विवेक शुक्ला
महात्मा गांधी के बलिदान दिवस पर आज ( 30 जनवरी) को राजघाट और फिर गांधी स्मृति में सर्वधर्म प्रार्थना का आयोजन होगा। ये गांधी जयंती पर भी आयोजित होती है। सर्वधर्म प्रार्थना का विचार गांधी जी ने ही संसार को दिया था। उनके जीवनकाल में यह आरंभ हो गया था। उनके संसार में न रहने के बाद भी 2 अक्तूबर, 30 जनवरी तथा अन्य विशेष अवसरों पर सर्वधर्म प्रार्थना सभाएं आयोजित की जाती हैं। राजघाट पर विभिन्न धर्मों की प्रार्थनाओं का पाठ करने वालों से विवेक शुक्ला की बातचीत के अंश ।
कब होती अनुपम अनुभूति
डॉ.बलदेव आनंद सागर
हिन्दू प्रार्थना
कब से- 2002 से
डॉ. बलदेव आनंद सागर के लिए तीन तिथियां विशेष हैं। 2 अक्तूबर और 30 जनवरी के साथ 21 अगस्त, 1994 भी। उन्होंने 21 अगस्त, 1994 को दूरदर्शन पर पहली बार प्रसारित हुए संस्कृत समाचार बुलेटिन को पढ़ा था। हालांकि वे 1974 से आकाशवाणी में संस्कृत का समाचार बुलेटिन पढ़ रहे थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिन्दू कॉलेज के छात्र रहे डॉ. आनंद को राजघाट और 30 जनवरी मार्ग पर आयोजित होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभा में भाग लेने का मौका उनके एक मित्र की मार्फत मिला। दरअसल एक बार किसी कारणवश उनके एक मित्र उस सभा में गीता का पाठ करने के लिए नहीं जा पा रहे रहे थे। तब उन्होंने डॉ. आनंद के नाम की सिफारिश आयोजकों से कर दी। इस तरह उन्हें एक अति महत्वपूर्ण आयोजन का हिस्सा बनने का अवसर मिला। वे कहते हैं कि उन्हें जिस तरह की अनुपम अनुभूति पहली बार सर्वधर्म प्रार्थना सभा का हिस्सा बनने पर हुई थी, उसी तरह की अनुभूति अब भी होती है। वे राजघाट की प्रार्थना में गीता के 5-6 श्लोकों को पढ़ देते हैं। जबकि तीस जनवरी मार्ग की सभा में पंचदेव की प्रार्थना का पाठ करते हैं। सनातन परंपरा में प्रत्यक्ष देवता सूर्य, प्रथम पूज्य भगवान गणेश, देवी दुर्गा, देवाधिदेव भगवान शिव और भगवान विष्णु, पंचदेव कहलाते हैं। वे कहते हैं कि सनातन परंपरा में आस्था रखने वाले व्यक्ति को इन सभी की पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए। मान्यता है कि प्रतिदिन पूजा के दौरान पंचदेव का ध्यान एवं मंत्र जप करने वाले पर इन सभी की कृपा बरसती है और उसके घर में सुख-समृद्धि का वास बना रहता है। डॉ. आनंद ने बताया कि जब से नरेन्द्र मोदी जी देश के प्रधानमंत्री बने हैं, वे प्रार्थना सभा के बाद हम लोगों से अवश्य कुछ पलों के लिए मिलने के लिए आते हैं। व हमारा हाल-चाल भी पूछते हैं।
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जॉर्ज सोलोमन
ईसाई प्रार्थना
कब से-2005 से
महात्मा गांधी की सर्वधर्म प्रार्थनाओं में ईसाई प्रार्थना पहले दिन से ही आरंभ हो गई थीं। उनका ईसाई धर्म, बाबइल और मिशनरियों के कामकाज से साक्षात्कार तब हुआ जब वे दक्षिण अफ्रीका में रहते थे। यह जॉनकारी जॉर्ज सोलोमन देते हैं। वे राजधानी की पीतमपुरा चर्च में पादरी भी हैं। जॉर्ज सोलोमन विभिन्न स्थानों पर हुईं सर्वधर्म प्रार्थनाओं में बाइबल का पाठ करते रहे हैं। वे कहते हैं कि भारत में सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का सरकारी आयोजनों में भी होना इस बात की गवाही है कि ये भारत सबका है। बाकी धर्मों के ग्रंथों की तरह बाइबल का भी रास्ता एक-दूसरे से प्रेम और भाईचारे का संदेश देता है। सर्वधर्म प्रार्थना का विचार वास्तव में बहुत बड़ा और व्यापक है। ये एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि भारत में सब धर्मों को मानने वाले एक-साथ बैठकर अपने धर्मग्रंथों के मुख्य बिन्दुओं को रख सकते हैं। जॉर्ज सोलोमन ने बताया कि गांधी जी को बाइबल और ईसाई धर्म के संबंध में करीब से जानने का अवसर मिला जोसेफ डॉक से। गांधी जी और डॉक दक्षिण अफ्रीका में घनिष्ठ मित्र बन गए थे। डॉक ने गांधी जी की जीवनी भी लिखी थी। उसे गांधी जी की पहली जीवनी माना जाता है। उनका दीनबंधु सी.