलायम ने एक साथ एक मंच पर आकर अपने अपने समर्थकों को एक साथ आने का संकेत दे दिया है तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव और प्रवीण तोगडिय़ा के दल कुछ खास करते नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस महागठबंधन के साथ नहीं है फिर भी वह आंतरिक रूप से गठबंधन के साथ ही है। भाजपा को हराने के लिए सभी दल अंदर ही अंदर एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। इसके साथ ही यह चुनाव लगातार बड़बोले नेताओं के बयानों के आधार पर मीडिया की सुर्खियां बन रहा है। आज़म खान ने जयाप्रदा पर खाकी रंग का हमला किया तो उनके बेटे ने अनारकली कहकर खुद को बयान बहादुर साबित किया। इससे बौखलाए अमर सिंह ने आज़म खान पर ताबड़तोड़ जुबानी हमले किये। दोनों ही तरफ से गरिमा को तार तार किया गया। इसी क्रम में मायावती के द्वारा मुलायम सिंह के सामने गेस्ट हाउस कांड याद करके पहले उन...
राष्ट्रीय नेता के चयन करने के मानदंड

राष्ट्रीय नेता के चयन करने के मानदंड

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भारत में चुनावी बुखार अपने चरम पर है। 300 से अधिक लोकसभा सीटों के भाग्य को अंतिम रूप दे दिया गया है। 23 मई 2019 से देश का नेतृत्व कौन करेगा, इस बार यह बहुत बड़ा सवाल नहीं है। सभी जनमत सर्वेक्षण वर्तमान पीएम के पक्ष में एक स्पष्ट फैसला दिखा रहे हैं, जिन्होंने पिछले पांच वर्षों के दौरान एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली और उनके पास सुशासन, विकास और आतंकवाद की एक भी घटना नहीं (जम्मू-कश्मीर और नक्सल क्षेत्र को छोड़कर) होने के रिकॉर्ड हैं। एक भी विपक्षी नेता ऐसा नहीं है जो उन्हें चुनौती दे सके। हालांकि कई क्षेत्रीय नेता और सबसे पुरानी पार्टी के नेता त्रिशंकु संसद की उम्मीद कर रहे हैं और संख्या के कुछ अलग संयोजन से वे मोदी को बाहर करना चाहते हैं। वे पूरी तरह से अवसरवादी हैं और मीडिया की मदद से आम जनता को अकल्पनीय, अवास्तविक वादों और अस्थायी कहानियों के साथ बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके लिए पह...
नरेंद्र मोदी का भला ही कर रहे हैं राहुल गांधी

नरेंद्र मोदी का भला ही कर रहे हैं राहुल गांधी

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देश में आम चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। सभी सियासी पार्टियां अपने-अपने हिसाब से चुनाव प्रचार में लगी हैं। लेकिन इस बार चुनाव प्रचार की धार पूरी तरह बदली-बदली नजऱ आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी नीत सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियां जहां पांच साल में किए गए विकास के नाम पर और अगले पांच साल के लिए तय किए गए लक्ष्यों के आधार पर जनता से वोट मांग रही हैं, वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां जाति और धर्म के नाम पर वोट की जुगाड़ में लगी हैं। चुनाव जीतने की होड़ में इस बार जो शब्द बाण चलाए जा रहे हैं, उनमें तर्क, तथ्यपरकता और मर्यादा तक का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। चुनाव आयोग ने हालांकि कुछ सख्ती दिखाई है, लेकिन किसी को नीचा दिखाने के लिए व्यक्तिगत संयम का निर्माण आयोग किसी भी स्तर पर नहीं कर सकता। जिस तरह हांडी के चावल पक गए हैं या न...
पाक में क्यों बलूचिस्तान हो गया पंजाबी विरोधी

पाक में क्यों बलूचिस्तान हो गया पंजाबी विरोधी

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पाकिस्तान में विगत दिनों अशांत बलूचिस्तान सूबे में अज्ञात बंदूकधारियों ने एक राजमार्ग पर एक बस से यात्रियों को जबर्दस्ती उतार कर उनमें से 14 की गोली मार कर हत्या कर दी। सेना जैसी वर्दी पहने बंदूकधारियों ने कराची और ग्वादर के बीच चलने वाली पांच से छह बसों को रोका, यात्रियों के पहचान पत्रों की जांच की और फिर अपना खूनी खेल चालू कर दिया। हालांकि पाकिस्तान सरकार का कहना है कि वो नृशंस हत्याकांड की जांच कर रही है। दोषियों को तुरंत पकड़ लिया जाएगा। ये सब रस्मे-वादों की बातें हैं। पर हकीकत सचमुच में बड़ी भायवह है। सरहद के उस पार से छन-छनकर आ रही जानकारी से पता चला है कि मारे गए सभी अभागे बस यात्री मूलत:  पंजाबी मुसलमान थे। हत्यारों ने बस को रोककर मुसाफिरों से उनके पहचान पत्र मांगे। उन्होंने गैर-पंजाबियों को छोड़ दिया, पर पंजाबियों को निर्ममता पूर्वक मार डाला। पाकिस्तान सरकार पंजाबियों के इस कत्लेआ...
सवालों से जूझता सुप्रीम कोर्ट, मुख्य न्यायाधीश पर लगे आरोप

