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राहुल की लड़ाई भ्रष्टाचार से है या मोदी से ?

राहुल की लड़ाई भ्रष्टाचार से है या मोदी से ?

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क्या राहुल रॉफेल डील से सचमुच असंतुष्ट हैं? अगर हाँ, तो जैसा कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, उन्हें ठोस सबूत पेश करने चाहिए। अगर वो कहते हैं और मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनिल अंबानी को 30 हज़ार करोड़ रुपए दिए हैं तो इसे सिद्ध करें, कहीं न कहीं किसी ना किसी खाते में पैसों का लेनदेन दिखाएं। काश कि वो और उनके सलाहकार यह समझ पाते कि इस प्रकार  आधी अधूरी जानकारियों के साथ आरोप लगाकर वे मोदी की छवि से ज्यादा नुकसान खुद अपनी और कांग्रेस की छवि को ही पहुँचा रहे हैं। क्योंकि देश देख रहा है कि जिस प्रकार की संवेदनशीलता से वे रॉफेल सौदे में कथित भ्रष्टाचार को लेकर मोदी के खिलाफ दिखा रहे हैं,वो ममता के प्रति शारदा घोटाले, या  अखिलेश के प्रति उत्तर प्रदेश के खनन घोटाले अथवा मायावती के प्रति मूर्ति घोटाले या फिर लालू और तेजस्वी के प्रति चारा घोटाले या चिदंबरम के प्रति आई एन एक्स क...
अपने-अपने ब्रह्मास्त्र

अपने-अपने ब्रह्मास्त्र

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जब जब विरोधियों को लगता है कि मोदी का ग्राफ गिर रहा है और वह कमजोर हो रहे हैं तभी अचानक मोदी खेमा ऐसे वापसी करता है कि विपक्षी खेमा चारों खाने चित्त हो जाता है। चूंकि राजनीति में विमर्श का बड़ा महत्व होता है। जनता के बीच चलने वाला विमर्श ही राजनीतिक दलों का वोट बैंक निर्धारित करता है। इसलिए तीन प्रमुख राज्यों में हार के बाद राष्ट्रीय विमर्श कांग्रेस की सत्ता में वापसी एवं मोदी का गिरता ग्राफ बन गया था। मोदी विरोध एवं मोदी समर्थन वाले मीडिया समूह अपनी अपनी ढपली पर अपने अपने राग अलाप रहे थे। राम मंदिर चुनावी मुद्दा बनता दिख रहा था। संतों के द्वारा एक समानान्तर आंदोलन चलाया जा रहा था। सवर्णों को आधार बनाकर 2019 के लोकसभा चुनावों हेतु समीकरण दिये जा रहे थे। इसी बीच मोदी सरकार ने आर्थिक आधार पर आरक्षण का संवैधानिक संशोधन करके एक बड़ा दांव चल दिया। देश में विमर्श की दिशा ही बदल गयी। मोदी से नारा...
कौन सच्चा राष्ट्रवादी?

कौन सच्चा राष्ट्रवादी?

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हमारे दादा जी स्वर्गीय नेहरु जी को देशभक्त समझते थे लेकिन मुझे लगता है कि नेहरूजी सत्ता भक्त थे। मेरे पिताजी स्वर्गीय इंदिरा जी को को देशभक्त मानते थे लेकिन अब मुझे लगता है कि वह भी गलत थे। 2014 तक मैं केजरीवाल जी को देशभक्त समझता था, लेकिन अब लगता है कि मैं भी गलत था। कुछ दिन पहले तक जो लोग राम-रहीम और निर्मल बाबा को संत मानते थे अब वे भी अपनी गलती स्वीकार करते हैं। नेहरु जी के सेकुलरिज्म को समझने में हमें 50 साल लगे और मुलायम सिंह के समाजवाद को पहचानने में 25 साल लेकिन युवा पीढ़ी ने केजरीवाल की ईमानदारी और राहुल जी की जनेऊगीरी को बहुत जल्दी पहचान लिया। इससे स्पष्ट है कि आज का युवा बहुत समझदार है और उसे बेवकूफ बनाना बहुत मुश्किल है। आने वाली पीढिय़ां यह जरूर तय करेंगी कि कौन सच्चा राष्ट्रवादी है और कौन झूठा, कौन असली समाजवादी है और कौन नकली, कौन ईमानदार है और कौन नटवरलाल, कौन वास्तव...
अब संस्कृत हुई सांप्रदायिक

