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ईवीएम की बची इज़्ज़त

ईवीएम की बची इज़्ज़त

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हर चुनाव में नेताओं से ज्यादा EVM की इज्जत दांव पर लगी होती है. हर जीत EVM की कारीगरी बताई जाती है. लोकतंत्र की जीत को EVM की जीत बताया जाता है. EVM को बदनाम किया जाता है. चुनाव दर चुनाव EVM पर परिपक्वता बढ़ने की बजाय शंका और अविश्वास बढ़ाया जाता है. लोकसभा चुनाव में तो लगभग सभी विपक्षी दलों ने बैलेट पेपर की पद्धति से चुनाव कराने की मंशा जाहिर की. कई बड़े नेताओं ने तो इतनी संख्या में निर्दलीय प्रत्याशी उतारने तक की जुगाड़ लगाई, ताकि EVM मशीन की तकनीकी क्षमता समाप्त हो जाए और चुनाव बैलेट पेपर पर हो जाए. देश में शंका का ऐसा वातावरण बनाया गया, कि जैसे EVM के जरिए चुनाव परिणामों को मैनेज किया जाता है. सर्वोच्च न्यायालय में बैलेट पेपर से मतदान के मांग की याचिका डाली गई. EVM और VVPAT पर्चियां का शत प्रतिशत मिलान करने की याचिकाएं पेश की गईं. सर्वोच्च न्यायालय ने बारीकी से EVM की शुद्धता और न...
विकसित देश भारत के आर्थिक दर्शन को लागू कर अपनी आर्थिक समस्याओं का हल निकाल सकते हैं

विकसित देश भारत के आर्थिक दर्शन को लागू कर अपनी आर्थिक समस्याओं का हल निकाल सकते हैं

BREAKING NEWS, TOP STORIES, आर्थिक, विश्लेषण
विकसित देश भारत के आर्थिक दर्शन को लागू कर अपनी आर्थिक समस्याओं का हल निकाल सकते हैं विश्व के कुछ विकसित देश, विशेष रूप से अमेरिका और ब्रिटेन, भारत को समय समय पर आर्थिक क्षेत्र में अपना ज्ञान प्रदान करते रहे हैं। परंतु, अब विश्व के आर्थिक धरातल पर परिस्थितियां तेजी से बदल रही हैं और भारत की स्थिति इस संदर्भ में बहुत सुदृढ़ होती जा रही है वहीं विकसित देशों की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। अमरीका स्थित निवेश बैंकिंग एवं वित्तीय संस्थान भारत के कुल कर्ज की स्थिति पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहते रहे हैं कि भारत का कर्ज, सकल घरेलू उत्पाद की तुलना में, तेजी से बढ़ता जा रहा है। जबकि, इसी मापदंड के आधार पर अमेरिका एवं अन्य विकसित देशों की स्थिति देखी जाय तो भारत की तुलना में इन देशों की स्थिति बहुत अधिक दयनीय स्थिति में पहुंच गई है, परंतु यह देश भारत को आज भी ज्ञान देते नहीं चूकते हैं कि...
<strong>क्या कांग्रेस को लड़ने के लिए उम्मीदवार नहीं मिले</strong>

क्या कांग्रेस को लड़ने के लिए उम्मीदवार नहीं मिले

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आर.के. सिन्हा लोकसभा चुनाव का सारे देश में माहौल बन चुका है और इस दौरान एक बात पर राजनीति की गहरी समझ रखने वाले ज्ञानियों को गौर करना होगा कि कांग्रेस लगभग 330 सीटों पर ही क्यों चुनाव लड़ रही है। 543 सदस्यों वाली लोकसभा में सरकार बनाने का ख्वाब देखनी वाली कांग्रेस के इतने कम सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करने की क्या वजह है? क्या उसे कायदे के उम्मीदवार नहीं मिले ?  कांग्रेस ने 1999 के लोकसभा चुनाव में 529 उम्मीदवार उतारे थे। उसके बाद  1998 में 477,1999 में 453, 2004 में 417, 2009 में 440, 2014 में 464 और 2029 में 421 उम्मीद उतारे। इस बार कांग्रेस के उम्मीदवारों की तादाद में पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में भारी गिरावट होने जा रही है। कांग्रेस के नेता लाख तर्क दें कि उनकी पार्टी क्यों कम सीटों पर उम्मीदवारों को उतार रही है, पर सच यही है कि सन...
<strong>वित्तीयवर्ष 2023-24 मेंभारतकाव्यापारघाटा 36 प्रतिशतकमहुआ</strong>

