प्रारंभिक अविश्वास
अक्टूबर के पहले हफ्ते में इजरायल पर हमास के हमले ने तैयारी की गहराई और ऑपरेशन के पैमाने के लिए
एक प्रारंभिक अविश्वास पैदा किया एवं इसकी प्रत्याशित वैश्विक निंदा भी हुई। हमास के खिलाफ इजरायल
का जवाबी हमला मुख्य रूप से गाजा पर केंद्रित था। इन घटनाओं ने भारत में हुए 26/11 के मुंबई हमलों की
यादें ताज़ा कर दी। हमास का नरसंहार 26/11 में पाकिस्तान स्थित लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किए गए हमले से
कई समानता रखता है।
हमास या लश्कर दोनों के आतांकि काफी अच्छी तरह से प्रशिक्षित थें, जिन्होंने एक संप्रभु राष्ट्र पर आक्रमण
किया, दोनों को ऑपरेशन के लिए रसद और खुफिया जानकारी एक क्षेत्रीय शक्ति से प्राप्त था, लक्ष्य स्पष्ट रूप
से निर्दोष नागरिक थें जो अपने राष्ट्रीय त्योहारों के दौरान जश्न मना रहे थें और उद्देश्य एक स्थिर राष्ट्र को युद्ध
के लिए मजबूर करना था। एक और आश्चर्यजनक समानता थी घुसपैठ का तरीका, जो दोनों मामलों में
अत्यधिक परिष्कृत था। खुफिया तंत्र की विफलता को दोनों घटनाओं के दौरान सबसे बड़ी निराशा के रूप में
देखा गया। दोनों ही मामलों में हमला दुस्साहसिक था, जिसमें उनके स्पोंसर्स को छिपाने का कोई प्रयास नहीं
किया गया, ये आक्रामकता, उन्हें बचाने के लिए कुछ अदृश्य सुरक्षा जाल के तत्व को दर्शाता है।
नरसंहार की समानताएं गंभीर रूप से भयावह थीं। आतंकवादियों द्वारा आम लोगों की अंधाधुंध हत्याओं के
साथ बड़े पैमाने पर रक्तपात हुआ। ऑपरेशन बहुत अच्छी तरह से समन्वित दिखाई दिए और अंततः बचने के
लिए बीमा के रूप में बंधकों को लेने की योजना बनाई गई। इस योजना में सुरक्षा बलों के हाथों को बांधने के
लिए विदेशी सरकारों का जल्द से जल्द हस्तछेप करना शामिल था। वर्ष 2008 के मुंबई हमलों के मामले में
बड़ी संख्या में विदेशी नागरिकों वाले स्थानों को निशाना बनाने के लिए जानबूझकर प्रयास किए गए थें और
इसरायली समारोह के दौरान भी ऐसा ही हुआ था। मुंबई हमलो की विफलता का श्रेय भारतीय सुरक्षा
एजेंसियों की त्वरित और कड़ी प्रतिक्रिया को जाता है।
इजरायली जवाब
7 अक्टूबर 2023 को हमास का अभूतपूर्व हमला बिल्कुल भी आकस्मिक नहीं था। विस्तृत योजना, कमजोर
लक्ष्यों की पहचान, करीबी टोह लेना, इजरायली खुफिया के मध्य से काम करने और उनके जवाबी हमले के
लिए तैयार रहना। हमास जैसे संगठन के लिए अपनी सीमित क्षमता के साथ पूरी योजना तैयार करना भी
संभव नहीं था। निश्चित रूप से, इसमें हमास के लिए सहानुभूति रखने वाले देशों की खुफिया एजेंसियों की
भागीदारी रही होगी। यह सुनिश्चित करना आवश्यक था कि इजरायल की आंखों को धोखा देने के लिए
प्रत्येक स्तर पर प्रभावी काउंटरइंटेलिजेंस उपाय किए जाये।
ये विशिष्ट कारक थें जिन्होंने इजरायल को इस चौंकाने वाले हमले में हमास से परे दुसरे राष्ट्रों की भागीदारी
के बारे में आश्वस्त किया। इजरायल का पूरी गंभीरता के साथ स्थिति से निपटने और एक मजबूत जवाबी
हमला शुरू करने का निर्णय एक मजबूत संदेश देने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए था। इजरायल ने
गाजा के अंदर अपने सूत्रों को तुरंत सक्रिय कर दिया, उसने गाजा को घेरते हुए नाकाबंदी को कड़ा करने का
इंतजार किया। इसने समय का उपयोग विशिष्ट खुफिया जानकारी हासिल करने और अपने इरादे के लिए
राजनयिक समर्थन तलाश करने के लिए किया। इजरायल ने हमास गुरिल्लाओं से अपनी खुद की गैर-
पारंपरिक गुरिल्ला रणनीति के साथ लड़ने का विकल्प चुना, जो पारंपरिक युद्धों के लिए प्रशिक्षित एक
नियमित सेना द्वारा पहली बार है।
मूक दर्शक
हमले की ज्यादातर निंदा की गई थी, लेकिन अरब देशों में फिर से कई मूक दर्शक भी दिखें। आश्चर्यजनक
प्रतिक्रिया चीन की ओर से थी, जिसने ‘दो राज्य समाधान’ का उल्लेख किया, जो हमास के हमले के बारे में