अब संस्कृत हुई सांप्रदायिक

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देश का वातावरण इस हद तक विषाक्त हो चुका है कि अब संस्कृत भाषा को भी सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है। अब केन्द्रीय विद्यालयों में प्रतिदिन सुबह होने वाली प्रार्थना पर भी निशाना साधा जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह संस्कृत प्रार्थना धर्मनिरपेक्ष भारत में नहीं होनी चाहिए। अब वो दिन दूर नहीं है जब केन्द्रीय विद्लाय के ध्येय वाक्य पर भी सवाल खड़े किए जाएंगे। केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना तब हुई जब कि मोहम्मद करीम छागला देश के शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ईशावास्योपनिषद के श्लोक “हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्, तत्त्वं पूषन्नपातृणु सत्यधर्माय दृष्टये” से ही केन्द्रीय विद्यालयों का ध्ययेवाक्य“तत्वंपूषण अपावर्णु” को चुना जिसका अर्थ होता है सत्य जो अज्ञान के पर्दे से ढंका है उसपर से अज्ञान का पर्दा उठा दो। इस प्रार्थना के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई है। अब ...
भारत विरोधी पर टिकी पाक की विदेश नीति

भारत विरोधी पर टिकी पाक की विदेश नीति

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वैसे तो चेहरे-मोहरे से पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी तो सुसंस्कृत जैसे ही लगते हैं। वे एक विदेश मंत्री हैं,इसलिए उनसे अपेक्षा भी की जाती है कि वे तोल-मोल करके के बोलेंगे भी। पर वे हैं कि सड़क छाप अंदाज में आचरण करने से बाज ही नहीं आते। वे लगातार भारत विरोधी बयानबाजी करते रहते हैं। लगता तो यह है कि उन्होंने अपने देश के विदेश मंत्रालय को भारत के खिलाफ जहर उगलने का केन्द्र बना दिया है। पाकिस्तान में नवाज शरीफ के प्रधानमंत्रित्व काल में जो काम वहां के सेना प्रमुख राहील शरीफ करते थे, उसे ही अब इमरान खान की सरकार में कुरैशी करते हैं। इमरान खान सरकार के सत्तासीन होने के बाद उनका भारत विरोधी ही एक सूत्री एजेंडा चल रहा है। उन्हें तो भारत के आतंरिक मामलों पर टिप्पणी करने से लेकर कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से बात करना ही पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय का काम लगता है। विगत दिनों कुरैशी के ...
पश्चिम बंगाल का सारधा चिटफंड घोटाला :- लूट, राजनीति, और आतंक का तालमेल

पश्चिम बंगाल का सारधा चिटफंड घोटाला :- लूट, राजनीति, और आतंक का तालमेल

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कभी-कभी ऐसा संयोग होता है कि एक साथ दो घटनाएँ अथवा दुर्घटनाएँ होती हैं और उनका आपस में सम्बन्ध भी निकल आता है, जो उस समय से पहले कभी उजागर नहीं हुआ होता. पश्चिम बंगाल में सारधा चिटफंड घोटाला तथा बर्दवान बम विस्फोट ऐसी ही दो घटनाएँ हैं. ऊपर से देखने पर किसी अल्प-जागरूक व्यक्ति को इन दोनों मामलों में कोई सम्बन्ध नहीं दिखाई देगा, परन्तु जिस तरह से नित नए खुलासे हो रहे हैं तथा ममता बनर्जी जिस प्रकार बेचैन दिखाई देने लगी हैं उससे साफ़ ज़ाहिर हो रहा है कि वामपंथियों के कालखंड से चली आ रही बांग्लादेशी वोट बैंक की घातक नीति, पश्चिम बंगाल के गरीबों को गरीब बनाए रखने की नीति ने राज्य की जनता और देश की सुरक्षा को एक गहरे संकट में डाल दिया है. जब तृणमूल काँग्रेस के गिरफ्तार सांसद कुणाल घोष ने जेल में नींद की गोलियाँ खाकर आत्महत्या करने की कोशिश की तथा उधर उड़ीसा में बीजू जनता दल के सांसद हंसदा को सीबी...
उत्तर प्रदेश में गठबंधन चूक या चौका

उत्तर प्रदेश में गठबंधन चूक या चौका

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उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का औपचारिक गठबंधन होने पर भाजपा के माथे पर बल पड़ गये। एक दशक पूर्व ये दोनों क्षेत्रीय दल उत्तर प्रदेश की राजनीति में नंबर एक और दो की हैसियत रखते थे। 2014 में भाजपा का ग्राफ बढऩे एवं 2017 की प्रचंड जीत के बाद भाजपा एक नंबर का दल हो गयी। अब अपनी राजनैतिक हैसियत बचाने के लिए सपा-बसपा का एक साथ आना एक बड़ा राजनैतिक दांव है। कांग्रेस को इस गठबंधन में शामिल न करके जब इन दलों ने तीसरे मोर्चे की तैयारी तेज़ की ही थी कि तभी कांग्रेस ने प्रियंका वाड्रा को महासचिव का पद देकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बना दिया और इस तरह सपा-बसपा का चौका दिखता गठबंधन अब कहीं चूक न बन जाये। अमित त्यागी त्तर प्रदेश में पूरे भारत की आत्मा निवास करती है। देश को उत्तर प्रदेश 80 लोकसभा की सीटें देता है। 2014 में भाजपा को 73 सीटों पर प्रचंड जीत मिली थी। सपा को 05, कांग्रेस को 02 और बस...
सबको खुश करता, सबका बजट

सबको खुश करता, सबका बजट

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नरेन्द्र मोदी सरकार में कार्यवाहक वित्त मंत्री पीयूष ने साल 2019-20 के अंतरिम बजट प्रस्तावों से  मिडिल क्लास, किसान, सेना, रेलवे और अन्य सभी संभव क्षेत्रों को दिल खोलकर बांटा है। इस तरह से उन्होंने सबको खुशकर  करदिया है। अगर बात मिडिल क्लास के लिए टैक्स स्लैब की करें तो अब 5 लाख रुपये तक की आय पर किसी तरह का आयकर नहीं लगेगा, यह सीमा पहले 2.5 लाख रुपये तक की थी। इस तरह के देश के करोड़ों नौकरीपेशा लोगों को एक बड़ी राहत मिली है। दरअसल मिडिल क्लास कहीं न कहीं ये मानने लगा था कि सरकारें उनसे टैक्स तो कसकर लेती हैं, पर उन्हें राहत कभी नहीं देती। अब कम से कम  इस वर्ग को शिकायत करने का कोई मौका नहीं रहा है।  अब सालाना 5 लाख तक की व्यक्तिगत आय वालों को इनकम टैक्स से मुक्त कर दिया गया है। मतलब  जिसकी सालाना आय 5 लाख से कम है उसे कोई भी टैक्स देना नहीं पड़ेगा। बेशक,हमारे देश के एक बहुत बड़े नौकरीपेशा...
आम आदमी को अच्छे दिनों का अहसास कराता बजट

आम आदमी को अच्छे दिनों का अहसास कराता बजट

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विपक्ष भले ही वर्तमान सरकार के इस आखरी बजट को चुनावी बजट कहे और कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल के बजट भाषण को चुनावी भाषण की संज्ञा दे,लेकिन सच तो यह है कि इस आम बजट ने अपने नाम के अनुरूप देश के आम आदमी के दिल को जीत लिया है। जैसा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा, यह सर्वव्यापी, सरस्पर्शी,सरसमवेशी, सर्वोतकर्ष को समर्पित एक ऐसा बजट है जो भारत के भविष्य को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के सपने अवश्य जगाता है जो कितने पूर्ण होंगे यह तो समय ही बताएगा। यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकार ने चुनावी साल में बजट प्रस्तुत किया हो।  लेकिन हाँ, यह पहली बार है जब भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में जहाँ अब तक लगभग हर सरकार चुनावी साल के बजट में केवल आगामी लोकसभा चुनावों को ही ध्यान में रखकर बजट प्रस्तुत करती थीं, वहां इस सरकार ने आगामी दस सालों को ध्यान में रखकर बजट प्रस्तुत किया है। यही मोदी की श...
फिर आया मौसम ईवीएम में मीख-मेख निकालने का

फिर आया मौसम ईवीएम में मीख-मेख निकालने का

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लोकसभा चुनाव की तारीख नजदीक आते ही ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की विश्वसनीयता पर तरह-तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस तरह की आशंका भी की जा रही थी कि आम चुनाव से पहले ईवीएम में मीने-मेख निकाली जाने की एक बार फिर मुहीम चलने लगेगी। जो इन मशीनों में छेड़छाड़ या गड़बड़ी के दावे कर रहे हैं, वे  देश के महान वैज्ञानिकों का सीधे तौर पर घोर अपमान भी कर रहे हैं। वे जाने-अनजाने में यह भूल रहे हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम भारत इलेक्ट्रोनिक्स लिमिटेड (बीईएल) के वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत करके दिन रत खून-पसीना बहाकर ही इस ईवीएम मशीन को ईजाद किया था, ताकि चुनावों में होने वाली धांधलियों और गड़बड़ियों को रोका जा सके। इन मशीनों का सीधे ही इस्तेमाल लोकसभा या विधान सभा चुनावों में नहीं किया गया । पहले ईवीएम मशीनों से मजदूर संघों के सफल चुनाव संपन्न कराए गए। वहां पर इनके सफल प्रदर्शन के बाद...