वित्तीयवर्ष 2023-24 मेंभारतकाव्यापारघाटा 36 प्रतिशतकमहुआ

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विदेशी व्यापार के क्षेत्र में भारत के लिए एक बहुत अच्छी खबर आई है। वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान  भारत के व्यापार घाटे में 36 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई है। यह विशेष रूप से भारत में आयात की जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं में की गई कमी के चलते सम्भव हो सका है। केंद्र सरकार लगातार पिछले 10 वर्षों से यह प्रयास करती रही है कि भारत न केवल विनिर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बने बल्कि विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का उत्पादन भी भारत में ही प्रारम्भ हो। अब यह सब होता दिखाई दे रहा है क्योंकि भारत के आयात तेजी से कम हो रहे हैं एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, रूस-यूक्रेन युद्ध, इजराईल-हम्मास युद्ध, लाल सागर व्यवधान, पनामा रूट पर दिक्कत के साथ ही वैश्विक स्तर पर मंदी के बावजूद एवं विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाओं के हिचकोले खाने के बावजूद भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात में मामूली बढ़ौतरी...
<strong>क्यों घटती जाती तादाद लोकसभा में आजाद उम्मीदवारों की?</strong>

क्यों घटती जाती तादाद लोकसभा में आजाद उम्मीदवारों की?

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आर.के. सिन्हा बुजुर्ग हिन्दुस्तानियों को याद होगा ही कि एक दौर में वी.के.कृष्ण मेनन, आचार्य कृपलानी, एस.एम.बैनर्जी, मीनू मसानी, लक्ष्मीमल सिंघवी, इंद्रजीत सिंह नामधारी, करणी सिंह, जी. जी. स्वैल जैसे बहुत सारे नेता आजाद उम्मीदवार होते हुए भी लोकसभा का कठिन चुनाव जीत जाते थे। पर अब इन आजाद उम्मीदवारों का आंकड़ा लगातार सिकुड़ता ही चला जा रहा है। अगर 1952 के पहले लोकसभा चुनावों के नतीजों को देखें तो हमें इन विजयी आजाद उम्मीदवारों की संख्या 36 मिलेगी। तब इनका समूह कांग्रेस के बाद दूसरा सबसे बड़ा था। यानि किसी भी गैर-कांग्रेसी दल से बड़ा था। निवर्तमान लोकसभा में निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या सिर्फ तीन रह गई थी। अभी तक मात्र 202 निर्दलीय उम्मीदवार लोकसभा में पहुंचे हैं। बेशक, लोकसभा का चुनाव अपन बलबूते पर लड़ना कोई बच्चो...
इस चुनाव में मुद्दे और माहौल क्या हैं?

इस चुनाव में मुद्दे और माहौल क्या हैं?

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विनीत नारायणइस बार का चुनाव बिलकुल फीका है। एक तरफ नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा हिंदू, मुसलमान, कांग्रेस कीनाकामियों को ही चुनावी मुद्दा बनाए हुए हैं। वहीं चार दशक में बढ़ी सबसे ज़्यादा बेरोज़गारी, किसान कोफसल के उचित दाम न मिलना, बेइंतहा महंगाई और तमाम उन वायदों को पूरा न करना जो मोदी जी2014 व 2019 में किए थे - ऐसे मुद्दे हैं जिन पर भाजपा का नेतृत्व चुनावी सभाओं में कोई बात ही नहीं कररहा। ‘सबका साथ सबका विकास’ नारे के बावजूद समाज में जो खाई पैदा हुई है, वो चिंताजनक है। रोचकबात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव को मोदी जी ने गुजरात मॉडल, भ्रष्टाचार मुक्त शासन और विकासके मुद्दे पर लड़ा था। पता नहीं 2019 में और इस बार क्यों वे इनमें से किसी भी मुद्दों पर बात नहीं कर रहेहैं? इसलिए देश के किसान, मजदूर, करोड़ों बेरोजगार युवाओं, छोटे व्यापारियों यहां तक कि उद्योगपतियोंको भी मोदी जी के भाषणों ...
क्या कांग्रेस का घोषणापत्र बनेगा उसके ताबूत की आखिरी कील ?

क्या कांग्रेस का घोषणापत्र बनेगा उसके ताबूत की आखिरी कील ?

