*गुलाम नबी हुए आजाद*
अतीत में राजनीति का अर्थ मात्र देश सेवा हुआ करता था, परन्तु वर्तमान समय में राजनीति का अर्थ अधिकांशतया स्वहित ही प्रमुख होता जा रहा है। किसी भी नेता का एक पार्टी से दूसरी पार्टी में आना-जाना अब एक साधारण बात हो गई है, क्योंकि राजनीति अब जनसेवा के स्थान पर व्यवसाय बन चुकी है और जिस पार्टी का व्यवसाय अच्छा चल रहा होता है, अधिकांश नेता उसी पार्टी में लाभ प्राप्त करने हेतु आतुर रहते हैं। इसके इतर जब कोई नेता 51 वर्षो की दीर्घ अवधि तक सेवा करने के पश्चात, मूल पार्टी को छोड़कर चला जाता है तो, निःसन्देह यह आश्चर्य का विषय है।
देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी, अपनी स्थापना से लेकर आज तक के कार्यकाल में सर्वाधिक निम्न स्तर पर आ चुकी है और वर्तमान में कोई भी ऐसा नेता दृष्टिगत नहीं हो रहा है जो कांग्रेस के डूबते जहाज को बचा सके। सोनिया जी अपनी उम्र और गिरते स्थास्थ्य कारणों से पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हैं, उनकी संतान राहुल और प्रियंका अपनी राजनीतिक अपरिपक्वता से ग्रसित हैं। अतः श्री गुलाम नबी आजाद का पार्टी की सदस्यता से त्यागपत्र देना कोई आश्चर्य का विषय नहीं हैं। विगत कुछ वर्षों से कई वरिष्ठ एवं जुझारू नेता, कांग्रेस पार्टी की कार्यप्रणाली से अत्यन्त असन्तुष्ट थे और इस कारण पार्टी में विस्फोट होना निश्चित था। परिणामस्वरूप इस पार्टी के विभिन्न वरिष्ठ नेताओं ने अपना राजनीतिक भविष्य अन्य स्थानों पर बनाने का निर्णय लिया, यथा कपिल सिब्बल, सपा के समर्थन से सांसद बन गए, ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में अपना स्थान बना चुके हैं और राजस्थान से सचिन पायलेट भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के निर्णयों से बहुत अधिक संतुष्ट नहीं है। इसी प्रकार पार्टी के बहुत सारे नेता अपना राजनीतिक भविष्य सुरक्षित करने हेतु अवसर की प्रतीक्षा में हैं। उन्हें जब भी कोई उचित अवसर मिलेगा, वे तुरन्त पार्टी छोड़कर चल देंगे।
गुलाम नबी आजाद का कश्मीर के अतिरिक्त अन्य कहीं कोई जनाधार नहीं है, परन्तु जैसा कि वे घोंषणा कर रहें हैं कि नई पार्टी का गठन करेंगे, ऐसे में वो औवेसी की भांति, मुसलमान जनता का कुछ प्रतिशत वोट बाटने में अवश्य सफल होंगे, जिसका अप्रत्यक्ष लाभ भाजपा को ही प्राप्त होगा। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव अब अधिक दूर नहीं हैं, इसके पूर्व कई राज्यों में विधानसभा चुनाव भी होने है। ऐसे में यदि कांग्रेस का विघटन होता है तो विघटनकारी को लाभ मिले अथवा ना मिले, परन्तु ये स्थिति भाजपा के लिए अत्यन्त ही लाभकारी सिद्ध होगी।
गुलाम नबी आजाद जिनका जनाधार भी बहुत सीमित है, चूंकि वे गाँधी परिवार के निकटस्थ माने जाते थे और पुराने कांग्रेसियों में भी उनका सम्मान है, इसलिए आशा है कि वे अपने प्रभाव से और भी पुराने नेताओं को पार्टी छोड़ने के लिए प्रेरित करेंगे। इस प्रकार के अधिकांश नेता सम्भवतया कांग्रेस को तो नुकसान कम पहुँचाएगे, क्योंकि कांग्रेस के पास खोने का कुछ नहीं है, परन्तु भाजपा की वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की राह आसान अवश्य बना देंगे। भाजपा भी यही चाहती है कि ये नेता अपनी पृथक छोटी-छोटी पार्टी स्थापित करें, जिससे भाजपा विरोधी वोटरों के इधर-उधर बंट जाने से भाजपा के भविष्य की राह आसान हो जाएगी।
*योगेश मोहन*