भारत अखण्ड सम्प्रभुता और राष्ट्रीयता है। हम भारत के लोग प्राचीन राष्ट्र हैं। भारत खण्डों को जोड़ कर नहीं बना लेकिन कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी को संभवतः भारत टूटा फूटा दिखाई पड़ता है। इसीलिए वे भारत जोड़ने की अपील के साथ पद यात्रा पर हैं। उन्होंने राष्ट्रवादी विचार के महानायक विनायक दामोदर सावरकर पर अभद्र टिप्पणी की है। सावरकर को अंग्रेजी सत्ता का पेंशनर बताया है। कहा है कि ”उन्होंने अंग्रेजी सत्ता की मदद की। जेल से अपनी रिहाई कि लिए माफी मांगी थी।” राहुल गाँधी का वक्तव्य क्रांतिकारी सावरकर पर घटिया आरोप है। राहुल नहीं जानते कि स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक समिति के मंत्री पंडित बाखले ने सावरकर जन्म तिथि अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी को पत्र लिखा था। श्रीमती गाँधी ने मई 1980 के पत्र में बाखले को उत्तर दिया, ‘‘मुझे आपका पत्र मिला। सावरकर ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अति साहसिक आंदोलनकारी थे। भारतीय स्वाधीनता संग्राम में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही है। मैं सावरकर की जन्म तिथि के उत्सव की सफलता की कामना करती हूँ।” श्रीमती गाँधी ने सावरकर की मृत्यु पर जारी बयान में उन्हें क्रांतिकारी बताते हुए बहुत लोगों को प्रेरणा देने वाला बताया था। आश्चर्य है कि राहुल गाँधी ने अपनी दादी श्रीमती इंदिरा गाँधी की सावरकर सम्बंधी भावनाओं को भी खारिज किया है। बेशक प्रत्येक राजनैतिक दल और नेता को अपने विचार रखने की स्वतंत्रता है लेकिन भारतीय इतिहास के नायक और हिन्दुत्व के पोषक सावरकर के विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी स्वीकार करने योग्य नहीं है।
एक या दो घटनाओं के आधार पर किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन उचित नहीं होता। सावरकर जैसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित व्यक्ति का मूल्यांकन तो कतई नहीं। वास्तविक मूल्यांकन समग्रता में ही विचार से संभव होता है। गाँधी, सावरकर, नेहरू, इंदिरा गाँधी भारतीय इतिहास के प्रतिष्ठित चेहरे हैं। क्या गाँधी जी का मूल्यांकन साम्प्रदायिक आंदोलन ‘खिलाफत‘ की भागीदारी के आधार पर ही संभव है? क्या चीन युद्ध की पराजय क®️ लेकर ही तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू जी का मूल्यांकन संभव है? क्या देश को लगभग 20 महीनों तक आपातकाल में झोंकने, मौलिक अधिकारों को तहस नहस करने की घटना के आधार पर श्रीमती इंदिरा गाँधी का मूल्यांकन हो सकता है? क्या संसद में आँख मारने की घटना से राहुल गाँधी का मूल्यांकन पर्याप्त है? इसी तरह क्या किसी अपुष्ट चिट्ठी के आधार प्रतिष्ठित क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी नेता सावरकर का वास्तविक मूल्यांकन संभव है? इतिहासकार डॉ विक्रम सम्पत ने सावरकर की यथार्थपरक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक पर भी अक्टूबर 2021 में हल्ला गुल्ला हुआ था। सावरकर ने लेखन और व्याख्या के बारे में समग्रता की जरूरत बताई है। सम्पत ने सावरकर का उद्धरण दिया है, ‘‘पूरे खिले गुलाब को व्याख्यायित करना अच्छा होता है। लेकिन उससे जुड़े प्रत्येक पक्ष की व्याख्या के बिना वह अधूरा रहेगा। उस गुलाब के सौंदर्य की अवधारणा को परखने के लिए सभी आयामों में विचार करना होगा। उसकी जड़ों से लेकर तनों तक। ताजी और सूखी पत्तियों के साथ काँटों का भी अवलोकन आवश्यक है।” यही नियम व्यक्ति के मूल्यांकन में भी लागू होना चाहिए। सावरकर की लिखी ढेर सारी प्रतिष्ठित पुस्तकें हैं। प्रथम स्वाधीनता आंदोलन पर उनकी पुस्तक बेजोड़ है। उनका कर्म तप अद्वितीय है। उन्होंने देश की स्वाधीनता के लिए अभिनव भारत सोसाइटी नाम से भूमिगत संस्था की स्थापना की थी। उन्होंने हिन्दू और हिन्दुत्व की व्याख्या की। उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा हुई थी। कोल्हू के बैल की जगह उन्हें इस्तेमाल किया गया। उन्होंने 1937 से 1943 तक हिन्दू महासभा की अध्यक्षता की। ‘हिन्दुत्व और हिन्दू कौन‘ पुस्तक में उन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप की जीवनशैली की व्याख्या की। वे स्वाधीनता संग्राम के विरल नायक हैं। उन्हें किसी ज्ञात अज्ञात याचिका के आधार पर अपमानित करना छद्म सेकुलर राजनीति का फैशन है।