सवालों से जूझता सुप्रीम कोर्ट, मुख्य न्यायाधीश पर लगे आरोप

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न्यायाधीशों को इसलिए पंच परमेश्वर कहा जाता है, क्योंकि वे न्याय केवल करते ही नहीं, बल्कि करते हुए दिखते भी हैं। न्यायाधीश रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनने के बाद कहा था कि मृत्युदंड जैसे जरूरी मामलों पर ही त्वरित सुनवाई होनी चाहिए, लेकिन उन्होंने अपने मामले में, जिसमें एक महिला ने उन पर यौन उत्पीडऩ का आरोप लगाया है, छुट्टी के दिन शनिवार को विशेष न्यायिक सुनवाई का फैसला किया। इसके चलते यह सवाल उठा कि उन्होंने महासचिव से स्पष्टीकरण दिलाने के बजाय उच्चतम न्यायालय के सभी न्यायाधीशों की बैठक क्यों नहीं बुलाई? सच तो यह है कि ऐसे एक नहीं अनेक सवाल तभी से उठ रहे हैं जबसे मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीडऩ के आरोपों का सनसनीखेज मामला सामने आया। सबसे प्रमुख सवाल यही है कि जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने ऊपर लगे आरोपों पर व्यक्तिगत सफाई देने के बजाय खुद ही सुनवाई करने का फैसला क्यों...
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की क्या कोई सीमा भी है या नहीं?

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की क्या कोई सीमा भी है या नहीं?

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उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पर जिस प्रकार से अमर्यादित आचरण का आरोप लगाकर उन्हें बदनाम करने का प्रयास किया गया है वह निंदनीय ही नहीं चिंताजनक भी है। सर्वाधिक चिंता की बात यह है कि चार न्यूज पोर्टलों- स्क्रोल, द लीफलैट, कारवां और द वायर ने एक साथ व एक ही भाषा में इस संबंध में, आनन-फानन में जिस प्रकार समाचार चलाया वह किसी गहरे षड्यंत्र की ओर इशारा करता है और यह सब किया गया  'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ की आड़ में। जैसा कि स्वाभाविक था कि इस गम्भीर मामले में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हुई। इसकी जांच भी होगी। यह षड्यंत्र किसने रचा और किसके इशारों पर रचा गया इसका पता करना कोई बहुत कठिन काम नहीं होना चाहिए। क्योंकि जिस महिला के 'शपथ पत्र’ को आधार बनाया गया है वह अनजान नहीं है। इसी प्रकार वे चारों न्यूज पोर्टल भी अनजाने नहीं हैं। मीडिया में वे काफी चर्चित नाम हैं और इस प्रकार के सनसनीखेज आरोप लग...
वजह बहुत सारी है मगर…

वजह बहुत सारी है मगर…

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  देश में किसी न किसी भाग में अक्सर चुनाव होते रहते हैं, किंतु लोकसभा चुनावों की बात कुछ और ही है। भारत एक अर्ध संघीय ढांचे वाला देश है और इसमें केंद्र सरकार के पास राज्यों की तुलना में कई गुना अधिक शक्तियां हैं। ऐसे में देश की दशा दिशा और विकास के दृष्टिकोण पर केंद्र सरकार हावी रहती है। ऐसे में केंद्र में मजबूत, जनकेन्द्रित, राज्यों को साथ लेकर चलने वाली व परिपक्व सरकार का आना बहुत आवश्यक है। वर्तमान लोकसभा चुनावों में देश में दर्जनों दलों के गठबंधन एनडीए व यूपीए के साथ हैं, इसके अलावा अनेक राज्यों में इन गठबंधनों से अलग बहुत सारे दल भी मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं और अनौपचारिक रूप से हम इन दलों में आपसी तालमेल देख इनको भविष्य का तीसरा या चौथा मोर्चा भी कह सकते हैं। इन सभी गठबंधनों का स्वरूप लोकसभा चुनावों के परिणामों के बाद ही वास्तविक रूप ले पायेगा क्योंकि वास्तविक स्थिति के अनुर...
नृत्य के नाम पर अश्लीलता परोसना ‘शर्मनाक’

