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तो क्या मारे जाते रहेंगे ईमानदार सरकारी कर्मचारी

तो क्या मारे जाते रहेंगे ईमानदार सरकारी कर्मचारी

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पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ से सटे खरड़शहर मेंविगत दिनों जोनल लाइसेंसिंग अथॉरिटी में अधिकारी नेहा शौरी की उनके दफ्तर में ही दिन दहाड़े गोली मार कर की गई हत्याने सत्येंद्र दुबे और मंजूनाथ जैसे ईमानदार सरकारी अफसरों की नृशंस हत्यायों की यादें ताजा कर दी। नेहा शौरी  एक बेहद मेहनती और कर्तव्य परायण सरकारी अफसर थीं। बेईमानों को कभी छोड़ती नहीं थीं। इसका खामियाजा उन्हें जान देकर देना पड़ा।कहा जा रहा है किसन 2009 में जब नेहा रोपड़ में तैनात थीं, उस दौरान उन्होंने आरोपी के मेडिकल स्टोर पर छापेमारी की थी और घोर अनियमितताओं को पाकर उसका लाइसेंस कैंसिल कर दिया था। इसी का बदला लेने के लिए आरोपी उनपर सुनियोजित हत्या के मकसद से हमला किया। तो नेहा की हत्या ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि अब इस देश में ईमानदारी से काम करना कठिन होता जा रहा है। अगर सरकारी बाबू ईमानदार नहीं होगा तो उसे मार दिया जाएगा या...
तो नाम लेवा तक नहीं रहेगा लेफ्ट दलों का

तो नाम लेवा तक नहीं रहेगा लेफ्ट दलों का

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लेफ्ट पार्टियों को लेकर इस चुनावी माहौल के कोलाहाल में किसी तरह की कोई खास हलचल सामने नहीं आ रही है। हां,बिहार में बेगूसराय से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी(भाकपा) ने कन्हैया कुमार को टिकट जरूर दे दिया है।  फिलहाल लेफ्ट दलों से कोई भी अन्य दल  सीटों कातालमेल करने के लिए भी तैयार नहीं है। चार लेफ्ट पार्टियों को 2004 के लोकसभा चुनावों में 59 सीटों पर विजय हासिल हुई थी। लोकसभा चुनावों में वह शायद वामपंथी पार्टियों का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। पर 2014 के लोकसभा चुनावों में उसे मात्र 11सीटें ही मिलीं। एक तरह से कहा जा सकता है कि उन्हें देश के मतदाता ने धूल चटा मिला दिया । उसके बाद से लेफ्ट पार्टियों के सीताराम येचुरी, डी.राजा और वृंदा करात जैसे नेता सिर्फ सेमिनार सर्किट में ही देखे जाते हैं। वहां पर ये अपने विचार व्यक्त करके खुश हो जाते हैं। ये अंतिम  बार कब श्रमिक, किसान या गरीब-गुरुबा के हक में ल़ड...
चुनाव, राष्ट्रवाद और राजनीति

चुनाव, राष्ट्रवाद और राजनीति

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देश का राजनीतिक माहौल नए रंग ले रहा है। वजह घिसे पिटे चुनावी नारों व मुद्दों का हवा हो जाना है। देश की जनता आंदोलित है। वजह देश की सुरक्षा, राष्ट्रीय अस्मिता, स्वाभिमान व सेना के शौर्य जैसे संवेदनशील मुद्दों का हावी हो जाना है। पुलवामा के आतंकी हमलों के बाद बालकोट में वायुसेना की सर्जिकल स्ट्राइक व विंग कमांडर अभिरंजन कुमार प्रकरण में मिली भारतीय राजनय को मिली जय विपक्षी पार्टियों को पच नहीं रही है। उनकी खिसकती राजनीतिक जमीन के बीच कश्मीर में अलगाववादी नेताओं व संगठनों, बर्मा में उत्तर पूर्व के अलगाववादी व आतंकवादी नेताओं व संगठनों व अंतरिक्ष में भी सर्जिकल स्ट्राइक की क्षमता हासिल करने की खबरों ने दुश्मनों व महा शक्तियों को हिला दिया और लोकसभा चुनावों के चढ़ते माहौल के बीच विपक्षी पार्टियों की राजनीति को बेरंग कर दिया। अब पूरा देश आंदोलित है व राष्ट्ररक्षा व सेना के शौर्य व बलिदान के मुद्...
कल तक वो रीना थी लेकिन आज “रेहाना” है