एफ.एन्ड्रूज से भी घनिष्ठ संबंध रहा। एन्ड्रूरज सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़ाते थे। उन्हीं के प्रयासों से वे पहली बार 1915 में दिल्ली आए थे। वे तब सेंट स्टीफंस कॉलेज में ठहरे थे। सेंट स्टीफंस क़ॉलेज की स्थापना ब्रदरहुड सोसायटी ने की थी। इससे सी.एफ. एन्ड्रूज जुड़ थे। इसी का अब जॉर्ज सोलोमन हिस्सा हैं। वे कहते हैं उन्हें जब भी किसी सर्वधर्म प्रार्थना सभा में जाने का अवसर मिलता है तो वे उस मौके को छोड़ते नहीं है। वहां का हिस्सा होना अपने आप में अप्रतिम अनुभव होता है।
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धर्मनिरपेक्षता का मतलब क्या
मकसूद अहमद
प्रार्थना- इस्लाम
कब से – 2001
मकसूद अहमद को महात्मा गांधी के दर्शन ने बचपन से ही प्रभावित किया। वे गांधी साहित्य को अपने कॉलेज के दिनों में पढ़ चुके थे। उन्हें याद है जब उन्होंने पहली बार गांधी जयंती पर राजघाट पर कुरआन की आयतें पढ़ीं थीं। उसके बाद वे राष्ट्रपति के.आर. नारायणन, प्रणव कुमार मुखर्जी और अटल बिहारी वाजपेयी के निधन पर इन सबके सरकारी आवासों में आयोजित की गई सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में कुरआन का पाठ करने गए थे। पेशे से अध्यापक मकसूद अहमद कहते हैं किअब सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं की भी मीन-मेख निकाली जाने लगी है। वे मानते हैं कि ये भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर सीधा हमला है। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने हाल ही में सर्वधर्म सभाओं पर एतराज जताया था जब केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने स्कूलों को निर्देश दिए थे कि वे अपने यहां गांधी जयंती पर सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का आयोजन करें। —————-
गांधी जी और बहाई एक-दूसरे के करीब
ड़ॉ. ए.के. मर्चेट
धर्म- बहाई प्रार्थना
कब से- 1985
राजघाट, 30 जनवरी मार्ग और देश के विभिन्न भागों में होने वाली सर्वधर्म सभाओं का विस्तार होता रहा। इसमें हिन्दू, इस्लाम,ईसाई और सिख धर्मों के बाद अन्य धर्मों की प्रार्थनाएं शामिल की जा जाती रहीं। बहाई धर्म की प्रार्धना को 1985 में शामिल किया गया। बहाई प्रार्थना का पाठ करने वाले ड़ॉ. ए.के. मर्चेट ने बताय़ा कि बहाई प्रार्थना को सर्वधर्म प्रार्थना से जोड़ा गया प्रख्यात गांधीवादी श्रीमती निर्मला देशपांडे के प्रयासों से। उन्होंने इस बाबत स्वयं पहल की। ड़ॉ. मर्चेट कहते हैं कि महात्मा गांधी ने सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का सबसे पहले आयोजन राजधानी के वाल्मिकी मंदिर में शुरू किया था। तब देश में सांप्रदायिक दंगे हो रहे थे। गांधी जी की चाहत थी कि इस पहल से विभिन्न धर्मों को अनुयायी एक-दूसरे के धर्मों और उनकी शिक्षाओं को जान लेंगे। वे वाल्मिकी मंदिर में 1 अप्रैल 1946 से 10 जून 1947 में रहे थे। वे बिड़ला मंदिर शिफ्ट हुए तो भी सर्वधर्म प्रार्थना सभाएं जारी रहीं। सबको पता है कि उनकी 30 जनवरी 1948 को उस समय एक राक्षस ने हत्या कर दी थी जब वे सर्वधर्म प्रार्थना सभा में भाग लेने के लिए सभा स्थल पर पहुंचे ही थे। डॉ. मर्चेट कहते हैं कि बहाई धर्म का मूल आधार भी “वसुधा कुटुम्बकम्” है। “ धरती ही परिवार है। विश्व कल्याण और सब आरोग्य हों। ये ही तो गांधी जी का विचार है। इसलिए मैं कह सकता हूं कि गांधी जी और बहाई धर्म एक-दूसरे के करीब हैं। ” ड़ॉ. मर्चेंट का संबंध मूल रूप से गुजरात से है। उनका जन्म म्यांमार में हुआ था। वे बहाई धर्म की गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।
