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पराक्रम के पुरोधा थे नेता जी

पराक्रम के पुरोधा थे नेता जी या पराक्रम के प्रेरणापुंज थे नेता जी

पराक्रम का शाब्दिक अर्थ है शौर्य या बल। पराक्रम (परा +क्रम) में परा उपसर्ग और क्रम मूल
शब्द है। परा अर्थात नाश और क्रम अर्थात स्थिति या व्यवस्था। किसी स्थिति या व्यवस्था
का नाश ही पराक्रम कहलाता है। यहां स्थिति या व्यवस्था का तात्पर्य गुलामी से है।
पराक्रम, स्वतंत्रता को इंगित करता है। ऐसा बल जो आपको गुलाम परिस्थितियों से स्वतंत्र
कर दे वो ही पराक्रम कहलाता है। भारत का गुलामी की जंजीरों से स्वतंत्र होना ही नेता जी
के पराक्रम की निशानी थी। सुभाष चंद्र बोस पराक्रमी पुरुष थे। उन्होंने अपने पराक्रम से
आज़ादी की जंग को नई ऊर्जा प्रदान की थी। भारत को वीर भूमि का देश कहा जाता है।
वीर भूमि की वीरता को जब -जब आक्रांताओं ने चुनौती दी तब तब भारत की माता रूपी
भूमि की कोख से वीर सपूतों ने जन्म लिया। इन वीर सपूतों में सुभाष चंद्र बोस भी थे। जय
हिन्द का नारा देने वाले सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा प्रांत के
कटक में हुआ था। उनके पिता जानकी दास बोस एक प्रसिद्ध वकील थे। प्रारम्भिक शिक्षा
कटक में प्राप्त करने के बाद यह कलकता में उच्च शिक्षा के लिये गये। नेताजी सुभाष चंद्र
बोस,स्वामी विवेकानंद शिक्षण संस्थान से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। सुभाष चन्द्र बोस
भारतीय इतिहास के ऐसे युग पुरुष हैं जिन्होंने आजादी की जंग को बल प्रदान किया था।
भारत को आजाद कराने में सुभाष चंद्र बोस की अहम भूमिका थी। सुभाष चंद्र बोस
भारतीय इतिहास का एक ऐसा चरित्र है जिसकी तुलना विश्व में किसी से नहीं की जा
सकती। सुभाष चंद्र बोस वर्ष 1920 में भारतीय सिविल सेवा (आई सी एस) परीक्षा में
चौथा स्थान पाए थे। अंग्रेजी हुकूमत के समय आई सी एस परीक्षा पास करने वाले ये पहले
भारतीय थे। सुभाष जी ने दुनिया के सबसे बड़े तानाशाह हिटलर से मुलाकात की थी।
सुभाष जी की देशभक्ति देख कर हिटलर उनके बड़े प्रशंसक बन गए थे। जर्मनी के तानाशाह
अडोल्फ हिटलर ने ही सुभाष चंद्र बोस को पहली बार ‘नेता जी’ कहकर बुलाया था। तभी से
सुभाष चंद्र बोस को “नेता जी” कहा जाता है। नेता का शाब्दिक अर्थ होता है नेतृत्व करने
वाला अर्थात अगुआ या अगुआई करने वाला। यह उपाधि,भारत में सिर्फ सुभाष चंद्र बोस को
ही मिली है। नेता जी ने कहा भी था संघर्ष ने मुझे मनुष्य बनाया, मुझमे आत्मविश्वास उत्पन्न
हुआ,जो पहले नहीं था। गीता में भी कहा गया है नायं आत्मा बलहीनेन लभ्यः अर्थात यह
आत्मा बलहीनो को नहीं प्राप्त होती है। इससे प्रमाणित होता है की सुभाष चंद्र बोस का
अध्यात्म में भी रुझान था। हिन्दुओं की पवित्र धर्मक पुस्तक गीता से नेता जी प्रेरणा लेकर
पराक्रमी पुरुष बने। राष्ट्र प्रेम में मृत्यु ,अमरत्व की ओर ले जाती है। अतएव राष्ट्र भक्ति से

बढ़कर कोई भक्ति नहीं होती है। राष्ट्र भक्ति में जान भी गवानी पड़े तो वह मृत्यु नहीं अपितु
अमरत्व कहलाती है। वर्ष 2021 में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने नेताजी के
जन्मदिन (23 जनवरी) को ‘पराक्रम दिवस’ के तौर पर मनाने का फैसला किया था। अतएव
वर्ष 2021 में सुभाष चंद्र बोस की 125 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 23 जनवरी को पराक्रम
दिवस की शुरुआत हुई। भारत सरकार ने इसके लिए एक गजट नोटिफिकेशन जारी कर
दिया था। पराक्रम दिवस भारत के युवाओ में राष्ट्र के प्रति प्रेम, भक्ति और बलिदान की
भावना को जाग्रत करेगा। प्रथम पराक्रम दिवस वर्ष 2021 में भारत सरकार के संस्कृति
मंत्रालय द्वारा प्रकाशित पुस्तक लेटर्स ऑफ़ नेताजी (1926-1938)” का विमोचन किया
गया। यह पुस्तक नेता जी के पत्रों का संकलन है। नेता जी ने राष्ट्र भक्ति के जज्बे को कभी
मरने नहीं दिया। नेता जी ने भारतवासियों के दिल में राष्ट्र भक्ति के जज्बे को अमर कर दिया
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस अग्रणी नेता थे। सुभाष चंद्र बोस अच्छे नेता
होने के साथ-साथ बेहतरीन लेखक भी थें। उन्होंने पुस्तक ‘द इंडियन स्ट्रगल 1920-1934’
लिखा जो भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर आधारित है। नेता जी ने वर्ष 1937 में
अपने यूरोप दौरे के समय एन इंडियन पिलिग्रिम’ नामक पुस्तक लिखी थी। नेताजी दृढ़
इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति थे। उनके राष्ट्रवादी दृष्टिकोण ने उन्हें भारत का नायक बना दिया।
अतएव हम कह सकते हैं कि नेता जी पराक्रम के पुरोधा और प्रेरणापुंज थे। गुलामी की
दीवार को गिराने वाला नायक नेता जी ही थे। अतएव हम कह सकते हैं कि नेता जी
आज़ादी की जंग को बल प्रदान करने वाले एकमात्र महानयक थे।

लेखक
डॉ शंकर सुवन सिंह

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