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चपातियां बहुत जल्द ही विलुप्त होने वाली है।

एक बहुत ही प्रसिद्ध हृदय-चिकित्सक समझाते है के गेहूं खाना बंद करने से आपकी सेहत को कितना अधिक लाभ हो सकता है। हृदय-चिकित्सक Dr विलियम डेविस MD ने अपने पेशे की शुरुवात हृदय रोग के उपचार के लिए ‘अंजीओप्लास्टी’ और ‘बाईपास सर्जरी’ से किया था।

वे बताते है के “मुझे वो ही सब सिखाया गया था और शुरू शुरू में तो मैं भी वोही सब करना चाहता था।” लेकिन जब उनकी अपनी माताजी का निधन साल 1995 में दिल का दौरा पड़ने से हुआ जो उन्हें बेहतरीन इलाज उपलब्ध कराने के बावाजूद हुआ। तब उनके मन में अपने ही पेशे को लेकर चिंता और परेशान कर देने वाले प्रश्न उठने लगे।

वे कहते है के, मैं रोगीयों के हृदय का इलाज कर तो देता था, लेकिन वे कुछ ही दिनों में उसी समस्या को लेकर मेरे पास फिर लौट आते थे। वो इलाज तो मात्र ‘बैंड-ऐड’ लगाकर छोड़ देने के समान था, जिसमें बीमारी का मूल कारण पकड़ने का तो प्रयास भी नहीं किया जाता था।” इसलिए उन्होंने अपने अभ्यास को एक उच्च स्तर और क्वचित ही उपयोग में लाये हुए दिशा की ओर मोड़ा- जो था ‘बीमारी को होने ही नही देना’। फिर उन्होंने अपने जीवन के अगले 15 सालों को इस हृदय रोग के मूल कारणों को जानने समझने में व्यतीत किया।

जिसके परिणाम स्वरूप जो आविष्कार हुए, वो उन्होंने ‘न्यू यॉर्क टाइम्स’ के सबसे अधिक बिकने वाली किताब “Wheat Belly”(गेहूं की तोंद) में प्रकाशित किया है। जिसमें हमारे बहुत से रोग, जैसे के हृदय रोग, डायबिटीज और मोटापे का संबंध गेहूं के सेवन करने के कारण बताया गया है। गेहूं का सेवन बंद कर देना हमारे सम्पूर्ण जीवन को ही बदल सकता है।

“Wheat Belly”(गेहूं की तोंद) क्या है? गेहूं के सेवन करने से, शरीर में चीनी की मात्रा आश्चर्यजनक पूर्वक बढ़ जाती है।

सिर्फ दो गेहूं की बनी ब्रेड स्लाइस खाने मात्र से ही हमारे शरीर में चीनी की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है जितना तो एक स्नीकर्स बार(चॉकलेट, चीनी और मूंगफली से बनी) खाने से भी नहीं होता। उन्होंने आगे बताया की, “जब मेरे पास आने वाले रोगियों ने गेहूं का सेवन रोक दिया था, तो उनका वजन भी काफी घटने लगा था, खास तौर पर उनकी कमर की चरबी घटने लगी थी। एक ही महीने के अंदर अंदर उनके कमर के कई इंच कम हो गए थे।””गेहूं का हमारे कई सारे रोगों से संबंध है ऐसा जानने में आया है। मेरे पास आने वाले कई रोगियों को डायबिटीज की समस्या थी या वे डायबिटीज के करीब थे।

मैं जान गया था के गेहूं शरीर में चीनी की मात्रा को बढ़ा देता है, जो किसी भी अन्य पदार्थ के मुकाबले अधिक था, इसलिए, मैंने कहा के,  “गेहूँ का सेवन बंद करके देखते है, के इसका असर शरीर में चीनी की मात्रा पे किस तरह होता है”3 से 6 महीनों से अंदर अंदर ही उन सब के शरीर में से चीनी की मात्रा बहुत कम हो गई थी। इसके साथ साथ वे मुझसे आकर यह भी कहते थे, के मेरा वजन 19 किलो घट गया है,  या मेरी अस्थमा की समस्या से मुझे निवारण मिल गया, या मैंने अपने दो इन्हेलर्स फेंक दिए है, या 20 सालों से जो मुझे माइग्रेन का सिरदर्द होता रहा है, वो मात्र 3 दिनों के अंदर ही बिल्कुल बंद हो गया है, या मेरे पेट में जो एसिड रिफ्लक्स की समस्या थी वो बंद हो गई है, या मेरा IBS अब पहले से बेहतर हो गया है, या मेरा उलसरेटिव कोलाइटिस, मेरा रहेउमाटोइड आर्थराइटिस, मेरा मूड, मेरी नींद… इत्यादि इत्यादि।
*गेहूं की बनावट को देखा जाए तो इसमें,*

