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चुनाव के समय मतदाता को जागरूक करने में लगे राजनैतिक दल

चुनाव के समय मतदाता को जागरूक करने में लगे राजनैतिक दल

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देश में एक बार फिर चुनाव होने जा रहे हैं और लगभग हर राजनैतिक दल मतदाताओं को "जागरूक" करने में लगा है। लेकिन इस चुनाव में खास बात यह है कि इस बार ना तो कोई लहर है और ना ही कोई ठोस मुद्दे यानी  ना सत्ताविरोधी लहर ना विपक्ष के पक्ष में हवा। बल्कि अगर यह कहा जाए कि समूचे विपक्ष की हवा ही निकली हुई है तो भी गलत नहीं होगा।  क्योंकि जो भ्रष्टाचार का मुद्दा  अब तक के लगभग हर चुनाव में विपक्षी दलों का एक महत्वपूर्ण हथियार होता था इस बार उसकी धार भी फीकी है। इस बात का एहसास देश की सबसे पुरानी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष  को भी हो गया है शायद इसलिए कल तक जिस रॉफेल विमान की सवारी करके वो सत्ता तक पहुंचने की लगातार कोशिश कर रहे थे आज वो उनके चुनावी भाषणों से ही फुर्र हो चुका है । हाँ लेकिन चौकीदार पर नारे वो अपनी हर चुनावी रैली में लगवा ही लेते हैं। लेकिन उनके चौकीदार चोर है के नारे की हवा "मैं भी चौकी...
क्यों चुनावी मुद्दा नहीं बन पाती शिक्षा?

क्यों चुनावी मुद्दा नहीं बन पाती शिक्षा?

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लोकसभा चुनावों का प्रचार अब तो सारे देश में जोर पकड़ चुका है। चुनावी सभाएं, रैलियां, भाषण वगैरह हो रहे हैं। पहले चरण का चुनाव तो मंगलवार को थम भी जायेगा। हर पक्ष दूसरे पर जनता को छलने और गुमराह करने के आरोप लगा रहे हैं। ये अपनी तरफ से सत्तासीन होने पर आसमान से सितारे तोड़ कर लाने के अलावा तमाम अन्य संभव-असंभव वादे भी कर रहे हैं। पर इन सबके बीच एक मुद्दा लगभग अछूता सा बना हुआ है। वह है शिक्षा का। इतने महत्वपूर्ण बिन्दु पर अभी तक कोई सारगर्भित बहस सुनने को ही नहीं मिल रही है। देश में शिक्षा का स्तर नहीं सुधरेगा तो देश बुलंदियों को कैसे छू सकेगा। क्या ये किसी को बताने की जरूरत  है? बेशक, यह अपने आप में आश्चर्य का ही विषय है कि लोकसभा या विधान सभा चुनावों के दौरान शिक्षा के मसले पर कभी पर्याप्त बहस नहीं हो पाती। दरअसल देखा जाए तो शिक्षा को राम भरोसे छोड़ दिया गया है हमने। हमने अपने यहां स्कूल...
लोकतंत्र की बंद गली का विचार मार्ग

लोकतंत्र की बंद गली का विचार मार्ग

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एक वकील के घर मिलन के अवसर पर लोकमान्य तिलक द्वारा गुलामी को राजनीतिक समस्या बताने की प्रतिक्रिया में स्वामी विवेकानंद ने कहा था- ''परतंत्रता राजनीतिक समस्या नहीं है। यह भारतीयों के चारित्रिक पतन का परिणाम है।’’ बापू को लिखी एक चि_ी के जरिए लॉर्ड माउंटबेटन ने भी चेताया था - ''मिस्टर गांधी क्या आप समझते हैं कि आजादी मिल जाने के बाद भारत भारतीयों द्वारा चलाया जायेगा? नहीं! बाद में भी दुनिया गोरों द्वारा ही चलाई जायेगी।’’ यही बात बहुत पहले अपनी आजादी के लिए अकबर की शंहशाही फौजों से नंगी तलवार लेकर जंग करने वाली चांदबीबी की शौर्यगाथा का गवाह बने अहमदनगर फोर्ट में कैद ब्रितानी हुकूमत के एक बंदी ने एक पुस्तक में लिखी थी। 'ग्लिम्सिस ऑफ वल्र्ड हिस्ट्री’ के जरिए पंडित जवाहरलाल नेहरु ने संयुक्त राज्य अमेरिका के आर्थिक साम्राज्यवाद का खुलासा करते हुए 1933 में लिखा था- ''सबसे नये किस्म का यह साम्रा...
न ठोस रणनीति, न ही कार्यक्रम, कैसे देंगे मोदी को मात

