समाज । यह एक शब्द है जो आज के घुटनों तक कच्छा पहनकर घूमने वाले युवक युवतियों को बड़ा ही बकवास और दकियानूसी लगता है । क्युकी यह समाज ही है जो अभी तक अपने कंधे पर अपने अतीत और अपनी सामाजिक परम्पराओं की गठरी लेकर चलता आया है और समाज यह गठरी जिम्मेदारी के उन कंधों पर डालता है जो इसे संभालकर रख सके और आगे किसी जिम्मेदार व्यक्ति को हस्तांतरित कर सके । लेकिन यह हमारे और आपके लिए कितने अफसोस और शर्म की बात है कि हमारे इतनी बड़ी बड़ी डिग्री धारण करने के बाबजूद समाज के जिम्मेदार व्यक्तियों को वो कंधे नही मिल पा रहे है । वैसे समाज करता क्या है ? समाज का काम क्या है ? समाज ने आज तक किया ही क्या है ? ये सब बातें आज के पढ़े लिखे कूल ड्यूड के दिमाग में आती ही है क्युकी आजका कुल ड्यूड हर चीज को अपने किताबी ज्ञान के तर्क,वितर्क और कुतर्कों से ही परखता है । यहां तर्क,वितर्क और कुतर्को का नाम इसलिए दिया जा रहा है क्युकी आजका युवा अगर किसी जानकर व्यक्ति से किसी गंभीर विषय पर बहस करता है तो पहले इस मामले पर वो तर्क करेगा । जब तर्क में उसके पास सामने वालों के तीरों का कोई तोड़ नही होता है तो वह उससे वितर्क करता है ,मतलब मामले से ही अलग बयानबाजी और जब इस कुल ड्यूड को यह लगता है की वो सामने वाले से जीत नही पाएगा तो वो वितर्क का सहारा लेता है । मतलब मुद्दे से बिलकुल हटकर बातें करता है । पहले के जमाने में घर की औरतें सुबह सुबह घर का काम करते करते गीत गाया करती थी जो की मौसम के अनुरूप और त्यौहारों के अनुकूल होते थे । जैसे सावन के गीत, बारिश के गीत और अन्य गीत और बाकी की परंपराएं जो कि आज के समय में लुप्त होने के कगार पर है और आज का कुल ड्यूड इन्ही सब चीजों को फ्री समय में गूगल और यूट्यूब पर ढूंढता रहता है । लेकिन इंटरनेट से ही अगर हमें सभी चीजे मिल जाती , उन बातों की गहराई पता चल जाती तो फिर बात ही क्या थी ?? खैर समाज का एक पक्ष यह भी है जो आजके समय में बहुत कम लोगों को ही पता है । यहां अभी मैं जो बताने जा रहां हूं यह सुनने मे थोड़ा अजीब और अटपटा जरूर लग सकता है लेकिन यह हमारे जीवन का एक कड़वा सच भी । जैसे अगर किसी के परिवार में कोई खुशी का अवसर आता है तो वो समाज ही है जहां सब लोग मिलकर इस अवसर की सारी तैयारियों को अपना कर्तव्य समझकर निभाते है । वहां काफी लोग अपनी जेब से खर्च करने में भी झिझक महसूस नहीं करते है । उसी प्रकार यह समाज ही होता है जो कि किसी दुख में पड़े हुए व्यक्ति के साथ भी खड़ा हो जाता है । जैसे कि अगर किसी व्यक्ति के घर में कोई मृत्यु होती है तो पूरा परिवार शोकाकुल स्थिति में होता है । उस समय उस परिवार को कोई सुध नहीं रहती है ।यह समाज ही होता है जो कि उस व्यक्ति के अंतिम संस्कार की सारी प्रक्रिया में भागेदारी निभाता है और व्यक्ति की अंतिम यात्रा में भाग लेकर उस व्यक्ति को उसके गंतव्य स्थान तक छोड़कर आते है । यहां अभी हाल ही का एक प्रसंग बताता हूं । यह घटना राजस्थान और हरियाणा के गांव की है । एक औरत की बेटी की शादी होने वाली थी तो वो अपने गांव आती है । उस गांव में रहने वाले उसके भाई और उसके पिता की बहुत पहले मौत हो चुकी थी ,तो वह औरत इस गांव के एक पीपल के पेड़ के नीचे नारियल रखकर अपने गांव चली जाती है । ऐसा करते हुए उस औरत को गांव का एक बुजुर्ग देख लेता है और फिर शाम में गांव की चौपाल पर सभी लोग इकट्ठे होते है और इस पूरे वाकये को बताया जाता है । गांव वाले बाद में बिना किसी दवाब के अपनी मर्जी से अपने गांव की बेटी की बेटी की शादी के भात के लिए लाखों रुपए और शादी का सामान इकट्ठा कर देते है । यहां कहने का तात्पर्य यह है कि हम चाहे कितने भी बड़े ओहदे और पद पर पहुंच जाएं पर जिंदगी समाज में रहकर और सामाजिक बनकर ही हंसी खुशी जी सकते है । वरना आपके सोशल मीडिया पर करोड़ों फॉलोवर ही क्यों न हो, आपको आपका समाज और सामाजिक लोग ही मदद करने आएंगे वरना आजके दिखावटी और बनावटी समय में लोग सिर्फ ऊपरी चमक के ऊपर भागते है ।
*बाकी आप सब समझदार है*
*धन्यवाद*
*हेमन्त कुमार शर्मा*