आर.के. सिन्हा
आजकल ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा और अमेरिका में कुछ भटके हुए सिख नवयुवक न जाने किस भ्रम में काल्पनिक खालिस्तान की मांग करते हुए दिखाई देने लगे हैं। इन पर गुस्से से ज्यादा तरस ही आता है। अपने महान गुरुओं की धरती पंजाब और भारत को लेकर ये जिस तरह से अनाप-शनाप बकवास कर रहे होते हैं, वह बेहद अशोभनीय होती है। वे यह समझ लें कि अब भारत कभी भी विभाजित नहीं होगा। भारत के बंटवारे का ख्वाब देखने वालों को निराशा ही होगा। इस बिन्दु पर 140 करोड़ भारतीय एक हैं। कहीं कोई विवाद नहीं है। अब वह जमाना गया जब अपनी-अपनी नेतागिरी चमकाने और प्रधानमंत्री बनने के लिए नेहरू और जिन्ना ने हिंदुस्तान-पाकिस्तान बाँट लिया I अब वैसा होने से रहा I
काश, खालिस्तान के पक्ष में नारेबाजी करने वाले अजय बांगा और गुनीत मोंगा से कुछ प्रेरणा ले लेते। ये दोनों भी कट्टर सिख हैं और इनकी हालिया उपलब्धियों पर सारा देश गर्व कर रहा है। बांगा उस वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं, जिसके 189 सदस्य देश हैं, जिसमें 170 देशों के नागरिक संसार के 130 शहरों में काम कर रहे हैं। बेशक, गरीबी को खत्म करने तथा विकास का रास्ता दिखाने वाले वर्ल्ड का प्रमुख बनने जा रहे बांगा की उपलब्धि पर सारा भारत खुश है। अजय बांगा एक शूरवीर के पुत्र हैं। उनके पिता हरभजन सिंह बांगा भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट जनरल पद से रिटायर हुए थे। उन्होंने 1962, 1965 और 1971 की जंगों में शत्रु सेना के दांत खट्टे कर दिए थे। अजय बांगा का परिवार बहुत आस्थावान सिख परिवार है।
अजय बांगा बेहतरीन मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं। उनके नेतृत्व में ही “मास्टर कार्ड” नाम की कंपनी ने अपनी निकटतम प्रतिद्वंद्वी “वीजा कार्ड” को पछाड़ा था। अजय बांगा ने मास्टर कार्ड को मोबाइल पेमेंट के क्षेत्र में पहले नंबर पर पहुंचाया। वे हिंदी, पंजाबी, इंग्लिश के अलावा गुजराती भी बोल लेते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की 2015 की अमेरिका यात्रा के समय उनसे फॉर्च्यून-500 कंपनियों के सीईओज मिले थे। उनमें अजय बांगा भी थे। बांगा को बैंकिंग और फाइनेंस की दुनिया का एक्सपर्ट माना जाता है। बांगा को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी ट्रेड पॉलिसी से जुड़ी सलाहकार टीम में लिया था। अब वे वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष बनने जा रहे हैं। जाहिर है कि उनकी सलाह से सदस्य देशों को लाभ होगा। अजय बांगा वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष पद पर रहते हुए उन देशों के लिए विशेष योजनाएं लाएंगे जो विकास की दौड़ में बहुत पिछड़ गए हैं।
अगर बात गुनीत मोंगा की करें तो उन्हें उनकी फिल्म ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स‘ के लिए ऑस्कर सम्मान मिला है। ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स‘ को बेस्ट डॉक्यूमेंट्री शॉर्ट कैटेगरी में नॉमिनेट किया गया था। गुनीत मोंगा के बारे में देश को तब कायदे से पता चला जब उन्होंने “लंच बॉक्स”, “मानसून शूट आउट” तथा “गैंग्स ऑफ वासेपुर” जैसी फिल्मों को प्रोड्यूस किया। ये सभी फिल्में हिट हुईं और इन्हें दर्शकों तथा समीक्षकों का समान रूप से प्यार मिला।
