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भारत का अहिन्दूकरण

आज पुरे भारत में दलित जाति के हिन्दूओं को जोर शोर से इसाई बनाया जा रहा रहा है. हिन्दू सो रहा है. प्रायः हिन्दू समझता है कि मत/ मजहब बदलने से कुछ अंतर नहीं पड़ता. सच तो यह है कि मतान्तरण आगे चल कर राष्ट्रान्तरण में बदल जाता है. जो भी मुस्लिम बन जाता है उसकी तीसरी पीढ़ी अपनी जड़ें मक्का मदीना से जोडती है. जो ईसाई बन जाता है उसकी तीसरी पीढ़ी अपने को वेटिकन के अधिक निकट पाती है. भारत में जहाँ भी हिन्दू कंम है उन्ही राज्यों में अधिक अशांति है. जैसे कश्मीर और मिजोरम. यह समस्या कितनी जटिल है इसका जन सामान्य को अनुमान नहीं है.

पाठको ने संभवतः मुहम्मद अली जिन्नाह (पाकिस्तान निर्माता) और मुहम्मद इकबाल (पाकिस्तान के वैचारिक जनक) का नाम सुना होगा. इनके पूर्वज भी हिन्दू से मुस्लिम बने थे. परन्तु इन्होने भारत विभाजन में कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई यह सभी जानते हैं. इसी तरह पण्डित नीलकंठ शास्त्री का उदाहरण है. ये महाराष्ट्रिय ब्राह्मण थे. संस्कृत के विद्वान थे व इन्होने महाभारत पर नीलकंठी टीका भी लिखी है. एक घटना से प्रभावित होकर ये इसाई बन गए. उसके बाद इन्होने अनेक हिन्दूओं को इसाई बनाया. यद्यपि आर्यसमाज के प्रभाव के कारण ये पंजाब में अधिक सफल नहीं हुए परन्तु संयुक्त प्रान्त ( जिसमे मुखयतः आज का उत्तरप्रदेश है. ) इन्होने बड़ी सफलता पाई.

चूक कहाँ हुई –
एक समय था जब अनेक स्थानों पर मुस्लिम दुबारा हिन्दू बनना चाहते थे. परन्तु हमने रोटी बेटी का रिश्ता नहीं जोड़ा. हमारे अंदर जाति का मिथ्याभिमान आवश्यकता से अधिक है. मेवात में एकबार यही प्रश्न उठा था. मुस्लिम नेता ने कहा कि हमारी बेटियां सुन्दर हैं उन्हें हिन्दू ले लेंगे. परन्तु हमें अपनी बेटी कौन हिन्दू देगा. उस समय वहां हजारों की संख्या में हिन्दू उपस्थित थे परन्तु एक भी खड़ा नहीं हुआ. उस घटना को लगभग 50 साल हो चुके हैं. मेवात में हिन्दूओं की सैंकड़ों बेटियां लव जेहाद का शिकार हो कर मुस्लिम बन चुकी हैं. अब यह समस्या लाइलाज बन चुकी है क्योंकि 1980 के बाद आए पेट्रोडालर ने बाजी ही पलट दी है. सऊदी पैसा आने के बाद उत्तरप्रदेश से सैंकड़ों इमाम मेवात की मस्जिदों में आए और इनकी विचारधारा ही बदल दी.

स्वामी श्रद्धानन्द जी अपनी पुस्तक हिन्दू संगठन में लिखते हैं–
राजपूताना ( आज का राजस्थान) से कुछ युवक मेरे पास आए और मुझे सन्यासी समझ कर प्रणाम किया. मैंने उन्हें हिन्दू समझा. उन्होंने अपने सिर पर टोपी उतार कर चोटी भी दिखाई .मैंने उन्हें शुद्धि की आवश्यकता के बारे में बताया. तभी कोई आया और उसने मुझे बताया कि ये युवक मुस्लिम हैं. उसके बाद मैंने सोचा इनकी कैसी शुद्धि? इन्होने तो अत्यन्त कठिन परिस्थिति में भी अपना धर्म नहीं छोड़ा. प्रायश्चित तो हिन्दू समाज को करना चाहिए जिन्होंने अपने भाइयों को अलग कर दिया.

