केंद्र सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों को अपने देश बुलाने और उन्हें खुली छूट देने पर आग्रही दिखाई दे रही है. इस से अपने संस्कृति पर हो सकने वाले अत्यंत बुरे परिणाम से सरकार अनभिज्ञ है ऐसा नहीं लगता. (एकात्म प्रबोध मंडल के प्रतिवेदन के संलग्न अंश देखिए.) फिर भी देश को इसमें क्यों धकेला जा रहा है?
1 एक तरफ हम decolonization की बात कर रहे हैं और दूसरी ओर मानसिक Recolonization के लिए हम स्वयं राजमार्ग तैय्यार कर रहे हैं. इस परस्पर विरोध से हम ना घर के ना घाट के इस उक्ति को चरितार्थ करेंगे.
2 आज की शिक्षा में हम अंग्रेजी माध्यम हटा नहीं पा रहे हैं. वैसे ही विदेशी विश्वविद्यालय उनका पैसा लगाकर भारतीय मानस पर हावी होंगे और वो भी भारतीय लोगों के प्रयास से. फिर विदेशी शिक्षा संस्थान और विदेशियत को निकालना क्या आसान होगा? शायद हम देखते रह जाएंगे.
3 क्या अंतरराष्ट्रीय मंच पर छबी उभारने के लिए समाज हित की अनदेखी हो रही है? क्या कोई गलत धारणा वाले सलाहकार शिक्षा क्षेत्र काम कर रहे हैं?
4 क्या कोई विदेशी लॉबी हावी हो रही है?
5 विश्वभर का ज्ञान हम अवश्य ले लें. जहां आवश्यक वहां उचित भुगतान देकर, प्रज्ञावान लोगों को सादर बुलाकर ज्ञान पाया जा सकता हैं. फिर विदेशियों को दिल, दिमाग और मालिकाना हक क्यों दे रहे हैं? विदेशी चंगुल मे स्वयं जाकर फँसने की आवश्यकता नही.
6 विदेशियों के बिना हमारे शिक्षा क्षेत्र की गुणवत्ता सुधरेगी नहीं यह महज प्रचार है. शिक्षा क्षेत्र में वांछित सुधार के लिए एक आवश्यक बात यह भी है कि शिक्षा पर राष्ट्रीय सकल उत्पाद का 6 प्रतिशत खर्च हो जो सबको स्वीकार्य है. आज यह खर्च कई कारणों से 3.2 प्रतिशत पर अटका पड़ा है.
विदेशी शिक्षा के रूप में यह नया भस्मासुर 97 साल से हो रही राष्ट्रभक्तों की तपस्या पर पानी फेर कर देशहित घात करेगा क्या?
समय रहते हम सभी को इसे रोकना चाहिए. सभी छोटी बड़ी संस्थाओं ने विदेशी शिक्षा संस्थान (विद्यालय, परीक्षा बोर्ड, विश्वविद्यालय) देश में पूरी तरह से प्रतिबंधित रहे ऐसा प्रस्ताव पारित करके प्रधानमंत्री और केंद्रीय शिक्षा मंत्री को तुरंत भेजना आवश्यक है. जैसे संभव होगा वैसे सभी केंद्रीय मंत्री और सांसदों को मिलकर इस बात का आग्रह रखना चाहिए.
प्रा. श्यामकांत अत्रे राजेंद्र कोप्पीकर रवीन्द्र महाजन
(अध्यक्ष) (कार्यवाह)
एकात्म प्रबोध मंडल
(राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर एकात्म प्रबोध मंडल की ओर से भेजे गए ज्ञापन के संबंधित अंश नीचे उद्धृत हैं)
Comments dtd. 31.7.2019 on the National Education Policy 2019 Draft by Ekatma Prabodh Mandal (extract) (Enclosure to Ekatma Prabodh Mandal letter EPM/NEP2019drft/01 dated 31.7.2019)
A-8 FOREIGNERS IN EDUCATION
The NEP does not rule out education institutions owned and / or run by foreigners. Which sane country will hand over the minds of its children to foreigners? We seem to be one of them! We can have knowledge all over the world and have (must have) interactions with foreign scholars but their management and ownership must be totally rejected. Foreigners must be explicitly barred from managing and owning educational institutions.
Comments dtd. 15.11.2020 on the National Education Policy 2020 byEkatma Prabodh Mandal (extract) (Enclosure to Ekatma Prabodh Mandal letter EPM/NEP2020/01 dated 15.11.2020)
B14 (pt.12.8 p.39)
16.1 It is mentioned “Research/teaching collaborations and faculty/student exchanges with high-quality foreign institutions will be facilitated, and relevant mutually beneficial MOUs with foreign countries will be signed.” To have such MOU in some exceptional cases is understandable. But to make it a wholesale affair will amount to opening Bharatiy educational space for ‘education-business’ of foreigners.
Has the need to have MOUs for research with research laboratories (government and private) as well as industries been overlooked? We have so far more or less failed to capitalize on this locally available potential.
16.2 It is mentioned “selected universities e.g., those from among the top 100 universities in the world will be facilitated to operate in India.” No country with any substance and self-respect will allow foreigners to conduct education for its students. Do the US, UK, Japan, Germany, tiny Israel, South Korea etc. allow this? Will foreign universities be controlled for maintaining Bharatiya ethos or will they be free to inject Western ethos? Outsourcing the making of Bharatiy mind even after 73 years of independence!
Bharat is always open to knowledge. We have been inviting visiting experts and faculty and continue to do so for keeping us up to date and to have genuine knowledge acquisition and vichar-manthan. Management control decides the content, tone and orientation and foreign control must be avoided to preserve and strengthen our ethos.
16.3 It is mentioned “such universities will be given special dispensation regarding regulatory, governance, and content norms on par with other autonomous institutions of India.” This seems to be a one-sided love affair. Will other countries of repute allow Bharatiy Universities to establish and manage a campus in their countries? This should not become a leeway for foreigners to conduct education-business here as well as ‘manufacture’ Bharatiy minds to suit their business and domination plans.
16.4 With all this foreign and internationalization mania, doubt arises if there is some extraneous pressure at work.