*रजनीश कपूर
किसी समय देश की सबसे बड़ी निजी एयरलाइन जेट एयरवेज़ एक बार फिर से चर्चा में है। इस बार चर्चा का
कारण जेट के स्वामी नरेश गोयल हैं जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय ने बैंक से धोखाधड़ी के मामले में गिरफ़्तार किया।
परंतु नरेश गोयल द्वारा चलाई जाने वाली जेट एयरवेज़ केवल बैंक के साथ ही धोखाधड़ी नहीं कर रही थी। बैंक के
साथ धोखा तो नरेश गोयल द्वारा की गड़बड़ियों में से एक है। असल में तो उनके द्वारा कि गई धाँधलियों कि सूची
बहुत बड़ी है। सवाल उठता है कि क्या सरकारी एजेंसियों द्वारा नरेश गोयल की हर गड़बड़ियों की जाँच होगी?
जब भी कभी हम किसी बड़े उद्योगपति द्वारा किसी घोटाले के बारे में सुनते हैं तो यह अंदाज़ा लगा लेते हैं कि वो
भी विजय माल्या, नीरव मोदी या मेहूल चौकसी जैसों की तरह अपने रसूख़ के चलते सज़ा से बच जाएगा या देश
छोड़ कर भाग जाएगा। परंतु नरेश गोयल के मामले में ऐसा नहीं हुआ। इसके लिए सरकारी एजेंसियाँ बधाई की
पात्र हैं। देर से ही सही पर नरेश गोयल पर शिकंजा कसने की शुरुआत तो हुई।
नरेश गोयल की जेट एयरवेज़ की बात करें तो नागर विमानन क्षेत्र में शायद ही ऐसे किसी नियम का उल्लंघन होगा
जो इनकी कंपनी ने न किया हो। साल 2014 में एक खबर काफ़ी प्रमुखता से छपी थी जिसके अनुसार, जेट एयरवेज़
को अपने 131 पायलेट घर बैठाने पड़े। क्योंकि ये पायलेट ‘प्रोफिशियेसी टेस्ट’ पास किए बिना हवाई जहाज उड़ा
रहे थे। इस तरह जेट के मालिक नरेश गोयल देश-विदेश के करोड़ों यात्रियों की जिंदगी से खिलवाड़ कर रहे थे।
हमारे कालचक्र समाचार ब्यूरो ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसका उल्लेख कई टीवी चैनलों ने किया। यह
तो केवल एक ट्रेलर मात्र था। ऐसी गंभीर गलती बिना नागर विमानन मंत्रालय और उसके अधीन विभागों के
अधिकारियों की मिलीभगत बिना होना संभव नहीं था। जेट एयरवेज़ द्वारा यात्रियों के साथ धोखाधड़ी और देश के
साथ गद्दारी के दर्जनों प्रमाण लिखित शिकायत करके हमने केंद्रीय सतर्कता आयोग और सीबीआई में दाखिल किए
और उन पर उच्च स्तरीय पड़ताल जारी हुई। परंतु जैसे ही जेट एयरवेज़ ने ख़ुद को दिवालिया घोषित किया यह
सभी जाँचें ठंडे बस्ते में पड़ गईं।
डी.जी.सी.ए. और जेट एयरवेज़ की मिलीभगत का एक और उदाहरण विदेशी मूल के कैप्टन हामिद अली है, जो 8
साल तक जेट एयरवेज़ का सीओओ बना रहा। जबकि भारत सरकार के नागर विमानन अपेक्षा कानून के तहत
(सी.ए.आर. सीरीज पार्ट-2 सैक्शन-3) किसी भी एयरलाइनस का अध्यक्ष या सीईओ तभी नियुक्त हो सकता है, जब
उसकी सुरक्षा जांच भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा पूरी कर ली जाए और उसका अनापत्ति प्रमाण पत्र ले
लिया जाए। अगर ऐसा व्यक्ति विदेशी नागरिक है, तो न सिर्फ सीईओ, बल्कि सीएफओ या सीओओ पदों पर भी
नियुक्ति किए जाने से पहले ऐसे विदेशी नागरिक की सुरक्षा जांच नागर विमानन मंत्रालय को भारत सरकार के गृह
