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भारत में शिक्षा का सुधार अत्यन्त आवश्यक*

शिक्षा देश की रीढ़ की हड्डी होती है। किसी भी देश की प्रगति तथा वहाँ के नागरिकों का भविष्य वहाँ की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर ही निर्भर करता है। भारत सरकार इस तथ्य से भली-भांति परिचित है इसीलिए शिक्षा नीति के अन्तर्गत समय-समय पर परिवर्तन किए जाते रहें हैं। नई शिक्षा नीति के अन्तर्गत शिक्षा को 5 + 3 + 3 + 4 के चरणों में बांटा गया है। पूर्व प्राथमिक स्तर 3 वर्ष एवं कक्षा 1 व 2 को आधारभूत शिक्षा के अन्तर्गत रखा गया है जिसमें 3 से 5 वर्ष तक के बच्चों को बिना किसी बस्ते के बोझ के खेल-कूद के माध्यम से शिक्षा के प्रति रूचि बढ़ाने का प्रयास किया गया है। 6 से 8 वर्ष की अवस्था में बच्चे की औपचारिक शिक्षा को आरम्भ करने का प्रावधान रखा गया है उस अवस्था में बच्चा परिपक्व हो जाता है और उसको स्वयं का ज्ञान होना प्रारम्भ हो जाता है। अक्सर यह देखा गया है कि 8 से 11 वर्ष की आयु के बच्चे कम्प्यूटर, मोबाइल अथवा कोई भी तकनीकी उपकरण का प्रयोग करने में अपने पिता से भी अधिक सक्षम होते हैं। यह अनौपचारिक शिक्षा बच्चों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास को सुदृढ़ करने में अत्यधिक सहायक होती है। विभिन्न शोधों से पता चला है कि 3 वर्ष की आयु तक बच्चें के मस्तिष्क का 85 प्रतिशत विकास हो जाता है। इस अवस्था मे एक बच्चे के शिक्षक उसके माता-पिता ही होते हैं। इन तीन वर्षों में वे नैतिक, चारित्रिक, सामाजिक और धार्मिक गुणों तथा संस्कारों की एक ऐसी नींव स्थापित कर देते हैं, जिस पर उनका सम्पूर्ण जीवन निर्भर करता है। बालक के जीवन का सम्पूर्ण विकास माता-पिता की अपनी जीवन शैली पर निर्भर करता है और यदि माता-पिता इस कसौटी पर खरे उतरते हैं तो निश्चितः बालक का जीवन देश व समाज के लिए एक अनमोल रत्न बनना प्रारम्भ हो जाता है।

नई शिक्षा नीति के अनुसार पहले चरण में बच्चे के शारीरिक विकास पर विशेष ध्यान दिए जाने का प्रावधान है। उसमें योग एवं खान-पान के द्वारा शरीर को हष्टपुष्ट कैसे रखा जाए उस पर विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि कहा भी गया है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। द्वितीय चरण में बच्चे के मानसिक विकास पर ध्यान दिया जाएगा, जिसमें बालक के स्वस्थ मस्तिष्क के साथ-साथ उसको धर्म व संस्कृति का पूर्ण ज्ञान प्रदान करने पर बल दिया जाएगा, जिससे वह जीवन की भावी चुनौतियों के लिए तैयार हो सके। तृतीय चरण में बालक के सामाजिक विकास के अन्तर्गत उसको सामाजिक मूल्य तथा समाजिक कर्तव्य बोध से अवगत कराया जाएगा, जिससे वो अपने दायित्वों को भली प्रकार समझ सके। चतुर्थ चरण के अन्तर्गत उसके भावनात्मक विकास को महत्व दिया जाता है तथा उसको देश व समाज के प्रति उसका समर्पण, श्रृद्वा, प्रेम तथा कर्तत्व का बोध कराया जाता है। जब उसे इनका बोध हो जाता है तो वह एक राष्ट्रभक्त नागरिक में परिवर्तित हो जाता है। इन्हीं गुणों से ओत-प्रोत जो युवावर्ग तैयार होगा उसी के ऊपर भारत का स्वर्णिम भविष्य निर्भर होगा। इस नीति को प्रस्तावित हुए लगभग 2 वर्ष की अवधि पूर्ण हो चुकी है परन्तु इसका क्रियान्वन अभी शेष है। देश के सम्मानीय शिक्षाविदों तथा सरकार से यह आशा व अपेक्षा है कि वे इस नई शिक्षा नीति को अतिशीघ्र क्रियान्वित करें, जिससे भारत देश पुनः विश्वगुरू बन सके।                                                            

*योगेश मोहन*

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