दिल की बीमारियों का रिर्वसल जीरो ऑयल भोजन से
डॉ. विमल छाजेड़
निदेशक
साओल हार्ट सेंटर, नई दिल्ली
जीवन को जीने के लिए क्या जरूरी है-भोजन। लेकिन क्या ऐसा होता है कि हमें भोजन के नाम पर कुछ भी दे दिया जाए, तो हम खा लेंगे जब तक वह स्वाद से परिपूर्ण न हो और हम भारतीय तो अपने खान-पान की पौष्टिकता से अधिक स्वाद पर ही ध्यान देते हैं। क्या कभी आपने सोचा है कि हमारा मनपसंद व्यंजन हमें इतना स्वादिष्ट क्यों लगता है? ऐसा इसलिए होता है क्योंकि स्वाद पहचान कराने वाली कोशिकाएं, मनपसंद भोजन लेने पर या जो व्यंजन हमें स्वादिष्ट लगता है। लेने पर तीक्ष्ण उत्तेजना उत्पन्न करती हैं जो हमें स्वाद का एहसास कराती हैं। भोजन में मीठे के प्रति हमारा आकर्षण सर्वव्यापी है और भारतीयों का मीठे के प्रति कुछ विशेष ही लगाव है। वर्ष 1986 की अपेक्षा आज हम 20 प्रतिशत अधिक चीनी का उपयोग कर रहे हैं। हमारी मानसिक धारणा के अनुसार बिना मिठाई का खाना हमें एक अधूरेपन का एहसास कराता है व एक बहुत बड़ी गलत धारणा हमारे दिमाग में घर कर चुकी है कि चर्बी रहित खाना,चाहे कितना भी चीनी युक्त हो, शरीर पर वजन नहीं बढ़ाता तथा हमारा अवचेतन मन ऐसे स्वाद की कल्पना ही नहीं कर पाता जो बिना घी, तेल, मक्खन आदि से बने खाद्य पदार्थों से मिला हो।
इसका एक ऐसा उपाय है जिससे न तो आपके स्वाद में कमी आएगी और न ही कोलेस्ट्रॉल या वसा आपके शरीर में आक्रमण कर पाएगा। चिकित्सा संबंधी मूल्यांकन, खतरा का मूल्यांकन, शारीरिक क्षमता के अनुरूप व्यायाम, व्यक्ति पर व्यायाम कार्यक्रम, खतरा दूर करने में सहयोग एवं ज्ञान, पथ्य नियम समझाना एवं परामर्श, धूम्रपान त्यागना, तनाव पर नियंत्रण, योग, ध्यान व चिंतन। हृदय रोगियों को इन सभी तरीकों द्वारा उनकी बीमारी से तो निजात दिलाई जा सकती है मगर लोग अगर अपने खान-पान का भरपूर ख्याल रखें तो लोग इस बीमारी की चपेट में आएं ही ना। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना तेल के खाना कैसे बनेगा, क्या उसमें स्वाद भी होगा। अगर आप ढंग से विचार करें तो उत्तर हां में मिलेगा क्योंकि स्वाद तो मसाले से ही आता है। तेल में अपना कोई स्वाद नहीं होता है। जब हम तेल हटाने को कहते हैं तो मसाले अपने आप हट जाते हैं। ऐसा इसलिए होता हैं क्योंकि ग्रहणियां यह नहीं जानती कि अगर बर्तन में तेल नजर नहीं आएगा तो मसाले कैसे भूने जाएंगे ? इससे साओल के जीरो तेल के विचार को विकसित करने का विचार आता है। हमारा मतलब है कि तेल की एक बूंद के बगैर खाना पकाना। लोगों के स्वभाव को इतनी जल्दी आसानी से बदला नहीं जा सकता है भोजन में जीरो ऑयल अवधारणा को सामने लाकर कोलेस्ट्रोल के खतरे को कम करने में भी मदद मिली है। हमारे देश में नाश्ता या नमकीन तैयार करने के लिए खूब तेल-घी इस्तेमाल करने की परंपरा है जो हृदय रोगियों के लिए बहुत ही खतरनाक है। इसलिए हमारे द्वारा बताए गए तरीकों को अपनाकर देखिए-