सावरकर अद्वितीय हैं। गाँधी जी ने यंग इंडिया (26 मई 1920) में सावरकर की रिहाई पर लेख लिखा था। उन्होंने लिखा था, ‘‘भारत सरकार और प्रांतीय सरकारों की वजह से सजा भुगत रहे अनेक व्यक्तियों को शाही माफी का लाभ मिला है। परन्तु अभी कुछ विशिष्ट दोषी हैं जिन्हें नहीं छोड़ा गया। इनमें मैं सावरकर बंधुओं को गिनता हूँ। वे उसी अर्थ में राजनैतिक दोषी हैं, जिनको पंजाब में रिहा किया है। इसके बावजूद इन दोनों भाइयों को आजादी नहीं मिली।‘‘ गाँधी जी ने सावरकर पर लगाए गए आरोपों को साधारण प्रकृति का बताया और इसी लेख में लिखा, ‘‘उन्होंने कोई हिंसा नहीं की। उनके खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ। दोनों भाइयों की रिहाई रोकने का एक कारण सार्वजनिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है। वाइसराय को सम्राट ने राजनैतिक अपराधियों की शाही माफी लागू करने का काम सौपा है। मेरा मत है कि जब तक सबूत न पेश किया जाए, कि पहले ही लम्बी सजा काट रहे दोनों भाइयों की रिहाई देश के लिए खतरनाक साबित होगी। वाइसराय को उन्हें रिहा करना ही होगा।‘‘ गाँधी जी सावरकर की रिहाई पर जोर दे रहे थे। राहुल गाँधी उनके न रहने पर भी अपमान कर रहे हैं। भाजपा की अटल जी के नेतृत्व वाली सरकार ने पोर्ट ब्लेयर की कुख्यात सेल्युलर जेल में सजा काट चुके स्वतंत्रता सेनानी सावरकर की याद में नाम और उद्धरण वाली पट्टिका स्थापित की थी। दिवंगत आत्मा को देर से पहचान मिली थी। 2004 के आम चुनावों में कांग्रेस को सत्ता मिली। कांग्रेसी सरकार के पेट्रोलियम मंत्री मणि शंकर अय्यर ने यह पट्टिका हटवा दी। अय्यर ने सावरकर के सम्बंध में तमाम आपत्तिजनक बातें की। पट्टिका हटाने का औचित्य बताया। संसद में हंगामा हुआ। भाजपा और महाराष्ट्र की शिवसेना ने पट्टिका को दोबारा लगाए जाने की मांग की। सरकार ने इंकार किया। उस समय मणि शंकर अय्यर सावरकर के प्रति अपमानजनक बातें कर रहे थे और अब राहुल गाँधी हिन्दू और हिन्दुत्व के पैरोकार सावरकर के प्रति निंदक हैं।
आखिरकार सावरकर के नाम और काम से कांग्रेस को चिढ क्यों है? संभवतः राहुल गाँधी और कांग्रेस के मन में सावरकर को अपशब्द कहने से साम्प्रदायिक तत्वों के वोट मिलने की संभावना दिखाई पड़ती है। राहुल गाँधी ने कहा भी है कि सावरकर भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतीक हैं। कांग्रेस को चाहिए कि वह संघ और भाजपा से विचारधारा के आधार पर संघर्ष करें। स्वाधीनता संग्राम सेनानियों को तथ्यहीन बयानबाजी में न घसीटें। कन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ठीक कहा था कि स्वाधीनता संग्राम सेनानियों की राष्ट्रनिष्ठा पर शंका व्यक्त करने वाले लोगों को शर्म आनी चाहिए। आखिरकार हम दो आजीवन सजा भुगतने वाले, कोल्हू के बैल की तरह जोते जाने वाले स्वाधीनता संग्राम सेनानी के विरुद्ध अपमानजनक बातें क्यों करते हैं? शाह ने कहा था कि ”राजनैतिक बंदियों का याचिकाएं देना सामान्य औपचारिक काम है।” आपातकाल (1975 – 1977) के दौरान मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट) के बंदियों को भी याचिका देने की व्यवस्था थी। अपनी रिहाई के लिए विधिक रास्ता अपनाना माफी मांगने की श्रेणी में नहीं आता। कांग्रेस और राहुल गाँधी का इतिहासबोध कमजोर है। वे राष्ट्रवादी क्रांतिकारियों नायकों महानायकों के बारे में भी अच्छी राय नहीं रखते। जोड़ने की बात करते हैं और तोड़ने का काम करते हैं।