त्रिपुरा, मेघालय एवं नागालैंड चुनाव
भाजपा की दमदार दस्तक
अमित त्यागी
गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी मुखर हुये हैं। हर बार हर तरफ मुंह की खाते जा रहे राहुल गांधी गुजरात चुनाव के बाद इतने ज्यादा उत्साहित हो गये कि बहरीन में जाकर भारत के विरोध में भाषण दे आए। मोदी सरकार को हर नीति पर उन्होनें जम कर कोसा। जीएसटी, नोट बंदी, अखलाक सहित शायद ही कोई विषय हो जिसे उन्होनें स्पर्श न किया हो। एक स्थापित अजेंडे के तहत वह बोलते रहे। उनकी बातों में तथ्य कम थे। उनकी खुद की विफलता की कुंठा ज्यादा दिख रही थी। ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार पूर्ण रूप से सफल सरकार है। अपने लक्ष्य से मोदी सरकार काफी पीछे चल रही है। किन्तु जिस तरह से विपक्षी खेमे के लोग सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हैं उससे विपक्षी खेमे की नीयत सवालिया निशान खड़े कर जाती है। मोदी और उनकी टीम को विपक्षियों के बयान नई संजीवनी दे जाते हैं। चुनावों की चर्चा के साथ एक महत्वपूर्ण विषय यह है कि मोदी मैजिक के बावजूद क्यों मोदी सरकार अपने लक्ष्य और अपेक्षाओं से पिछड़ रही है। इसकी वजह है नौकरशाही। जब चुनाव होते हैं तो सरकार बदल जाती है। वहाँ बैठे नौकरशाह नहीं बदलते। उनके ढर्रे नहीं बदलते। जब भी कोई बड़ा बदलाव करने की कोशिश कोई भी राजनेता करता है। वह बदलाव में अड़ंगा अड़ा देते हैं। चूंकि जनता अपने पसंदीदा नेता को वोट देती है। इसलिए जनता की शिकायत अपने नेता से होती है। कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ भाजपा राज्यों में विजय तो प्राप्त करती जा रही है किन्तु नौकरशाही की मानसिकता में बदलाव के बगैर इस ऊंचाई पर टिकना आसान नहीं होगा। मोदी-योगी की जोड़ी हिन्दुत्व के नाम पर वोट तो दिला सकते हैं किन्तु बदलाव के लिए वे भी नौकरशाही पर निर्भर हैं।
आज भी राजनैतिक रूप से मोदी की विश्वसनीयता कम नहीं हुयी है। जनता अभी भी उनसे जुड़ी है और उनका भरोसा करती है। इसलिए 2018 में जिन राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं वहाँ मोदी का रोल अहम होगा। इन सभी राज्यों से 99 लोकसभा सीटें आती हैं जिनमें से 79 अभी भाजपा के पास हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा कमजोर रही है। त्रिपुरा, मेघालय एवं नागालैंड के चुनाव अब भाजपा को मजबूत करते दिख रहे हैं। असम, अरुणाचल प्रदेश में पैठ बनाने के बाद भाजपा पूर्वोत्तर में जम चुकी है। उसका कैडर लगातार मजबूत होता जा रहा है।
मेघालय :कांग्रेस का ग्राफ जा रहा है नीचे।
मेघालय में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है। मेघालय में विधानसभा की 60 सीटें हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी थी और उसे 29 सीटें मिली थीं। बहुमत के आंकड़े से वह 2 सीटें दूर रह गयी थी। निर्दलियों के सहयोग से कांग्रेस ने यह आंकड़ा प्राप्त किया और सरकार बनाई। मुकुल संगमा मुख्यमंत्री बने। इसके बाद अल्पमत सरकार में उठापटक मचने लगी। कांग्रेस के एक दर्जन विधायकों ने विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। इन विधायकों में से चार विधायक ऐसे रहे जिन्होनें बाद में भाजपा खेमे को अपना लिया। बाकी आठ विधायक जिन दलों में गये वह दल भी एनडीए खेमे का हिस्सा हैं। विधायकों का भाजपा में आना इस बार कांग्रेस के लिए खतरे का सबक बनने जा रहा है। कांग्रेस किसी तरह सरकार तो चलाती रही किन्तु अपना राजनैतिक प्रभाव खोती रही। इस बार कांग्रेस अपने राजनैतिक अस्तित्व को बचाने की लड़ाई ज्यादा लडऩे जा रही है।
