आर.के. सिन्हा
कोरोना के कारण दो-तीन सालों तक जन धड़कन के पर्व होली का रंग फीका सा पड़ने लगा था। होली मिलन समारोहों पर भी विराम सा लग गया था। पर इस बार लगता है कि देश रंगोत्सव को पुराने अंदाज में मनाने जा रहा है। होली के रंग फिजाओं में बिखरे हैं। कहीं गुलाल और गुजिया की खुशबू को तो कहीं दही बड़ा और मालपुआ के अनोखे स्वाद को हर तरफ महसूस किया जा रहा है। होली मिलन समारोहों की भी वापसी हो चुकी है। इनके आयोजन लखनऊ से रायपुर, मुम्बई तथा पटना से दिल्ली वगैरह में सभी जगह हो रहे हैं। सब एक-दूसरे से गले मिल रहे हैं। गिले-शिकवे भुलाए जा रहे हैं। यही मौका है कि जब विभिन्न दलों के तमाम राजनीतिक नेता भी अपने मतभेद भुलाकर एक साथ होली खेलें और राष्ट्र निर्माण में लग जाएं। आखिर यह देश तो सबका है। राष्ट्र के प्रति जिम्मेवारी भी सबकी ही है I
एक दौर था जब होली पर अटल बिहारी वाजपेयी के आवास पर भव्य होली मिलन का कार्यक्रम आयोजित होता था। उसमें तमाम राजनीतिक कार्यकर्ता, नेता, लेखक, पत्रकार, कवि आदि भाग लेते थे। अटल जी खुद सब अतिथियों को गुलाल लगाया करते थे। उनमें देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी भाग लेते थे। वे तब भाजपा के संगठन से जुड़े हुए थे। इस अवसर पर सुस्वादु गुजिया और स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था रहती थी। अटल जी के घर पर होने वाले होली मिलन की सारी व्यवस्था उनके आत्मीय सहयोगी शिव कुमार पारीख जी किया करते थे। वे अटल जी के घर के स्थायी चेहरा थे। वे अटल जी के 111 साउथ एवेन्यू, 6 रायसीना रोड, फिर लोक कल्याण मार्ग स्थित प्रधानमंत्री आवास और अंत में 6-ए कृष्ण मेनन मार्ग के घरों में सुबह से देऱ शाम या रात तक रहा करते थे। अटल जी राजधानी के इन सब घरों में लगभग छह दशकों तक रहे थे। अटल जी के घरों में होने वाले कवि सम्मेलनों और होली मिलन के आयोजन में शामिल होने के लिए आने वाले अतिथियों के लिए शिव कुमार पारीख जी चांदनी चौक के घंटे वाले या गोल मार्केट के बंगला स्वीट हाउस की बालूशाही अवश्य मंगवाते। अटल जी का व्यक्तित्व भी तो बेहद उदार और विराट था। वे सर्वप्रिय थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के पृथ्वीराज रोड स्थित आवास पर भी होली बड़े प्रेम से खेली जाती रही है। आडवाणी जी के घर भी होली का रंग शालीनता के दायरे में ही रहता है। आडवाणी जी जब राजधानी के पंडारा पार्क में रहते थे तब वहां पर भी होली कायदे से मनाई जाती थी। होली पर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सरकारी आवास 1, सफदरजंग रोड के गेट भी सबके लिए खुल जाते थे। इंदिरा गांधी मेहमानों को स्वादिष्ट मिठाइयां खिलवाती थीं। पर 1980 के बाद इंदिरा जी के होली मिलन पहले की तरह भव्य नहीं रहे गए थे सुरक्षा कारणों के चलते। तब तक पंजाब में आतंकवाद ने अपनी जड़े जमा ली थीं। इंदिरा जी के होली मिलन की व्यवस्था उनके सचिव आर.के.