नृत्य के नाम पर अश्लीलता परोसना ‘शर्मनाक’

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(29 अप्रैल - अंतरराष्ट्रीय नृत्य दिवस विशेष) एक कथन है कि ‘मनुष्य जब खुश होता है, तो वह नृत्य करने लगता है। जड़ हो या चेतन सब आनंद में विभोर होकर अपने अंदर के तनाव या विषाद को नृत्य कर समाप्त कर सकता है। इसलिए तो जिसे भी नाचना न आता है, उनके भी हाथ-पैर थिरकने लगते हैं और अपने ख़ुशी का इजहार करता है। नृत्य की भी कई शैली होती है। धरती पर हर देश, हर प्रदेश और हर क्षेत्र की अपनी खास नृत्य शैली होती है जिसकी अपनी अलग पहचान होती है। साधारणतया ‘शास्त्रीय नृत्य’, ‘लोक नृत्य’ और ‘आधुनिक नृत्य’ जैसी तीन श्रेणियों में विभक्त किया गया है जिसके अंतर्गत भरतनाट्यम, कथकली, कत्थक,ओडिसी, मणिपुरी, मोहनी अट्टम, कुची पुडी, भांगड़ा, भवई, बिहू, गरबा, छाऊ, जात्रा, घूमर, पण्डवानी आदि को रखा गया है। जनसाधारण के बीच नृत्य की महत्ता का अलख जगाने के उद्देश्य से ही प्रत्येक वर्ष 29 अप्रैल को विश्व स्तर पर अंतरराष्ट्...
आखिर साध्वी से परहेज़ क्यों है ?

आखिर साध्वी से परहेज़ क्यों है ?

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साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से भाजपा द्वारा अपना उम्मीदवार घोषित करते ही देश में जैसे एक राजनैतिक भूचाल आता है जिसका कंपन कश्मीर तक महसूस किया जाता है। भाजपा के इस कदम के विरुद्ध में देश भर से आवाज़ें उठने लगती हैं। यहां तक कि कश्मीर तक ही सीमित रेहने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे दलों को भी भोपाल से साध्वी प्रज्ञा के चुनाव लड़ने पर ऐतराज़ है।  इन सभी का कहना है कि उन पर एक आतंकी साज़िश में शामिल होने का आरोप है और इस समय वे जमानत पर बाहर हैं इसलिए भाजपा को उन्हें टिकट नहीं देना चाहिए। लेकिन ऐसा करते समय ये लोग भारत के उसी संविधान और लोकतंत्र का अपमान कर रहे हैं जिसे बचाने के लिए ये अलग अलग राज्यों में अपनी अपनी सुविधानुसार एक हो कर या अकेले ही चुनाव लड़ रहे हैं। क्योंकि ये लोग भूल रहे हैं कि जो संविधान इन्हें अपना विरोध दर्ज करने का अधिकार देता है वो ही संविधान साध्वी प्रज्ञा को चुनाव लड़ने ...
अबकी बार किसकी सरकार

अबकी बार किसकी सरकार

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भारत में 17वें लोकसभा के लिए 7 चरणों में चुनाव हो रहा है। इसमें 89 करोड़ 88 लाख मतदाता अपना मत डालेंगे, इस मायने में यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव कहा जा रहा है जिसके लिए 10 लाख मतदान केंद्र की व्यवस्था की गयी है। साथ ही ईवीएम, वीवीपैट आदि में कुल मिलाकार एक करोड़ से ज्यादा कर्मचारी चुनाव को सफलता दिलाएंगे। इससे पहले लगातार ईवीएम पर प्रश्नचिन्ह खड़े किये जाते रहे। इसी के मद्देनजर इस बार चुनाव आयोग ने सभी ईवीएम के साथ वीवीपैट की व्यवस्था किया है ताकि किसी को भी चुनाव परिणामों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने का कोई आधार न हो। इतना ही नहीं जीपीएस माध्यम से सभी मशीनों पर नजर रखी जा रही है जिससे यह आसानी से पता चल जाएगा कि कौन मशीन कहां है। कुल मिलाकर देखा जाए तो66 दिनों तक चलने वाला यह चुनाव अपने आप में काफी महत्वपूर्ण और हाईटेक है। इस लोकसभा चुनाव में एक ही महत्वपूर्ण सवाल सबों के जेहन में घूम रहा है क...