2013 में जहां कांग्रेस ने 29 सीटें जीती थीं वहीं 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने सिर्फ 24 सीटें जीतीं थी। इसके बावजूद तब भी कांग्रेस की सरकार बनी थी। इसका सीधा अर्थ है कि निर्दलीय विधायक मेघालय की राजनीति में अहम योगदान रखते हैं। निर्दलीय ही मेघालय में सत्ता बनाते और बिगाड़ते हैं। चूंकि इस बार कांग्रेस से ज्यादा भाजपा मजबूत बन चुकी है इसलिए भाजपा यहाँ सबसे बड़े दल के रूप में उभरती दिखने लगी है। निर्दलीय के साथ मिलकर भाजपा की सरकार बनने के आसार दिख रहे हैं। यदि भौगोलिक स्थिति की बात करें तो मेघालय को तीन क्षेत्रों में बांटा जाता है। गारो, खासी एवं जयंतियाँ। खासी इलाके की सीटें विधानसभा के निर्माण में अहम योगदान करती रही हैं। एनडीए इस क्षेत्र में मजबूत बन गया है। कुछ भाजपा एवं मोदी का प्रभाव यहाँ बढ़ा है तो कुछ 12 कांग्रेसी विधायकों का टूट कर एनडीए खेमे में आना वजह बना है। भाजपा के सरकार बनाने की प्रबल संभावना यहाँ बनने लगी है।
नागालैंड : पहले से आगे ब?ढ़ी भाजपा
नागालैंड में कांग्रेस कमजोर हैं किन्तु वर्तमान में वह गठबंधन सरकार का हिस्सा है। भाजपा नागालैंड में एक शिशु जितनी छोटी पार्टी है। साठ सीटों की नागालैंड विधानसभा में वर्तमान में एनपीए (नागालैंड पीपुल्स फ्रंट ) सबसे बड़ा दल है। इसके पास 37 सीटों का पूर्ण बहुमत है। कांग्रेस के पास वर्तमान में आठ और भाजपा के पास दो सीटें हैं। टीआर जेलियांग यहाँ के मुख्यमंत्री हैं। जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वोत्तर के विकास के लिए योजनाएँ बनाकर खासा ध्यान दिया है उस क्रम में क्षेत्रीय दल भाजपा की तरफ आकर्षित होने लगे हैं। जनता का रुझान भाजपा की तरफ बढ़ा है। क्षेत्रीय दल ज्यादातर उस राष्ट्रीय दल की तरफ ज्यादा आकर्षित होते हैं जिसकी केंद्र में सरकार होती है। केंद्र से मिलने वाले फायदे के आधार पर सत्तारूढ़ एनपीए कांग्रेस की तरफ आकर्षित हुआ था। वर्तमान में भाजपा सरकार होने के कारण उसका रुझान भाजपा की तरफ होना भी संभावित है।
नागा समझौते के बाद जिस तरह प्रधानमंत्री का कद बढ़ा है उसके बाद नागालैंड में उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। भाजपा को विधानसभा चुनावों में इसका सीधा फायदा मिलेगा। उसकी सीटें बढऩे जा रही हैं। एनपीएफ की सीटें कम होंगी किन्तु अब भी वह सबसे बड़े दल के रूप में उभरती दिख रही है। अल्पमत में होने की स्थिति में इस बार कांग्रेस के स्थान पर भाजपा के साथ एनपीएफ हाथ मिला सकती है। जिस तरह से 2013 में कांग्रेस के गठबंधन से एनपीएफ ने सरकार बनाई थी। इस बार भाजपा के साथ सरकार बन सकती है। भाजपा सत्ता में आती दिखने लगी हैं। भाजपा के द्वारा बहुत ज्यादा सीटें जीतने की संभावना तो नहीं है किन्तु उसका वोट प्रतिशत बढ़ेगा। आगामी लोकसभा चुनावों में विधानसभा चुनावों के परिणाम भाजपा को एक दो लोकसभा सीटें दिलवाने का आधार बनने जा रहे हैं।
त्रिपुरा : जीत के प्रति आश्वस्त भाजपा
त्रिपुरा चुनावों पर अमित शाह का विशेष ध्यान है। कम्युनिस्टों के प्रमुख गढ़ त्रिपुरा में माकपा पिछले दो दशकों से सत्ता में है। माणिक सरकार बीस साल से लगातार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर हैं। त्रिपुरा पहले कांग्रेस का गढ़ माना जाता था किन्तु बीस साल पहले माकपा ने कांग्रेस को काफी पीछे धकेल दिया। त्रिपुरा में विधानसभा की साठ सीटें हैं। यह एक अजब संयोग है कि पूर्वोत्तर के इन तीनों राज्यों में 60-60 सीटें हैं।
