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<strong><em><u>क्यों श्रेष्ठ कॉलेज खोलें गांवों में स्कूल</u></em></strong>

क्यों श्रेष्ठ कॉलेज खोलें गांवों में स्कूल

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, राष्ट्रीय, साहित्य संवाद
क्यों श्रेष्ठ कॉलेज खोलें गांवों में स्कूल या  क्यों चौ. छोटू राम- सीएफ एंड्रूज के कॉलेज का स्कूल खोलना खास आर.के. सिन्हा कभी विचार कीजिए कि किसी स्कूल या कॉलेज को किस आधार पर श्रेष्ठ कहा जाना चाहिए?  बेशक, इसका एकमात्र पैमाना यही हो सकता है कि उस शिक्षण संस्थान ने अपने विद्यार्थियों को इस तरह के संस्कार दिए जिसके चलते उन्होंने आगे चलकर बेहतर नागरिक बनकर देश और समाज की सेवा की। इसका एक पैमाना यह भी हो सकता है कि क्या उसने ( शिक्षण संस्थान) ने अपना विस्तार किया ? विस्तार से मतलब है कि क्या उसने अपनी कोई अन्य शाखा भी खोली और वहां का शिक्षण भी श्रेष्ठ और स्तरीय रहा । बेशक, इस मोर्चे पर दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज का नाम लेना होगा। सेंट स्टीफंस कॉलेज को गांधी जी के परम सहयोगी दीनबंधु सी.एफ.एंड्रूज की संस्था दिल्ली ब्रदरहुड सोसायटी ने स्थापित किया था।...
मौसम गड़बड़ा सकता है- सारे आर्थिक अनुमान

मौसम गड़बड़ा सकता है- सारे आर्थिक अनुमान

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मौसम गड़बड़ा सकता है- सारे आर्थिक अनुमान* बड़ी अजीब कश्मकश है, प्रतिकूल मौसमी हालात तथा बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों ने चिंता को और गहरा दिया है। निर्धारित चार प्रतिशत तक मुद्रास्फीति नियंत्रण के लक्ष्य को लेकर अनिश्चितता का माहौल है। बीते माह में खुदरा मुद्रास्फीति की दर 4.9 प्रतिशत थी इस पर केंद्रीय बैंक समेत आर्थिक विशेषज्ञ उत्साहित थे कि अब चार फीसदी के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इसी मकसद से केंद्रीय बैंक ने अप्रैल 2023 के बाद से रेपो दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया। केंद्रीय बैंक को आशंका थी कि रेपो दरों में बदलाव से महंगाई बढ़ सकती है। ऐसे में आरबीआई मुद्रा स्फीति की मौजूदा स्थिति को लेकर आशावान है। लेकिन साथ ही चिंतित है कि मौसम के मिजाज में लगातार आ रहे बदलाव तथा दो साल से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध व हालिया गाजा संकट से वैश्विक स्तर पर महंगाई बढ़ सकती है। जिसका असर भार...
aastha

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आस्था का सैलाब मनुष्य एक धार्मिक प्राणी है, इसीलिए वह अपनी धर्मांधता के वशीभूत होकर निर्णय लेता है। जब धर्मभीरू भक्तों की आस्था अतिश्यता में परिवर्तित हो जाती है, तो उसके दुष्परिणाम भी प्रकट होने प्रारम्भ हो जाते हैं। ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होने के लिए कौन उत्तरदायी है? यह एक यक्ष प्रश्न है क्योंकि हम किसी को भी इस परिस्थिति का एकमात्र उत्तरदायी नहीं कह सकते। परन्तु इससे साधारण जनता ही सबसे अधिक प्रभावित होती है, क्योंकि उस भोलीभाली जनता को कुछ स्वार्थी तत्वों के द्वारा स्वयं के आर्थिक लाभ हेतु गुमराह कर दिया जाता है, धर्मांधता की अतिशयता एक प्रकार के पागलपन कारण बन जाती है। ऐसी धर्मांधता मुख्यतः हिन्दु और मुस्लिम धर्म के अनुयायियों में देखने मिलती है। फलस्वरूप मन्दिर व मस्जिदों में त्योहारों के अवसर पर जनता का सैलाब इस विश्वास के साथ एकत्रित हो जाता है कि इन धार्मिक स्थलों पर अल्हाह अथ...
<strong>भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छू सकता है</strong>