श्री एम0 मुजीब ने अपनी पुस्तक ‘दी इडियन मुस्लिम‘ में कई उदाहरण देते हुये किया है और विस्तार से बताया है कि धर्म बदलने के बाबजूद मुसलमानों ने अपनी परंपराओं और रीति-रिवाजों में हिंदू तहजीब को अपनाये रखा। उन्होंनें लिखा है-
‘ करनाल में 1865 तक बहुत से मुस्लिम किसान अपने पुराने गांवों के देवताओं की पूजा करते थे और साथ ही मुसलमान होने के कारण कलमा भी पढ़ते थे। इसी तरह अलवर और भरतपुर के मेव और मीना मुसलमान तो हो गये थे पर उनके नाम पूर्णरुपेण हिंदू होते थे और अपने नाम के साथ वो खान लगाते थे। ये लोग दीपावली, दुर्गापूजा, जन्माष्टमी तो मनाते ही थे साथ ही कुएं की खुदाई के वक्त एक चबूतरे पर हनुमान की पूजा करते थे। मेव भी हिंदुओं की तरह अपने गोत्र में शादी नहीं करते। मीना जाति वाले मुस्लिम भैरो (शिव) तथा हनुमान की पूजा करते थे और (क्षत्रिय हिंदुओं की तरह) कटार से शपथ लेते थे।

बूंदी राज्य में रहने वाले परिहार मीना गाय और सूअर दोनों के गोश्त से परहेज करते थे। रतलाम से लगभग 50 मील दूर जाओरा क्षेत्र में कृषक मुसलमान शादी के समय हिंदू रीति-रिवाज को मानतें है.

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हरियाणा के कुरुक्षेत्र के निकट एक गाँव में मिशनरियों की चंगाई सभा होने जा रही थी. आर्य समाज से जुड़े कुछ अत्यन्त उत्साही युवकों ने उसे रोकने के लिए सिर धड़ की बाजी लगा दी. संस्थाओं ने कोई साथ नहीं दिया. गाँव में पंचायत हुई. ये आर्य समाजी युवक इसाई मिशनरी का विरोध कर रहे थे. बाकी सभी हिन्दू कह रहे कि तुम आर्यसमाजियों के साथ पता नहीं क्या समस्या है. जिसे इसाई बनना है बने. यह उसका निजी मामला है. हमे चुप रहना चाहिए. ईश्वर कृपा से इन युवकों का परिश्रम सफल हुआ और गाँव में चंगाई सभा का कार्यक्रम नहीं हो पाया.

ध्यान रखें – आपका घर, गाँव जिला और प्रान्त यहीं रहेगा. भारत यहीं रहेगा. परन्तु आज से 100 साल बाद यहाँ कौन रहेगा इसका निर्णय हमें करना है. हम नहीं रहेंगे परन्तु यहाँ पर गौरक्षक रहेंगे या गौभक्षक. प्रार्थना करने वाले रहेंगे या नमाज करने वाले. वेटिकन वाले रहेंगे या मक्का वाले या काशी वाले यह हमारे आज के निर्णय पर निर्भर होगा.

