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शुद्ध पानी का हक दिलाने की सरकारी मुहिम

ललित गर्ग
जल मनुष्य के जीवन को वह अहम हिस्सा है जिसके बिना इंसान अपने जीवन के सफर को पूर्ण नहीं कर सकता है। यानी जल के बिना जीवन संभव नहीं है। प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति उपेक्षा एवं उदासीनता का परिणाम है कि इंसान को पीने का स्वच्छ जल मिलना दुर्लभ होता जा रहा है। व्यक्ति के जीवन जीने के लिए पानी की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है वह अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति को तभी पूरा कर सकता है जब उनके जीवन में पानी की सुविधा उपलब्ध है। निरन्तर जटिल होती स्वच्छ जल की समस्या को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने जल जीवन मिशन स्कीम शुरू की है। इस स्कीम को शुरू करने का मुख्य लक्ष्य यह है की ग्रामीण क्षेत्र में निवास करने वाले 50 प्रतिशत से अधिक ऐसे परिवार है जिन्हें पानी की समस्याओं से जूझना पड़ता है। पानी प्राप्त करने के लिए उन्हें दूर क्षेत्रों में कई मीलों पैदल जाना पड़ता है जिससे उन्हें कई परेशानियों से गुजरना पड़ता है। इन सभी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने जल जीवन मिशन स्कीम के तहत सभी नागरिकों तक घर-घर में पानी की सुविधा पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। गोवा देश का पहला राज्य और दमन दीव एवं दादरा नगर हवेली पहला केंद्र शासित प्रदेश बन गया है, जहां के हर घर को स्वच्छ जलापूर्ति नल से हो रही है। जल्द ही इस सूची में और राज्यों के जुड़ने की संभावना है। दरअसल भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार जल जीवन मिशन के तहत तेलंगाना, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पुदुचेरी और हरियाणा के भी 100 प्रतिशत ग्रामीण घरों को नल के जरिये साफ पानी का कनेक्शन दिया जा चुका है, सरकार की यह पहल अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार किया है कि स्वच्छ पेयजल को हासिल करना जिंदगी की मूलभूत शर्त है और अनुच्छेद 21 के तहत यह केन्द्र एवं राज्य सरकारों का कर्तव्य है कि नागरिकों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराए। पर इस अधिकार को कैसे उपलब्ध कराया जाए? पहली बात तो यह है कि शहरी जल व्यवस्था और ग्रामीण जल शोधन मे निवेश कौन करेगा? निजी क्षेत्र या सार्वजनिक क्षेत्र? इसे लेकर निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के उत्तरदायित्व की बेवजह बहस चलाई जाती है। ऐसी बहस आमतौर पर एक ज्यादा महत्वपूर्ण सवाल से ध्यान हटा देती है कि जल परियोजनाओं को कैसे बनाया और कामयाब किया जाए। लेकिन मोदी सरकार ने इस समस्या को बड़ी गंभीरता से लिया है और जल जीवन मिशन स्कीम शुरु की है और इसके लिये 350 लाख करोड़ रूपए का बजट निर्धारित किया गया है। सरकार के आम जनजीवन से जुड़े लक्ष्यों में जनभागीदारी की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है, इस बात को ध्यान में रखते हुए लायंस क्लब नई दिल्ली अलकनंदा ने करीब 45 लाख रूपयों के आरओ के साथ वाटर कूलर स्थापित किये हैं। क्लब ने दिल्ली की सबसे अधिक पीड़ित आबादी यानी गरीब आबादी के बच्चों के एमसीडी स्कूलों की पहचान करके स्वच्छ शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने की पहल की थी, ऐसे ही अनेक जनकल्याणकारी स्वयंसेवी संगठन गरीब लोगों के लिये शुद्ध जल उपलब्ध कराने के कार्य कर रहे हैं।
सुरक्षित पेयजल के लिए कुछ हद तक तो जन-अनुदान के साथ सरकारी सब्सिडी की जरूरत होगी ही। खुशकिस्मती से ऐसी सब्सिडी की तरह-तरह के मॉडल दुनियाभर में मौजूद हैं, जो हमारे लिए खासे महत्वपूर्ण हो सकते हैं। एक तो इसके लिए दोहरी मूल्य प्रणाली अपनाई जा सकती हैं, जिसमें एक मूल्य तो एक निश्चित मात्रा तक जरूरी पानी के लिए होगा और उससे ज्यादा इस्तेमाल होने पर ज्यादा मूल्य लगेगा। एक और तरीका यह है कि जो गरीब हैं, उन्हें इसके लिए सीधे सब्सिडी दी जाए। लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में यह चुनौती कुछ अलग तरह की है। यहां मुख्य समस्या पानी के स्रोत की नहीं है, बड़े पैमाने पर उसे स्वच्छ बनाने की है। यहां पाइप के नेटवर्क के बजाए आपूर्ति के दूसरे साधन ज्यादा उपयुक्त हो सकते हैं और पानी की सफाई तकनीक की नहीं, संगठन की समस्या है। पानी को बैक्टीरिया, आर्सेनिक और फ्लोराइड से मुक्त करने के लिए दुनियाभर में तरह-तरह की तकनीक उपलब्ध हैं। समस्या पानी से अशुद्धियां हटाने की नहीं, बल्कि ऐसी सामाजिक व्यवस्था बनाने की है, जिसके तहत इस तकनीक में निवेश और देखरेख हो सकें।
