चीन को औकात बताई
आसियान सम्मेलन में
आगामी 25 जनवरी को राजधानी में आयोजित होने वाले भारत-आसियान शिखर सम्मलेन की मेजबानी करके भारत दो बड़े हित साधना चाहेगा। पहला, भारत-आसियान देशों के आपसी और व्यापारिक संबंधों को नई बुलंदियों पर लेकर जाना। दूसरा, इस क्षेत्र में चीन के असर को कम करना।
भारत-आसियान सम्मेलन का एक मकसद चीन को उसकी औकात बताना भी है। ये सम्मेलन ऐसे वक्त पर हो रहा है जब दक्षिण चीन सागर में चीन आक्रामक रवैया अपनाए हुए है और उत्तर कोरिया ने पिछले कुछ महीनों के कई मिसाइल परीक्षण किए हैं। नई दिल्ली में इन मुद्दों पर बात हो सकती है। दरअसल चीन अपने महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्टवन वेल्ट वन रोड के जरिए पूरी दुनिया में दबदबा बढ़ाना चाहता है। इसके अलावा दक्षिण चीन सागर के इलाके में उसका कई पड़ोसी देशों से विवाद है। भारत अब तैयार है आसियान देशों को चीन के दबाव से मुक्ति दिलवाने के लिए।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर तेजी से काम
भारत-आसियान देशों के साथ अपने संबंधों को बेहतर करने के लिए एक्ट ईस्ट पॉलिसी पर तेजी से काम कर रहा है, जिसके तहत सांस्कृतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, रणनीतिक और सामरिक संबंधों को बेहतर बनाने पर ज़ोर है।
दरअसल आसियान देशों के साथ भारत के रिश्तों के 25 साल पूरे होने के मौके पर सभी 10 आसियान देशों के प्रमुख भारत आ रहे हैं। 25 जनवरी को दिल्ली में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में भारत आसियान देशों के साथ अपने संबंधों को नई बुलंदियों पर ले जाने का विस्तृत प्रस्ताव रखेगा। सम्मेलन के अगले दिन यानी 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस की परेड में इस बार एक राष्ट्राध्यक्ष नहीं बल्कि 10 देशों के राष्ट्राध्यक्ष मुख्य अतिथि होंगे। देश के गणतंत्र दिवस पर एक साथ इतने अधिक राष्ट्राध्यक्ष कभी मौजूद नहीं रहे हैं। 1974 के बाद पहली बार एक से ज्यादा मुख्य अतिथि गणतंत्र दिवस समारोह में हिस्सा ले रहे हैं। इससे पहले 1968 और 1974 में ही ऐसा हुआ था जब गणतंत्र दिवस के मौके पर देश ने एक से ज्यादा मेहमानों की मेज़बानी की थी। 1968 में यूगोस्लाविया और सोवियत संघ तत्कालीन राष्ट्राध्यक्ष मुख्य अतिथि थे। जबकि 1974 में यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति के साथ श्रीलंका की प्रधानमंत्री सिरिमाओ भंडारनायके आई थीं। इस बार इतिहास रचा जा रहा है।भारत- आसियान सम्मेलन को सफल बनाने के क्रम में कुछ समय पहले विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तीन आसियान देशों थाईलैंड, इंडोनेशिया और सिंगापुर भी गईं थी।
इतिहास धार्मिक- सांस्कृतिक संबंधों का
दरअसल भारत के दस आसियान देशों, जिसमें इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, सिंगापुर, कंबोडिया, म्यांमार, थाईलैंड, ब्रुनेई एवं लाओस जैसे देश शामिल हैं, से धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों का पुराना इतिहास है। इनमें सेअधिकतर देशों से भारत हिन्दू और बौद्ध धर्मों के चलते अपने को करीब पाता है। इन देशों से हर साल लाखों बौद्ध पर्यटक भारत भी बौद्ध की वजह से आते हैं। भारत को इस अवसर पर ये प्रयास करने होंगे ताकि इन आसियान देशों से हमारे इधर अधिक बौद्ध पर्यटक आएं। अगर बात थाईलैंड की करें तो वहां पर हर साल लाखों बौद्ध देशों से पर्यटक पहुंचते हैं। थाईलैंड में प्रति वर्ष लगभग 80 लाख पर्यटक पहुंच रहे हैं। इनमें से अधिकतर भगवान बौद्ध से जुड़े मंदिरों के दर्शन करने के लिए जाते हैं। क्या भारत में इतनी संख्या में पर्यटक बौद्ध से संबंधित तीर्थ स्थलों का भ्रमण करते हैं? नहीं। भारत में मुश्किल से 10 लाख पर्यटक भी बौद्ध सर्किट नहीं पहुंचते।
