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अखिलेश के सपा अध्यक्ष होने का अर्थ

अखिलेश यादव का समाजवादी पार्टी का अध्यक्ष बनना सपा के नेताओं और समर्थक जनाधार द्वारा युवा नेतृत्व की स्वीकृति है। कुछ लोग सोच रहे थे कि सपा दो भागों में विभक्तहो जाएगी पर ऐसा हुआ नहीं। विवाद में संसद सदस्यों, विधायकों एवं राष्ट्रीय परिषद् के सदस्यों का प्रबल बहुमत चुनाव आयोग पहुंच गया । पार्टियों में विवाद की स्थिति में अपना स्थान सुनिश्चित करने के लिए लोग गुटों का सहारा लेते हैं, लेकिन इस अवधारणा के विरूद्ध सभी के सभी अखिलेश के पास पहुंच गए। ऐसा इसलिए हुआ कि सभी को अखिलेश के अलावा कोई विकल्प दिखाई नहीं दिया।

मुलायम सिंह परिस्थितियों को भांप कर नरम हो गए । पिता-पुत्र की इस नरमी में राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने अहम भूमिका निभाई। लालू की यह भूमिका अखिलेश के लिए पार्टी एवं नेतृत्व विस्तार में सहायक होने का संकेत है। लालू बूढ़े हो रहे हैं, उनका जनाधार राष्ट्रीय पार्टी का भाग रहे, यह उनके लिए श्रेयस्कर होगा। लालू प्रसाद यादव परिस्थितियों को भांप कर उनके अनुसार लचीला होने में माहिर हैं।

बिहार में समाजवादी आंदोलन का एक बड़ा जनाधार रहा है। कमोबेश यही मूल आधार राष्ट्रीय जनता दल एवं जेडी(यू) का है। यह आधार आजादी के बाद डॉं. राम मनोहर लोहिया के नेतृत्व में चले विभिन्न जन संघर्षों के परिणामत: है। डॉ. लोहिया अपने जीवनकाल में सर्वमान्य नेता थे। उनके बाद राजनारायण एवं कर्पूरी ठाकुर इस जनाधार के नेता चौधरी चरण सिंह के राष्ट्रीय राजनीति में उभार के पूर्व तक थे। बिहार का समाजवादी आंदोलन का जनाधार अपने उद्देश्यों के अनुकूल नेता का चुनाव करने में सक्षम रहा है । चौधरी चरण सिंह ने जब अखिल भारतीय लोकदल बनाकर 1975 में उत्तर प्रदेश की राजनीति से निकलकर राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश किया तो बिहार का समाजवादी आंदोलन का जनाधार राजनारायण एवं कर्पूरी ठाकुर से हटकर उनके साथ हो गया। यह स्थिति उनके जीवनपर्यंत बनी रही । राजनारायण एवं कर्पूरी ठाकुर उनके सहायक की भूमिका में आ गए। जानकार यही बताते हैं। यह स्थिति अखिलेश के लिए राष्ट्रीय राजनीति की ओर अग्रसर होने में महत्वपूर्ण भूमिका बना सकती है ।

उत्तर प्रदेश चुनाव का बिगुल बज चुका है। अखिलेश अपनी स्वस्थ छवि एवं पिछले पांच वर्षों के कार्यकलाप के साथ मैदान में डटे हैं। ऊंट का करवट लेना अभी बाकी है। प्रथम चरण के मतदान के 11 दिन पूर्व डायलॉग इंडिया का यह अंक पाठकों के हाथ में होगा। अखिलेश अपने प्रतिद्वंद्वी भाजपा से अधिक और कम नहीं तो बराबर-बराबर अवश्य हैं। निर्णय होना बाकि है। भाजपा के पास राज्यों में कोई खास चेहरा अखिलेश की तुलना में नहीं है। नरेंद्र मोदी या अमित शाह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो नहीं हो सकते। यह स्थिति अखिलेश के लिए सहायक होगी।

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