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मीडिया में बड़े बदलाव की जरूरत ?

मीडिया में बड़े बदलाव की जरूरत ?

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डॉ. अजय कुमार मिश्रालोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में अपनी पहचान बनाने वाले मीडिया की पहचान सभी जगह विद्यमान है | समय-समय पर इनके कई स्वरुप सामने आये है जैसे प्रिंट मीडिया (न्यूज़ पेपर / मैगज़ीन), ब्रॉडकास्ट मीडिया (टीवी / रेडियो), डिजिटल मीडिया (इंटरनेट / सोशल मीडिया) इत्यादि | पर इन तीनों मीडिया में आज भी सबसे सटीक विश्वसनीयता प्रिंट मीडिया की मौजूद है, हाँलाकि प्रिंट मीडिया में समय के साथ-साथ पाठको की संख्या में कमी आयी है | आज के वर्तमान स्वरुप की बात करें तो प्रिंट और ब्रॉडकास्ट मीडिया दोनों डिजिटल मीडिया पर भी आ गए है और सबसे तेजी से करोड़ों लोगों के मध्य पहुचनें की क्षमता भी इन्ही में विद्यमान है | बढ़तें इंटरनेट के उपयोग ने इसकी पहुँच देश के कोनें कोने में कर दी है | सभी वर्ग केलोगों ने अपना स्थान इस मीडिया में बनाना शुरू कर दिया है, इनके पास परम्परागत ज्ञान और तकनीक न होतें होए भी स...
आइये हम सभी अपने कचरे को सोने में बदले 

आइये हम सभी अपने कचरे को सोने में बदले 

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 गांधीजी ने कहा है- "इस दुनिया में हर व्यक्ति की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है लेकिन हर किसी के लालच को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं है। आइए हम एक ऐसी दुनिया बनाने की आशा करें जहां नफरत, युद्ध, क्रोध और हिंसा के मामले में कचरा न हो।" लेकिन अपनों के लिए प्यार, करुणा, सहनशीलता और हाथ में हाथ डालकर चलने का वादा ही खजाना है। इस तरह, हम सभी अपने कचरे को सोने में बदल पाएंगे। -डॉ सत्यवान सौरभ  महान पुरुष वे हैं जो कचरे को सोने में बदलने में सक्षम होते हैं। उनके पास जीवन में उस व्यापक दृष्टि की क्षमता होती है जिससे वे प्रतिकूल परिस्थितियों में संभावित लाभों का पूर्वाभास कर सकते हैं। गांधी जी एक ऐसे नेता थे जो विपरीत परिस्थितियों में उठे, भारत के लिए एक आदर्श दृष्टि रखते थे और बिना किसी हथियार के अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़े, तब भी जब लोग सोचते थे कि एक अहिंसक आंदोलन...
पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक

पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक

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3 मई - प्रेस स्वतंत्रता दिवस पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक -प्रियंका 'सौरभ'एक स्वतंत्र प्रेस हमारे लोकतांत्रिक समाजों में एक आवश्यक भूमिका निभाता है जैसे -सरकारों को जवाबदेह ठहराना, भ्रष्टाचार, अन्याय और सत्ता के दुरुपयोग को उजागर करना, समाजों को सूचित करना और उन्हें प्रभावित करने वाले निर्णयों और नीतियों में शामिल होना। वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स दुनिया भर में प्रेस की आज़ादी की काफी निराशाजनक तस्वीर पेश करता है।  सरकारी धमकी, सेंसरशिप और पत्रकारों और मीडिया आउटलेट्स के उत्पीड़न के बढ़ते रूपों से हमारे लोकतंत्रों की प्रकृति और लचीलेपन को कम करने का खतरा है। हम आने वाले समय में इस मुद्दे से कैसे निपटेंगे , यह निर्णायक होगा। वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2021 को मीडिया वॉचडॉग ग्रुप रिपोर्टर्स विदाउट ब...
21वीं शताब्दी के डिजिटल दौर पर वैदिक ‘चश्मा’!

21वीं शताब्दी के डिजिटल दौर पर वैदिक ‘चश्मा’!

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21वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में आईटी क्रान्ति का डिजिटल दौर चल रहा है। पेपरलैश कारोबार को तब निर्ग्रन्थ व्यवस्था थी जो स्मृतिपटल पर चिरस्थाई रूप से सुरक्षित होती थी और सतत् अपग्रेड होती रहती थी। कैशलैश पुरानी परम्परा रही, व्यक्ति की क्रेडिट कार्ड के रूप में व्यक्तित्व नगदी के बगैर जीवन निर्वाह का आधार था। कृषि प्रधान देश में समाज का प्रत्येक वर्ग बिना नगद व्यवहार के सेवा भाव से स्वाभाविक वर्णाश्रम धर्म का निर्वाह करता था, फसल उठने पर बिना लिखापढ़ी के ही प्रत्येक क्रिया कलाप का वार्षिक लेन देन वहैसियत अपग्रेट होता था। तब साइबर क्राइम का खतरा कतई नहीं था। इसी क्रम में कुछेक विन्दुओं को अतीत से वर्तमान का तुलनात्मक विश्लेषण करने का प्रयास है, प्रकृतिवादी अतीत के उस दौर में प्राकृतिक घटक पशु-पक्षी, जल-वायु, आदि दैवीय आपदा का पूर्वानुमान लगाकर संकेत देने की सामथ्र्य रखते है। दरअसल ‘‘दुनिया को ...
डॉo एसo अनुकृति बनी विश्वबैंक में अर्थशास्त्री

डॉo एसo अनुकृति बनी विश्वबैंक में अर्थशास्त्री

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  वो कहते हैं न हौसले बुलंद हो और कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी कामयाबी की छलांग लगाई जा सकती है। कुछ ऐसी ही कहानी है हरियाणा की अनुकृति की, अनुकृति ने ये साबित कर दिखाया है कि बेटियों की जिंदगी सिर्फ चूल्हा-चौके तक सीमित रखना अब पुरानी बात हो गई है। आज बेटियां हर क्षेत्र में अपने परिवार और देश का नाम रोशन कर रही हैं। गरीबों की पढ़ी-लिखी और आगे बढ़ीं चाहें वो देश की बेटी हिमा दास हो या फिर कुश्ती के मैदान में अपना परचम लहराने वालीं फोगाट सिस्टर्स। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि मुहिम है। हरियाणा की बेटियां ने विश्व में नाम रोशन कर भारत को गौरवान्वित किया है। सभी यदि बेटियों की नींव को मजबूत करने में सहयोग करेंगे तो वह दिन दूर नहीं जब भारत दोबारा से विश्व गुरु बन जाएगा। हरियाणा के नारनौल में 23...