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ये इंडियन नेशनल कांग्रेस है या इंडियन इस्लामिक कांग्रेस?मृत्युंजय दीक्षितलोकसभा चुनाव 2024 की अन्य तैयारियों कांग्रेस में भले ही पिछड़ गयी हो किंतु 48 पृष्ठों, 10 न्याय, 25 गारंटी के बड़े वादों के साथ उसने अपना चुनावी घोषणापत्र लगभग समय से जारी कर दिया। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे द्वारा जारी इस घोषणापत्र ने कांग्रेस को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है। विपक्ष के रूप में कांग्रेस का दस वर्ष का कार्यकाल सनातन विरोधी रहा और घोषणापत्र ने पार्टी के सनातन विरोधी होने पर अंतिम मोहर लगा दी । वर्तमान कांग्रेस जिसके नेता मोहब्बत की दुकान खोलते हैं वस्तुतः भगवान राम व सनातन हिंदू समाज के प्रति नफरत से भरे हुए हैं। अदालत में भगवान राम को काल्पनिक कहने वाली पार्टी ने स्वाभाविक रूप से अयोध्या में दिव्य भव्य एवं नव्य राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया और लगातार या तो स्वयं सनातन वि...
जल संकट के बढ़ते ख़तरे

जल संकट के बढ़ते ख़तरे

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विनीत नारायणबेंगलुरु में भीषण पेयजल संकट पिछले कुछ दिनों से अंतरराष्ट्रीय सुर्खियां बन रहा है। हाल ही में कर्नाटक केमुख्य मंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि बेंगलुरु को हर दिन 500 मिलियन लीटर पानी की कमी का सामनाकरना पड़ रहा है, जो शहर की दैनिक कुल मांग का लगभग पांचवां हिस्सा है। सीएम ने कहा कि बेंगलुरु केलिए अतिरिक्त आपूर्ति की व्यवस्था की जा रही है।हालाँकि, पानी की कमी केवल बेंगलुरु तक ही सीमित नहीं है, और न ही यह केवल पीने के पानी की समस्याहै। संपूर्ण कर्नाटक राज्य, साथ ही तेलंगाना और महाराष्ट्र के निकटवर्ती क्षेत्र भी पानी की कमी का सामनाकर रहे हैं। इसका अधिकांश संबंध पिछले एक वर्ष में इस क्षेत्र में सामान्य से कम वर्षा और इस क्षेत्र मेंभूमिगत जलभृतों की प्रकृति से है। अरबों-खरबों रूपया जल संसाधन के संरक्षण एवं प्रबंधन पर आजादी के बाद खर्च किया जा चुका है। उसकेबावजूद हालत ये है कि भारत के स...
भारत बने विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था

भारत बने विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था

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भारत, विश्व में उपभोक्ताओं का सबसे बड़ा केन्द्र बिन्दु है, इसी कारण आज सम्पूर्ण विश्व के उद्योगपतियों की निगाहें भारत पर केन्द्रित हैं। ये उद्योगपति, भारत में निवेश हेतु कोई न कोई अवसर सदैव ही तलाशते रहते हैं। इसी कारण आज भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वृद्धि हो रही है और यह वृद्धि ही हमारी अर्थव्यवस्था को विश्व में 5वें से तीसरें पायदान पर लाने की सबसे बड़ी कुंजी है। मोदी जी के द्वारा की गई घोषणा का क्रियान्वन आगामी 5 वर्षो में सम्भव हो सकता है, क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था से ऊपर के पायदान पर मात्र 2 राष्ट्र - जापान व जर्मनी ही विराजमान हैं। उपरोक्त दोनों दोनों देशों की अर्थव्यवस्था की वार्षिक वृद्धि दर मात्र 1-2 प्रतिशत ही है, अतः तृतीय पायदान पर भारत के स्थापित होने की पूर्ण सम्भावना बनी हुई है।पिछले 7 दशक में भारत की जीडीपी जो वर्ष 1947 में 2.70 लाख करोड़ थी, वो वर्ष 2023-24 तक 30...
ईवीएम-वीवीपैट: मतदाताओं को है जानने का हक़ !

ईवीएम-वीवीपैट: मतदाताओं को है जानने का हक़ !

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रजनीश कपूरपिछले दिनों देश की शीर्ष अदालत ने एक जनहित याचिका का संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग को नोटिस जारीकिया। नोटिस में अदालत ने चुनाव आयोग से पूछा कि भारत की चुनाव प्रणाली में इस्तेमाल की जाने वाली‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (ईवीएम) और उसके साथ जुड़ी ‘वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल’ (वीवीपैट) मशीनका शत प्रतिशत मिलान क्यों न किया जाए? चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की दृष्टि से याचिकाकर्ता की इसमाँग को उचित मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये नोटिस जारी किया। विपक्षी दलों द्वारा इस मिलान की माँग काफ़ीसमय से की जा रही है। परंतु न तो चुनाव आयोग और न ही शीर्ष अदालत ने इन माँगों पर ध्यान दिया। सभी कोयही लगता था कि जब भी विपक्ष चुनाव हारता है तभी ईवीएम पर शोर मचाता है।ऐसा नहीं है कि किसी एक दल के नेता ही ईवीएम की गड़बड़ी या उससे छेड़-छाड़ का आरोप लगाते आए हैं। इसबात के अनेकों उदाहरण हैं जहां...