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कठिन है राजनीतिक उजालों की तलाश

कठिन है राजनीतिक उजालों की तलाश

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आगामी लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में गठबंधनों की राजनीति के नित-नये रंग उभर रहे हैं। सभी राजनीतिक दल चुनाव परिणामों की संभावनाओं की समीक्षा के पश्चात गलतियों को सुधारते हुए जीत को तलाशने में जुट गये हैं। अनेक विरोधाभासों एवं विसंगतियों के बीच राजनीतिक उजालों को तलाशा जा रहा है। सभी दलों के बीच राजनीति नहीं, स्वार्थ नीति देखने को मिल रही है। साझा सरकार के सभी दलों की सोच है कि सरकार में भी रहें और आगामी चुनाव में भी हमारा स्वतंत्र अस्तित्व बना रहे, ठीक इसी तरह विपक्षी महागठबंधनों में भी ऐसी ही मानसिकता देखने को मिल रही है, इसलिये वे गठबंधन से अलग रहकर या छोटे गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रह हैं। लखनऊ में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच ऐसे ही गठबंधन के ऐलान ने आगामी लोकसभा चुनावों की लड़ाई का अनौपचारिक आरंभ कर दिया है। ढाई दशक के शत्रुता एवं कड़वाहट...
मकड़जाल में सीबीआई

मकड़जाल में सीबीआई

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सर्वोच्च न्यायालय ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को बड़ी राहत देते हुए 77 दिन बाद पुनः अपने पद पर बिठा दिया। यह भी स्पष्ट कर दिया कि ‘विनीत नारायण फैसले’ के तहत सीबीआई निदेशक का 2 वर्ष का निधार्रित कार्यकाल ‘हाई पावर्ड कमेटी’ जिसमें प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और भारत के मुख्य न्यायाधीश होते हैं, की अनुमति के बिना न तो कम किया जा सकता है, न उसके अधिकार छीने जा सकते हैं और न ही उसका तबादला किया जा सकता है। इस तरह मोदी सरकार के विरूद्ध आलोक वर्मा की यह नैतिक विजय थी। पर अपनी आदत से मजबूर आलोक वर्मा ने इस विजय को अपने ही संदेहास्पद आचरण से पराजय में बदल दिया। सीबीआई मुख्यालय में पदभार ग्रहण करते ही उन्हें अपने अधिकारियों से मिलना-जुलना, चल रही जांचों की प्रगति पूछना और नववर्ष की शुभकामनाऐं देने जैसा काम करना चाहिए। पर उन्होंने किया क्या? सबसे विवादास्पद व्यक्ति डा. सुब्रमनियन स्वामी से अ...
Social Justice for Weaker Section

Social Justice for Weaker Section

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With the Gazette notification of the 124th Constitution Amendment providing 10% reservation in jobs and in educational institutions for weaker section of the upper caste the Bill is now an Act of Law. Within 24 hours of the official nodification, Gujrat became the first State to implement the job reservation policy. Jharkhand was the second state to declare that it has started giving job reservation to economically weaker section of upper caste as per the new law. Both States have BJP Government. I would like to remind the critics of Prime Minister Narendra Modi who finally accepted and implemented the long standing demand of ‘reservation’ for upper castes in government job and education. It was much needed to end the inequality and lack of opportunity to the weaker section in the name ...
आर्थिक आरक्षण की सुबह का होना

आर्थिक आरक्षण की सुबह का होना

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नरेन्द्र मोदी सरकार ने आर्थिक निर्बलता के आधार पर दस प्रतिशत आरक्षण देने का जो फैसला किया है वह निश्चित रूप से साहिसक कदम है, एक बड़ी राजनीतिक पहल है। इस फैसले से आर्थिक असमानता के साथ ही जातीय वैमनस्य को दूर करने की दिशा में नयी फिजाएं उद्घाटित होंगी। निश्चित ही मोदी सरकार ने आर्थिक तौर पर कमजोर लोगों के लिए यह आरक्षण की व्यवस्था करके केवल एक सामाजिक जरूरत को पूरा करने का ही काम नहीं किया है, बल्कि आरक्षण की राजनीति को भी एक नया मोड़ दिया है। इस फैसले से आजादी के बाद से आरक्षण को लेकर हो रहे हिंसक एवं अराजक माहौल पर भी विराम लगेगा। देशभर की सवर्ण जातियां आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग करती आ रही हैं। भारतीय संविधान में आरक्षण का आधार आर्थिक निर्बलता न होकर सामाजिक भेदभाव व शैक्षणिक पिछड़ापन है। आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को नौकरियों में आरक्षण देने का फैसला एक सकारात्मक परिवेश का द्योतक है,...
कुंभ में भीड़ पर रखना होगा काबू

कुंभ में भीड़ पर रखना होगा काबू

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अब फिर से कुंभ मेला का शंखनाद हो गया है। प्रयागराज में एक बार फिर आस्था का ऐसा जमघट लगने जा रहा है जिसमें संगम की त्रिवेणी में डुबकी लगाने जहाँ करोड़ों भक्त देशभर के कोने-कोने से इकट्ठे होंगें वहीं महाकुम्भ के अद्भुत और विहंगम नज़ारे को कैमरे में कैद करने और नजारे को नजदीकी से देखने के लिए सारे संसार से करोड़ों पर्यटक भी आएंगे। ये सब प्रयाग के संगम में आस्था की डुबकी भी लगाएंगे। इस दौरान घंटा-घड़ियालों के साथ गूंजते वैदिक मंत्र और धूप-दीप की सुगंध से सारा शहर ही नहीं पूरा प्रयाग मंडल महकेगा। हिंदू धर्म में मान्यता है कि किसी भी कुंभ मेले में गंगा-यमुना और भूगर्भ सरस्वती के संगम पर पवित्र मन से तीन डुबकी लगाने से मनुष्य को जन्म-पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। पर इसके साथ यह  भी उतना ही सच है कि इतने विशाल स्तर पर  कुंभ मेले के आयोजन की व्यवस्थाएं करना किसी सर...
ऑस्ट्रेलिया डायरी : विकास के मापदंडों पर विकसित देश व भारत

ऑस्ट्रेलिया डायरी : विकास के मापदंडों पर विकसित देश व भारत

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विभिन्न देशों में वेतनमान और पेट्रोल की कीमतें -     ऑस्ट्रेलिया में न्यूनतम वेतन लगभग 1,55,000 रुपए (एक लाख पचपन हजार रुपए) महीना है। पेट्रोल की कीमत औसतन 78 रुपए प्रति लीटर है। -     फ्रांस में न्यूनतम वेतन लगभग 1,20,000 रुपए (एक लाख बीस हजार रुपए) महीना है। पेट्रोल की कीमत औसतन 112 रुपए प्रति लीटर है। -     इंग्लैंड में न्यूनतम वेतन लगभग 1,20,000 रुपए (एक लाख बीस हजार रुपए) महीना है। पेट्रोल की कीमत औसतन 105 रुपए प्रति लीटर है। -     जर्मनी में न्यूनतम वेतन लगभग 1,20,000 रुपए (एक लाख बीस हजार रुपए) महीना है। पेट्रोल की कीमत औसतन 120 रुपए प्रति लीटर है। -     अमेरिका में न्यूनतम वेतन लगभग 85,000 रुपए (पिच्चासी हजार रुपए) महीना है। पेट्रोल की कीमत औसतन 65 रुपए प्रति लीटर है। -     चीन मेंं सरकारी घोषित न्यूनतम वेतन (एक्चुल वेतन बहुत कम है) लगभग 20,000 रुपए (बीस हजार रुपए...
स्वयंसेवी संस्थाओं की  धूमिल होती छवि

स्वयंसेवी संस्थाओं की धूमिल होती छवि

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  भारत को स्वयं सेवी संस्थाओं का देश कहा जा सकता है। उच्चतम न्यायालय के एक आदेश के अनुपालन में भारत सरकार ने संपूर्ण देश में पंजीकृत स्वयंसेवी संस्थाओं की गणना कराई थी। इसके अनुसार देश भर के राज्यों में 38 लाख से कुछ अधिक एवं संघीय प्रदेशों में 72000 स्वयं सेवी संस्थाएं पंजीकृत थी। तीन राज्यों ने अपने आंकड़े नहीं भेजे थे। इस प्रकार ऐसी संस्थाओं की संख्या 35 लाख अनुमानित की जा सकती हैै। भारत में कुल 35 लाख सरकारी स्कूल काम कर रहे हैं एवं सरकारी अस्पतालों की संख्या केवल 36000 के लगभग है। पूरे देश में 89 लाख 30 हजार पुलिस कर्मी कार्यरत हैं जबकि इनकी स्वीकृत संख्या 39 लाख है। ऐसा अनुमान लगाया गया है पूरे विश्व में स्वयं सेवी संस्थाओं की संख्या एक करोड़ के लगभग है एवं दुनिया की कुल आबादी लगभग 8 अरब से कुछ ज्यादा है। इस प्रकार हमारे देश में विश्व की जनसंख्या का लगभग 16-17 प्रतिशत निवास क...
भाजपाई कांग्रेस की जीत कांग्रेसी भाजपा की हार