भूनना: भूनना तथा बेक करना लगभग एक समान है। यह कार्य 120 डिग्री सी तथा 260 डिग्री सी तापमान के बीच ओवन में किया जाता है। साधारणतया, पापड़ को भूना जाता है जबकि ब्रेड, केक तथा बिस्किट पकाए जाते हैं। भोजन को थोड़ी कड़ी आंच पर या थोड़ी कड़ी आंच पर या थोड़ी नमीदार आंच पर पकाया जाता है। अगर भोजन अधिक नमीदार है तो पकाने के लिए भोजन का तापक्रम शुरू में नमीयुक्त होना चाहिए ताकि ठंडे पदार्थ अनुकूल तापमान पर लाया जा सके। इस प्रक्रिया का यह लाभ है कि इसमें तेल बिल्कुल भी प्रयोग में नहीं लाया जाता तथा भोजन स्वाद से भरपूर पकता है।
उबालना: उबालने का मतलब है पानी में पकाना। इस माध्यम से पानी में ताप परिवर्तित होता है। इस प्रक्रिया में पानी बर्तन के साइड/किनारों से ताप लेता है, जिस बर्तन में पकाया जा रहा है, जब तापमान बहुत उग्र हो जाता है तो भोजन के उबलने की क्रिया शुरू हो जाती है। पानी ताप का कुचालक होता है इसलिए अन्य तरल पदार्थों की अपेक्षा इसे अधिक तापमान की आवश्यकता होती है। पानी के उबलने का तापमान 100 डिग्री सी होता है तथा अधिक तापमान पर इसके स्वरूप में बदलाव आने लगता है।
भाप द्वारा पकाना: भाप पकाने का एक माध्यम है। यह बिना पानी के कुकिंग तथा प्रेशर कुकिंग है। इस विधि द्वारा पकाने में नमीदार तापमान की आवश्यकता होती है। भोजन थोड़े पानी में भाप द्वारा पकाया जाता है तथा पानी रहित कुकिंग में खाद्य पदार्थ में उपलब्ध पानी को ही भाप के रूप में प्रयोग किया जाता है। भाप द्वारा भोजन पकाने में, खाद्य पदार्थ कुकर में निर्मित भाप में पक जाता है। भाप में खाद्य पदार्थ पकने की प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि पदार्थ का तापमान भी भाप के तापमान तक न पहुंच जाए।
दुनिया के तमाम देशों में आज भी हार्ट से जुड़ी बीमारियों के चलते मौत के मामले काफी ज्यादा आते हैं। भारत की बात की जाए तो पूरी दुनिया में दिल के मरीजों के मामलों में ये सबसे ऊपर है और लगातार पेशंट की संख्या में भी इजाफा ही हो रहा है। देश में करीब 8-10 करोड़ हार्ट पेशंट हैं और हर 10 सेकंड में यहां हार्ट की बीमारी के कारण एक मरीज की मौत हो जाती है। यानी हर दिन करीब 9 हजार मौतें दिल के रोगों के कारण होती हैं और एक साल में ये आंकड़ा 30 लाख तक पहुंच जाता है। मौतों का ये डाटा देखकर कहा जा सकता है कि कार्डियोलॉजी का विज्ञान फेल हो रहा है। पुण्य लाइफ फाउंडेशन भारत का सबसे बड़ा नॉन-इनवेसिव कार्डियक केयर क्लीनिक है। यहां सबसे ज्यादा जोर लाइफस्टाइल ठीक करने, खाने-पीने, मेडिकल और ईईसीपी यानी एक्सटर्नल इको काउंटर पल्सेशन ट्रीटमेंट पर दिया जाता है जिससे दिल को सेहतमंद रखने के लिए दोहरे रास्ते खुलते हैं। साओल के देशभर में ऐसे 100 क्लीनिक हैं जो लोगों के दिल की सेहत सुधारने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।