Shadow

वर्षा ऋतु – वरदान या अभिशाप

भारत विभिन्न संस्कृतियों की भांति विभिन्न ऋतुओं से सम्पन्न देश है। यहाँ पर – वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर तथा वसंत (6) प्रमुख ऋतुएं हैं। प्रत्येक ऋतु के आगमन पर जनमानस के हृदय में एक अलग ही आनंद व उत्साह का भाव देखने को मिलता है। ग्रीष्म ऋतु के पश्चात, वर्षा ऋतु के आगमन पर मनुष्य, पेड़-पौधे, पशु -पक्षी, जानवर आदि सभी अत्यधिक उत्साह तथा व्यग्रता से इंतजार करते हैं। वर्षा की जब प्रथम फुहार धरती पर पड़ती है तो, सम्पूर्ण भूमण्डल आनन्द विभोर हो उठता है। नई कोपलों का प्रस्फुटन होता है, खेतों में फसले लहलहाती है, मोर आनन्द के वशीभूत होकर नृत्य करने लगते हैं, प्रेमिका अपने प्रवासी प्रेमी के इंतजार में व्यग्र हो जाती है, वातावरण सुगन्धित हो जाता है। अर्थात् वर्षा ऋतु समस्त प्राणियों के लिए ईश्वर प्रदत्त अनुपम भेंट है।
अतीत में ईश्वर द्वारा प्रदत्त प्रकृति, एक अनुपम वरदान स्वरूप थी, परन्तु मनुष्य ने अपनी नासमझी से इस भेंट का दुरूपयोग करते हुए इस वरदान को अभिशाप में परिवर्तित कर दिया है। पूर्व में वर्षा के आगमन से जहाँ सम्पूर्ण प्रकृति नृत्य करती थी, वहीं आज सम्पूर्ण प्रकृति अश्रुपूर्ण क्रंदन करती है और मनुष्य की कुबुद्धि को कोसती है कि किस प्रकार मनुष्य जिस डाल पर बैठा, उसी को अपने लालच और कुबुद्धि से नष्ट कर रहा है। आज यदि वर्षा अपने पूर्ण यौवन के साथ बरसना शुरू कर दे तो समस्त नदियों में बाढ़, शहरों की कॉलौनियों के अन्दर कई फुटो तक पानी का भरना, नालों में पानी उफनना आदि से कई बीमारियों का फैलना प्रारम्भ हो जाता है, बाढ़ आदि से जनता का जीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है। प्रकृति के असंतुलित होने के अनेक कारण हैं, जो इस प्रकार है – 1. अवैध तथा अत्यधिक मात्रा में निर्माण कार्य, 2. जल निकासी की समुचित व्यवस्था न होना 3. सीवरों से जल का अतिशय मात्रा में प्रवाह होना, 4. कूड़े का नियोजित निस्तारण न होना 5. बरसाती जल निकासी के लिए नालियों का समुचित जाल न बिछाना 6. समुचित जल संचयन की व्यवस्था का न होना।
जिस देश ने उपरोक्त समस्याओं का समाधान ढूंढ लिया हो, उस देश के लिए वर्षा वरदान स्वरूप होती है, शेष के लिए अभिशाप स्वरूप बन जाती है।
भारत की जनता तथा प्रशासनिक अधिकारियों को यदि इन समस्त भावी समस्याओं का संज्ञान हो जाता है तो जनता सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर सकती है। परन्तु प्रत्येक स्तर पर भ्रष्टाचार होने के कारण इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता है और वर्ष दर वर्ष जनता को नरक के समान जीवन व्यतीत करने के लिए विवश होना पड़ता है। ईश्वर से प्रार्थना है कि उसके द्वारा प्रदत्त प्रकृति स्वरूप अनुपम भेंट मानव जाति के लिए हितकारी हो ना कि विनाशकारी। परमात्मा समस्त मानव जाति को सदबुद्धि प्रदान करें।

*योगेश मोहन*

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *