अब संस्कृत हुई सांप्रदायिक
देश का वातावरण इस हद तक विषाक्त हो चुका है कि अब संस्कृत भाषा को भी सांप्रदायिकता के चश्मे से देखा जा रहा है। अब केन्द्रीय विद्यालयों में प्रतिदिन सुबह होने वाली प्रार्थना पर भी निशाना साधा जा रहा है। कहा जा रहा है कि यह संस्कृत प्रार्थना धर्मनिरपेक्ष भारत में नहीं होनी चाहिए।
अब वो दिन दूर नहीं है जब केन्द्रीय विद्लाय के ध्येय वाक्य पर भी सवाल खड़े किए जाएंगे।
केन्द्रीय विद्यालयों की स्थापना तब हुई जब कि मोहम्मद करीम छागला देश के शिक्षा मंत्री थे। उन्होंने ईशावास्योपनिषद के श्लोक “हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्, तत्त्वं पूषन्नपातृणु सत्यधर्माय दृष्टये” से ही केन्द्रीय विद्यालयों का ध्ययेवाक्य“तत्वंपूषण अपावर्णु” को चुना जिसका अर्थ होता है सत्य जो अज्ञान के पर्दे से ढंका है उसपर से अज्ञान का पर्दा उठा दो।
इस प्रार्थना के विरोध में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई है। अब ...