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राजघाट के कण-कण में पवित्रता
जसपाल कौल
प्रार्थना- सिख
कब से- 2002 से
जसपाल कौर गांधी जयंती और गांधी जी के बलिदान दिवस पर होने वाली सर्वधर्म प्रार्तना सभाओं में गुरुग्रंथ साहब के अंशों का पाठ करती हैं। वो अपने को भाग्यशाली मानती हैं कि उन्हें इन अवसरों का हिस्सा और साक्षी बनने का अवसर मिलता है। वो इस बात के लिए ईश्वर का कोटि-कोटि धन्यवाद करती हैं। जसपाल कौर कहती हैं– “ देश के राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री और सैकड़ों नागरिकों की उपस्थिति में गुरुग्रंथ साहब का पाठ करने पर जो अनुभूति होती है, उसकी शब्दों में अभिव्यक्ति करना असंभव है। वे पल अलौलिक होते हैं। उन पलों की शांति और पवित्रता अपूर्व होती है। सच में राजघाट और गांधी स्मृति के कण-कण में पवित्रता है। आखिर कोई बात तो है। ये आप तब महसूस करेंग जब आप वहां पर रहेंगे।” उन्हें विश्वास है कि शांति और अहिंसा के रास्ते पर चलकर विश्व नफरत पर विजय पा लेगा। संसार में शांति, सच्चाई और सहिष्णुता के एक नए युग की शुरुआत होगी। जसपाल कौर का संबंध मूलत: उत्तर प्रदेश के फैजाबाद से है। उन्होंने संगीत में प्रभाकर की डिग्री प्रयाग संगीत महाविद्लाय से ली। वो विवाह के बाद दिल्ली आ गईं।
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सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का स्थायी चेहरा
कात्सू सान
प्रार्थना- बुद्ध धर्म
कब से- पचास सालों से
कात्सू सान दो अक्तूबर तथा 30 जनवरी को राजघाट और फिर 30 जनवरी मार्ग(बिड़ला हाउस) में आयोजित होने वाली सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का स्थायी चेहरा हैं। वह गुजरी आधी सदी से भी कुछ कुछ अधिक समय से सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में भाग ले रही हैं। वह इन दोनों दिनों में प्रात: सात बजे तक राजघाट पहुंच ही जाती हैं। यहां पर सर्वधर्म प्रार्थना के बाद वह शाम को तीस जनवरी मार्ग में उपस्थित रहती हैं। 85 साल की कात्स जी की उर्जा देखने लायक है। उन्होंने अपने पिछले 50 सालों के सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं के दौरान फखरूद्धीन अली अहमद, शंकर दयाल शर्मा, के.आर. नारायणन, एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा सिंह पाटिल, प्रणव कुमार मुखर्जी, राम नाथ कोविंद जैसे राष्ट्रपतियों तथा श्रीमती इंदिरा से लेकर नरेन्द्र मोदी तक के सामने बुद्ध धर्म ग्रंथों से प्रार्थना पढ़ी है। कात्सू सान के बिना सर्वधर्म प्रार्थना की कल्पना भी नहीं कर सकते। उन्हें सब कात्सू बहन कहते हैं। गांधी जी के सत्य और अहिंसा के सिद्दातों को लेकर उनकी निष्ठा निर्विवाद है। कात्सू सान मूलत: जापानी नागरिक हैं। वो 1956 में भगवान बुद्ध के देश भारत में आईं थी ताकि उन्हें और गहराई से जान लें। एक बार यहां आईं तो उनका गांधीवाद से भी साक्षात्कार हो गया। उसके बाद तो उन्होंने भारत में ही बसने का निर्णय ले लिया।
जब उन्होंने भेंट की मोदी जी को अपनी पुस्तकें
डॉ. इंदु जैन
प्रार्थना- जैन धर्म
कब से – 2002 से
ड़ॉ. इंदू जैन सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का सन 2002 से हिस्सा हैं। वे इन दोनों दिनों के लिए तैयारी कुछ हफ्ते पहले से ही शुरू कर देती हैं। कहती है- “देखिए 30 जनवरी और 2 अक्तूबर देश के लिए बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। इन अवसरों पर देश गांधी जी के सत्य और अंहिसा के मार्ग पर चलने का फिर से संकल्प ले रहा होता है। मेरी कोशिश रहती है कि मैं जैन धर्म की उन प्रार्थनाओं का पाठ करूं जो गांधी जी की शिक्षाओं क करीब हों।” काशी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्व विद्लाय की छात्रा रहीं ड़ॉ. जैन