एक स्वतन्त्रता से पहले और बाद में, जहाँ मुस्लिम वर्चस्व रहा है वहाँ पर बलपूर्वक, हिंसा द्वारा, तलवार के जोर से हिन्दूओं को मुसलमान बनाया गया और आज भी बनाया जा रहा है |
दूसरा स्वतन्त्रता के बाद देश में प्रलोभन देकर, झूठे प्रचार, चमत्कार दिखाकर बड़ी संख्या में हिन्दूओं को धर्मान्तरित किया गया, आज भी धर्मान्तरित किया जा रहा है |
तीसरा इन दोनों परिस्थितियों में जहाँ धर्मान्तरण करने वाले दोषी है, वहाँ हिन्दूओं के द्वारा जन्म से जातिपाति मानना, ऊँचनीच, अस्पृश्यता आदि के लिये हिन्दू समाज उत्तरदायी है |
घर वापसी का विरोध करने वालों को घर वापसी की कमियों का ही पता नहीं है या वे केवल हिन्दू विरोधी होने का गौरव प्राप्त करना चाहते हैं. जहाँ बलपूर्वक हिंसा या भय से धर्म परिवर्तन हुआ है, वहाँ घर वापसी की बात ठीक लगती है | जहाँ धर्मान्तरण में हिन्दू समाज की विचारधारा उत्तरदायी है, वहाँ घर वापसी के लिए हिन्दू समाज को स्वयं में सुधार लाना होगा, वास्तविकता तो यह है कि हिन्दू जिस हिन्दूत्व पर गर्व करता है वही उसके विनाश का कारण है, आज भी हिन्दू की पहचान उसकी किसी सामाजिक समानता से नहीं होती,हिन्दू की यदि पहचान है तो उसकी जाति से है फिर किसी ईसाई या मुसलमान की घर वापसी करेंगे तो ब्राह्मण को तो ब्राह्मण बनायेंगे और ठाकुर या जाट रहा तो उसे ठाकुर या जाट बना देंगे, यदि वह दलित रहा तो उसे घर वापसी में दलित ही बनाना पड़ेगा | यदि घर वापसी पर उसे दलित ही बनना पड़ा तो इस खण्डहर में उसे लौटने में लौटने वाले का क्या आकर्षण होगा | ईसाई या मुसलमान बने व्यक्ति को उसका समाज धर्म में, जन्मगत ऊँच-नीच, छूआछूत का अपमान नहीं ढ़ोना पड़ता |

आर्य समाज और स्वामी दयानंद के शुद्धि की चर्चा करते हुए इन हिन्दूवादीयों का गला सूखता है परन्तु उदाहरण हमारे सामनें है जहाँ आर्य समाज के प्रयास सार्थक हुए हैं | उत्तर भारत में जो जाट मुसलमान हो गये उन्हें मूल जाट कहा जाता है तथा जो राजपूत मुसलमान हुए उन्हें रांघड़ राजपूत कहते हैं |उत्तरप्रदेश में एक गाँव है जिनावा गुलियान, इस गाँव में मूले जाट रहते थे, आर्यसमाज ने सम्मेलन करके उन्हें शुद्ध कर हिन्दू समाज में मिलाने का प्रयास किया | उस समय सबसे बड़ी बाधा यही सामने आई, मुसलमानोॉ ने कहा हम हिन्दू तो बन जायेंगे परन्तु हमें कौन हिन्दू है जो अपनी लड़की देगा | उस समय आर्य नेता बूढ़पुर के निवासी श्री लज्जाराम के सुपुत्र पूर्ण चन्द जी जो बाद में स्वामी पूर्णानंद के नाम से प्रसिद्ध हुए उन्होने सभा में खड़े होकर घोषणा की सबसे पहले वे अपनी लड़की का विवाह मुस्लिम लड़के से करने को तैयार है, बस फिर क्या था ? सारा गाँव हिन्दू हो गया, आज सारा गाँव हिन्दू है | इन्ही परिवारों के सदस्य भी रहे हैं इन्हीं परिवारों के सदस्य श्री सत्येन्द्र सोलंकी उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य भी रहे है | यही उपाय है धर्मान्तरण रोकने का और घर वापसी को सफल बनाने का |

