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वृन्दावन की विधवाएं

हर शहर की अपनी एक कहानी होती है, जिसमें वह जीता है, जिसके कारण वह पूरे जगत में विख्यात या कुख्यात होता है। ये बहुत मामूली नहीं होती, यह पर्यटकों और नागरिकों के दृष्टिपटल पर छा जाने वाली एक कहानी होती है। कभी कभी यह गुलाबी होती है तो कभी यह इस गुलाबीपन में अंधेरे को बसाए हुए। और कभी कभी इस अंधेरे से किसी आशा की किरण का फूटना। ऐसी ही कहानी है वृन्दावन की। जो पिछले दिनों या कहें पिछले कई वर्षों से कुछ अलग कारणों से चर्चा में है। होली के आते ही कई पत्रकारों और टीवी के समाचार चैनलों का रुख वृन्दावन की तरफ होने लगता है। विदेशी पत्रकार अपनी स्टोरी करने के लिए वृन्दावन पहुंचने लगते हैं। ऐसा लगता है कुछ अनोखा और अनूठा घट रहा है। दरअसल वे सब जाते हैं, सुलभ इंटरनेश्नल द्वारा आयोजित विधवाओं के लिए होली कार्यक्रम देखने। इसके दो कारण हो सकते हैं कि एक तो वे विधवाओं की जि़न्दगी को दिखाना चाहते हैं या फिर वे भारतीय संस्कृति के इस स्वरुप को और विकृत कर इसके माध्यम से भारतीय संस्कृति पर प्रहार करना चाहते हैं। कारण कुछ भी हो सकते हैं। मगर यह बात एकदम सत्य है कि वृन्दावन में होली बहुत ही रंगीन होती है।

प्राचीन समाज में भारतीय समाज में विधवाओं की यदि बात करें तो उन्हें समाज से बेदखल करने का चलन या प्रवृत्ति परिलक्षित नहीं होती है। रामायण काल में दशरथ की तीनों रानियां राजा की मृत्यु के उपरान्त पूरे राजकीय सम्मान के साथ महल में ही रही थीं और सामाजिक स्तर पर भी ऐसा कोई भेदभाव नहीं दिखता कि उन्हें किसी सामजिक समारोह से दूर रखा जाता हो। इसी प्रकार महाभारत काल में भी रानी सत्यवती, कुंती, अम्बा आदि विधवा स्त्रियों के उदाहरण मिलते हैं और इनमें से कोई ऐसी स्त्री नहीं थी, जिसे सामाजिक स्तर पर किसी भी तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा हो। वैदिक काल में विधवा विवाह शायद नहीं था मगर उन्हें प्रसन्न रखने का पूरा पूरा प्रबंध किया जाता था।

स्त्रियों की स्थिति में समय के साथ क्षरण के साथ ही विधवाओं की समस्या उत्पन्न हुई, जिसे आर्थिक पहलू से जोड़कर देख सकते हैं। वैसे कई और पहलू भी रहे होंगे मगर समय के साथ विदेशी आक्रमणों के कारण संस्कृति का पतन आरम्भ हुआ और इसने सबसे बड़ा असर स्त्रियों की स्थिति पर डाला। आज समय बदल रहा है, स्त्री हर मोर्चे पर पुरुष के साथ कंधा मिलाते हुए चल रही है। फिर भी कई क्षेत्रों में विधवा समस्या अभी भी जस की तस बनी हुई है। ऐसे में वृन्दावन में पूरे भारत से पहुंची हुई विधवाओं के लिए सुलभ इंटरनेश्नल बहुत ही अधिक कार्य कर रहा है और वृन्दावन शहर की विधवाओं के लिए कुछ ठोस कदम उठाने के लिए स्वयं उच्चतम न्यायालय ने उनसे सलाह और सुझाव मांगे थे।

वृन्दावन जो पिछले कुछ वर्षों तक केवल अपनी गलियों में भीख मांगती हुई वृद्ध विधवाओं के कारण कुख्यात था, तो वहीं आज वृन्दावन के गलियों में कोई भी विधवा स्त्री भटकती हुई नहीं मिलती है, सभी आश्रमों में हैं और जहां पर उनके लिए न केवल निवास और भोजन की व्यवस्था है बल्कि साथ ही रोजगार की भी व्यवस्था की जाती है। आज उन्हें मानव श्रम के रूप में विकसित किया जा रहा  है, जिससे वे देश के आर्थिक विकास में अपना सार्थक योगदान कर सकें।

होली के ये रंग जो उनके जीवन में उकेरे हैं वे शायद एक दो सप्ताह में चले जाएंगे मगर ये आश्रम और सुलभ इंटरनेश्नल जिन हुनरों का जादू उनके जीवन में बिखेर रहा है, वह उन्हें यकीनन ही एक नई दिशा देगा।

आज आवश्यकता जहां एक तरफ इस बात की है कि हमें अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है वहीं आवश्यकता इस बात की भी है कि हमारी संस्कृति में जो काई जम गयी थी, उसे साफ किया जाए, झाड़ झंकारों को साफ किया जाए, जिससे बाहर से आने वाले लोग हमारी संस्कृति के वास्तविक रंग देख सकें, वृन्दावन में कान्हा के दर्शन करें और ये स्त्रियां अपने सामान्य जीवन में वापस जाएं। अपनी संस्कृति को छद्म आक्रमण से बचाना भी हमारा ही दायित्व है।

सोनाली मिश्र

 

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