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प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है

प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है

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विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रत्येक वर्ष 3 मई को मनाया जाता है। प्रेस किसी भी समाज का आइना होता है। 1991 में यूनेस्को की जनरल असेंबली के 26वें सत्र में अपनाई गई सिफारिश के बाद, संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने दिसंबर 1993 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस की घोषणा की थी। प्रेस की आजादी से यह बात साबित होती है कि किसी भी देश में अभिव्यक्ति की कितनी स्वतंत्रता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में प्रेस की स्वतंत्रता एक मौलिक जरूरत है। आज हम एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ अपनी दुनिया से बाहर निकल कर आसपास घटित होने वाली घटनाओं के बारे में जानने का अधिक वक्त हमारे पास नहीं होता। ऐसे में प्रेस और मीडिया हमारे लिए एक खबर वाहक का काम करती हैं, जो हर सवेरे हमारी टेबल पर गरमा गर्म खबरें परोसती हैं। प्रेस केवल खबरे पहुंचाने का ही माध्यम नहीं है बल्कि यह नये युग के निर्माण और जन चेतना के उद्बोधन ए...
विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर

विश्व उन्नति का दारोमदार मजदूर के कंधों पर

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मजदूर दिवस/मई दिवस समाज के उस वर्ग के नाम है जिसके कंधों पर सही मायने में विश्व की उन्नति का दारोमदार होता है। कर्म को पूजा समझने वाले श्रमिक वर्ग के लगन से ही कोई काम संभव हो पाता है चाहे वह कलात्मक हो या फिर संरचनात्मक या अन्य लेकिन विश्व का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जहां मजदूरोें का शोषण न होता हो। बंधुआ मजदूरों खासकर महिला और बाल मजदूरों की हालत और भी दयनीय होती है जिन्हें अपनी मर्जी से न अपना जीवन जीने का अधिकार होता है और न ही सोचने का। ऐसे में मजदूरों की स्थिति में सुधार आवश्यक भी है और उसका अधिकार भी। दुनियाभर के मजदूरों को कई श्रेणियों में बांटा जाता रहा है जैसे कि संगठित-असंगठित क्षेत्र के मजदूर, कुशल-अकुशल आदि। समय-दर-समय मजदूरों की स्थिति में कुछ सुधार आया तो कुछ मामलों में स्थिति और भी बदतर हुई है। सुधारवाद की बात करें तो मजदूरों का पारिश्रमिक तय किया जाने लगा, उसके अधिकारों क...
किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

किस मुंह से वोट मांग रहे हैं धमाकों के गुनाहगार संजय दत्त

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2019 के लोकसभा चुनावों पर आगे चलकर जब कभी भी चर्चा होगी या कोई शोधार्थी जब कोई शोध पत्र लिखेगा तो यह भी बताया जाएगा कि उस चुनाव में 1993 के मुम्बई में हुए बम विस्फोटों का गुनाहगार संजय दत्त खुल्लम-खुल्ला तरीके से कांग्रेस के लिए वोट मांग रहा था। मुंबई बम विस्फोट में 270 निर्दोष नागरिक मार गए थे और सैकड़ों जीवन  भर के लिए विकलांग भी हो गए थे। सैकड़ों करोड़ रुपये की संपत्ति नष्ट हो गई थी। देश की वित्तीय राजधानी मुंबई कई दिनों तक पंगु हो गई थी। उन धमाकों के बाद मुंबई पहले वाली रौनक और बेख़ौफ़ जीवन कभी रही ही नहीं। दरअसल 12 मार्च,1993 को मुंबई में कई जगहों पर बम धमाके हुए थे।  जब वो भयानक धमाके हुए थे तब मुंबई पुलिस के कमिश्नर एम.एन.सिंह थे। सरकार कांग्रेस की थी पर पुलिस कमिश्नर कड़क अफसर थे। उन्होंने एक बार कहा भी था कि यदि संजय दत्त अपने पिता सुनील दत्त को यह जानकारी दे देते कि उनके घर में हथ...
75% आबादी प्यासी लेकिन इसकी चिंता कौन करे?

75% आबादी प्यासी लेकिन इसकी चिंता कौन करे?

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लोकसभा चुनावों में व्यस्त देश को आगामी 23 मई को इनके नतीजों के आने के बाद जल संकट से जुड़े सवाल पर गहराई से सोचना होगा। भले ही चुनावों में राजनीतिक दलों में वैचारिक मतभेद रहते हैं, पर जल संकट का सामना करने के बिंदु पर तो कोई मतभेद हरगिज़ नहीं होने चाहिए। देश वास्तव में भीषण जल संकट से गंभीरता से जूझ रहा है। गर्मियों में मांग बढ़ने के कारण स्थिति और भी बदतर हो जाती है। एक अनुमान के मुताबिक देश के 60 करोड़ आबादी को आज के दिन भीषण जल संकट का सामना करना पड़ रहा है। देश के नीति आयोग का तो यहां तक कहना है कि देश के 70 फीसद घरों में साफ पेयजल नहीं मिल रहा है। ये दोनों ही आंकड़ें किसी को डराने के लिए पर्याप्त हैं। इनसे समझा जा सकता है कि देश में जल संकट ने कितना विकराल रूप ले चुका है। पर हैरानी तो यह होती है कि जल संकट इस लोकसभा चुनाव का कोई मुद्दा ही नहीं बना पाया।   दक्षिण अफ्रीका शहर केपटाउन को...
ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

ये घोषणाएं और संकल्प जुमलों के पहाड़ हैं

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चुनाव के तीन दिन पहले संकल्प-पत्र और सप्ताह भर पहले घोषणा-पत्र जारी करने का अर्थ क्या है? देश की दो प्रमुख पार्टियों भाजपा और कांग्रेस ने यही किया है। दूसरी छोटी-मोटी प्रांतीय पार्टियों ने भी कोई आदर्श उदाहरण उपस्थित नहीं किया है। इन पार्टियों के नेताओं से पूछिए कि आपके 50-50 पृष्ठों के इन घोषणा-पत्रों को कौन पढ़ेगा? क्या देश के 70-80 करोड़ मतदाता उसे पढ़कर मतदान करेंगे? इन दलों के नेता और कार्यकर्ता भी उन्हें पढ़ेंगे, इसमें संदेह है। चुनाव अभियान तो पिछले डेढ़-दो माह से चला हुआ है। उसमें जनहित के कौनसे मुद्दों पर सार्थक बहस हो रही है, यह सबको पता है। फिर भी इन संकल्प-पत्रों और घोषणा-पत्रों का महत्व है। जो भी पार्टी जीतती है, उसकी खिंचाई उसके विरोधी घोषणा-पत्रों के आधार पर करते हैं। उसका कुछ न कुछ असर भी जरुर दिखाई पड़ता है। 2019 के जो चुनाव-पूर्व सर्वेक्षण छपे हैं, उनके आधार पर यह कहना...
क्या लोकसभा चुनाव गहलोत के भविष्य को निर्धारित करेंगे?

क्या लोकसभा चुनाव गहलोत के भविष्य को निर्धारित करेंगे?

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राजस्थान में लोकसभा चुनाव ज्यों ज्यों नजदीक आते जा रहे हैं उसी प्रकार भाजपा और कांग्रेस के सियासी बयानों में तल्खी भी बढ़ती जा रही है। भाजपा विधानसभा चुनाव हारने का बदला लोकसभा चुनावों में पूरा करना चाहती है। स्थानीय मुद्दे जिन्हें लेकर कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर किया था, वे आज भी यथावत हैं। कांग्रेस शासन के पांच माह बीत जाने के बाद भी उनमें कोई जमीनी परिर्वतन नहीं आया है। लेकिन भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि के साथ राष्ट्रवाद के मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है। जबकि कांग्रेस भाजपा को रोजगार, मंहगाई, नोटबंदी एवं जीएसटी को मुद्दा बना कर घेरना चाहती है। राजनैतिक पण्डितों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मुख्यधारा से अलग करने के बाद भाजपा संगठन बिखरा हुआ सा लग रहा है। विधानसभा चुनाव में हुई भाजपा की हार के पीछे के कुछ कारण अब भी परेशान कर रहे हैं उन...
बेरोजगारी है सबसे बड़ी चिन्ता 