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छू सकता है

EXCLUSIVE NEWS, TOP STORIES, आर्थिक, विश्लेषण
भारत का विदेशी मुद्रा भंडार एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को छू सकता है वर्ष 1991 में भारत के पास केवल 100 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार बच गया था जो केवल 15 दिनों के आयात के लिए ही पर्याप्त था। वहीं, आज भारत का विदेशी मुद्रा भंडार लगभग 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है एवं यह पूरे एक वर्ष भर के आयात के लिए पर्याप्त है। आज भारत विदेशी मुद्रा भंडार के मामले में चीन, जापान, स्विजरलैंड के बाद विश्व का चौथा सबसे बड़ा देश बन गया है। कोरोना महामारी के बाद भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 7,100 करोड़ अमेरिकी डॉलर से कम हुआ था, परंतु वर्ष 2022 के बाद से यह अब लगातार उतनी ही तेज गति से आगे भी बढ़ रहा है। और, अब तो यह उम्मीद की जा रही है कि आगे आने वाले समय में यह एक लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर के स्तर को भी पार कर जाएगा। भारत में वित्तीय एवं बैंकिंग क्षेत्र में लागू किए गए...
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

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हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया रजनीश कपूर1961 की बहुचर्चित फ़िल्म ‘हम दोनों’ का ये गाना सबने सुना होगा। धूम्रपान करने वाले सभी व्यक्तियों ने भी इसअवश्य सुना होगा। फ़िल्म में गाने के बोल इस तरह दर्शाये गये कि फ़िल्म का हीरो अपने सभी फ़िक्र और चिंताओंको धुएँ के कश में उड़ा देता है और चिंता मुक्त हो जाता है। परंतु क्या ये सही है कि मात्र सिग्रेट के कश भरने औरधुआँ उड़ाने से आपकी चिंताएँ ख़त्म हो जाएँगी? इसका उत्तर है नहीं। बल्कि यदि आपको धूम्रपान की लत लग जाएतो आपकी स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ बढ़ ज़रूर जाएँगी।आज जानते हैं कि ऐसा क्या है इस चंद लम्हे की मामूली सी ख़ुशी में, जो लाखों करोड़ों को इसकी लत लगा देती है।दरअसल सिग्रेट में मौजूद तंबाकू में निकोटीन पाया जाता है जो कश लेते ही बड़ी तेज़ी से यह धुआँ आपके फेंफड़े मेंसमा जाता है और कुछ ही क्षण में दिमाग़ तक पहुँच जाता है। दिमाग़ में प...
आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव*

आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव*

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आर्थिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव* यह देश के नीति निर्धारकों की योग्यता पर प्रश्न चिन्ह है किदेश में घरेलू क़र्ज़ की बढ़ोतरी रुक नहीं है। आँकड़े ज़्यादा पुराने नहीं हैं,दिसंबर 2023 में घरेलू कर्ज अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच चुका है और .सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में पारिवारिक ऋण का अनुपात 40 प्रतिशत हो गया है. । यह सब हाल के वर्षों में हुआ है। पारिवारिक कर्ज में बढ़ोतरी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा संकेत नहीं है. वित्तीय सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी मोतीलाल ओसवाल की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि दिसंबर 2023 में घरेलू कर्ज अपने सर्वाधिक स्तर पर पहुंच गया. सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) में पारिवारिक ऋण का अनुपात 40 प्रतिशत हो गया है. साथ ही, जीडीपी में पारिवारिक बचत का अनुपात लगभग पांच प्रतिशत रह गया है, जो ऐतिहासिक रूप से सबसे कम है। भारतीय रिजर्व बैंक ने पिछले वर्ष सितंबर में बताया ...
<strong>लोकसभा चुनाव में एक नये अध्याय की शुरुआत हो</strong>

लोकसभा चुनाव में एक नये अध्याय की शुरुआत हो

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- ललित गर्ग-लोकसभा चुनाव में चुनावी मैदान सज गया है, सभी राजनीतिक दलों में एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों का सिलसिला हमेशा की तरह परवान चढ़ने लगा है। राजनीति में स्वच्छता, नैतिकता एवं मूल्यों की स्थापना के तमाम दावों के अनैतिकता, दल-बदल, आरोप-प्रत्यारोप की हिंसक मानसिकता पसरी है। राजनेता दलबदल की ताल ठोक रहे हैं। दलबदलुओं को टिकट देने में कोई दल पीछे नहीं रहा, क्योंकि सवाल, येन-केन-प्रकारेण चुनाव जीतने तक जो सीमित रह गया है। सिद्धांतों और राजनीतिक मूल्यों की परवाह कम ही लोगों को रह गई है। चुनावी राजनीति देश के माहौल में कड़वाहट घोलने का काम भी कर रही है। स्वस्थ एवं मूल्यपरक राजनीति को किनारे किया जा रहा है। राजनीति पूरी तरह से जातिवाद, बाहुबल और धनबल तक सिमट गई है। हालत यह है कि अब तक राजनीति दलों ने जिन प्रत्याशियों को उतारा है, उनमें आधे से अधिक दलबदलू, अपराधी अथवा दागी हैं। ऐसे में राजन...
भारत में वर्ष प्रतिपदा हिंदू काल गणना के वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मनाई जाती है