कहती हैं कि जैन धर्म की प्रार्थनाओं को आगम वाणी कहा जाता है। वो सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में भारत की प्राचीनतम भाषा प्राकृत एवं संस्कृत में गाथा, मंगलाष्टक एवं महावीराष्टक की स्वरमयी प्रस्तुति करके न केवल सस्वर मंगल पाठ करती हैं बल्कि जैन धर्म के साथ-साथ भारत की प्राचीनतम भाषा एवं संस्कृति का भी प्रतिनिधित्व करती हैं। डॉ. इंदु जैन कहती हैं सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं का अंग बनकर वो बहुत अभिभूत महसूस करती हैं। ये अवसर सबको नहीं मिलता है। वो सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में 24 तीर्थंकरों की स्तुति का भी पाठ करती हैं। ड़ॉ. इंदू जैन के लिए गांधी जी की साल 2015 की जयंती अविस्मरणीय रही थी। राजघाट पर प्रार्थना के उपरांत प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी प्रार्थना करने वाले सभी लोगों से जब मिलने आए तो उन्होंने अपनी कुछ पुस्तकें उन्हें भेंट की। प्रधानमंत्री जी ने सहर्ष उन्हें स्वीकार किया था।
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सर्वधर्म प्रार्थना सिर्फ भारत में ही संभव
एजिकिल आइजेक मलेकर
प्रार्थना- यहूदी
कब से-1985 से
एजिकिल आइजेक मलेकर बीते लगभग तीस सालों से सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में यहूदी धर्म की प्रार्थनाओं का पाठ कर रहे हैं। करीब साठ सालों के मलेकर कहते हैं कि सर्व धर्म प्रार्थना का विचार सिर्फ गांधी जी जैसा महामानव ही दे सकता था। वे संत थे। उनके विश्व बंधुत्व और सभी धर्मों का सम्मान जैसे विचार सदैव प्रासंगिक रहेंगे। इसके साथ ही वे यह भी कहते हैं कि सर्वधर्म प्रार्थना सिर्फ भारत में ही संभव है। सब धर्मों का आदर भारत के अलावा किसी अन्य देश में नहीं होता। मलेकर बताते हैं किबाकी धर्मों से अलग है यहूदी धर्म । यहूदी एकेश्वरवाद में विश्वास करते हैं। करीब 4000 साल पुराना यहूदी धर्म वर्तमान में इजराईल का राजधर्म है। एजिकल हिन्दी, मराठी, अंग्रेजी, हिब्रू भाषाएं बोल लेते हैं। मोहम्मद रफी उनके पसंदीदा गायक हैं। वे रफी साहब का गाया बैजू बावरा फिल्म का गीत “ओ दुनिया के रखवाले, सुन दर्द भरे मेरे नाले” गीत गुनगुनाते रहते हैं।“”
पारसी- कभी मिस नहीं की सर्वधर्म प्रार्थना
इरवर्ड केवेस डी.बागली
पारसी प्रार्थना
कब से- 1984
इरवर्ड केवेस डी. बागली लगातार गुजरे 38 सालों से सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं से जुड़े हैं। उन्होंने इस दौरान एक बार भी प्रार्थना को मिस नहीं किया है। ये अपने आप में किसी कीर्तिमान से कम नहीं है। उनसे पहले राजघाट तथा तीस जनवरी मार्ग में सर्वधर्म प्रार्थना सभाओं में उनके पिता पारसी प्रार्थना का पाठ करते थे। अपने पिता की तरह बागली भी राजधानी के पारसी अंजुमन के पुजारी हैं। वे पारसी धर्म के धार्मिक ग्रंथ अवेस्ता, जिसे ज़ेंद अवेस्ता भी कहते हैं, से श्लोक पढ़ते हैं। ये सब विश्व कल्याणा और संसार के सभी प्राणियों की सुख- समृद्धि से संबंधित होते हैं। वे कहते हैं कि 2 अक्तूबर तथा 30 जनवरी को सारे प्रमुख धर्मों के धर्म गुरुओं या विद्वानों का एक मंच पर होना अपने आप में असाधारण पल होते हैं। सब अपने-अपने धर्मग्रंथों से भारत और शेष दुनिया के कल्याण के लिए प्रार्थना करते हैं। ये सिर्फ भारत में ही होता है। उस भारत में जहां पर सबके लिए स्पेस है। ये ही गांधी जी का सपना था। बागली पारसी अंजुमन में रहते भी हैं। 60 साल की उम्र पार कर गए बागली का जन्म इधर ही हुआ है। उनके घर से राजघाट पहुंचने में पैदल पांच- सात मिनट से ज्यादा का वक्त नहीं लगता। सेंट कोलंबस स्कूल के विद्यार्थी रहे बागली ने स्कूल के बाद मुंबई में कुछ साल रहे। वहां पर उन्होंने पारसी धर्म गुरु का कोर्स भी किया।