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तीनों लोकों  में है जिनकी महिमा

डॉ कामिनी वर्मा
ज्ञानपुर ( उत्तर प्रदेश )
तन को विभिन्न प्रकार के रंगों से सराबोर करके, मन मे नवजीवन सा उल्लास जगाता , समाज मे समरसता और भाईचारे की भावना का विकास करके बुराई पर अच्छाई की और अधर्म पर धर्म की जीत का संदेश देकर होली पर्व के जाते ही कानो में माता के जयकारे गूंजने की आहट सुनाई देने लगती है । नवरात्र के 9 दिनों में घण्टों  और घड़ियालों के नाद से देश का कोना कोना घनघना उठता है । ऐसे श्रद्धामय परिवेश में मन में अकुलाहट हो रही है माँ के दिव्य दर्शन और विराट स्वरूप से भिज्ञ होने की । देश भर में जिनकेे आयतन , आस्था और श्रद्धा का केन्द्र हुआ करते है ।
मन की इस अकुलाहट को दूर करने के लिए पुरातात्विक और आभिलेखिक साक्ष्यों पर दृष्टि डालने पर ज्ञात हुआ कि हिन्दू धर्म मे देवी की उपासना प्रागेतिहासिक युग से ही हो रही है। सैन्धवकाल में शक्ति सम्पन्न मातृदेवी की आराधना के स्पष्ट प्रमाण प्राप्त होते है।
वैदिक काल में समाज पुरुष प्रधानता की ओर अग्रसर होने लगा। यद्दपि इंद्र वरुण , रुद्र आदि देव प्रमुख रूप से प्रतिष्ठित हो गए तथापि ऋग्वेद में उषा, अदिति और वाग्देवी की स्तुति के प्रमाण मिलते है व वाग्देवी का ओजस्वी रूप भी प्रदर्शित होता है। ब्राहाण ग्रंथो पर दृष्टिपात करने पर शतपथ ब्राह्मण में ‘अम्बिका’ नाम की देवी का रुद्र की बहन तथा तैत्तरीय आरण्यक में रूद्र की पत्नी पार्वती के रूप में उल्लेख है।
   महाकाव्य काल मे देवी का पूर्ण रूप से शक्तिसंपन्न रूप प्रतिष्ठित है। महाभारत में अर्जुन तो रामायण में राम युद्ध में विजय प्राप्ति की आकांक्षा से इनकी उपासना करते दिखाई पड़ते है । महाभारत में इसी संदर्भ में उल्लिखि,त है प्रातःकाल शक्ति का स्त्रोत का पाठ करने वाला युद्ध क्षेत्र में विजयी होता है !

पुराणों में देवी उत्पत्ति के अनेकशः प्रकरण है। हरिवंश व विष्णु पुराण में विष्णु द्वारा प्रार्थित पाताल निवासिनी, काल रूपिणी , योग निद्रा, पृथ्वी पर यशोदा के घर मे जन्म लेकर कंस द्वारा उनको शिला पर प्रक्षिप्त करते ही उसके हाथ से मुक्त होकर विंध्याचल पर्वत पर पहुंचकर वहीं निवास करने की कथा वर्णित है । मार्कण्डेय पुराण में महिसासुर का वध करने के लिए  ब्रह्मा , शिव , विष्णु, इंद्र, चन्द्र , वरुण, सूर्य आदि देवताओं के तेज से देवी के जन्म लेने तथा महिषासुर एवं शुम्भ निशुम्भ का संहार करने का उल्लेख मिलता है । चंड मुण्ड का वध करने से चामुंडा तथा महिसासुर का मर्दन करने के कारण महिसासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। पौराणिक काल मे ही यह महाकाली , महालक्ष्मी तथा महासरस्वती के नाम से स्थापित हो गयी थी।
 नवरात्रि देवी की आराधना का विशेष काल है। ऐसी मान्यता है इन दिनों में यह स्वयं पृथ्वी आकर निवास करती है। अतः इस अवधि में इनकी पूजा आराधना करने से यह शीघ्र प्रसन्न होकर मनोवाँछित फल प्रदान करती हैं।
देवी भागवत पुराण के अनुसार पूरे वर्ष में गुप्त नवरात्रि सहित चार बार यह आध्यात्मिक और धार्मिक उत्सव मनाया जाता है । जहाँ गुप्त नवरात्रि में मुख्य रूप से तंत्र की साधना की जाती है वहीं शारदीय व बासन्तिक नवरात्रि में आत्मशुद्धि व मुक्ति की कामना की जाती है। नवरात्रि में  देवी के नव रूपों में महालक्ष्मी ,महासरस्वती, महाकाली की भक्ति विशेष रूप से की जाती है। सौम्य रूप में यह लक्ष्मी है तो उग्र रूप में गले मे नरमुंड धारण करने वाली काली माता है।
लोक मान्यता अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन आदि शक्ति का धरती पर अवतरण हुआ था और इन्ही की इच्छा से ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना का कार्य आरंभ किया था। अतः इसी दिन से चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नव वर्ष का आरम्भ माना जाता है।

नवरात्रि का उत्सव ऋतू संक्रमण काल में मनाया जाता है इस काल में शरीर विभिन्न रोगों से जल्दी ग्रसित होता है । नवरात्रि में मन और शरीर दोनो को स्वच्छ व शुद्घ रखने का विधान किया गया है। इन्द्रियों पर नियंत्रण व खान पान में संयम शरीर के आंतरिक भागों को निर्मल करता है , उत्तम कर्म व विचारों से व्यक्ति  उन्नति की ओर अग्रसर होता है । नवरात्रि के दिनों में माता के नवरुपों तथा नवें दिन कन्या पूजन का विधान , नारियों का सम्मान व उनको संरक्षित करने का संदेश देता है।                               
   उत्तर भारत मे कश्मीर में शारदा देवी दक्षिण में कन्याकुमारी व मीनाक्षी देवी , आसाम में कामाख्या देवी, बंगाल में दुर्गा व काली तथा मध्य भारत मे विंध्यवासिनी सहित 51 शक्ति पीठों पर श्रद्धालु भारी  संख्या में बहुत ही श्रद्धा व उत्साह से शक्ति की उपासना के लिए पहुंचते हैं।

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