न ठोस रणनीति, न ही कार्यक्रम, कैसे देंगे मोदी को मात

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  लोकसभा चुनाव में गैर एनडीए दलों की सबसे बड़ी ख्वाहिश यही है कि वे किसी भी तरह से नरेंद्र मोदी को सत्ता से बाहर करें। लेकिन सिवा मोदी हटाओ, देश बचाओ और चौकीदार चोर है जैसे कुछ नारों को छोड़ दें तो उनके पास कोई ठोस योजना नहीं है। फिर विपक्षी दलों में आपसी सिरफुटौव्वल भी खूब है। विपक्षी दल ऊपरी तौर पर साथ तो नजर आ रहे हैं, लेकिन अंदरूनी हालत यह है कि वे एक-दूसरे की कीमत पर खुद की ताकत बढ़ाने की फिराक में हैं। सबसे पहले शुरूआत करते हैं जनसंख्या और लोकसभा के लिहाज से सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश से। उत्तर प्रदेश में बुआ यानी मायावती की बहुजन समाज पार्टी और बबुआ यानी अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ ही अजित सिंह के राष्ट्रीय लोकदल के बीच समझौता हो गया है। इस समझौते में कांग्रेस के लिए रायबरेली और अमेठी की सीट को छोड़ दें तो कोई जगह नहीं है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जहा...
राजनीतिक दलदल में फंसी ममता के हाथ से फिसल रहा है बंगाल

राजनीतिक दलदल में फंसी ममता के हाथ से फिसल रहा है बंगाल

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लोग अक्सर कहते हैं कि राजनीति में सबकुछ बदल जाने के लिए एक सप्ताह काफी है। लेकिन जिस तरह से बंगाल की राजनीति की दिशा और दशा पिछले कुछ दिनों में बदली है वो हैरान करने वाला है। जो ममता बनर्जी एक महीने पहले देश की प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रही थी वो आज अपने ही घर में घिर गई है। बंगाल में बीजेपी के पक्ष में एक अंडरकरेंट चल रहा है। बीजेपी मजबूत होती जा रही है और ममता की पार्टी का ग्राफ धरातल की ओर जा रहा है। ये अंडरकरेंट कहां थमेगा और कब थमेगा ये कहना तो मुश्किल है लेकिन हकीकत ये है कि भारतीज जनता पार्टी की नजर अब बंगाल से 15-20 सीटें जीतने पर टिक गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह तृणमूल कांग्रेस के एक एमएलए अर्जुन सिंह हैं जिन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया है। इससे बंगाल का पूरा परिदृश्य बदल गया है। ये बीजेपी का एक गेम-चेंजर दांव साबित होने वाला है क्योंकि ममता बनर्जी ने अपनी सेना का अर्जुन खो दिय...
कश्मीर की सौदेबाज़ी

कश्मीर की सौदेबाज़ी

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वर्तमान में दो बातों से लगभग सभी भारतीय वाकिफ़ होंगे। पहली, भारत द्वारा पाकिस्तान पर हुई एयर स्ट्राइक, दूसरी, भगवा आतंकवाद के आरोपियों का बरी हो जाना। दरअसल ये दोनों विषय एक दूसरे से बेहद गहराई से जुड़े हुए हैं, इतने के इनका जुड़ाव देखने को आपको बहुत गहरे उतरना होगा। पर इस मुद्दे पर आने से पहले कुछ प्रश्नों पर विचार करिये और उनके उत्तर समझिए। पहला, कांग्रेस क्यों एयर स्ट्राइक के बाद इमरान के साथ खड़ी नजऱ आई? इसमें कोई राजनीतिक लाभ क्या संभव था? अगर नहीं तो क्या कांग्रेस की मजबूरी थी? दूसरा आखिर ये भगवा आतंक की कहानी गढऩे की मंशा क्या थी? क्या ऐसा करने से कांग्रेस को कोई बड़ा लाभ होने वाला था? अगर बात मुस्लिम वोट की थी तो वो तो वैसे भी भाजपा को नहीं मिलते फिर क्यों? ये कहानी बड़ी है। ये कहानी है वेटिकन के इशारे पर कश्मीर के सौदे की जिसकी भूमिका तैयार करने को रचा गया था 'भगवा आतंक’ का शब्...
जम्मू-कश्मीर में आतंकियों का पुनर्वास व मुस्लिम घुसपैठ

जम्मू-कश्मीर में आतंकियों का पुनर्वास व मुस्लिम घुसपैठ

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  यह कितनी पक्षपातपूर्ण कुटिलता है कि पुनर्वास नीति के अंतर्गत 20-25 वर्षों से आतंकी बने हुए कश्मीरी जो पीओके व पाकिस्तान में शरण लिये हुए थे/हैं को धीरे-धीरे वापस ला कर पुन: कश्मीर में लाखों रुपये व नौकरियां देकर बसाया जा रहा है। ये आतंकी अपनी नई पाकिस्तानी पत्नी व बच्चों के साथ वापस आकर कश्मीर की मुस्लिम जनसंख्या और बढ़ा रहे हैं। इनको संपूर्ण नागरिक अधिकार व अन्य विशेषाधिकार मिल जाते हैं। मुख्यधारा में लाने के नाम पर इन कश्मीरी आतंकियों को हथियार छोडऩे पर उस हथियार के अनुसार अलग अलग राशि भी दी जाती है। फिर भी यह सुनिश्चित नहीं रहता कि ऐसे वापसी करने वाले आतंकी कब पुन: आतंक की दुनिया मे लौट जाएंगे! राष्ट्रीय सहारा में छपे 27 मार्च 2013 के समाचार के अनुसार तत्कालीन मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर की विधान सभा में एक प्रश्न के उत्तर में बताया था कि ''जम्मू-कश्मीर में सन् 1...
सांसद बनने की फिराक मेंसेना को बलात्कारी कहने वाला कन्हैया