मंत्रालय और विदेश मंत्रालय से भी करवानी होती है। पर देखिए, देश की सुरक्षा के साथ कितना बड़ा खिलवाड़
किया गया कि कैप्टन हामिद अली को बिना सुरक्षा जांच के नरेश गोयल ने जेट एयरवेज़ का सीओओ बनाया। यह
जानते हुए कि वह बहरीन का निवासी है और इस नाते उसकी सुरक्षा जांच करवाना कानून के अनुसार अति
आवश्यक था। क्या डी.जी.सी.ए. और नागर विमानन मंत्रालय के तत्कालीन महानिदेशक व सचिव और उड्डयन
मंत्री आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे थे, जो देश की सुरक्षा के साथ इतना बड़ा खिलवाड़ होने दिया गया और कोई
कार्यवाही जेट एयरवेज़ के खिलाफ नहीं हुई। जिसने देश के नियमों और कानूनों की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं।
इसका तथ्य का खुलासा तब हुआ जब 31 अगस्त, 2015 को मेरे द्वारा आरटीआई के जवाब पर नागरिक विमानन
मंत्रालय ने स्पष्टीकरण दिया। इस आरटीआई के दाखिल होते ही नरेश गोयल के होश उड़ गए और उसने रातों-रात
कैप्टन हामिद अली को सीओओ के पद से हटाकर जेट एयरवेज़ का सलाहकार नियुक्त कर लिया। पर, क्या इससे वो
सारे सुबूत मिट गये, जो 8 साल में कैप्टन हामिद अली ने अवैध रूप से जेट एयरवेज़ के सीओओ रहते हुए छोड़े हैं।
जब मामला विदेशी नागरिक का हो, देश के सुरक्षा कानून का हो और नागरिक विमानन मंत्रालय का हो, तो क्या
इस संभावना से इंकार किया जा सकता है कि कोई देशद्रोही व्यक्ति, अन्डरवर्लड या आतंकवाद से जुड़ा व्यक्ति जान-
बूझकर नियमों की धज्जियां उड़ाकर इतने महत्वपूर्ण पद पर बैठा दिया जाए और देश की संसद और मीडिया को
कानों-कान खबर भी न लगे। देश की सुरक्षा के मामले में यह बहुत खतरनाक अपराध हुआ है। जिसकी जवाबदेही न
सिर्फ नरेश गोयल की है, बल्कि तत्कालीन नागरिक विमानन मंत्रालय के मंत्री, सचिव व डी.जी.सी.ए. के
महानिदेशक की भी पूरी है।
मोदी सरकार के कड़े रुख़ के चलते जिस तरह नरेश गोयल को देश छोड़ कर भागने पर प्रतिबंध लगा वो सराहनीय
है। नहीं तो अब तक नरेश गोयल भी अन्य अपराधियों की तरह कब के देश छोड़ कर जा चुके होते और भारत की
जाँच एजेंसियाँ इन्हें पकड़ नहीं पाती। देखना यह है कि क्या केवल 538 करोड़ के बैंक घोटाले में ही गोयल की जाँच
होगी या ईडी इनके द्वारा किए गये अन्य वित्तीय घोटालों की जाँच भी करेगी? सरकार को इनकी अकूत संपत्ति को
ज़ब्त कर न सिर्फ़ बैंकों को पैसा वापिस करना चाहिए बल्कि जेट एयरवेज़ के सभी कर्मचारियों की बकाया सैलरी
भी दिलवानी चाहिए। सरकार की अन्य जाँच एजेंसियों को भी नरेश गोयल द्वारा की गई बाक़ी की गड़बड़ियों की
जाँच में भी जुट जाना चाहिए। इस सब की लिखित शिकायतें सीबीआई व सीवीसी के पास आज भी पड़ी धूल खा
रही हैं। यदि जाँच एजेंसियों द्वारा ऐसा होता है तो ऐसा करने वाले उन सभी अपराधियों के पास एक कड़ा संदेश
जाएगा कि भले आप कितने भी बड़े क्यों न हों क़ानून आपसे ऊपर है।
*लेखक दिल्ली स्थित कालचक्र समाचार ब्यूरो के प्रबंधकीय संपादक हैं