भारत में वर्ष प्रतिपदा हिंदू काल गणना के वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर मनाई जाती है

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भारत में हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार नए वर्ष का प्रारम्भ वर्षप्रतिपदा के दिन होता है। वर्षप्रतिपदा की तिथि निर्धारित करने के पीछे कई वैज्ञानिक तथ्य छिपे हुए हैं। ब्रह्मपुराण पर आधारित ग्रन्थ ‘कथा कल्पतरु’ में कहा गया है कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी और उसी दिन से सृष्टि संवत की गणना आरम्भ हुई। समस्त पापों को नष्ट करने वाली महाशांति उसी दिन सूर्योदय के साथ आती है।  वर्षप्रतिपदा का स्वागत किस प्रकार करना चाहिए इसका वर्णन भी हमारे शास्त्रों में मिलता है। सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की पूजा ‘ॐ’ का सामूहिक उच्चारण, नए पुष्पों, फलों, मिष्ठानों से युग पूजा और सृष्टि की पूजा करनी चाहिए। सूर्य दर्शन, सुर्यध्र्य प्रणाम, जयजयकार, देव आराधना आदि करना चाहिए। परस्पर मित्रों, सम्बन्धियों, सज्जनों का सम्मान, उपहार, गीत, वाध्य, ...
<strong>बंद हो किसी भी भारतवासी को ‘बाहरी’ उम्मीदवार बताना</strong>

बंद हो किसी भी भारतवासी को ‘बाहरी’ उम्मीदवार बताना

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आर.के. सिन्हा आगामी लोकसभा चुनावों के लिए नामांकन पत्र भरने और चुनाव प्रचार का काम प्रतिदिन गति पकड़ता जा रहा है। इसके साथ ही सभी दल अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा भी करते जा रहे हैं। संयोग से अभी तक किसी प्रत्याशी पर ‘बाहरी’ उम्मीदवार होने का आरोप अभी तक नहीं लगा है। हालांकि, हमारे यहां किसी को भी बिना किसी कारण के बाहरी उम्मीदवार बता दिया जाता है। याद करें 2014 के लोकसभा चुनाव के समय जब नरेन्द्र मोदी ने वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला किया था तो कांग्रेस के नेता उन्हें ‘बाहरी’ बताने में लगे थे। इसी तरह अरुण जेटली के 2014 में   अमृतसर से चुनाव लड़ने पर विवाद खड़ा हो गया था। उन्हें भी कांग्रेस ने बाहरी उम्मीदवार कहा था। यह आरोप उस कांग्रेस   के नेताओं ने लगाए थे जिस पार्टी ने देश के 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में बाहरी दिल्ली सीट से म...
यह संकट किसानी का नहीं सबका है

यह संकट किसानी का नहीं सबका है

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स्पष्ट दिखने लगा है कि ग्लोबल वॉर्मिंग ने हमारे खेत-खलिहानों में दस्तक दे दी है। जिस गति से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, वह आम आदमी के लिये तो कष्टकारी है ही, किसान के लिये ती यह संकट ज्यादा बढ़ा है। इसका सीधा असर खेतों की उत्पादकता पर पड़ रहा है। जिसके मुकाबले के लिये सुनियोजित तैयारी की जरूरत है। किसानों को उन वैकल्पिक फसलों के बारे में सोचना होगा, जो कम पानी व अधिक ताप के बावजूद बेहतर उत्पादन दे सकें। अन्न उत्पादकों को धरती के तापमान से उत्पन्न खतरों के प्रति सचेत करने की जरूरत है, यदि समय रहते ऐसा नहीं होता तो मान लीजिए कि हम आसन्न संकट की अनदेखी कर रहे हैं। यह मसला इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मुद्दा दुनिया की सबसे बड़ी आबादी की खाद्य शृंखला से भी जुड़ा है। इसमें कोई शक नहीं कि गाहे-बगाहे इस संकट की जद में देश का हर नागरिक आएगा। दरअसल, दुनिया के तापमान पर निगाह रखने वाली...