भाजपा की दिल्ली में दुर्गति व 1998 से विधानसभा में अल्पमत में क्यों? 2022 निगम चुनावों में बुरी हार क्यों? विवेचन करके कारण बताने का प्रयास कर रहा हूँ।
मुख्य कारक व कारण:
*1.लचर निष्प्रभावी प्रदेश अध्यक्ष व केंद्रीय प्रभारी व घोर गुटबाज़ी।*
*2.रिश्वतखोर,काली कमाई करने वाले निगम पार्षद।*
*3.हार्डकोर काडर का असम्मान,उनके कार्य न किया जाना।*
*4.हार्डकोर काडर के आजीविका की न सोचना।*
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*क्या आपने सोचा है कि जिस भाजपा का नगर निगम में पिछले 22 वर्षों से प्रचंड बहुमत के साथ कब्जा था,वो पिछले 26 वर्षों से राज्य में सरकार क्यों नहीं बना पा रही है?*
अमित शाह जैसा चाणक्य,मोदी जैसा करिश्माई नेतृत्व,303 सांसद, तमाम केंद्रीय मंत्री व तकरीबन 40% से ज्यादा मत मिलने के बाद भी क्रमशः 3 और 8 विधायक क्यों? और करेला नीम पर आज चढ़ा जब निगम चुनावों में दुर्गति हो गयी।
*तो हुज़ूर भाजपा वालों खास तौर पर नेता गण मेरे अत्यंत कड़वे उत्तर व व्याख्या पर मुंह मत बनाइयेगा बल्कि मनन कीजियेगा की कैसे आप लोगों ने दिल्ली में भाजपा को रसातल में पहुंचा रखा है।*
पहला कारण, दिल्ली भाजपा में आज जो भी प्रदेश अध्य्क्ष बनता है वो एकदम जनधारविहीन नेता होता है। उसे अपने काडर से डायरेक्ट मिलने में कोफ्त होती है। *प्रदेश कार्यालय में अध्यक्ष जी से आम कार्यकर्ता का मिलना दुरूह पहाड़ी चोटी चढ़ने के बराबर है। अगर मिल भी गए तो कार्यकर्ता का कार्य करने/मदद करने से साफ इंकार कर देते हैं, इस आधार पर की संगठन में निजी काम के लिए मत आएं।* भैया तो आम कार्यकर्ता जो दरी, कुर्सी व बूथ पर काम करता है और विजय के बाद उससे जुड़े लोग जब मदद के लिए देखते हैं तो जनप्रतिनिधि/पार्टी पदाधिकारी व अध्यक्ष महोदय,केंद्रीय मंत्री तक कुत्ते की तरह दुत्कार देते हैं।
*दूसरा कारण, निगम पार्षद,जो भाजपा का टिकट उचित मूल्य चुका कर (ऐसा सुनने में आता है)पाते हैं और जीतने के बाद आमजन को इतना दुहते हैं कि विधानसभा चुनाव के समय उकताई जनता भाजपाई विधायक उम्मीदवारों को लात मार कर धकिया देती है।* पहले कांग्रेस और अब आ.आ.पा.। ना ना “फ़्रीबीज” मुफ्तखोरी का आरोप मत लगाइएगा क्योंकि हम भी अन्य राज्यों में वही कर रहे हैं जो केजरीवाल कर रहा है।
*तीसरा कारण हैं अपने हार्डकोर कैडर का घोर असम्मान।* उनके द्वारा अपने लोगों के कार्य की पुरजोर पैरवी के बाद भी भाजपाई जनप्रतिनिधियों द्वारा उनका काम न किया जाना और उन्हें कुत्ते की तरह दुत्कारना।
