“क्या मूर्ति मंदिरों में भगवान बसते हैं?? जो मूर्ति अपनी रक्षा नहीं कर सकती, वो हमारी रक्षा क्या करेगी..?? जो लोग मंदिरों में मूर्तियों में आस्था नहीं रखते, क्या भगवान उनके नहीं हैं?? क्या मंदिरों में पूजा पाठ करने से ही भगवान मिलते हैं?? क्या भगवान मंदिरों से बाहर नहीं हैं?? जो हमारे ही भीतर हैं, उसे मूर्ति मंदिरों में खोजना, फूल चढ़ाना, कपड़े पहनाना, आरती उतारना… ये सब क्या मात्र एक पाखंड और दिखावा नहीं है…..??”
मंदिरों पर ऐसी “वैज्ञानिक” बातें हमारे विरोधी करते हैं तो समझ भी आता है, लेकिन जब कोई हिन्नू होकर ही ऐसी बातें करता है, और फिर खुद को उन्नत और होशियार भी समझता है, तो केवल आश्चर्य ही होता है….
आज कितने ही हिन्नू बड़े गर्व के साथ ASI की रिपोर्ट सब जगह शेयर करने में लगे हैं कि
“ज्ञानवापी परिसर में हनुमान जी, गणेश जी, विष्णुजी, नंदी जी, शिवलिंग की मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, ज्ञानवापी में 1991 तक शृंगारगौरी की पूजा लगातार होती रही, हिन्नू लगातार यहाँ पूजा करते रहे….”
अब तो सभी का यह कहना है कि सब दूध का दूध और पानी का पानी हो गया, सच वो नहीं जो समय के उतार चढ़ाव के कारण केवल ऊपर से दिख रहा है, सच जमीन के अंदर दबा हुआ है, स्पष्ट हो गया कि ज़मीन किसकी थी और कब्जा किसने किया था, और अब किसको हटाना है और किसको लाना है….
और मान लीजिए कि यदि हमारे पूर्वज भी ऐसी ही “वैज्ञानिक” बातों पर विचार करके ये सब मूर्तियां मंदिर बनवाते ही नहीं, कोई पूजा पाठ नहीं करते, या वे भी निराकार ईश्वर को ही पूज रहे होते, तो क्या आज ASI दूध का दूध और पानी का पानी कर पाती?? क्या आज हिन्नू अपनी जमीन को अपनी ही जमीन साबित कर पाता…??
श्रीराम मंदिर के लिए कोर्ट में कौन कौन से सबूत रखे गए…?? 8000 साल पहले सऊदी अरब में भी सनातन सभ्यता ही थी, यह बात कैसे पता चली?? वहां की खुदाई में यज्ञ वेदिकाओं, स्वस्तिक चिन्ह आदि का मिलना…. हड़प्पा की खुदाई में शिवलिंग प्राप्त हुए तो फिर दुनिया को पता चला कि सबसे पुरानी सभ्यता कौन सी है…
कमल हासन का कहना था कि “राजाराज चोल तो हिन्नू राजा ही नहीं थे”,
लेकिन कोई और नहीं, स्वयं ब्रह्देश्वर महादेव दुनिया को इस बात का प्रमाण देते रहते हैं कि चोल राजा वास्तव में कौन थे…
जब गजनवी ने आक्रमण किया, तब हजारों निहत्थे लोग भी उसका प्रतिरोध करने के लिए संग्राम में कूद पड़े थे, निकटवर्ती गांवों शहरों के अधिकांश लोग सोमनाथ ध्वंस की खबर सुनकर निहत्थे ही दौड़ पड़े थे….
उनकी आस्था उनकी भक्ति उन्हें प्रेरित कर रही थी लड़ने के लिए, और लड़ने की यही जिद सोमनाथ के पुनर्निर्माण का आधार बनी….
और यदि उनकी कोई आस्था होती ही नहीं मूर्ति मंदिरों में, तो क्या उन्हें विशेष फर्क पड़ता..?? उन्हें तब तक फर्क नहीं पड़ता जब तक उन्हीं पर हमला न होता….
हमारी आस्था या भक्ति ही हमारी शक्ति बनती है, अगर इतना सा भी विज्ञान और दूरदर्शिता समझ न आई तो क्या फायदा कुछ भी पढ़ने लिखने का….
हमारे मूर्ति मंदिर या हमारे प्रतीक हमें आने वाले किसी भी खतरे से सावधान करते हैं, जब हमारे प्रतीकों पर हमला होता है, तभी हमें यह समझ आता है कि अब हमारे अहित की साजिश हो रही है….अपने प्रतीकों से कटना या उनमें आस्था न रखना स्वयं की ही हत्या का मार्ग खोलना है….
यदि सच में मूर्ति मंदिरों का इतना महत्व न होता, तो हर आतताई आकर सबसे पहले मूर्ति मंदिरों पर ही हमले नहीं करता, उन्हें नष्ट करके मजार मस्जिदें चर्च विहार आदि न बनवाता… क्या कभी सुना है कि किसी मुगल ने मंदिर तोड़कर अस्पताल बनवाया हो…???
भारत में 3 लाख से ज्यादा मस्जिदें हैं, लेकिन सारा वैज्ञानिक ज्ञान मंदिरों पर ही उड़ेला जायेगा…. साम दाम दण्ड भेद सब तरीके अपनाए जायेंगे कि देखो देखो, वह तो मंदिर में ही मर गया… मूर्ति या भगवान ने उसकी रक्षा नहीं की….
तो भगवान ने तो स्वयं की भी रक्षा नहीं की थी जरा बहेलिए से, क्योंकि यहां शरीर लेकर जिसको भी आना है, उसे किसी न किसी तरीके से जाना भी है, लेकिन बस क्या करके जा रहा है, क्या देकर जा रहा है, बस यही मायने रखता है….
और ये भी स्मरण रहे कि मूर्ति पूजा अर्चना हमारी आस्था है क्योंकि हम उस प्रतिमा या फिर लिंग को ईश्वर मानकर ही पूजा अर्चना करते हैं और ये करके हम हिंदू जीवन शैली और जीवन मूल्यों को जीवित रखते हैं क्योंकि अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार जीने का अधिकार प्राप्त है हमें और इसलिए हम किसी अन्य की मान्यताओं के अनुसार अपनी भक्ति के मार्ग को बदलने वाले नहीं हैं और यही सत्य सनातन धर्म की महानता है और यही उसकी विशिष्टता है जो अनंत अनादि है।
Aditi Singhal जी से साभार एवं संवर्धित