स्वामी श्रद्धानंद जी ने शुद्धि का सबसे बड़ा आन्दोलन चलाया, उन्होंने शुद्धि सम्मेलन कर बड़े-बड़े हिन्दू नेताओं की उपस्थिति में अस्सी हजार मूले जाटों की शुद्धि की थी | इस शुद्धि की शिकायत 1923-24 में आगरा में हुए कांग्रेस अधिवेशन में मौलाना अली बंधुओं ने उस समय के मोती लाल नेहरू से की थी, तब मोती लाल नेहरू ने अली बंधुओं को उत्तर दिया-अली भाई ये आर्यसमाजी कब से शुद्धि का कार्य कर रहे हैं ? तब स्वामी दयानंद का स्वर्गवास हुए 40 वर्ष हो गये थे | अली भाई ने कहा लगभग 40 वर्ष से तब मोती लाल नेहरू ने अलीबंधु से कहा- मौलना जमीन का मोरूसी (स्वामित्व) बारह वर्ष में हो जाती है इसलिये तुम्हारी शिकायत का कोई मुल्य नहीं है, अलीबंधुओं ने यह शिकायत गाँधी जी से भी कही थी | गाँधी जी ने स्वामी श्रद्धानंद जी को बुलाकर उन्हें कहा- आप शुद्धि का काम छोड़ दें | इससे मुसलमान भाईयों को दु:ख होता है तब स्वामी जी ने उत्तर दिया- यदि मुसलमान तबलीग का छोड़ दें तो मैं भी शुद्धि के कार्य बंद कर दूंगा | तब अलिबंधुओं ने कहा हमारे लिए यह धार्मिक आदेश है, अत: इस धर्मान्तरण के कार्य को हम बंद नहीं कर सकते | तब श्रद्धानंद जी ने कहा फिर मैं शुद्घि का काम कैसे बंद कर सकता हूँ |

हरियाणा के मुस्लिम बहुल मेवात क्षेत्र में आर्य समाज के स्वामी समर्पणानंद जी ने मुस्लिम नेताओं के सामने हिन्दू बनने का प्रस्ताव रखा था, इसके उत्तर में उस समय के मुस्लिम नेता खुर्शिद अहमद, जो स्वयं धोती कुर्ता पहनते थे और पगड़ी बांधते थे- ने स्वामी दी के प्रस्ताव के उत्तर में कहा था, बाबा जी हिन्दू लोग हमारी लड़कियाँ तो ले लेंगे, हमारी लड़कियाँ सुन्दर होती हैं परन्तु हमारे लड़कों को आपके लोग लड़की देंगे ? यह प्रस्ताव कार्यान्वित नहीं हो सका |

वर्तमान परिस्थिति में घर वापसी को सफल बनाने का एक ही उपाय है,
हिन्दू समाज के जाति समुदाय धर्मान्तरित हुए लोगों को अपनी जाति में मिलाने को तैयार हों तथा हिन्दू समाज छुआछूत, ऊँचनीच की भावना को छोड़ने को तैयार हो, तो घर वापसी में सफलता मिल सकती है | अन्यथा घर वापसी का शोर ईसाई-मुसलमानों को बल देगा | समाज में धर्मान्तरण करने वालों का प्रयास व्यक्तिगत स्तर तक है | वे ईसाई बने व्यक्ति किसी कीमत पर बाहर जाने देना पसंद नहीं करते, इसके लिये उनके साधन और व्यवस्था दोनों ही हमारी अपेक्षा मजबूत हैं | हमें जो प्राकृतिक सुविधा प्राप्त है वह यह है कि वे सभी लोग पहले हिन्दू थे अत: उन्हें समाज में सम्मान मिले तो लौटकर अपने घर आने में कोई आपत्ति नहीं हो सकती | राजनीति और दंगे समाज में समुदायों के बीच दूरी बढ़ाते हैं | अन्यथा जाति के नाम पर मुसलमान जाट, हिन्दू जाट को एक किया जाना सरल है | मुसलमान गूर्जर और हिन्दू गूर्जर कश्मीर से ईलाहाबाद तक एक किये जा सकते हैं.
मुसलमान राजपूत और हिन्दू राजपूतों को जाति संगठन अपना सकते हैं |अत: जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है तभी घर वापसी सफल हो सकती है |

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