स्वच्छ जल की उपलब्धता न होना एक बड़ी समस्या है, जल प्रदूषण एवं पीने के स्वच्छ जल की निरन्तर घटती मात्रा को लेकर बड़े खतरे खड़े हैं। धरती पर जीवन के लिये जल सबसे जरूरी वस्तु है, जल है तो जीवन है। जल ही किसी भी प्रकार के जीवन और उसके अस्तित्व को संभव बनाता है। जीव मंडल में पारिस्थितिकी संतुलन को यह बनाये रखता है। पीने, नहाने, ऊर्जा उत्पादन, फसलों की सिंचाई, सीवेज के निपटान, उत्पादन प्रक्रिया आदि बहुत उद्देश्यों को पूरा करने के लिये स्वच्छ जल बहुत जरूरी है। जल-संकट के प्रति सचेत करते हुए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर-संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने हाल ही में जल का भंडारण बढ़ाने की बात कहीं। उन्होंने कहा कि जल को जितना बचा सकते हैं बचाएं और जितना बढ़ा सकते हैं बढ़ाएं क्योंकि जल पृथ्वी की संचित संपत्ति है। हम जल को कैसे स्टोर कर सके, इसका उपाय करना चाहिए।
जल-समस्या के समाधान के लिये अपनाये जाने वाले सभी तरीके उपयुक्त ही हो, जरूरी नहीं है। मसलन टयूबवेल को ही लें। पानी की समस्या से निपटने की इस तरह की रणनीति दरअसल जल व्यवस्था के विकास में बाधा ही बनती है। पर्यावरण की नजर से देखें तो यह बहुत अच्छी चीज नहीं है। इससे भूमिगत जल का जरूरत से ज्यादा दोहन होता है। इसके बाद धरती में लवण का अनुपात बढ़ जाता है। शहर के लिए भी इससे तमाम समस्याएं खड़ी होती हैं। लेकिन जिस इमारत में इसे लगाया जाता है उसके लिए यह जरूर फायदेमंद होता है। एक बार जब इसे लगा दिया जाता है तो इससे पर्याप्त पानी मिल जाता है। लेकिन किसी भी नए शहर की पानी की समस्या से निपटने के लिए इससे बेहतर विकल्प की जरूरत होगी जो लोगों का पानी भी दे और फायदे का सौदा भी साबित हो।
जल प्रदूषण एवं पीने लायक जल की घटती मात्रा दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती बन चुका हैं। पर्यावरण से जुड़ी इस तरह की समस्याओं एवं खतरों को लेकर वैश्विक स्तर पर चिन्ता तो जाहिर की जाती है, मगर अब तक इस दिशा में कोई खास समाधान की पहल नहीं हो सकी है। परिणाम है कि बढ़ती जनसंख्या के कारण तेज औद्योगिकीकरण और अनियोजित शहरीकरण बढ़ रहा है जो बड़े और छोटे पानी के स्रोतों में ढेर सारा कचरा छोड़ रहें हैं जो अंततः पानी की गुणवत्ता को गिरा रहा है। जल में ऐसे प्रदूषकों के सीधे और लगातार मिलने से पानी में उपलब्ध खतरनाक सूक्ष्म जीवों को मारने की क्षमता वाले ओजोन के घटने के कारण जल की स्व-शुद्धिकरण क्षमता घट रही है। इससे जल की रसायनिक, भौतिक और जैविक विशेषताएं बिगड़ रही है जो पूरे विश्व में सभी पौड़-पौधों, मानव और जानवरों के लिये बहुत खतरनाक है। जल बचाने के मुख्य साधन है नदी, ताल एवं कूप। इन्हें अपनाओं, रक्षा करो, अभय दो, इन्हें मरुस्थल के हवाले न करो। अन्तिम समय यही तुम्हारे जीवन और जीवनी को बचायेंगे। ख्यात पर्यावरणविद अनुपम मिश्र तो ‘अब भी खरे है तालाब’ कहते कहते स्वर्गस्थ हो गये।
पशु और पौधों की बहुत सारी महत्वपूर्ण प्रजातियाँ जल प्रदूषकों के कारण खत्म हो चुकी है। ये एक वैश्विक समस्या है जो विकसित और विकासशील दोनों देशों को प्रभावित कर रही हैं। खनन, कृषि, मछली पालन, स्टॉकब्रिडींग, विभिन्न उद्योग, शहरी मानव क्रियाएँ, शहरीकरण, निर्माण उद्योगों की बढ़ती संख्या, घरेलू सीवेज आदि के कारण बड़े स्तर पर जल एवं जलस्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। पूरे विश्व के लिये शुद्ध जल की मात्रा का लगातार घटना एवं जल प्रदूषण एक बड़ा पर्यावरणीय और सामाजिक मुद्दा है। यह अपने चरम बिंदु पर पहुँच चुका है। इन संकटों से घिरती विश्व मानवता को बचाने के लिये खेती के धंधे की पद्धति में बदलाव भी करना पड़े तो करना चाहिए। हमें अधिक से अधिक जैविक खेती करने की आवश्यकता है। जल का भंडारण अधिक से अधिक धरती पर किया जाए। पानी की खपत कैसे कम हो, कम पानी में हमारा काम हो, इस पर जोर देना जरूरी है। राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी), नागपुर ने चेताया है कि नदी जल का 70 प्रतिशत बड़े स्तर पर प्रदूषित हो गया है।

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