बेरोजगारी है सबसे बड़ी चिन्ता 

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दुनिया भर के शासक एवं सत्ताएं अपनी उपलब्धियों का चाहे जितना बखान करें, सच यह है कि आम आदमी की मुसीबतें एवं तकलीफें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इसके बजाय रोज नई-नई समस्याएं उसके सामने खड़ी होती जा रही हैं, जीवन एक जटिल पहेली बनता जा रहा है। विकसित एवं विकासशील देशों में महंगाई बढ़ती है, मुद्रास्फीति बढ़ती है, यह अर्थशास्त्रियों की मान्यता है। पर बेरोजगारी क्यों बढ़ती है? एक और प्रश्न आम आदमी के दिमाग को झकझोरता है कि तब फिर विकास से कौन-सी समस्या घटती है? बहुराष्ट्रीय मार्केट रिसर्च कंपनी इप्सॉस के द्वारा इसी माह कराया गया सर्वेक्षण 'वॉट वरीज दि वल्र्ड ग्लोबल सर्वे’ के निष्कर्ष विभिन्न देशों की जनता की अलग-अलग चिंताओं को उजागर करते हैं। जहां तक भारत का प्रश्न है तो यहां बीते मार्च में किए गए सर्वे में ज्यादातर लोगों ने यह तो माना कि सरकार की नीतियां सही दिशा में हैं, लेकिन आतंकवाद की...
‘Dialogue India’ Scripts History in India-UAE Educational Ties

‘Dialogue India’ Scripts History in India-UAE Educational Ties

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Dubai: Providing a solid platform to the Indian Higher Education Institutions, global investors and the foreign students aspiring for world-class education in India, the 5thDialogue India Academia Conclave 2019 concluded in the world’s glittering city Dubai on May 2, 2019. Over a hundred dignitaries from the United Arab Emirates (UAE) and India discussed in details how the Indian educational institutions can collectively act as a bridge between the needs of the industry globally and the skilled Indian workforce. Over a dozen investors from Dubai discussed the investment opportunities in India through the Indian institutions. In his keynote address, Shri Vipul, the Consulate General of India in UAE, discussed the focus of both India and UAE on innovations and how artificial intelligence ...
राष्ट्रवाद की आंधी से हिन्दुत्व के तूफान तक

राष्ट्रवाद की आंधी से हिन्दुत्व के तूफान तक

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अमित त्यागी 2019 का चुनाव और उसके परिणाम एक रोचक अंत का इशारा कर रहे हैं। एक ओर माया मुलायम ने एक साथ एक मंच पर आकर अपने अपने समर्थकों को एक साथ आने का संकेत दे दिया है तो दूसरी तरफ शिवपाल यादव और प्रवीण तोगडिय़ा के दल कुछ खास करते नहीं दिख रहे हैं। कांग्रेस महागठबंधन के साथ नहीं है फिर भी वह आंतरिक रूप से गठबंधन के साथ ही है। भाजपा को हराने के लिए सभी दल अंदर ही अंदर एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। इसके साथ ही यह चुनाव लगातार बड़बोले नेताओं के बयानों के आधार पर मीडिया की सुर्खियां बन रहा है। आज़म खान ने जयाप्रदा पर खाकी रंग का हमला किया तो उनके बेटे ने अनारकली कहकर खुद को बयान बहादुर साबित किया। इससे बौखलाए अमर सिंह ने आज़म खान पर ताबड़तोड़ जुबानी हमले किये। दोनों ही तरफ से गरिमा को तार तार किया गया। इसी क्रम में मायावती के द्वारा मुलायम सिंह के सामने गेस्ट हाउस कांड याद करके पहले उन...
राष्ट्रीय नेता के चयन करने के मानदंड

राष्ट्रीय नेता के चयन करने के मानदंड

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भारत में चुनावी बुखार अपने चरम पर है। 300 से अधिक लोकसभा सीटों के भाग्य को अंतिम रूप दे दिया गया है। 23 मई 2019 से देश का नेतृत्व कौन करेगा, इस बार यह बहुत बड़ा सवाल नहीं है। सभी जनमत सर्वेक्षण वर्तमान पीएम के पक्ष में एक स्पष्ट फैसला दिखा रहे हैं, जिन्होंने पिछले पांच वर्षों के दौरान एक दिन की भी छुट्टी नहीं ली और उनके पास सुशासन, विकास और आतंकवाद की एक भी घटना नहीं (जम्मू-कश्मीर और नक्सल क्षेत्र को छोड़कर) होने के रिकॉर्ड हैं। एक भी विपक्षी नेता ऐसा नहीं है जो उन्हें चुनौती दे सके। हालांकि कई क्षेत्रीय नेता और सबसे पुरानी पार्टी के नेता त्रिशंकु संसद की उम्मीद कर रहे हैं और संख्या के कुछ अलग संयोजन से वे मोदी को बाहर करना चाहते हैं। वे पूरी तरह से अवसरवादी हैं और मीडिया की मदद से आम जनता को अकल्पनीय, अवास्तविक वादों और अस्थायी कहानियों के साथ बेवकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हैं। उनके लिए पह...