2013 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस यहाँ से साफ हो गयी थी। माकपा एवं उसके सहयोगी दलों को साठ में से 49 सीटों पर जबरदस्त विजय मिली थी। कांग्रेस को सिर्फ दस सीटों पर जीत मिली थी। कमजोर कांग्रेस की मुश्किले यहीं पर नहीं थमी। एक साल पहले कांग्रेस के छह विधायकों ने कांग्रेस छोड़ दी और वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये। इसके बाद यह सभी विधायक भाजपा खेमे का हिस्सा बन गये। भाजपा के लिए यह आगमन लॉटरी की तरह था। पाँच साल पहले जो भाजपा कहीं परिदृश्य में भी नहीं थी वह आज जीत का दावा करने लगी है। उसके कार्यकर्ताओं में जोश है। बीस साल की सत्ता के बाद सत्ता विरोधी रुझान भाजपा के लिए संजीवनी बनने जा रहा है। भाजपा को उम्मीदें निर्दलीय विधायकों से भी जगी हैं। अनेक ऐसे विधानसभा क्षेत्र हैं जहां माकपा प्रत्याशियों पर निर्दलीय भारी पड़ते दिख रहे हैं। वाम के गढ़ों को तोडऩे में माहिर अमित शाह लगातार त्रिपुरा के संपर्क में हैं। सात जनवरी को जब अमित शाह ने त्रिपुरा का दौरा किया था तब भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश एवं अंडरकरेंट दिखना शुरू हो गया था।
त्रिपुरा में जीत की एक बड़ी वजह नाथ संप्रदाय का होना है। त्रिपुरा में नाथ संप्रदाय के लोग कुल आबादी के एक तिहाई हैं। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी नाथ संप्रदाय से आते हैं। इस वजह से भाजपा यहाँ अचानक मजबूत हो गयी है। योगी आदित्यनाथ के गुरु जब भी त्रिपुरा दौरे पर आते थे तब अपने संप्रदाय के मंदिर में ही रुका करते थे। अब उनका शिष्य उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता है। इस बात को नाथ संप्रदाय के लोग पसंद कर रहे हैं। भाजपा की मजबूती की एक अन्य बड़ी वजह दो तिहाई सीटें हैं। यह वह सीटें हैं जो अनुसूचित जाति एवं जन जातियों के लिए आरक्षित हैं। माकपा ने सरकार बनने से पहले तो इन लोगों से वोट लिए किन्तु सरकार बनने के बाद इन जातियों के लोगों को आवश्यक प्रतिनिधित्व नहीं दिया। भाकपा का गढ़ यही सीटें मानी जाती रही हैं। इन सीटों के मतदाताओं का रोष भाजपा की तरफ मतदान का रुख बना रहा है।
मौके पर चौका मारने के शौकीन अमित शाह त्रिपुरा में बेहद सक्रिय हो चुके हैं। वह वाम मोर्चा सरकार पर बेहद तल्ख हो चुके हैं। वह लगातार कह रहे हैं कि पूरे देश ने कम्युनिस्टों को उखाड़ फेंका है। अब आप लोगों की बारी है। भाजपा की सरकार आते ही वह चिट फंड घोटाले के आरोपी मंत्रियों की जांच करवाएँगे। सभी घोटालेबाजों को जेल भेजा जाएगा। कुल मिलाकर जिस तरह 2013 में त्रिपुरा से कांग्रेस साफ हो गयी थी वैसा ही इस बार माकपा के साथ होने की रूपरेखा तैयार दिख रही है। अमित शाह के बाद जैसे ही योगी आदित्यनाथ के दौरे शुरू होंगे, त्रिपुरा का साइलेंट वोटर का रुझान भाजपा की तरफ होने जा रहा है।
मेघालय की भौगोलिक स्थिति के अनुसार विधानसभा सीटें (कुल 60)
गारो इलाका 24
खासी 29
जयंतियाँ 07
नागालैंड विधानसभा की वर्तमान स्थिति
(कुल सीट=60)
नागालैंड पीपुल्स फ्रंट 37
कांग्रेस 08
भाजपा +अन्य 02 +13
त्रिपुरा विधानसभा की दलगत स्थिति (कुल सीटें=60 )
माकपा+ सहयोगी दल 49
कांग्रेस 10
निर्दलीय 01 ठ्ठ