राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने बांध कंपनी टी०एच०डी०सी० पर 50 लाख का जुरमाना ठोका
विष्णुगाड–पीपलकोटी बांध विश्व बैंक के कर्ज से अलकनंदा नदी पर, उत्तराखंड में निर्माणाधीन
प्रैस विज्ञप्ति
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का विष्णुगाड –पीपलकोटी परियोजना के पर्यावरणीय उलंघनो पर आया आदेश बहुत ही महत्वपूर्ण और बांध कंपनियों तथा विश्व बैंक, राज्य सरकार, केंद्र सरकार के लिए सबक है।
विमल भाई vs टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कॉर्पोरेश मुकदमे में आज राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने अपने आदेश में बांध कंपनी पर 50 लाख का जुर्माना तथा PWD पर भी नोटिस जारी किया है।
साल भर से ज़्यादा चली कानूनी लड़ाई में THDC बार बार ये कहती रही की उसने कभी भी नदी में muck नही डाली। परंतु न्यायाधीश माननीय स्वतंत्र कुमार जी की अध्यक्षता में न्यायायिक पीठ ने वादी द्वारा प्रस्तुत किये गए सबूतों के आधार पर THDC को नदी में मक डालने का दोषी माना।
उत्तराखंड में किसीं भी बांध कंपनी के पर्यावरणीय उलंघनो पर इस तरह का ये पहला आदेश और जुर्माना है।
इस आदेश से साबित होता है कि 20 हज़ार करोड़ की नमामि गंगा परियोजना नदियों के संरक्षण के लिए व्यर्थ ही रही है। अब तक उत्तराखंड में गंगा की सहायक नदियों और मुख्य धाराओं के संरक्षण में नमामि गंगा परियोजना विफल रही है।
साल भर से ज्यादा चले इस केस में, THDC विष्णुगाड–पीपलकोटी परियोजना में पर्यावरणीय उलंघनो और विस्थापन तथा पुनर्वास के मुद्दों पर NGT को लगातार यही बताता रहा कि वो इन मुद्दों पर बिल्कुल सही तरीके से काम कर रहा और कोई उलंघन नही किये गए।
माटू जनसंगठन ने शुरू से ही THDC के इन दावों पर सवाल खड़े किए है।
विश्व बैंक के कर्जे से बन रही इस परियोजना में बांध कंपनी और वुश्व बैंक बराबर ये घोषणा करते रहे कि उनकी इस परियोजना में सबसे अच्छी नीतियों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
विमल भाई बनाम THDC केस में कंपनी के वकील लगातार विश्व बैंक और बांध कंपनी के इसी दावे को दोहराते रहे।
हाल ही में माटू जनसंगठन के सहयोग से बनी फिल्म Blind Spot ने बांध कंपनी के इन खोखले दावों की पोल खोल के रख दी थी।सीधे घाटी के लोगो के बयानों पर आधारित इस फ़िल्म पर भी THDC ने प्रशन खड़े किये थे।
आज NGT के इस आदेश से सच सामने आने के बाद हमे और मजबूती मिली है।
ये बात अब सिद्ध हो गयी है कि बांध कंपनियां पर्यावरणीय मानकों का उलंघन करती हैं और प्रसाशन की मिली भगत से ये ऐसा कर पा रही हैं।
यदि केंदीय मंत्रालय बांध कंपनियों को दी गई मंजूरी की निगरानी भली भांति करता तो लोगों को और पर्यावरण को इतना भारी नुकसान नही होता और न ही NGT में जाने की ज़रूरत पड़ती।
किन्तु केंद्र सरकार की लापरवाही से बांध कंपनियां मन माने तरीके से काम करती है और इसका नतीजा आज हम सब के सामने है।
ग्यातव्य है कि उत्तराखंड में जून 15-16, 2013 की आपदा में भी बांध कंपनियों के पर्यावरणीय उलंघनो के कारण आपदा में वृद्धि हुई थी।
विष्णुप्रयाग परियोजना में भी ऐसा ही हुआ। श्रीनगर परियोजना में भी ऐसा ही हुआ। और अब विष्णुगाड पीपलकोटी परियोजना में भी ये सिद्ध हुआ की बांध कंपनियों की मन मानी और नियमों को ताक पर रखने की आदत कितना नुकसान पहुंचा रही है।
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय की मंत्री सु. श्री उमा भारती जी को भी इस आदेश के मद्देनज़र तुरंत गंगा संरक्षण पर सीध ही ध्यान देना होगा। गंगा संरक्षण में बांध कंपनियां बहुत बड़ी बाधा हैं।
मात्र नमामि गंगा के जाप से ही नदियां सुरक्षित नही होंगी अपितु,जहां से गंगा निकलती है वहां से ही गंगा के संरक्षण पर सीधे ध्यान देना ज़रूरी है।नैनीताल ऊच्च न्यायालय का ताज़ा आदेश (20 मार्च 2017) भी इसी ओर इंगित करता है कि नदियों की दशा किस हद तक खराब चल रही है और उन्हें संरक्षण की कितनी ज़रूरत है।
हम राष्टीय हरित प्राधिकरण के इस फैसले पर आभार व्यक्त करते है।—
हमारी राज्य सरकार, केंद्र सरकार और विश्व बैंक से ये मांग है कि वो इस आदेश के मद्देनज़र ना ही सिर्फ विष्णुगाड पीपल कोटि योजना अपितु उत्तराखंड और हिमालय में सभी जल विधुत परियोजना पर अपनी निगरानी तंत्र को मजबूत करे, ताकि नदियों को स्वतंत्र, अविरल और निर्मल बहने दिया जा सके।
विमल भाई , मुरली सिंह भंडारी, अयान जमाल