यूं तो भारत की चाहत है कि दुनियाभर में फैले 50 करोड़ बौद्ध धर्म के अनुयायियों को भारत लाया जाए। बौद्ध अनुयायियों का गौतम बौद्ध की जन्मस्थली भारत को लेकर आकर्षण स्वाभाविक है। भारत को थाईलैंड, म्यांमार, वियतनाम, कंबोडिया, सिंगापुर जैसे आसियान देशों के पर्यटकों को भारत खींचना होगा। भारत इन पर्यटकों को बोधगया-राजगीर-नालंदा सर्किट में विशेष रूप से लेकर आ सकता है। जाहिर है किथाईलैंड के बौद्ध मंदिरों में आने वाले पर्यटकों की अपेक्षा हमारे यहां बेहद कम बौद्ध पर्यटक आते हैं। थाईलैंड के बौद्ध मंदिरों में सैकड़ों बौद्ध पर्यटक हर वक्त नजर आते हैं। आखिर वे कौन से कारण है जिनके चलते हम अपने देश में अधिक से अधिक बौद्ध पर्यटकों को खींच नहीं पा रहे हैं? भारत को इस लिहाज से थाईलैंड से सीखना होगा।थाईलैंड में जगह-जगह बौद्ध मंदिर हैं। उनमें भगवान बौद्ध की विभिन्न मुद्राओं में भव्य मूर्तियां हैं।
हिन्दू धर्म जोड़ता इंडोनेशिया से
अगर बात भारत और प्रमुख आसियान देश इंडोनेशिया की करें तो ये साफ है कि दोनों देशों को हिन्दूधर्म जोड़ता है। इंडोनेशिया इस्लामिक देश होने के बाद भी अपनी रामायण पर गर्व करता है। इंडोनेशिया की रामायण दुनिया भर में मशहूर है। इंडोनेशिया चाहता है कि उसकी रामायण का मंचन भारत के अलग-अलग शहरों में साल में कम से कम दो बार हो। दोनों देश मानते हैं कि रामायण के आदान-प्रदान से उनके रिश्ते और भी मजबूत हो सकते हैं। इससे दोनों के पर्यटन को भी फायदा होगा। 90 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले इंडोनेशिया पर रामायण की गहरी छाप है। कहते हैं कि इंडोनेशिया में माना जाता है कि अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढऩा आवश्यक है। यह सच है कि इंडोनेशिया रामायण के साथ जुड़ी अपनी पहचान पर गर्व करता है। जाहिर है, भारत आसियान देशों से हिन्दू और बौद्ध धर्मों के कारण गहराई से जुड़ता है।देखिए एक बात समझ लीजिए कि अब कूटनीति में आपसी व्यापार अहम हो गया है। इसलिए भारत को आसियान सम्मेलन के दौरान इन सभी देशों से अपने व्यापारिक संबंधों को और बेहतर करने के उपाय भी सोचने होंगे। इसलिए ही बिजऩेस समिट भी हो होगा। भारत निश्चित रूप से आसियान देशों के साथ सड़क परिवहन और राजमार्ग, नौवहन और जल संसाधन,वित्त जैसे क्षेत्रों में सहयोग और बढ़ाने को बेकरार है।
मलेशिया में कष्ट झेलते भारतवंशी
आशियान सम्मेलन में मलेशिया के प्रधानमंत्री भी आ रहे हैं। भारत को उनसे मलेशिया में बसे लगभग 30 लाख भारतवंशियों के हितों को लेकर भी बात करनीहोगी। इनमें से अधिकतर के पुरखे तमिलनाडू के पूर्वी तट पर स्थित तंजावुर शहर से हैं। मलेशिया में बसे भारतीयों को अंग्रेज खेतों में काम करने के लिए लेकर गए थे। ये 1830 से 1900 तक की बातें है। इनके दिलों में भारत और तमिलनाडू बसता है। लेकिन, अब ये पूरी तरह से मलेशियाई ही हैं। ये सब चाहते हैं कि कि भारत संसार की महाशक्ति बन जाए। सब धारा प्रवाह तमिल बोलते हैं। यानी अपनी मिट्टी से दूर भी फल-फूल रही है तमिल। पर वहां पर इन्हें कई स्तरों पर दूसरे दर्जें का नागरिक माना जाता है। इस तरफ भारत को मलेशिया के प्रधानमंत्री के साथ सीधी बात करनी होगी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार कहते हैं कि भारतवंशी भारत से बाहर भारत के ब्रांड एंबेसेडर हैं। जाहिर है, इसलिए हमें इनके हितों को लेकर और संवेदनशील होना पड़ेगा।
आसियान की स्थापना को पिछले बरस 50 साल हो गए। इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर और थाईलैंड ने 1967 में आसियान का गठन किया था। उसके बाद इससे कुछ और देश भी जुड़ते गए। अब आसियान मुल्कों को भारत का और अधिक सक्रिय भी साथ मिलने जा रहा है।
(लेखक राज्य सभा सदस्य हैं)