पहले वर्ल्ड बैंक के अध्यक्ष बन रहे अजय बांगा और और फिर गुनीत मोंगा ने देश का नाम रोशन किया है। यह सच है कि अजय बांगा अब अमेरिकी नागरिक बन चुके हैं। पर उन्हें अपने भारतीय मूल का होने पर गर्व है। वे बार-बार भारत आते हैं। वे भारत से दूर जा भी नहीं सकते। आखिर यही उनका देश है। उनकी मातृभूमि है I
उधर, मूल रूप से दिल्ली की रहने वाली गुनीत मोंगा अब मुंबई में रहती है। गुनीत मोंगा जब आस्कर पुरस्कार लेने गई तब उन्होंने साड़ी पहनी हुई थी और उन्होंने कहा कि उन्हें भारतीय होने पर नाज है।
जिन खालिस्तानियों ने लंदन में भारतीय तिरंगे का अपमान किया उन्हें नींद कैसे आती होगी। वे तो अब अमर शहीद भगत सिंह को भी गालियां दे रहे हैं। उन्हें डूब के मर जाना चाहिए। उनके लिए मरने का इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं हो सकता। जिस भारत माता के प्रति हरेक हिन्दुस्तानी अपनी जान का नजराना देने के लिए तैयार रहता है, वे उसके लिए अपशब्द बक रहे हैं। वे भारत में आकर क्यों नहीं भारत माता और भगत सिंह के लिए अपशब्दों का प्रयोग करते। एक बार करके देखें तो सही। उन्हें तब जन्नत की हकीकत को सामने से देखने का मौका मिलेगा। पर ये तो कायर हैं।
भारत में करोड़ों सिख जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में श्रेष्ठ काम कर रहे हैं। देश के प्रमुख समाजसेवी जितेन्द्र सिंह शंटी कहते हैं कि उनका जीवन भारत माता को समर्पित है। वे खालिस्तानियों को ललकारते हैं। शंटी लगभग तीन दशकों से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करवा रहे हैं। उन्होंने कोविड काल में अपने हाथों से दर्जनों अभागे लोगों का अंतिम संस्कार करवाया था। उस समय उन्हें और उनके परिवार के कई सदस्यों को कोविड हो गया था। पर वे हार मानने वाले कहां थे। वे कोविड को हराने के बाद फिर से सड़कों पर उतर गए थे। पद्मश्री पुरस्कार विजेता शंटी ने रक्तदान का सैकड़ा भी बना लिया है। इस बीच, अर्पणा कौर भारतीय समकालीन कला जगत की सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनकी कूची 1984 के सिख विरोधी दंगों और वृन्दावन की विधवाओं पर खूब चली है। अर्पणा कौर के चित्रों में बुद्ध, बाबा नानक और सोहनी-महिवाल भी मिलेंगे। उनके चित्रों में स्त्री पात्र खूब मिलते हैं। उन पर सारा भारत गर्व करता है।
करीब दो साल पहले बिजनेस की दुनिया से रिटायरमेंट ले लेने वाले पीआरएस ओबेरॉय से सारा देश परिचित है। ओबरॉय की निगरानी में राजधानी का ओबराय इंटरकांटिनेंटल होटल 1965 में बना था। उन्हें भारत की होटल इंडस्ट्री का गॉड फादर माना जाता है। मुंबई का दि ट्राइडेंट होटल 26/11 हमले में बर्बाद हो गया था। पर पीआरएस ओबेरॉय ने उसे राख के ढेर से फिर खड़ा किया। खालिस्तान की मांग करने वाले याद रख लें कि ओबराय उन पर थूकेंगे भी नहीं।
भारत की चोटी की सिख हस्तियों की बात होगी तो भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी, भारतीय हॉकी टीम के दो पूर्व कप्तानों क्रमश: हरविंदर सिंह तथा अजीत पाल सिंह का नाम भी लेना होगा। भारत के चौतरफा विकास में सिखों का योगदान अमूल्य रहा है। सारा देश इस सच्चाई को जानता है। बहरहाल, देश को खालिस्तानी तत्वों के साथ किसी भी तरह की रियायत बरतने की जरूरत नहीं है। इन्हें कठोरता से कुचलना होगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)