धवन देखते थे। धवन साहब से पहले इंदिरा जी और उससे भी पहले उनके पिता नेहरू जी के तीन मूर्ति आवास पर होली मिलन हरिवंश राय बच्चन और तेजी बच्चन की देखरेख में होते थे। राजधानी में लालू यादव तथा राम विलास पासवान के होली मिलन को लेकर भी बहुत उत्साह का वातावरण बन जाया करता था। अब राजनीतिक नेताओं के होली मिलन समारोहों की सिर्फ यादें ही शेष हैं। उन्हें फिर से आयोजित किया जाना चाहिए। होली अपने आप में एक असाधारण पर्व है। यह जाति, धर्म, संप्रदाय की दीवारों को ध्वस्त करता है। इसके मूल में समतावादी समाज की परिकल्पना है। देश के राष्ट्रपति के रूप में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने सन 2003 में नगर निगम और राष्ट्रपति भवन परिसर के स्कूलों के लगभग 1200 बच्चों के साथ होली मनाई थी। डॉ. कलाम लगभग दो घंटे तक इन बच्चों के साथ रहे। उन्हें शुभकामनाएं दी और उनसे शुभकामनाएं ली। देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद भी होली पर राष्ट्रपति भवन के स्टाफ के साथ होली खेलते थे और उन्हें अपने वेतन के पैसे से ही उपहार दिया करते थे। डॉ राजेन्द्र प्रसाद जैसे नेता बार-बार नहीं जन्म लेते। उन्होंने 11 मई 1950 को सोमनाथ मंदिर में तमाम विरोधों के बावजूद शिवलिंग की मंदिर परिसर में स्थापना की थी। उनके तब सोमनाथ मंदिर में जाने का प्रधानमंत्री नेहरू ने भी घोर विरोध किया था। जो लोग राजेन्द्र बाबू के सोमनाथ मंदिर में जाने को बार-बार मुद्दा बनाते हैं, उन्हें पता होना चाहिए उन्हीं की पहल पर राष्ट्रपति भवन परिसर के भीतर मंदिर और मस्जिद दोनों का ही निर्माण हुआ था। चूंकि राष्ट्रपति भवन से सटे ही हैं नॉर्थ एवेन्यू चर्च और गुरुद्वारा रकाबगंज, इसलिए इनके राष्ट्रपति भवन परिसर में निर्माण की जरूरत महसूस नहीं की गई होगी। जिस वायसराय हाउस का डिजाइन एडवर्ड लुटियंस ने बनाया था उसमें मंदिर-मस्जिद के लिए कोई जगह नहीं थी। राजेन्द्र बाबू होली, दिवाली, ईद, क्रिसमस, बाबा नानक जन्म दिन आदि अवसरों पर राष्ट्रपति भवन के स्टाफ के बच्चों से भी मिलते थे। लोकतंत्र में देश के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति और आम जन के बीच दूरियां नहीं होनी चाहिए। इसलिए यह आवश्यक है कि फिर से होली मिलन के कार्यक्रम होते रहें। उनमें सबकी भागीदारी रहे। सुखद यह है कि इस होली पर होली मिलन समारोहों की सशक्त वापसी हुई है। देश के लगभग सभी शहरों में होली का रंग जम चुका है। कुछ साल पहले तक होली के संबंध में दक्षिण तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में जानकारी बहुत कम थी। पर जब से उत्तर भारत के युवा नौकरी करने के लिए चेन्नई,हैदराबाद, पुणे तथा बैंगलुरू में हर साल हजारों की संख्या में जाने लगे हैं, तब से दक्षिण भारत को भी होली के बारे में घोर दिलचस्पी दिखने लगी है । अब होली सोनपुर और वृन्दावन तक ही सीमित नहीं रहा I यह देश के हर कोने में धूमधाम से मनायी जाती है I देश के अधिकतर भागों में होली की तरह से लोकआस्था के पर्व छठ के संबंध में भी जानकारी भी पहले न के बराबर थी। पर गुजरे बीस- पच्चीस सालों के दौरान स्थितियां बदल गईं I क्योंकि, बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लाखों नौजवान सारे देश में कामकाज के लिए जाने लगे। अब छठ का पर्व दिल्ली से मुंबई तक में सभी जगह बहुत भव्य तरीके से मनाया जाता है। एक समय था जब लोहड़ी तथा करवाचौथ मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली वगैरह में ही मनाए जाते थे। इन्हें अखिल भारतीय पहचान मिली बॉलीवुड फिल्मों से। बहरहाल, होली के रंगों से रंगने के लिए आज सारा देश तैयार है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)