Shadow

देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी कहलाते हैं-मंगलपांडे ।

भारतीय इतिहास की दृष्टि से 8 अप्रैल का दिन बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्यों कि यह दिन वह दिन है जिस दिन भारत ने अपने एक वीर स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे को खो दिया था। आठ अप्रैल का दिन शहीद मंगल पांडे की पुण्यतिथि है। मंगल पांडे वह शख्सियत थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मंगलपांडे भारत के प्रथम क्रांतिकारी के रूप में विख्यात हैं। सच तो यह है कि वे देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्रामी कहलाते है। उनके द्वारा शुरू किया अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह, समूचे देश में दावानल (जंगल की आग) की तरफ फ़ैल गया था। इस भयंकर दावानल को अंग्रेजों ने बुझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन देश के बच्चे-बच्चे के अंदर ये आग भड़क चुकी थी, और इसी की बदौलत सन् 1947 में हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई। हम खुली हवा में सांस ले सके हैं। मंगल पाण्डेय (34वीं बंगाल इंफेन्ट्री) ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिक थे, उन्होंने अकेले अपने दम पर ब्रिटिश अफसर पर हमला बोल दिया था, जिस वजह से उन्हें फांसी हो गई थी।  मात्र 30 साल की बहुत ही छोटी सी उम्र में उन्होंने अपने जीवन को भारत देश के नाम कुर्बान कर दिया था। कहते हैं कि पहली बार मंगल पांडे के नाम के आगे शहीद शब्द लगाया गया था। तत्कालीन अंग्रेजी शासन/सरकार ने उन्हें(मंगल पांडे को) बागी करार दिया था जबकि आम हिंदुस्तानी उन्हें आजादी की लड़ाई के असली वीर नायक के रूप में सम्मान देता है। वास्तव में, 1857 के देशव्यापी विद्रोह ऐसा विद्रोह था जिसने समस्त अंग्रेजी सेना व हुक्मरानों को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया था। जानकारी देना उचित होगा कि, 1857(प्रथम स्वाधीनता संग्राम) के विद्रोह के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामर्स्टन था और उस समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग था। उन्होंने भारत आने से पूर्व ही इस असंतोष(सैनिक विद्रोह) की आशंका व्यक्त कर दी थी। इस सैनिक विद्रोह ने सैनिकों के साथ ही भारत की जनता, यहाँ के समस्त किसानों, मजदूरों, जनजातियों, शिल्पकारों, क्रांतिकारियों व अनेक रजवाड़ों तक को भी अपने में समाहित कर लिया था। यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि दामोदर विनायक सावरकर ने 1857 को ‘भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम’ माना है। वास्तव में,चर्बी(गाय व सूअर) लगे कारतूसों के प्रयोग को लेकर सैनिकों में अशांति उत्पन्न हो गई थी। इन कारतूसों को प्रयोग में लाने के लिए सैनिकों को इन्हें अपने मुंह से खोलना पड़ता था। यहाँ जानकारी देना चाहूंगा कि सन् 1856 से पहले तक अंग्रेजी सेना के भारतीय सिपाही ब्राउन ब्रीज नाम की बंदूक का इस्तेमाल करते थे। 1856 में भारतीय सेना के इस्तेमाल के लिए नवीन एनफील्ड पी-53 लाई गई। वास्तव में, इस बंदूक को लोड करने के लिए पहले कारतूस को सैनिकों को अपने दांतों से काटना पड़ता था। इसी समय भारतीय सिपाहियों के बीच यह बात फैल गई कि इस राइफल(एनफील्ड पी-53 में) में इस्तेमाल किए जाने वाले कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी का इस्तेमाल किया गया है। इस वजह से हिंदू और मुस्लिम सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही थी। सिपाहियों द्वारा इसे ब्रिटिश शासन द्वारा हिंदू और मुसलमान धर्म को भ्रष्ट करने की सोची समझी साजिश कहा गया। बताना चाहूंगा कि 23 जनवरी 1857 को दमदम के सैनिकों ने इन कारतूसों को प्रयोग में लाने से इन्कार कर दिया तो 26 फरवरी 1857 को बहरामपुर, जो कलकत्ता से 120 मील दूर स्थित था की 19वीं एन० आई० ने कारतूसों का प्रयोग करने से मना कर दिया और विद्रोह कर दिया।  29 मार्च 1857 को बैरकपुर छावनी (मुर्शिदाबाद के समीप) के 34वीं एन0आई0(नेटिव इन्फेंट्री) रेजिमेंट के सैनिक मंगल पांडे ने चर्बीयुक्त कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया और अपने साथियों से इसके विरोध में विद्रोह का आह्वान किया था अंग्रेज अधिकारी सार्जेण्ट ह्यूरसन तथा लेफ्टिनेंट बाग को गोली मार दी, परंतु ह्यूरसन बच गया। मंगल पाण्डे को कोर्ट मार्शल करने का फैसला सुनाया गया। छह अप्रैल 1857 को फैसला हुआ कि 18 अप्रैल 1857 को उन्हें फांसी दी जाएगी, लेकिन ब्रिटिश अफसरों के मन में उस समय इस क्रांतिकारी का इतना डर बैठ गया था, वे उनको जल्द से जल्द ख़त्म कर देना चाहते थे। इसलिए उन्होंने 18 की जगह 10 दिन पहले ही यानी कि 8 अप्रैल 1857 को ही मंगल पांडे को फांसी दे दी गई और 34वीं रेजीमेंट को भंग कर दिया गया। चर्बी वाले कारतूस के विरोध में विद्रोह की खबर शीघ्र ही मेरठ पहुंच गई। 24 अप्रैल 1857 को मेरठ में देशी घुड़सवार सेना के 85 सिपाहियों ने चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग से मना कर दिया। अतः उन्हें लम्बी सजा दी गई। 10 मई 1857 को मेरठ छावनी में तैनात सैनिकों ने खुला विद्रोह कर दिया और अपने सैनिक अधिकारियों पर गोली चलाई। वास्तव में, 10 मई को मेरठ की सैनिक छावनी में बगावत के साथ ही यह विद्रोह देखते-देखते पूरे उत्तर भारत में फैल गया था। शीघ्र ही विद्रोही दिल्ली की ओर कूच कर गये। मेरठ में तैनात अंग्रेज अधिकारी जनरल हेबिट के पास 2200 यूरोपीय सैनिक थे परन्तु उसने इस तूफान को रोकने का प्रयत्न ही नहीं किया। 11 मई को विद्रोही दिल्ली पहुँचे और 12 मई 1857 को उन्होंने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय को पुनः भारत का सम्राट घोषित कर दिया। मंगल पांडे की शहादत की खबर फैलते ही अंग्रेजों(अंग्रेजी शासन) के खिलाफ जगह-जगह संघर्ष भड़क उठा। हालांकि अंग्रेज इसे काबू करने में कामयाब रहे लेकिन मंगल पांडे द्वारा लगाई गई क्रांति की यह चिंगारी ही आजादी की लड़ाई का मूल बीज साबित हुई।जानकारी देना चाहूंगा कि वीर क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय का जन्म 19 जुलाई 1827 को नगवा गाँव जिला बल्लिया, उत्तर प्रदेश में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। अंत में, यही कहूंगा कि मंगल पांडे भारत की आजादी के अग्रदूत थे। भारत के इस महान वीर प्रथम क्रांतिकारी और स्वतंत्रता सेनानी को हम कोटि कोटि प्रणाम व नमन करते हैं। शत शत नमन। जय हिंद, जय भारत।

(आर्टिकल का उद्देश्य किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।)

सुनील कुमार महला,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *