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ज्ञान और सत्य ही एकता के सुनिश्चित आधार हैं

ज्ञान और सत्य ही एकता के सुनिश्चित आधार हैं
:,प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज
हिंदू मुस्लिम एकता या हिंदू ईसाई एकता या हिंदू और किसी की भी एकता का एक मात्र मार्ग वह राजमार्ग है, वह सनातन मार्ग है जो हिंदू और हिंदू की एकता का मार्ग है।
सार्वभौम नियमों के सनातन आधारों पर हिंदुओं के संप्रदाय एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और स्वतंत्र अपनी अपनी उपासना पद्धति और अपनी-अपनी आचार पद्धति सनातन नियमों की मर्यादा में चलाने की सब को स्वाधीनता प्राप्त है और वही उनका अनुशासन भी है।
इसी सार्वभौम अनुशासन और सनातन नियमों के प्रतिपालन में हिंदू हिंदू एकता संभव रही है ।

हिंदू मुस्लिम एकता भी इसी आधार पर हो सकती है।हिन्दू ईसाई एकता का भी यही सुनिश्चितआधार है।

भारत का राज्य सार्वभौमिक नियमों (Universal Laws)अर्थात सत्य ,ऋत(Cosmic order), अहिंसा,अचौर्य और मर्यादा पालन आदि प्रत्येक नागरिक को अनिवार्य घोषित करें।
संविधान की मूल भावना में यह बात रही है।

परंतु कांग्रेस के स्वयं को समाजवादी कहने वाले पापी धड़े ने धीरे-धीरे योजना पूर्वक हिंदू धर्म को नष्ट करने के लिए अंग्रेजों विशेषकर ईसाइयत से प्रेरित अंग्रेजों के निर्देशन या साठगांठ में हिंदू समाज को नष्ट करने का एक व्यवस्थित अभियान चलाया और उसके लिए अल्पसंख्यकों के प्रति दया दिखाते हुए उन्हें विशेषाधिकार देने का पाप किया।
भारत विश्व का एकमात्र राज्य है जहां बहुसंख्यकों के धर्म को कोई अधिकृत राजकीय संरक्षण नहीं है ।हिंदू धर्म को संरक्षण प्राप्त नहीं है और अल्पसंख्यकों को विशेष संरक्षण प्राप्त है।यह पाप मिटना चाहिए।
हिन्दू हिंदू एकता और हिंदू मुस्लिम एकता या ईसाई हिंदू एकता का आधार सार्वभौमिक नियम ही सम्भव है।
इसकी जगह बहुसंख्यक आबादी के धर्म को अधिकृत राजकीय संरक्षण दिए बिना अल्पसंख्यक समुदाय को विशेष राजकीय संरक्षण:- यह कांग्रेस के पापूर्ण धड़े की पापपूर्ण योजनाओं का परिणाम है ।जिससे हिंदू हिंदू एकता भी असंभव हो रही है। फिर हिंदू मुस्लिम एकता या हिंदू ईसाई एकता तो इसमें असंभव ही है ।

इस नीति पर चलते हुए अर्थात हिंदू हिंदू की एकता के सनातन नियमों का अनुशासन और मर्यादा राज्य द्वारा सुनिश्चित नहीं किए जाने के कारण हिंदू हिंदू एकता ही बाधित हो रही है। स्थिति यह हो गई है कि हिंदुओं का एक संप्रदाय हिंदुओं के अन्य संप्रदायों को अपने अनुशासन में लाने को बेचैन है:-
सगुण और निर्गुण या साकार और निराकार जैसे सूक्ष्म दार्शनिक विमर्श को सांप्रदायिक विवादों का रूप दे दिया गया है और मूर्ति पूजा करने वाले और मूर्ति पूजा न करने वाले संप्रदायों में से हर एक दूसरे को पचा जाना चाहता है और अपनी मर्यादा में कोई भी स्थिर नहीं रहता ।

यहां तक कि द्वैत ,अद्वैत ,विशिष्ट अद्वैत,द्वैताद्वैत जैसे गहरे दार्शनिक विमर्श जो केवल शीर्षस्थ दार्शनिकों के बीच शास्त्रार्थ का विषय है उन्हें भी सांप्रदायिक विभेद के रूप में ढाला जा रहा है और एक संप्रदाय अपनी ही मान्यताओं को शेष संपूर्ण हिंदू समाज पर इस तर्क के आधार पर लादना चाहता है कि इससे तो हिंदू समाज का उद्धार हो जाएगा और इसके लिए वह हिंदू समाज के इतिहास के बारे में निराधार झूठ रचता जाता है और फिर बताता है कि हिंदू समाज में हमारे संप्रदाय के अनुशासन का पालन न करने के कारण भयंकर विकृतियां कमजोरियां और बीमारियां आ गई और हिंदू समाज पराधीन हो गया ।
वह कब पराधीन हुआ, किससे पराधीन हुआ ,यह कोई नहीं जानता।
आपस में तरह तरह के टकराव हुए हैं।
उनको पराजय कह देना ,
फिर पराजय का कारण यह बताना कि मेरे संप्रदाय के अनुशासन में संपूर्ण समाज नहीं चल रहा था ,इसलिए पराजित हुआ अर्थात मूर्ति पूजा कर रहा था या वर्ण धर्म का पालन कर रहा था या आश्रम धर्म का पालन कर रहा था आदि आदि कारणों को बताते हुए अपने ही संप्रदाय का अनुशासन संपूर्ण हिंदू समाज पर बलपूर्वक लादने की पाप पूर्ण योजना हिंदू संप्रदायों के कतिपय राजनीतिक महत्वाकांक्षा वाले दुष्टों के मन में आ गई है और इस प्रकार हिंदू हिंदू एकता ही निरंतर बाधित की जा रही है अतः इस पाप पूर्ण दृष्टि और नीति के चलते हिंदू मुस्लिम एकता या हिंदू ईसाई एकता तो असंभव है।
इस मार्ग से हिंदू मुस्लिम या हिंदू ईसाई एकता तो कभी भी संभव ही नहीं है।
मुस्लिमों और ईसाइयों के द्वारा हिंदुओं का पाचन अवश्य सुनिश्चित है।
प्रो रामेश्वर मिश्र पंकज

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