*चौथा कारण है “हार्डकोर कैडर” की आजीविका के बारे में न सोचना।* दिल्ली में केजरीवाल ने संविदा नौकरियों में अपने हार्डकोर कैडर को जिस चतुराई से समायोजित किया है उसका सानी न बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार रही न ममता बनर्जी। *दिल्ली में “मुफ्त माल” तो बाद की बात है, केजरीवाल ने तकरीबन 15 से 20 लाख कार्यकर्ताओं को 15 हज़ार से लेकर 1.5 लाख तक कि संविदा नौकरियों में लगा दिया। उदाहरण के लिए- सिविल डिफेंस,बस मार्शल,एनजीओ जेंडर रिसोर्स सेंटर(GRC), महिला पंचायत, दिल्ली के सरकार के अधीनस्थ सभी अस्पतालों में विभिन्न प्रकार के सलाहकार,विधानसभा में रिसर्च फेलो,आंगनबाड़ी,फरिश्ते योजना,मुफ्त इलाज व दवा योजना,मोहल्ला क्लिनिक जो पार्टी के लोगों के घरों में किराए पर चलता है और उसमें सहायक इत्यादि पार्टी कैडर के लोग होते हैं।इसके अलावा जितने भी राज्य सरकार के बोर्ड,प्राधिकरण हैं सबमें कैडर के युवा एवं अनुभवी लोग खपाये गए हैं। और हमारी पार्टी में काम मांग दीजिए निगम में तो “तलवा चाटने का भी काम” न मिले। वो भी ससुरा प्रिविलेज्ड लोगों को ही मिलता है।*
*अब बताइए,15 से 20 लाख लोगों को जब दाम मिल रहा हो तो इनके पारिवारिक मतदाताओं की संख्या कितनी होगी। दिल्ली चुनाव आयोग की वेबसाइट बताती है कि जनवरी 2022 तक दिल्ली में मतदाताओं की संख्या तकरीबन 1.5 करोड़ है। तो ये जो आ आ पा के 15 लाख रोजगार प्राप्त कैडर हैं वो कम से कम 60 से 70 लाख मतदाताओं को खींच लाएंगे। इसीलिए,कांग्रेस भाजपा फिसड्डी हो रहे हैं।*
पांचवा कारण बड़ा विकट है और वो है,पैसे लेकर निगम तो निगम विधायकी तक के टिकट बिकते हैँ। इसमें संगठन पदाधिकारी,प्रभारी,केंद्रीय मंत्री,सांसद तक ये सब एक नेक्सस और कोटरी के लोग हैं। ये बीस बीस सालों से मेहनत कर रहे कार्यकर्ताओं का टिकट काट कर अपनी चरण पादुका धोने वाले गधेड़ों,गधेड़ियों को टिकट दिलवाने के लिए हर कर्म करते हैं। मेरी खुद की जानकारी में ऐसे दस गधे,गधी हैं। फिर पचास से सत्तर टिकट तो बेच ही लेते हैं।
छठवां कारण है,दिल्ली भाजपा के जितने पदाधिकारी हैं,पूँछ उठाओ तो किन्नर निकलते हैं। पूर्ण जनाधारविहीन, ये नेता दिल्ली भाजपा के लिए वो नीलगाय हैं जो सिर्फ फ़सल बर्बाद करती और क्योंकि, पूरे भारत में हर जगह नेतृत्व करने वाले जननेता हैं सिवाय दिल्ली व बिहार के और दोनों राज्यों में इन *”नीलगायों व पंचसितारा नेताओं”* की बदौलत भाजपा का छिछालेदर पिछले बीस वर्षो से हो रहा है। इन दोनों राज्यों में तो पिछले आठ वर्षों से मोदी फोटो ही इनका हनुमान चालीसा है। मुझे तो अंदेशा है की कहीं ये नीलगाय अब जेएनयू , डीयू के चुनाव भी मोदी बाबा की फोटो लगाकर न लड़वा दें विद्यार्थी परिषद को।
भैया,निगम के टिकट बेचना बंद करो, दलबदलुओं की जगह अपने कार्यकर्ताओं को लाओ। कार्यकर्ताओं का सम्मान व उनके जीविकोपार्जन की सोचो। कोठियों,बंगलों में रहने वाले सड़क पर नहीं आते,हमारे मध्यवर्गीय कार्यकर्ता ही आते हैं। अब केजरीवाल से सीखो और दिन रात उसके विज्ञापन,रेवडी की आलोचना करना बंद करो।
अगर इस पर विचार कर कार्यवाही नहीं कि जाएगी तो फिर भाजपा का दिल्ली में वनवास तो चल ही रहा है,निगम भी बीस वर्षीय वनवास योजना का भाग बन जायेगा।
सन्तोष पांडेय
अधिवक्ता
दिल्ली उच्च न्यायालय
०८.१२.२०२२