चुप रहते हुए फिलिस्तीनी मुद्दे को समर्थन देने के लिए एक बहाना था। ईरान ने हमास की प्रशंसा की और
रूसी विदेशी कार्यालय ने हमले को ‘अमेरिका की मिडिल-ईस्ट नीति की विफलता’ करार दिया।
इस स्थिति को ज्यादातर इजरायल और उसके समर्थकों के लिए एक खतरे के रूप में देखा गया। अमेरिकी
राष्ट्रपति का अचानक इजरायल पहुंचना न केवल संवेदना व्यक्त करने के लिए था, बल्कि इजरायल की
प्रतिक्रिया के लिए अमेरिकी समर्थन व्यक्त करने के लिए भी था। इजरायल को लगातार मानवीय तबाही,
‘अमानवीय’ नाकाबंदी, हिजबुल्ला द्वारा दूसरा मोर्चा खोलने और पड़ोसियों के सैन्य रूप से शामिल होने की
‘खराब’ स्थिति के बारे में याद दिलाया गया।
इजरायल आज जो कुछ भी कर रहा है, वह उन खतरों का भी प्रतिबिंब है जिनके बारे में भारतीय सुरक्षा
एजेंसिओं को भी शायद चिंतित होना चाहिए। भारत के सामने भी ऐसे हालत आ सकते हैं जहाँ नॉन-स्टेट
एक्टर्स द्वारा एक बड़ा आतंकवादी हमला, कुछ वैश्विक निंदा, मानवीय तबाही के लिए चीखें, परमाणु
हैंगओवर और ‘दूसरे मोर्चे’ के खतरे को साथ ले कर बढ़ने वाली जवाबी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़े। ये
परेशान करने वाले परिदृश्य बेहद यथार्थवादी हैं और आज इनमें से अधिकांश विश्व पहले से ही अनुभव कर
रहा है।
सैन्य प्रतिक्रिया
यह उम्मीद करना वास्तव में बहुत अच्छा होगा कि भारत को इस तरह की स्थिति का सामना नहीं करना
पड़े, लेकिन इससे भी बेहतर यह देखना होगा कि भारत इसका सामना करने के लिए अच्छी तरह से तैयार
रहे। अब समय आ गया है कि भारत मानवाधिकार संगठनों से स्पष्टता की मांग करे; निर्दोष नागरिकों और
वर्दीधारी कर्मियों की मानवीय गरिमा और मानवाधिकारों के बारे में क्या है, जिन्हें आतंकवादियों द्वारा
जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा है? इन गैर-राज्य अभिनेताओं की मेजबानी करने वाले देशों पर
जवाबदेही तय करने के लिए वैश्विक समुदाय से प्रतिक्रिया मांगी जानी चाहिए; कि उन्हें सबसे गहरे प्रतिबंधों
के साथ स्वचालित रूप से अंतरराष्ट्रीय प्रणालियों से क्यों नहीं काट दिया जाये? अरब के कुछ देशों से
आतंकवाद पर उनके रुख के बारे में राजनयिक जवाब भी आवश्यक हैं; उन्हें मानवीय तबाही को भूलते हुए
केवल धार्मिक सुविधा के अनुसार ही अपने विचार क्यों व्यक्त करने है?
भारत को आतंकवादियों के साथ बातचीत नहीं करने की अपनी घोषित नीति का भी दृढ़ता से पालन करना
होगा। सभी जवाबी प्रतिक्रियाओं में ‘ट्व फ्रंट’ के खतरों को भी ध्यान में रखना उचित होगा। भारत को इसे
एक कड़वी वास्तविकता के रूप में स्वीकार कर लिया है। यह भारत के लिए भी सही समय है कि वह ऐसी
किसी भी घटना के दौरान सैन्य प्रतिक्रिया को अंजाम देने से पहले अपनी चेकलिस्ट को पूरा करे जिसे वह
आवश्यक और बेहतर समझता है।
अगर ऐसा खतरा सामने आया तो भारत को अपने पक्ष में सबसे अच्छा परिदृश्य प्राप्त करने की सुविधा
शायद न मिले। सैन्य प्रतिक्रिया में देरी के गंभीर नुकसान हो सकते हैं। भारतीय सुरक्षाः एजेन्सिओ को
आवश्यक चेकबॉक्स को प्राथमिकता देनी होगी और बाकी चीजों को आने वाले समय में हल करने के लिए
तैयार रहना होगा। एक स्मार्ट योजना के लिए निश्चित रूप से बुद्धिमान निष्पादन की आवश्यकता होगी। अब
खतरे से दो कदम आगे होना ही व्यवहारिकता है और यही अपेक्षित भी होगा। तथ्य यह है कि एक देश को
अपने संघर्ष को स्वयं संबोधित करना होता है, बाहरी समर्थन सिर्फ अपेक्छित हो सकती है अनिवार्य नहीं!
- रवि श्रीवास्तव
(लेखक, सुरक्षा और भू-राजनीति में अनुभवी है, राष्ट्रीय प्रकाशनों में उनके आर्टिकल्स नियमित रूप से प्रकाशित किये
जाते है। भू-रणनीतिक मामलों पर केंद्रित उनके आर्टिकल्स को लोकप्रिय ब्लॉग साइट newsanalytics.co.in पर पढ़
सकतें है।)