1)अमलोपेक्टिन A, एक रसायन जो सिर्फ गेहूं में ही पाया जाता है, जो खून में LDL के कणों को काफी मात्रा में जगा देता है, जो ह्रदय रोग का सबसे मुख्य कारण पाया गया है।गेहूं का सेवन बन्द कर देने से LDL कणों की मात्रा 80 से 90 % तक घट जाती है।

2) गेहूं में बहुत अधिक मात्रा में ग्लैडिन भी पाया जाता है, यह एक प्रोटीन है जो भूक बढ़ाने का काम करती है, इस कारण से गेहूं का सेवन करने वाला व्यक्ति एक दिन में अपनी ज़रूरत से ज़्यादा, कम से कम 400 कैलोरी अधिक सेवन कर जाता है।  ग्लैडिन में ओपीएट के जैसे गुण भी पाए गए है जिसके कारण इसका सेवन करने वाले को इसकी लत लग जाती है, नशे की तरह। खाद्य वैज्ञानिक इस बात को 20 सालों से जानते थे।

3) क्या गेंहू का सेवन बंद कर देने से हम ग्लूटेन मुक्त हो जाते है?

ग्लूटेन तो गेहूं का सिर्फ एक भाग है। ग्लूटेन को निकाल कर भी गेंहू को देखे, तो वो फिर भी घातक ही कहलायेगा क्योंकि इसमें ग्लैडिन,  अमलोपेक्टिन A के साथ साथ और भी अनेक घातक पदार्थ पाए गए है।ग्लूटेन मुक्त पदार्थ बनाने के लिए, मकई की मांडी, चावल की मांडी, टैपिओका की मांडी ओर आलू की मांडी का उपयोग किया जाता है। और इन चारों का जो पाउडर है, वो तो शरीर में चीनी की मात्रा को और भी अधिक बढ़ा जाते है।मैं आप लोगों से आग्रह करता हुँ के सच्चा आहार लेना आरंभ करें: कच्चा आहार लेना आरम्भ करे ।जैसे के फल, सब्जियां,  दाने, बीज, घर का बना पनीर, इत्यादि।

साल 1970 और 1980 के अंतर्गत, गेहूं के उपज जो बढ़ाने के लिए जिन आधुनिक विधियों को और यंत्रों को उपयोग में लाया गया था, उनसे गेंहू अंदर से बिल्कुल बदल गया है। गेहूं की उपज छोटी और मोटी होने लगी, जिसमें ग्लैडिन(भूक बढ़ाने वाली पदार्थ) की मात्रा भी बहुत अधिक हो गई है। 50 वर्ष पूर्व जो गेहूं सेवन में लिया जाता था वो अब वैसा नही रहा।

ब्रेड, पास्ता, चपाती इत्यादि का सेवन बंद करके यदि सच्चे आहार का सेवन करना शुरू कर दिया जाए, जैसे के चावल, फल और सब्जियां है तो भी वजन घटाने में मदद ही होगी क्योंकि चावल चीनी की मात्रा को इतना नही बढ़ता है जितना गेहूं बढ़ाता है  और चावल में  अमायलोपेक्टिन A और ग्लैडिन (जो भूक बढ़ता है )भी नही पाया जाता है।

चावल खाने से आप ज़रूरत से अधिक कैलोरीस का सेवन भी नहीं करेंगे, जैसे गेंहू में होता है। सीलिए तो वो सारे पश्चिमी देश जहाँ गेहूं का सेवन नहीं किया जाता वे ज़्यादा पतले और तंदुस्र्स्त होते है। ‘न्यू यॉर्क टाइम्स’ के सबसे अधिक बिकने वाली किताब “Wheat Belly”(गेहूं की तोंद) में से लिया गया अंश

प्रसिद्ध हृदय-चिकित्सक Dr. विलियम डेविस, MD–

Anuj Agrawal, Group Editor 
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डायलॉग इंडिया ( राजनीतिक पत्रिका )
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