सांसद बनने की फिराक मेंसेना को बलात्कारी कहने वाला कन्हैया

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कन्हैया कुमार अब बिहार की बेगूसराय सीट से लोकसभा चुनाव लड़ रहा है। वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) का उम्मीदवार है। यह वही कन्हैया कुमार है, भारतीय सेना को बलात्कारी कहने से भी पीछे नहीं हटता। वो बार-बार कहता रहा है कि भारतीय सेना कश्मीर में बलात्कारों में लिप्त है। जरा सोचिए कि कन्हैया कुमार को अगर राष्ट्रकवि “दिनकर” की धरती बेगूसराय लोकसभा में निर्वाचित करके भेजती है तो राष्ट्र कवि रामधारी सिंह “दिनकर” की आत्मा पर क्या गुजरेगी। बाकी किसी को जिताओ, एतराज नहीं, पर वतन के रखवालों के खिलाफ़ शर्मनाक बयानबाजी करने वाले कन्हैया को जिताना तो लोकतान्त्रिक अपराध होगा। भारतीय सेना पर कश्मीर में रेप जैसा जघन्य आरोप लगाने वाले कन्हैया कुमार के आरोप को देखने के लिए आप यू ट्यूब का सहारा भी ले सकते हैं। यानी वो यह तो कह ही नहीं कह सकता कि उसने भारतीय सेना पर कभी इतना गंभीर आरोप नहीं लगाया। उससे यह ...
दक्षिण में है अलग तरह का  राष्ट्रवाद

दक्षिण में है अलग तरह का राष्ट्रवाद

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  एक तरफ जहां उत्तर भारत में सर्जिकल अटैक और पाकिस्तान के अंदर घुस कर प्रहार करना राष्ट्रवाद की भावना को बलवती कर रहा है वहीं दूसरी तरफ दक्षिण के राज्यों में यह विषय चुनावी विमर्श का विषय नहीं बन पा रहा है। उत्तर भारत की राजनीति भावनात्मक रूप से चलती है तो दक्षिण के राज्यों की राजनीति विशुद्ध व्यक्तिगत स्वार्थों पर। दक्षिण के राज्यों में यह भावना पायी जाती है कि उत्तर भारतीय लोग उनका राजनीतिक अतिक्रमण करते रहते हैं। चूंकि भारत के प्रधानमंत्री अधिकतर उत्तर भारत से ही रहे हैं इसलिए उनकी इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता है। वर्तमान में गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री मोदी भी बनारस से जीत कर लोकसभा में पहुंचे हैं। राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द भी उत्तर प्रदेश से आते हैं। ऐसे में दक्षिण के राज्यों में भाजपा और कांग्रेस के मुद्दे उत्तर भारत के चुनावी मुद्दों से अलग हैं। दक्षिण में अभी भी क्षे...
राष्ट्रवाद की  अग्निपरीक्षा

राष्ट्रवाद की अग्निपरीक्षा

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  2019 का लोकसभा चुनाव मोदी के राष्ट्रवाद पर आकर टिक गया है। एक ओर मोदी की मजबूत राष्ट्रवाद की परिकल्पना है तो दूसरी तरफ कमजोर विपक्ष है। एक तरफ मोदी के द्वारा पांच साल में कराये गए कार्यों की रूपरेखा है तो दूसरी तरफ इस दौरान पूरी तरह बिखर चुका विपक्ष है। एक तरफ अबकी बार 400 पार का नारा है तो दूसरी तरफ महागठबंधन के जरिये स्वयं को जीवित रखने के लिए संघर्ष करता विपक्ष है। इन सबके बीच 'मैं भी चौकीदार’ का नारा लगाते भाजपाई सिर्फ और सिर्फ मोदी के नाम को जपते दिख रहे हैं। चाय से चौकीदार का यह खेल खेलने में मोदी की टीम सफल होती दिख रही है। 2014 में अपने शपथ ग्रहण के दौरान मोदी ने सार्क देशों के सभी प्रतिनिधियों को बुलाकर एक नयी तरह की मोदी कूटनीति की शुरुआत की थी। अभिनंदन की समय से वापसी उसी कूटनीति का एक परिणाम थी। इस समय सभी इस्लामिक देश भारत के साथ दिखाई दे रहे हैं। समय के साथ साथ मोदी...