कल तक वो रीना थी लेकिन आज “रेहाना” है

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दिन की शुरुआत अखबार में छपी खबरों से करना आज लगभग हर व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा है। लेकिन कुछ खबरें सोचने के लिए मजबूर कर जाती हैं कि क्या आज के इस तथाकथित सभ्य समाज में भी मनुष्य इतना बेबस हो सकता है? क्या हमने कभी खबर के पार जाकर यह सोचने की कोशिश की है कि क्या बीती होगी उस 12 साल की बच्ची पर जो हर रोज़ बेफिक्र होकर अपने घर के आंगन में खेलती थी लेकिन एक रोज़ उसका अपना ही आंगन उसके लिए महफूज़ नहीं रह जाता? आखिर क्यों उस आंगन में एक दिन यकायक एक तूफान आता है और उसका जीवन बदल जाता है?  वो बच्ची जो अपने माता पिता के द्वारा दिए नाम से खुद को पहचानती थी आज वो नाम ही उसके लिए बेगाना हो गया। सिर्फ नाम ही नहीं पहचान भी पराई हो गई। कल तक वो रीना थी लेकिन आज "रेहाना" है। सिर्फ पहचान ही नहीं उसकी जिंदगी भी बदल गई। कल तक उसके सिर पर पिता का साया था और भाई का प्यार था लेकिन आज उसके पास एक  "शौहर" है। ...
सरकार बनाने से पहले हजारों करोड़ का घोटाला?

सरकार बनाने से पहले हजारों करोड़ का घोटाला?

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क्या कांग्रेस गरीबों को न्याय दिलाने के नाम पर फर्जी आंकड़ा बताकर चुनाव के पहले ही भविष्य में घोटाला करने की तैयारी कर रही है? 5 करोड़ परिवारों को 12 हजार रूपए प्रति माह देने के लिए साल में साढ़े तीन लाख करोड़ का भार पड़ने की संभावना जताई जा रही, जबकि गरीब परिवारों की संख्या मात्र पांचवां हिस्सा, 1 करोड़ के करीब है। ऐसे में क्या ढ़ाई लाख करोड़ का घोटाला करने की रणनीति बनाई जा रही है? लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को रिझाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने घोषणा की है कि जब सरकार बनेगी तो देश के 20 प्रतिशत आबादी जो ग़रीबी रेखा के नीचे रहती है याने 5% परिवार को प्रति माह 12,000 ₹ की दर से न्यूनतम वेतन की गारंटी दी जाएगी। कांग्रेस पार्टी से न्याय योजना के रूप में प्रचारित कर रही है लेकिन इस योजना में गंभीर त्रुटियां है सबसे बड़ी त्रुटि ग़रीबी रेखा के बीच रहने वाले लोगों की संख्या को लेकर है। रंगराजन स...
आचरण से वामपंथी और भाषणो में लोकतांत्रिक

आचरण से वामपंथी और भाषणो में लोकतांत्रिक

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आपको लगता है कि ममता बनर्जी के शासन संभालने के बाद बंगाल में वामपंथी शासन समाप्त हो गया था? यही बात अखिलेश शासन काल के लिये सोच कर देखिये, क्या वह एक लोकतांत्रिक दल होने के नाते समाजवादी विचारधारा पर काम कर रहा था? यही बात मध्य प्रदेश और राजस्थान की नई सरकार के बारे में विचार कर के देखें, क्या वो गांधी जी या शास्त्री जी वाली कांग्रेस की किसी भी विचारधारा से मेल खाते हुए शासन कर रहे हैं? कर्नाटक सरकार का शासन लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हुए शासन चला रहा है?  इन सब पर विचार करें तो यही आभास होता है कि लोकतांत्रिक दल होने के बाद भी इनकी कार्यशैली में वामपंथ ने तेजी से पैर पसार लिये हैं। लोकतंत्र का विलाप करने वाले अक्सर ‘जनता का, जनता के लिये, जनता के द्वारा’ का नारा लगाते हैं, क्या पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश की सत्ता के निर्णयों में इस सद्वाक्य का कोई भी आभास लगता ...
गरीबों को गुमराह करने का षड़यंत्र

गरीबों को गुमराह करने का षड़यंत्र

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सत्तर साल से गरीबी एवं गरीबों को मजबूत करने वाली पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ने दुनिया की सबसे बड़ी न्यूनतम आय गारंटी योजना से गरीबों के हित की बात करके देश की गरीबी का भद्दा मजाक उडाया है। इस चुनावी घोषणा एवं आश्वासन का चुनाव परिणामों पर क्या असर पड़ेगा, यह भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इस घोषणा ने आर्थिक विशेषज्ञों एवं नीति आयोग की नींद उड़ा दी है। इस योजना को बीजेपी सरकार द्वारा किसानों को सालाना 6000 रुपए देने की घोषणा का जवाब माना जा रहा है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अनुसार, अगर उनकी सरकार सत्ता में आई तो सबसे गरीब 20 प्रतिशत परिवारों को हर साल 72,000 रुपए दिए जाएंगे। इस सहायता राशि को सीधे गरीबों के खातों में हस्तांतरित किया जाएगा और 5 करोड़ परिवार अथवा करीब 25 करोड़ लोग इससे लाभान्वित होंगे। क्या यह घोषणा सीधे तौर पर पच्चीस करोड़ गरीबों के वोट को हथियाने का षडयंत्र है? रा...
पित्रोदा मांगते सुबूत, खुश होगा पाक