भाजपाई कांग्रेस की जीत कांग्रेसी भाजपा की हार

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पाँच राज्यों के चुनावों के परिणामों से एक बात तो साफ हो गयी है कि जब जब सियासी दल जनता को अपने हाथों की कठपुतली समझते हैं तब तब जनता की तरफ से उसका माकूल जवाब दे दिया जाता है। मत प्रतिशत में सिर्फ दो चार प्रतिशत का अंतर ही सत्ता और विपक्ष में कितना अंतर पैदा कर सकता है यह अब भाजपा को समझ आ गया है। देखते ही देखते तीन महत्वपूर्ण भाजपा शासित राज्य उसके हाथ से खिसक गए। लगभग मृतप्राय कांग्रेस फिर से संजीवित हो गयी। किसानों की नाराजगी और एससीएसटी एक्ट से सवर्णों में उपजा गुस्सा कुछ ऐसा फूटा कि सारी नीतियाँ धरी की धरी रह गयीं। राजस्थान और मध्य प्रदेश रेत की मानिंद हाथ से फिसल गये। छत्तीसगढ़ में करारी हार हुयी। स्वयं को अजेय मानने का भ्रम पालने वाली भगवा ब्रिगेड का दंभ टूट गया। अमित शाह के प्रबंधन की हवा निकल गयी। और जनता की नाराजगी के कारण पप्पू गिरते पड़ते ही सही आखिरकार पास हो ही गया। इन तीन प्रद...
नमाज, मुसलमान और धर्मनिरपेक्षता

नमाज, मुसलमान और धर्मनिरपेक्षता

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उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहर नोएडा में पुलिस ने पार्कों में मुसलमानों को बिना अनमुति के नमाज अदा करने पर रोक क्या लगाई कि हंगामा खड़ा होने लगा। इसे अल्पसंख्यकों की धार्मिक आस्थाओं पर कुठाराघात कहने वाले हाय-तौबा करने लगे। कहा यह भी जाने लगा कि देश में  धर्मनिरपेक्षता खतरे में आ गई है। पर यह क्यों नजरअंदाज कर दिया गया कि धार्मिक अनुष्ठान करने के अधिकार के साथ कुछ दायित्व भी तो जुड़े हैं? पर लगता है, अब दायित्वों को याद रखने का वक्त ही नहीं रह गया है। यह विवाद गरमाया तो एआईएमआईएम के अध्यक्ष  असदुद्दीन ओवैसी ने अपना जहरीला वक्तव्य देने का मौका नहीं छोड़ा।  वे इस बार भी आग में घी डालने का काम अपने पुराने अंदाज में करते रहे। ओवैसी ने कहा कि “यूपी पुलिस कांवड़ियों पर फूल बरसाती है। लेकिन सप्ताह में एक बार नमाज पढ़ने का मतलब शांति और सद्भाव को बाधित करना हो जाता है।” यूपी पुलिस के एक्श...
बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपा के लिए केस स्टडी हो सकते हैं

बांग्लादेश चुनाव परिणाम भाजपा के लिए केस स्टडी हो सकते हैं

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वैसे तो आने वाला हर साल अपने साथ उत्साह और उम्मीदों की नई किरणें ले कर आता है, लेकिन यह साल कुछ खास है। क्योंकि आमतौर पर देश की राजनीति में रूचि न रखने वाले लोग भी इस बार यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि 2019 में राजनीति का ऊँठ किस करवट बैठेगा। खास तौर पर इसलिए कि 2019 की शुरुआत दो ऐसी महत्त्वपूर्ण घटनाओं से हुई जिसने अवश्य ही हर एक का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया होगा। पहली घटना,साल के पहले दिन मीडिया को दिया प्रधानमंत्री मोदी का साक्षात्कार जिसमें वे स्वयं को एक ऐसे राजनेता के रूप में व्यक्त करते दिखाई दिए जो संवैधानिक और कानूनी प्रक्रिया के साथ ही लोकतंत्र की रक्षा के लिए मजबूत विपक्ष के होने में यकीन करते दिखे।इस दौरान वे अपनी सरकार की नीतियों की मजबूत रक्षा और विपक्ष का राजनैतिक विरोध पूरी "विनम्रता" के साथ करते दिखाई दिए। कहा जा सकता है कि वो अपनी आक्रामक शैली के विपरीत डिफेंसिव दिखाई दिए...