पित्रोदा मांगते सुबूत, खुश होगा पाक

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अब कांग्रेस के वैज्ञानिक दिमाग के नाम से सुविख्यात सैम पित्रोदा ने भी भारतीय वायु सेना से पाकिस्तान में आतंकियों के ठिकानों को तबाह करने के सुबूत मांगे हैं। कभी राजीव गांधी के खासमखास करीबी रहे पित्रोदा आजकल राहुल गांधी के भी मुख्य सलाहकार बने हुए हैं। अमेरिका में लंबे समय से बसे हुए पित्रोदा अब देखना चाहते हैं, भारतीय वायुसेना के हमले में 300 से अधिक आतंकियों के मारे जाने के ठोस साक्ष्य।पित्रोदा ने कहा कि “पाकिस्तान से आए कुछ लोग” यदि आतंकी वारदात अंजाम देते हैं तो उसकी सजा पूरे पाकिस्तान को क्यों  दी जा रही है? कितने भोले बन रहे हैं पित्रोदा जी। क्या उन्हें पता नहीं कि पाकिस्तान सेना और  सरकार ही पालती है आतंकियों को?  पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने एक साक्षात्कार के दौरान यह खुले तौर पर माना भी था कि उनके कार्यकाल में भारत पर जैश-ए-मोहम्मद से आतंकी हमले करवाया...
2019 में भाजपा ही क्यों ?

2019 में भाजपा ही क्यों ?

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आप भी क्यों या क्यों नहीं के कुछ कारण बताएँ तो अवश्य ही आँखों के आगे छाया धुँधलका छँटेगा और तरक़्क़ी की राहें रौशन होंगीं | मैं न तो भाजपा का सदस्य हूँ, न कार्यकर्त्ता, फिर भी एक बार पुनः भाजपा की सरकार बनते देखना चाहता हूँ | आख़िर क्यों :- 1. भाजपा इकलौती ऐसी पार्टी है जिसकी नीति और नीयत स्पष्ट है | अतिशय तुष्टिकरण के कारण बाक़ी सभी पार्टियाँ संशयग्रस्त रहती हैं और आर-पार वाले निर्णय के वक्त में भी वोट की चिंता में 'गिरगिट' बनी नज़र आती है | 2. भाजपा के अलावा किसी और दल के पास साहसिक निर्णय लेने वाला राष्ट्रवादी नेतृत्व नहीं है |पहली बार किसी सरकार ने दूसरे देश की सीमा में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक करने की हिम्मत दिखाई | 3. कर्मठता, ईमानदारी, कर्तव्यपरायणता, वक्तृत्व-कौशल, अंतरराष्ट्रीय प्रभाव एवं सूझ-बूझ , निष्कलंकता, पार्टी व कार्यकर्त्ताओं को अनुशासित रखने की क्षमता- ऐसी तमाम कसौटि...
है अंधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मनाना है

है अंधेरी रात, पर दीवा जलाना कब मनाना है

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करोङों हिंदुस्तानियों की तरह नाना ने भी सूखे का संत्रास देखा; आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवार वालों के दर्द भरे साक्षात्कार सुने। मैने भी सुने। मेरी हमदर्दी कलम तक सीमित रही, किंतु नाना ने कहा कि टेलीविजन पर देखे दृश्यों से उनका दम घुटने लगा; उनकी नींद उङ गई। उन्होने सोचा - ''जो किसान कभी राजा थे, उनके पास आज न अपने मवेशी के लिए चारा-पानी है और न अपने लिए। मैं जो कर सकता हूं; वह करूं।''  जो मुट्ठी भर धन नाना के पास था, उसे लिया और मकरन्द के कहने पर 15-15 हजार रुपये करके 250 विधवाओं में बांट आये। लेकिन नाना इससे संतुष्ट नहीं हुए; सोचा कि यह उपाय नहीं है। असली उपाय है कि पानी के खो गये स्त्रोत को ढूंढ निकालो और उसे जिंदा कर दो। लोगों को साथ जोङकर खुद श्रम करो; पसीना बहाओ। महसूस करो कि कैसे कोई किसान तपती धूप और सख्त मिट्टी से जूझकर हमारे लिए अन्न पैदा करता है। नाना ने इसके लिए 'नाम फाउण...